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अगर होती बेवफाई की सज़ा मौत तो मोहब्बत में जिस्म न शिकार होता, होती अगर हर घर में यौन शिक्षा तो होती अच्छे और बुरे स्पर्श की समझ तो फ़िर हर रिश्तेदार ईमानदार होता, न होता शोषण अपने परिवारजन से होती इंसानियत तो न कोई हैवान होता, मौत से भी बदतर मिलती अगर सज़ा तो किसी लड़की का न बलात्कार होता, होता अगर सब अच्छे और सच्चे मन से तो हर तरफ़ देखने पर सिर्फ़ इन्सान होता। - निलेश प्रेमयोगी
दिखों न तुम मुझे इस तरह न होकर भी हर जगह डरते हैं कि तुम्हारे इश्क़ में हम मजनूं न हो जाए। - निलेश प्रेमयोगी
खेलती रहो तुम खेल मोहब्बत कह कहकर, हम भी यह खेल होकर पूरा बर्बाद खेलते हैं। - निलेश प्रेमयोगी
शीर्षक: राजनीतिक खेल क्यों पुरुष-पुरुष,स्त्री-स्त्री कहते रहते हो, सच में समर्थक हो या बस ऐसे ही कहते हो, लड़ाते रहते हो पुरुष,स्त्री कह कहकर तुम, और ख़ुद तो तुम बैठकर मस्त मग्न रहते हो, राजनीतिक खेल खेलते हो लोगों की भावनाओं से, लड़ाते हो तुम उन्हें और जात,धर्म का मतभेद करते हो, ख़ुद ईश्वर को मानते भी हो या बस ऐसे ही कहते रहते हो, मैं भक्त हूं इस भगवान का कहकर तुम डंका पीटते रहते हो, और त्यौहारों पर ख़ुद राक्षस बन मांसाहार पान करते रहते हो, अरे..! बताओ तो सही क्यों तुम ऐसा करते रहते हो, लड़ाते हो पुरुष-पुरुष,स्त्री-स्त्री, जात,धर्म कहकर सबको, और काम अपना निकाल कर ख़ुद तुम मस्त मग्न रहते हो। राजनीतिक खेल तो तुम हर रोज़ लोगों की भावनाओं से खेलते रहते हो, कभी सवाल उठाते हो धर्म पर तो कभी नीच जाति कह लड़वाते रहते हो, ख़ुद ही जन्माते हो अपने मनमर्ज़ी का धर्म तुम रोज़-रोज़, और लेकर भगवान का नाम सबको लड़वाते रहते हो, राजनीति को तुम क्या ख़ूब इस्तेमाल करते हो, अपना फ़ायदा निकालने के लिए जात,जाति और धर्म को बदनाम करते हो, बनाकर मूर्ख इन अंधभक्तों को, तुम तो बस आराम करते हो, और कहते हो जिता दोगे मुझे तुम तो हर घर में ख़ुशहाली होगी, मैंने तो देखा ही नहीं कभी भी तुम्हें ऐसा करते, बताओ तो सही,क्या तुम सच में काम करते हो, अरे! क्या चूना लगाने की कला है तुम्हारी, कांड अपने और लोगों को बदनाम करते हो, राजनीति तुम छुपकर नहीं लोगों के सामने ही उनकी भावनाओं के साथ सरे-आम करते हो, क्यों पुरुष-पुरुष,स्त्री-स्त्री कहते रहते हो, सच में समर्थक हो या बस ऐसे ही कहते हो। - निलेश प्रेमयोगी
बन नहीं रही कोई भी लड़की सीता और देखों यह राम को पाने चली हैं। - निलेश प्रेमयोगी
कविता: ज़हर अंग्रेजों का घोलकर दिया ज़हर शरबत में अंग्रेजों ने हमने भी पी लिया छोड़कर हिंदी अपनी अंग्रेजी की गुलामी को हमने जी लिया करते रहे सब राज़ हम पर हमारी मज़बूरी हमें बनाकर हम भी बेवकूफी करते रहे डर डरकर अपना मुँह सी लिया प्राथमिकता दी हमने हिंदी से अधिक अंग्रेजी को अक्सर हमने तो ज़हर ख़ुद बनाया सबको पिलाया ख़ुद भी पी लिया अंग्रेजी हम तो बोलते ही रहें अक्सर पर बच्चों को भी बोलने को मज़बूर करा न बोलने पर उनके हमने उन्हें पीटा,रूलाया ख़ुद झूठी ज़िन्दगी जी लिया आज अंग्रेजी बड़े चाव से बोलते है हम भुलाकर अपनी हिंदी अपनी भाषा का कब्र किसी और ने नहीं हमने ख़ुद खोद ही लिया। - निलेश प्रेमयोगी
इश्क़ का समंदर नौका-ए-दर्द से पार किया कसूर था मेरा मैंने वेवफा से प्यार किया कि दर्द-ए-दिल बढ़ता ही रहा मेरा हर एक दफ़ा मैंने फिर भी दर्द बांटने से इन्क़ार किया हर दफ़ा और गिरता रहा मैं अपनी नज़रों से, फ़िर भी मैंने तो उससे ही मुसलसल प्यार किया दर्द के समंदर में हर रोज़ डूबते रहे हम कि उसने मेरे आगे किसी और को प्यार किया दर्द को भी खुशी समझकर जीता रहा तू "प्रेम" कि इस हद तक उस बेपर्दा बेवफा से प्यार किया। - निलेश प्रेमयोगी
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