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क्या जीना है संभल संभल कर कहीं तो डूब बस अब किस्सा खतम कर नहीं है कुछ भी आगे इन फिजाओं में रूक जा वो तेरी रूह में आ चुकी, बस अब उधर ही नजर कर सबर कर अब सबर कर तू सलीम या मजनू नहीं है जो तोड़ेगा किलों को दिवारों को वो हासिल तो है, बस अपने दिल को उसीको तामिल कर तलब कर ।
और मैं जीत गया कांटो का सफर बीत गया दु:ख संगीत ? गया द्वेष पर मैं बीत गया राग पर प्रीत पर मनमीत पर चीत्त गया और मैं जीत गया आशा की वो दीप मिली सांसो का संसर्ग मिला मोह मोह के धागों में भूला अंत: गिला चाह का आदित्य खिला मैं ? चाहत में स्वविस्मित गया और मैं जीत गया मंजील इतनी हसीन है जैसे मेनका आसीन है शांत सागर की तरह नशेमन की तरह बहुत आफरीन है नाजनीं है कामिनी कमशिन है प्यारी सी बातें नजरो में काबिल उर्वर जमीन है मरने की ख्वाहिश जीवन की रेखा अान मान सम्मान साजो सामान बस यहीं अभी हित अहित सब समर्पित , मैं निश्चित ही निश्चिंत सा निर्मित सौभाग्य से अजीत और नवनिर्मित गया बस अब मैं जीत गया ।
एक हवा थी मोहपाश जाल था अजीब सा ये साल था न मुस्कुराहट न आँसूआें का खयाल था इच्छाओं का अजब सा मकड़जाल था एक न पूछा गया सवाल था? किस छूटे लमहे का मलाल था न गाजे न बारीश न मेलों में गाना न सावन न झूले न ही कोइ अफसाना बाढ़ थी क्या ? शायद पर सूखा का तो जंजाल था न ही कोई मौसकी न ताल था हर आदमी बेहाल था अजीब सा ये साल था कुछ धराशायी हुये कुछ कहीं फिर से संभले कुछ नें शरम ओढ़ी कुछ बेहया वही बाते वही लहजा पुराना हाल था सियासत का भी बवाल था किसको किसका खयाल था अजीब सा ये साल था हम थोड़े कवि हुये वो कविता इसीलिये मेरे आसपास की हवा का रंग लाल था बस यही थोड़ी सी सोखी थी थोड़ा सा गीलापन ये सब किसका ? कमाल था सब अजीब अजीब सा ये साल था
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