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खोता भी कैसे मैं उसको मिला जो मुझे कभी था ही नहीं कैसे बनता वो रहनुमा मेरा साथ मेरे जो चला ही नहीं सजदे में झुकता भी तो क्यों झुकता क्यूंकि उसमें खुदा कभी रहा ही नहीं कतर के पंख मेरे खुश होता रहा वो उसे क्या खबर की मैं तो कभी उड़ा ही नहीं मेरी फितरत से वो क्यों ना हुआ वाकिफ जबकि मैंने नकाब से खुद को कभी ढका ही नहीं दरबदर क्यों मुझे ढूंढने लगा वो मेरा तो कोई पता रहा ही नहीं ग़म के खज़ाने दे कर उसे क्या हुआ हासिल कई मुद्दात्तों से मैं तो हंसा भी नहीं कुचल के रख़ दिया क़दमों तले मुझे चाहे ज़मीन से मैं था उगा भी नहीं मेरे दिल में रहता था वो चाहे उसमें दिल था भी नहीं सारे गिले उसको थे मुझसे चाहे मुझे कोई शिकवा नहीं। चाहे मुझे कोई शिकवा नहीं । -PEARL VERMA
वो ही इबादत थी मेरी वो ही मेरा फसाना था पर कश्ती थी पुरानी मेरी और तूफ़ान को भी आना था समझे चाहे ना एक लफ्ज़ भी वो उस शख़्स को आंखों से एक शेर सुनाना था ना ही वो आग का दरिया था ना मैंने डूब के जाना था बस इतनी इल्तेज़ा थी मेरी इतना उसे बस बताना था नहीं होता मुक्कम्मल जो किसी को क्यों उसे इस ज़िन्दगी में आना था टुकड़े क्यों किए तस्वीर के मेरी जब वापस उसे नहीं उठाना था उन टुकड़ों में कतरा कतरा हुआ था वो खुद भी क्युकी मेरे अक्स भी तो उसी का नज़राना था -pearl verma
rona b jo chahu to vo rone nahi deta vo shaks to palke b bigone nahi deta har roz rulata h khawobo me aakar sona b jo chahu to sone nahi deta ye kiske ishare par umad aaye hain badal hai kaun jo barish kabi hone nahi deta is dar se k tod ke aansu na bahaye baccho ko mitti k khilone nahi deta ek shaks h meri basti me aaj b jo bojh akele muje dhone nahi deta
इस कदर वो मुझे सज़ा दे गया दर्द को जैसे कोई रास्ता दे गया मेरे ही नक्शे कदम पर चल रहा था जो निकाल कर मेरे ही जिस्म से रूह को ले गया बड़ी शिद्दत थी जिसे मेरे क़दमों में सिमट जाने की बेदखल कर के मुझे ही दर्द की रवानी दे गया प्यास लगती तो ले आता समुंदर भी जो रेत का दरिया, वो मुझे अपनी निशानी दे गया साए की तरह जो किरदार में ढला था खींच कर मेरे ही क़दमों से ज़मीं को ले गया ज़िक्र मेरा जो करता था इबादत की तरह ना जाने क्यों मेरी ही आंखों में पानी दे गया गुनहगार हो कर भी खुद रहा बेदाग वो छलनी कर के मुझे ही ज़ख्म रूहानी दे गया ! - Pearl verma
Intezar ki fitrat nahi jane ki.... Aur teri fitrat nahi mere pas aane ki Kaash esa ho ek din Esa b aaye... Fitrat tum dono ki badal jaye Yaa khuda itna kar de mujpar reham Ki intezar ki ghadiyan ho jaye khatam aur zindgibhar ka sukoon hame mil jaye...?
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