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अलविदा मत कहना #HugDay वो जाते हुएँ तेरा बाहें खोल कर मुझे बुलाना और फिर आलिंगन में भर लेना वो तेरा मासूमियत से भरा चेहरा वो तेरी आँखों में उमड़ते जज्बातों के आँसू वो तेरा फिर पीछे से पुकारना और हाथ हिला कर अलविदा कहना वो जाते हुएँ तेरा बाहें खोल कर बुलाना आजा फिर ना बुला पाऊँगी जाते हुएँ लम्हें है कितने बचे हैं बता ना पाऊँगी बस आखिरी कोशिश हैं इसे मेरा अलविदा ना समझ लेना लौट तो आऊँगीं एक नये रूप में नया चेहरा लिए हुएँ जिन्दगी के किसी मोड़ पर मिल भी जाऊँगी पहचान पाओगे क्या मुझे चलो हल्का सा इशारा भी दे दूंगी समझ जाओगे ना तुम बस यूँ ही फिर बाहें खोल कर आलिंगन में भर लेना।
मेरा मन किसी ने पूछा क्या तेरा मन नहीं करता! कि तू भी इन मुक्त पक्षियों की तरह व्योम में विचरण करे, देख लें नदियों का बहता हुआ कलकल पानी। शिखरों पर पड़ी बर्फ की श्वेत चादरें, आसमान को छूती पर्वतों की श्रृंखलांऐ। ताज का चाँदनी रात में अद्भुत सौंदर्य, क्यों नहीं करता? करता है! मन मेरा भी करता है, कि मैं भी देख लू पक्षियों का कलरव इस मुक्त आसमान में। देख लू नदियों की शीतल श्वेत धाराओं का बहता जल, देख लू पर्वतों पर बिछी बर्फ की श्वेत चाँदनी। देख लू आसमान को टक्कर देती पर्वतों की चोटियाँ, देख लू पूर्णिमा में ताज का निखरा निर्मल रूप। पर क्यों किसी ने पूछा क्या तेरा मन नहीं करता, करता है, मन मेरा भी करता है। देख लू इन्द्रधनुष के रगों को अपने जीवन में, देख लू काली घटाओं में मदमस्त हुए मौरों का नर्तन। देख लू भगिरथी तेरी गंगा का उद्गम स्थल, और देख लू जा कर समर्पण उसका जलधाम में। पर समेट लेती हूं ख्वाहिशें अपनी, समेट लेती हूं अपने को अपनी ही दुनियाँ में। कि मृगतृष्णा के पीछे कहाँ तक भागे मन, पर क्यों ? किसी ने पूछा क्या तेरा मन नहीं? करता है, मन मेरा भी करता है।
#BoyFriend तेरे बिन जिंदगी गुजारेंगे कभी सोचा ना था। देख जी तो रहे हैं हम, पर धड़कने बंद हैं। खामोशियां सी पसरी हुई हैं हर तरफ़ और सफेदी की चादर के तले, घुट के जी रही हूँ मैं हर रोज। "तेरे बिन "
पुकारा है ज़िंदगी को कई बार Dear Cancer!! आज कैंसर दिवस के अवसर पर मैं आपके साथ कुछ बाँटना चाहती हूँ। साहित्य साधना लतिका बत्रा की रग रग में है, लतिका बत्रा, जिनकी कई रचनाएं जानी-मानी पत्रिकाओं में छ्प चुकी है । इसके उपन्यास तिलांजलि, एक काव्य संग्रह दर्द के इंद्रधनु , साँझा संग्रह लघुकथा का वृहद संसार प्रकाशित हुये है पुकारा है जिन्दगी को कई बार.... यह एक आत्मकथात्मक उपन्यास है जिस में उन्होंने कैंसर जैसी बीमारी के बारे में लिखा है। कैंसर एक ऐसा रोग है जिसका नाम सुनते ही मृत्यु सामने दिखाई देती है। उन्होंने इस बीमारी को एक बार नहीं दो बार झेला है और उससे लड़कर उस पर विजय भी प्राप्त की है। मैं उनके जीने की जीजीविषा को सलाम करती हूँ और सभी से अनुरोध करती हूँ उनकी इस किताब को खरीदे और जाने की कैसे उन्होंने इस बीमारी को मात देकर खुद पर विजय हासिल की है। अपने जीवन के एक बेहद ही भावनात्मक पहलू के साथ, उन्होंने पुकारा है ज़िंदगी को कई बार Dear Cancer! को लिखा है जो वाकई हम सभी के एक प्रेरणादायक उपन्यास तो है साथ में हमें जीवन जीने की कला भी सीखता है। इसे आप फ्लिप कार्ट से खरीद सकते हैं।
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