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जो अभाव में थे वे सुखी थे जो अभाव में थे वे जीवित थे जो अभाव में थे वे ख़ुश थे जो अभाव में थे वे भाव मे थे जो अभाव में थे वे उम्मीद में थे जो अभाव थे वे प्रेम में थे जो अभाव में थे वे सफर में थे जो अभाव में थे वे ज्ञान मे थे जो अभाव में थे वे रोशनी में थे अभाव को प्रेम किया अभाव से जिया अभाव से लड़ कर प्रेम किया फ़िर सूरज पर, हवा पर ,पानी पर, भूख पर अभाव नहीं लिखा गया। तुम जो न आते तो तुम्हारी साँस की कमी ठहर जाती मुझ प़र तुम्हारी पीठ प़र मैने लिखा था संसार में प्रेम अभाव हथेली से हाथ छुड़ाने पर मेरी हथेली कसमसाती रही तुम्हारे स्पर्श के अभाव से आसमान तारो को कटोरे में भरकर रखता चांद के न होने पर मछलियां नदी में खुश रहती है जलधि मिठास के अभाव में रहता उदास नदी की मछलियां पोखर मे जाकर अनुराग गीत गाती हैं जलधि __ समुद्र #Neelam
प्रेम की कविताऍं लिखने के लिये प्रेमी होना जरूरी नहीं। बस प्रेममय होना भर काफी है दर्द लिखने के लिये दर्द में होने जरूरी नहीं, बस सवेंदनशील होना जरूरी है आँख खुद बा खुद धार बनकर बहती है और कलम कविता ,हर एक भाव में।
हमने कई कवितायेँ हाथो में पकड़ी माथे पर पकड़ी पर दिल पर न रख सके। और जो कविताऍं दिल मे रखी गई , वो खुद ब खुद माथे और हाथो में ठहर गई।
बाज़ार में कई सामान है आज ये आकर्षित करता है कल कुछ और क्या फर्क पडेगा कल तुम आकर ये कह दो की तुम्हारा प्रेम उतना आकर्षित नहीं रहा,अब।
******* मेरी हथेली पर सुस्त पडी रेखाये ,चक्रव्यूह की तरह कभी तूफान उठाती है और कभी खामोश सागर किनारा। दोनो हथेलियों को जुड़ने पर ये बोसा लेती है और बिछड़े प्रेमी सी गले लगती है रेखायें मतभेद होने पर चीख चीख कर लड़ती है बाज़ दफा ये हुआ, चलते तुफान में से उठकर हस्त्- रेखाओ ने हाथ चूमा फिर वही निढाल हो गई। कुछ पण्डितो ने इनके नखरो पर कुछ बुरे रंग ,बुरे सितरो का असर बताया और कुछ ने इनकी हालात पर हवन किया । न जाने कितनी तरकीब की इन्हे बदलने की पीपल के चक्कर लिये दरगाह पर माथा टेक चर्च में मोम्बती और गुरुद्वारो में अरदास। सब फिजूल। माँ अक्सर इनको भाग्य कहती ,पर उन्होने बहती नदियो पर बान्ध डालकर खुद को ही भाग्य विधाता भी कहा। pic courtesy:Google
जब भी मैं प्रेम में रहूँगी जंगली फूल बनी रहूँगी। महक बन धरा की उस छोर तक जाऊंगी जहां अनंत में सागर और जंगल एक हो जाते है #जंगली
प्रेम जब प्रचार में था उन्मुक्त की बात शर्त में कही गई प्रेम में डूबते ही शर्ते शातीर हो गई प्रेममय हुए प्रेममयी ठग लिए गये । पिंजरे से आसमान टुकरता है पँछी pic : google
पत्थरों पर गिराकर फूल तुम समझाते हो सब रिश्ते यूँही पेड़ों से टूट कर ,उगना वापस भूल जायेंगे । गलत सोचते हो ये जो गिरे है ये वक्त के नव प्रतिस्फुटित होने वाले बीज जो अभी खिलेंगे, वो फूल अभी प्रेम के बीज ,मुट्ठी मे पकडे है धरा की छाती में कुछ भेद गिलहरी बो देगी असमान कुछ नेह बरसा देगा बनकर प्रेम का बीज खिलेगा फिर नया कोई बाग यहाँ। Pic courtesy: Google
उस दिन जब उस दिन जब मन सपने बुनने का कारिगर न रहे। हिम्मत की तुरपाई उधड जायँ । जोश बेस्वाद हो जाये ज़ुबाँ नमक से भी ज्यादा खारी हो जाये। और ज़मीं आसमां से भी बडी लगे। समझ लेना तब विकलांगता आ गई है तुम्हें अंगो का न होना वर्ना कोई विकलांगता नहीं।
मै युद्ध को पीठ पर ढोती हूँ इसलिए एक हुंकार निकलती है मैं हर लाज़िमी शब्द पर चिखती हूँ और नमुनासिब शब्द पर सिस्कती हूँ तलवार नहीं कलम से मश्तिष्क को तराशती हूं समझकर भी न समझो दर्द की धार कितनी पैनी है प्रसव की पीडा में हूँ जैसे निरंतर सीने मे आँख बहती है उसने दो वक़्त की रोटी का जुगाड़ में अपनी कमर उधार दे दी उसने दो वक़्त की रोटी में अपनी छाती साहूकार के पास रख दी वो दो रोटी के लिए काले हाथो की गोरी हथेलियों फैलता है तुमने देखा होगा उस बच्चे की कमर पर एक बच्चा सोता है मेरा सीना छीलता है जब ये कहानी कहती हूँ वो बूढ़ा बाकी छ: का पेट पाल सके, अपनी बेटी को हैवनो के हवाले कर आता है दर्द खेती करता है धड़कनो पर पर किसानअपनी खेती से ही मर जाता है उनकी क्या कहानी जो बन्जारे बन गये पता नहीं उन माँओ की छाती से कब ढूध फूटता है
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