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Pearl verma

Pearl verma

@nehaverma4230


खोता भी कैसे मैं उसको
मिला जो मुझे कभी था ही नहीं
कैसे बनता वो रहनुमा मेरा
साथ मेरे जो चला ही नहीं
सजदे में झुकता भी तो क्यों झुकता
क्यूंकि उसमें खुदा कभी रहा ही नहीं
कतर के पंख मेरे खुश होता रहा वो
उसे क्या खबर की मैं तो कभी उड़ा ही नहीं
मेरी फितरत से वो क्यों ना हुआ वाकिफ
जबकि मैंने नकाब से खुद को कभी ढका ही नहीं
दरबदर क्यों मुझे ढूंढने लगा वो
मेरा तो कोई पता रहा ही नहीं
ग़म के खज़ाने दे कर उसे क्या हुआ हासिल
कई मुद्दात्तों से मैं तो हंसा भी नहीं
कुचल के रख़ दिया क़दमों तले मुझे
चाहे ज़मीन से मैं था उगा भी नहीं
मेरे दिल में रहता था वो
चाहे उसमें दिल था भी नहीं
सारे गिले उसको थे मुझसे
चाहे मुझे कोई शिकवा नहीं।
चाहे मुझे कोई शिकवा नहीं ।
            -PEARL VERMA

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वो ही इबादत थी मेरी
वो ही मेरा फसाना था
पर कश्ती थी पुरानी मेरी
और तूफ़ान को भी आना था
समझे चाहे ना एक लफ्ज़ भी वो
उस शख़्स को आंखों से एक शेर सुनाना था
ना ही वो आग का दरिया था
ना मैंने डूब के जाना था
बस इतनी इल्तेज़ा थी मेरी
इतना उसे बस बताना था
नहीं होता मुक्कम्मल जो किसी को
क्यों उसे इस ज़िन्दगी में आना था
टुकड़े क्यों किए तस्वीर के मेरी
जब वापस उसे नहीं उठाना था
उन टुकड़ों में कतरा कतरा हुआ था वो खुद भी
क्युकी मेरे अक्स भी तो उसी का नज़राना था
                                      -pearl verma

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rona b jo chahu to vo rone nahi deta
vo shaks to palke b bigone nahi deta
har roz rulata h khawobo me aakar
sona b jo chahu to sone nahi deta
ye kiske ishare par umad aaye hain badal
hai kaun jo barish kabi hone nahi deta
is dar se k tod ke aansu na bahaye
baccho ko mitti k khilone nahi deta
ek shaks h meri basti me aaj b
jo bojh akele muje dhone nahi deta

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इस कदर वो मुझे सज़ा दे गया
दर्द को जैसे कोई रास्ता दे गया
मेरे ही नक्शे कदम पर चल रहा था जो
निकाल कर मेरे ही जिस्म से रूह को ले गया
बड़ी शिद्दत थी जिसे मेरे क़दमों में सिमट जाने की
बेदखल कर के मुझे ही दर्द की रवानी दे गया
प्यास लगती तो ले आता समुंदर भी जो
रेत का दरिया, वो मुझे अपनी निशानी दे गया
साए की तरह जो किरदार में ढला था
खींच कर मेरे ही क़दमों से ज़मीं को ले गया
ज़िक्र मेरा जो करता था इबादत की तरह
ना जाने क्यों मेरी ही आंखों में पानी दे गया
गुनहगार हो कर भी खुद रहा बेदाग वो
छलनी कर के मुझे ही ज़ख्म रूहानी दे गया !
                            - Pearl verma

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Intezar ki fitrat nahi jane ki....
Aur teri fitrat nahi mere pas aane ki
Kaash esa ho ek din
Esa b aaye...
Fitrat tum dono ki badal jaye
Yaa khuda itna kar de mujpar reham
Ki intezar ki ghadiyan ho jaye khatam aur zindgibhar ka sukoon hame mil jaye...?