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हर गज़र पर है, एक ही सवाल हमदम.. कतरा कतरा वक़्त, गुज़र रहा है, या गुज़र रहें हम...??
तू न जाने, तू ख़ास हैं, दर्द तेरा मेरे दिल के, आस पास हैं.... बेगाना न कर इस तरह.... हमारे जीने की, एक तू ही तो, आस हैं.......
माँ की मार से ज्यादा स्वादिष्ट, कुछ भी नहीं.... उसी के आँचल में छुप कर, बहते उन आँसुओ के स्वाद से ज्यादा, स्वादिष्ट कुछ भी नहीं..... #स्वादिष्ट
#विधवा .... एक सुहागन तब मन से "विधवा", बन जातीं है, जब राते उसके हिस्से की, गैरो के साथ बिताई जाती है..... सुहागन की मांग का सिंदूर, तब रक्तिम हो जाता है, जब पति उसका उस पर, हाथ उठाता हैं.... मुस्कान चेहरे की हर पल, और खोखली हो जाती है, जब पति के द्वारा वो, छली जाती है.... क्या जरूरी है, बस ये बता दो?? सुहागन के रूप में विधवा होगा, या ससम्मान विधवा होगा...?? #विधवा
गर ख़ामोशी समझ सकें कोई तुम्हारी, तो उसे जाने न देना, दुनिया की इस भीड़ में मुश्किल से मिलता हैं, हर ओर के शोर में जिसने मौन है....सुना.....
एक बेटी किस तरह अपने पिता की इज्जत बचाती है और उनका गर्व बन जाती है.....जानने के लिए पढिए कहानी "कुबेर का खज़ाना" https://www.matrubharti.com/book/19895874/kuber-ka-khajana
जितनी शिद्द्त से, चाहा था तुम्हें.... उतनी ही शिद्द्त से, तुमने बेवफाई की.. ज़माने पर वैसे ही, भरोसा नहीं करतें हम.... तुम ने भरोसा पर से, भरोसा ही उठा दिया हमारा.... शिकायत तुम्हें क्या करें, ये तो दिल की खता हैं..... कसक दिल में कैसी है, ये तो बस दिल को पता है..... 💞💞एहसास- ए- इश्क़....💔💔
खुश रहने की और खुशियाँ मनाने की, कोई निर्धारित तिथि नहीं हैं, ये तो भावनाएँ हैं, जिनका बहना निर्धारित है, अनिर्धारित समय और हालातों में भी.... #अनिर्धारित
हिंद के निवासियों, सदियों के वासीयों, युगों युगों के ज्ञानीयों, विश्व में अभिमानीयों.... हिंद की मिट्टी के लाल, शब्दों का युग्म जाल, ममत्व की मिठास, मातृभाषा के व्यापारीयों..... गैर की चरण धूलि, मस्तिष्क पर सजांए, भूल गए अमिट छाप, हिंदी जो सबके मन पर लगाएं.... हर शब्द का जन्म हुआ, जिस भाषा के गर्भ से, भूल उसे भर गएँ, तुम कैसे दर्प से..... कैसी ये दुहाई है, जिस माँ का गर्व थे तुम, उसी माँ की बोली बोलने में, शर्म से आँखे झुक आई हैं..... हिंद की पहचान, हिंदी, हर बोली की प्राण,हिंदी, वेद, शास्त्र और पुराण, हैं, हिंदी का सबसे ऊंचा स्थान..... न भूलो, माँ के आँचल की ये सीख, अपनाओ जो है, हमारा, क्या मिल जाएंगा, लेकर, गैर की भीख.... चीर भीड़ को, पहचान बनाओं मातृभाषा को, कण कण में बसाओ....!!! हिंदी दिवस की शुभकामनायें देने वाली कोई बात नहीं....क्यूँकि हमारे देश का 75% कारोबार दुसरी भाषाओं में होता हैं.....और विडम्बना ये है कि जो हिंदी बोलता है,उसे गवार समझा जाता है.....!
जिंदगी में बस एक बात अस्थायी हो, और वो है, बुरी आदत... बाकी सब स्थायी हो, जैसे नाम, पैसा, शौहरत...... कहा था ना....ज्यादा नहीं मांगती हूँ मैं....😎😎🤣🤣🙏🙏 #अस्थायी
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