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कल वो मिली थी – हवाओं का थामें दामन बादलों का चेहरा लिए झरने की पायल पहने बारिश की खनक लिए बिजली की चमक लिए सूरज की दमक लिए पंछियों की चहक लिए चमेली की महक लिए शायद घुल गई है वो कतरा कतरा सारी कायनात में या कि समाँ गई है फैली सारी कायनात ही उसमें जो भी है पर अब नहीं है इंतज़ार कि वो आये अब रंग रूप बदलकर मिल ही जाती है वो अक्सर हवाओं की सरसराहट में, बादलों की नमीं में, झरने की छमक में, बारिश की रिमझिम में, बिजली में, सूरज में पंछी के कलरव में फूलों की सुरभि में जान लेता है मन अब – उसकी हर दस्तक को उसकी हर कम्पन को उसकी हर श्वास को वो अब रहती है यहीं कहीं आसपास मेरे ढेर सारा प्यार लिए सदा के लिए सदा के लिए :- भुवन पांडे #WomensDay
एक कठपुतली सा ... दिन ढलने पर जब स्याह रात ले लेती है अपने आगोश में सारे उजाले को तब आंखें बंद कर मैं देखता हूं साफ़ साफ़ दिन भर के सारे बीते पलों में खुद ही को दूर से , ऊपर से मिलते हुए बातें करते हुए लड़ते हुए प्यार करते हुए छुपते हुए खोते हुए रोते हुए हंसते हुए कितनी ही बार मैं खुद ही को नहीं पहचान पाता हूं कोई अजनबी सा मालूम होता है मुझे नीचे खड़ा मेरा वो 'हमशक्ल' कितनी ही बार मैं अचंभित होता हूं खुद ही के रवैये से और नहीं समझ पाता मैं खुद के ही इरादे कितनी ही बार मुझे एक नाटक सा लगता है सब कुछ और अपना किरदार लगता है रटते हुए अपने रोल के 'लिखे' डायलॉग सारे कितनी ही बार मैं सोचता हूं कि बदल दूंगा वह सब कुछ सारा अपरिचित सा अंदाज़, मिजाज़ अपना पर आंखें खुलते ही मैं खो देता हूं वो आसमानी नज़र सारी जो साफ़ साफ़ सब देख लेती पढ़ लेती पहचान लेती मेरा सारा खोखलापन और मैं एक गुलाम सा अदृश्य सी किसी डोर से बंधे बेबस सा एक कठपुतली सा नाचने लगता हूं ...
(कुछ पंक्तियां समर्पित उन सभी को जिन्होंने गुरु तुल्य मुझे कुछ दिया, सिखाया : भुवन पांडे) तुमने ही तो ... मैं जानता बहुत था पर समझ सारी तुमने ही बनाई भीतर मैं चला बहुत यहां वहां पर बढ़ना आगे तुमने ही तो सिखाया मैंने शक्तियां बहुत बढ़ाई पर संयम सारा तुमने ही तो बनाया भीतर मैं बहुत रहा जीतने की जद्दोजहद में पर खेलना मन से मन भर तुमने ही तो सिखाया मैं बोला थोथा बहुत पर सुनना गुनना गहरा तुमने ही तो संजोया भीतर मैंने उत्तर बहुतेरे गढ़े पढ़े पर प्रश्न गहरे सोचना खोजना तुमने ही तो रोपे भीतर मैं मेहनत में लगा थका बहुत पर लगन सारी तुमने ही तो जगाई भीतर मैं बाहर चकाचौंध में रहा बहुत पर वो चिर लौ, वो दीया तुमने ही तो जलाया भीतर 🙏🙏🙏
मैं निकला बाहर ढूंढने अपना चुंबक भटका यहां वहां गली सड़क बाग जंगल पहाड़ नदी समन्दर आकाश सभी खींचते रहे मुझे अपनी अपनी ओर मैं खोता गया इनमें और मुझमें भर आए कुछ रास्ते, धूल कुछ कुछ पेड़, फूल कुछ कुछ पानी, लहरें कुछ कुछ हवा, सितारे कुछ और अब नहीं जाता बाहर मैं इन्हें ढूंढने सभी ने मेरे ' घर ' में बसेरा कर लिया है ... :- भुवन पांडे #चुंबक
वो कमी में जीना भी कहां था अधूरा ! हां मिला था कुछ कुछ तब पर कितना वो भाता था कितना कुछ मन ये पाता था वो मिला कुछ कुछ भी कितना पूरा लगता था उसकी महक उसका स्वाद उसका अहसास आज़ भी ज़हन को पूरा भरे हुए है आज़ जब सब कुछ है सब पूरा भरा हुआ है छलक रहा है पर चाहतें सारी अहसास सारे खाली हो गए हैं खोखले हो गए हैं बेस्वाद हो गए हैं अब तो ख्वाहिश है कि कुछ कमी हो और कुछ खाली जगह बने इस मन में और धीमें धीमें से कुछ अहसास कुछ चाहतें कुछ अरमान कुछ ज़ुनून पलें भीतर भरें भीतर :- भुवन पांडे #कमी
बहुत दिन हुए, पता नहीं कब आएगा वो पल , वो खुशनुमा खुला सा कल जब निकलेंगे बाहर घर की कैद से करते घुम्मकड़ी मस्त कश्मीर से केरल जब ना डर हो ना हों ये दूरियां सुंदर सुहानी लगे ये सारी दुनिया ना छूने से, करीबी से हो कोई डर हाथों में हाथ डाले झूमते चले सफर जाने कब छूटेगा ये करो ना वो करो ना और भागेगा ये दुष्ट ये जिद्दी करोना चलो जुड़ कर मनों से जोड़ें शक्ति सारी और जीवन में भर दें खोई खुशियां हमारी :- भुवन पांडे #केरल
मैं नहीं चाहता था मारना अपना ही मन अपने अरमान अपने ख़्वाब इसलिए मैंने दबे पांव बढ़कर चुपचाप उन सभी को कत्ल कर दिया जिनके कदम मेरी राहों को छू रहे थे और जिनकी नज़रें कहीं मेरी मंज़िल की ओर झुंकी थीं :- भुवन पांडे #मारना
ठीक-हो-जाओ ... काश कि मेरे पास होता एक जादुई चिराग़ जिसे छू कर घिसकर यह कहते ही 'ठीक-हो-जाओ' तो वह उसे पहले सा दुरुस्त कर देता ठीक कर देता तब मैं वह चिराग़ लिए छू देता, घिस देता सभी कुछ जो बिगड़ गया है छू देता वह चिराग़ घिस देता उसे मैं उन सभी दिलों पर जो टूटे हुए बिखरे पड़े हैं और बोल देता - 'ठीक-हो-जाओ' और तब वो टूटे दिल जुड़ जाते फिर से ठीक हो जाते फिर से और भर आशा और प्यार के तरानों से सभी रिश्ते - ठीक हो जाते मुकम्मल हो जाते :- भुवन पांडे #ठीक -हो-जाओ
तू खूब बरस ... कुछ बूंदों से जी भरता नहीं तू बरस बरस तू खूब बरस सूखा ये तन सूखा कण कण तर बर कर दे तू ये तन मन बेरुख रूखा ये सारा मंज़र तू सरस हरस तू खूब बरस झनक खनक से जी भरता नहीं तू खूब कड़क तू खूब गरज छुटपुट बदरी से जी भरता नहीं टोली मेघों की ले तू खूब धमक खोए सोए जी लगता नहीं तू खूब दमक तू खूब चमक तू चमक दमक तू गरज कड़क तू सरस हरस तू खूब बरस :- भुवन पांडे
मैं मरा था ... चलते फिरते हुए सांस लेते हुए भी कितनी ही बार मरा हूं मैं ! जब भी किसी ने पुकारा आस लिए और मैंने सुना अनसुना सा कर दिया था तब मैंने कहीं अपने ही आप को मार दिया था जब भी लोलुप लालसा लिए मैंने अपनी जेबों को भरा था तब मेरा ही कुछ हिस्सा खाली हुआ और मरा था जब भी किसी के हक़ की लड़ाई में मैं दूर कहीं पीछे चुपचाप हाथ बांधे खड़ा था तब मेरा मैं वहीं कहीं मरा पड़ा था जब भी किसी ने विश्वास भरी नज़रों से मुझे अपने मन में भरा था और मैंने पीठ में उसके खंजर धरा था तब वो नहीं बल्कि मेरा ही कुछ हिस्सा फ़िर से मरा था जब भी मैं मुश्किलों में घिरा था और कुछ कदम चलकर ही मैं हिम्मत हार हताशा में बीच राह खड़ा था तब भी मैं मरा था यूं ही चलते फिरते हुए सांस लेते हुए भी कितनी ही बार मैं मरा था ... :- भुवन पांडे #मृत
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