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बुजुर्गों की जमी है रौनक आज पोस्ट ऑफिस में, माह की तारीख पहली आई है।
प्रेम वह नहीं है जो अधिकार पा ले एक चुटकी सिंदूर भरकर प्रेम वह है जिसमें सुगंध याद रह जाये उम्र भर पहले समर्पण की, प्रेम वह है जो दूर रहकर भी इक डोर बांधे रहे प्रेम वह है जो जिंदगी भर परवाह करता है एक अपनेपन से या फिर अपना फर्ज मानते हुए, प्रेम तो वह है जो दिखता नहीं लेकिन हर सांस में घुला रहता है जिंदगी बनकर, प्रेम वह नहीं जो जग हंसाई कराये प्रेम वह है जो गुमनाम रहता है डायरी में लिखी एक अधूरी कविता बनकर, प्रेम वह है जो हर दर्द को महसूस करे दिल से दिल तक आंख से पलकों तलक प्रेम वह है जो बस जाता है सांसों में एक "खुशबू" बनकर!
धूप उतर आई है चेहरे पर नूर बनकर, जैसे सजता है जेवर किसी दुल्हन पर, रात उतर आई है गहरी आँखो में, जैसे लगाती है माँ काजल पार कर, होठों पर छाई है गहरी खामोशी, जैसे कोई हंगामा बरपा हो भीतर!
जिन्दगी तुझसे उम्मीदे ज्यादा तो नहीं की कुछ वक्त मेरे हिस्से का, कुछ लोग मेरे अपने ।।
इतने भी गुनाह ना कर अपनी जिंदगी में, हर तंज तुझे खुद पर लगे!
जब दिल तुम्हारा अपना हो और बातेँ सारी उसकी हो.. जब साँसे तुम्हारी अपनी हो और खुशबू आती उसकी हो.. जब हर तरफ वो नजर आए और उसकी याद सताती हो.. जब नीँद आँखो से ओझल हो और उसके ख्वाब सताते होँ.. फिर खुद को धोखा मत देना और उससे जाके कह देना.. इस दिल को मोहब्बत है तुमसे... इस दिल को मोहब्बत है तुमसे...!!
मुस्तक़बिल ना जान ले कोई मेरा, हथेलियों में हिना का बूटा टाँक रखा है।
.... आज कलम फिर से बेकरार शब्द तराशने के लिए .... दिल को कोई चोट पहुँचाये तो सही... #दिल
मूड़े पर गठरी थामे, दूर से लागे कोई फकीर, बांधे गठरी में औजार लिखे आपन तकदीर, ईटा जोरे-जोरे नीव बनावे,बनावे महल दुई मंजिला, हाथन से तोड़- तोड़ पाथर बनावे भाग्य लकीर।
मेरे शहर की शाम निराली है। 💞 तन पर सजता है चिकन, कभी स्वाद में उतर आता है, हर गली में एक मंदिर सांझे में मस्जिद आती है, मजहब और संस्कारों का पाठ पढ़ाती है! रौनक यहां अमीनाबाद क्या गंज दोनों की छटा निराली है. मजाज, असर लखनवी की जुबां पर मुहब्बत की कहानी है, थोड़ी उर्दू थोड़ी हिंदी की मिक्सउप जबानी है.! मेरे शहर की हर बात निराली है, पकाते हैं ख्याली पुलाव, सबकी जेब तो खाली है, पर हर शख्स यहाँ का नवाबी है., कुछ खामी है कुछ हुनर भी लिख ना पाये जितना उससे भी ज्यादा इसके किस्से कहानी है।
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