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MUNI PRASAR MISHRA

MUNI PRASAR MISHRA

@muniprasarmishra.422694


ज़िंदगी से तन्हा होना मंजूर है मुझे
पर किसी गैर से अपराध नहीं होता।
माना लोगों से रुसवा होकर गुजरते नही दिन
लेकिन खुदा की हर बात मंजूर है मुझे ।
जिस्म से रूह गर नाराज़ भी हो जाए
माना कभी मुझसे अपराध भी हो जाय,
सांसों के छूट जाने से निःस्वास भी हो जाए
पर तुझसे दूर होना न मंजूर है मुझे।।
तेरी हकीकत तेरी सराफत
तेरी मोहब्बत तेरी नज़ाकत
तेरी तब्बसूम तेरी इलाही
दरिया दिली तमन्ना माही
खुशी से झूमू तेरी चहक में
तेरे संग मिटना मंजूर है मुझे।।।
सबनम पर तेरा यू मुस्कुराना
धीरे से होठों का यू हिलाना
साथी को लेकर खुद को बचाना
तेरी उलझन का मुझको आना
तेरी फितरत मंजूर है मुझे।।
लड़ना तेरा मुझे रुलाना
फस कर तेरा मुझे फसाना
डर कर धीरे से मुझे बुलाना
मेरे पप्पू पन पे तेरा मुस्कुराना
सारी फजीहत सारी रफिकत
यू ज़िंदगी भर मंजूर है मुझे।।
दिल को छू कर दूर जाना
याद आना भूल जाना
यादों की गरमाहट में जलाना
फिर सिहलाना यू नखरे दिखाना
किसी गैर पर मर मिट जाना
गुस्से में हाऊ तेरा खिल खिलाना
तेरी हरकत मंजूर है मुझे।।
सांझ ढले पर याद आना
सारी रात सिसकियां बहाना
थक हार कर मेरा यू सो जाना
सुबह उठते ही होना रवाना
भाग दौड़ में जिंदगी बिताना
कभी भी न मेरा फुरसत पाना
तेरे सारे किस्से मंजूर है मुझे।।
जिदगी से तन्हा होना मंजूर है मुझे ।।

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फलक का रास्ता था मैं
इरादे नेक थे मेरे।
तेरी मंजिल कहीं थी गर
मगर आसमां को थे घेरे।
समा जाती रही तन्हायिया
के सब्र में कुफरु ।
मिजाज़ फिर भी कभी गर्म न हुए
तुझको लेके मेरे।
सब्र की कस्ती कब डूबती जानिब
अगर आसमां में हो
तेरे अपने ही लुटेरे।
कहीं पर आप अपने रुख पे पर्दा डालते आए
कहीं पर छिप छिपा करआप भागते आए
कहीं ऐसा हुआ की आपने नज़रे झुका लीं थीं
कही पर सर्द हवाओं ने मौसम थे खुद बनाए ।
कहीं रगीन सितारों को लेकर खुश हुए थे आप
कही दागी सितारों ने थे खूब दाग लगाए।
तिलिस्मी जिस्म से चकराए कई मेहमा पुराने थे
ताकीद जिसकी खतीर थे हांथ बढ़ाए।
नाफरमानी की मोहलत नही देती है दुनियां
कई रुस्तम ने क्यू न इसको रंगीन बनाए
थी लाचार जब कुबूल की ये बात को उसने
तेरी हकीकत से खुसामद सहर बसाए
रोज आना रोज जाना
फितरत नहीं मेरी
तू जिसको भी चाहे
उसे ही अपना बनाए।
मुर्शिद तेरे चेहरे को देखकर लगा
खुदा ने क्या क्या नमूने बनाए
गद्दारी भरी खोल में जिस
लेबल लगाया ख़ास
दिखने में लाज़वाब
मासूमियत भरे चेहरे को बनाए।
है खुदा की करिश्मा
हम सवाल क्या करें
गर चेहरे बनाए
तो गहरी नजरे भी बनाए।।



मुनि पराशर मिश्र " नम्र "तरुण कि कलम से _____________

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##भाई तेरा प्यार ##
भाई तेरा प्यार
बचपन का ओ तकरार
जीना भी था मरना भी था
बिन तेरे संग बेकार
हर चीज़ मगायी जाती जब
आवाज़ लगाईं जाती तब
तू ले ले ये चीज़े
है तेरा भी अधिकार
भाई तेरा प्यार
ओ बचपन का अधिकार
ओ आंख मिचौली खेल भरा
अपना पन का रंग अपेल भरा
थी तुनक तुनक के हर बाते
हर बातो में था खेल भरा
हर अगले पल रहता
तेरे इशारों का इंतज़ार
भाई तेरा प्यार
ओ बचपन का तकरार
थी और भी छोटी बहनें भी
रहती उनकी कहने भी कुछ
सब को रहता तेरे संग
आंख मिचौली का इन्तजार
भाई तेरा प्यार
ओ बचपन का इंतजार
है छिनता बचपन यार
रहती है सुध बेशुमार
नीरस होता संसार
एक नया रूप लेता
हर जन मानस का आकार
भाई तेरा प्यार
ओ बचपन का लाड दुलार
रस भरी जलेबी खातिर
जब होती थी तकरार
है आज अमीर्ति खूब
पर नही आज ओ प्यार
नही आज तकरार
नही है रिश्ते में कोई निखार
अब नही कही लगता है
मेरा जन्म सिद्ध अधिकार
भाई तेरा प्यार
ओ चढ़ी हुई आंखों के
पीछे रहता था प्यार
ये कहा गया संसार
ओ कहा गया निखार
जब गैरों से मिलकर भी
बन जाता था संसार
अब तो अपने हुए बेकार
होती रहती है तकरार
हर छोटी बातो को लेकर
हैं उजड़ गए परिवार
लोग बहुत यू तो है
पर दिखता इकलौता परिवार
जिसका कोई नहीं है सार
जीते है लोग बेकार
नही किसी पर भी अधिकार
नीरस होता ये संसार
भाई तेरा प्यार
ओ तेरा अनमोल विचार
मन में लाता था खूब निखार
जिसमे था मेरा अधिकार
तू लौटा दे एक बार
ओ जीवन में मेरे निखार
झूठे ही मेरी चीजों पर
कहने को दिखा अधिकार
बचपन का वही फिर प्यार
लौटा दे रिश्तो में निखार
भाई तेरा प्यार
ओ बचपन का मेरा अधिकार।।




_____मुनि पराशर मिश्र " नम्र "तरुण

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