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मैंने जब देखा उसे पहली दफ़ा, मुझे लगी वो साधारण-सी एक लड़की। अगली मर्तबा जब मिली, उसके हाथों में थी कुल्हाड़ी अन्याय की जड़ों पर निर्भीक वार करती हुई। फिर देखा एक दिन उसको हाथों में करछी लिए पर वो सिर्फ़ स्वादिष्ट भोजन नहीं पकाती उसके मसालों में परंपरा थी, और उसकी आँच पर अपने फैसलों की आज़ादी थी। रसोई उसके लिए बंधन नहीं, एक प्रयोगशाला थी जहाँ वो प्यार, प्रतिरोध और आत्मसम्मान एक साथ गढ़ती थी। कभी वो चूल्हे के पास खड़ी पूरी दुनिया को संभाल रही होती, तो कभी उसी धुएँ से अपने सपनों की लकीरें खींचती। कई बार जब देखा, कभी वो नाज़ुक-सी किलकारी बन नई सृष्टि रचती, कभी सुई–धागा थाम बिखरे रिश्तों को चुपचाप सीती। कभी मशाल संग, अंधकार से टकराती कभी झाड़ू उठाए,आंगन नहीं सदियों की उपेक्षा साफ़ करती उसके चेहरे पर था साहस, आँखों में करुणा और जाग्रत चेतना उसका दिमाग़ रसोई , रिश्ते और डर की सीमाओं में कैद नहीं था वहाँ सवाल थे,तर्क थे,और सच से नज़र मिलाने का पूरा हौसला भी था। आख़िरी बार जब देखा, उसके हाथों में थमी थी कलम पर वो शब्द नहीं लिख रही थी, वो उन पन्नों को आग लगा रही थी जो उसे कमज़ोर बताते थे। वो कलम एक ऐलान थी— कि अब भविष्य उसके हाथों से रचा जाएगा। उसका जेहन चार दीवारों तक सीमित नहीं था, वहाँ पूरी कायनात थी और वह उसके केंद्र में खड़ी मुस्कुरा रही थी। ArUu ✍️
मैंने जब देखा उसे पहली दफ़ा, मुझे लगी वो साधारण-सी एक स्त्री अगली मर्तबा जब मिली, उसके हाथों में थी कुल्हाड़ी अन्याय की जड़ों पर निर्भीक वार करती हुई। फिर एक दिन देखा, उसको करछी लिए पर वो सिर्फ़ स्वादिष्ट भोजन नहीं पकाती उसके मसालों में परंपरा थी, और उसकी आँच पर अपने फैसलों की आज़ादी । कभी वो चूल्हे के पास खड़ी पूरी दुनिया को संभाल रही होती, तो कभी उसी धुएँ से अपने सपनों की लकीरें खींचती। कई बार जब देखा, कभी सुई–धागा थामे, बिखरे रिश्तों को फिर से सीती हुई कभी मशाल संग, अंधकार से टकराती कभी झाड़ू उठाए, आंगन नहीं, सदियों की उपेक्षा साफ़ करती हुई उसके चेहरे पर था साहस, आँखों में करुणा और जाग्रत चेतना उसका दिमाग़ रसोई, रिश्तों और डर की सीमाओं में क़ैद नहीं था; वहाँ सवाल थे,तर्क थे,और सच से नज़र मिलाने का पूरा हौसला भी था। आख़िरी बार जब देखा, उसके हाथों में थमी थी कलम किसी और की कहानी लिखने नहीं, अपना भविष्य खुद रचने के लिए। उसका जेहन चार दीवारों तक सीमित नहीं था, वहाँ पूरी कायनात थी और वह उसके केंद्र में खड़ी मुस्कुरा रही थी। ArUu ✍️
तुम खोजते रह जाओगे गुनाह मेरे निकलूंगी फिर भी मैं बेगुनाह ArUu ✍️
मैं अपने फोन का चार्जर किसी से शेयर नहीं करती फिर तुम तो मेरे पसंदीदा शख़्स हो😌 ArUu ✍️
वो दिसंबर सा शांत मैं जून सी उग्र ArUu ✍️
अरावली— भारत की प्राचीन प्रहरी, धरती की दो अरब वर्ष पुरानी, अडिग, अटल, अजेय कहानी। वो सिर्फ़ पहाड़ नहीं, एक डाली, थार का तट— उसकी दीवार आली। मिट्टी की रखवाल, जन-जन की साँस, राजस्थान की छाती, उसका विश्वास। आदिवासियों की जन्मभूमि प्यारी, आमजन की पहचान न्यारी लूणी साबरमती बनास की जननी पर खनन की चोटों ने कर दी इन पहाड़ियों की छाती छलनी जो ढाल थी कभी रेती आँधी से, झुक गई आज व्यापार की बांधी से। अगर कटी ये रीढ़ हमारी, धूल उठेगी बनकर भारी। फिर होगा प्यास, भूख का राज, सन्नाटा, सूखा— उजड़ा साज। प्रकृति तब प्रतिशोध करेगी, विनाश की गर्जना भरेगी। इसलिए बचाना है अरावली, ये मिट्टी की माँ, हमारी सहेली। रीढ़ जब टूटे— सभ्यता ढहती, उजड़ी धरती, उजड़ी बस्ती। ArUu ✍️
और जो वो खो जाए तो हीरा है, मन न लगे तो पीड़ा है। विकल, विछिन्न, विरहिणी-सी, कभी राधा, तो कभी मीरा है। निःशब्द-सी व्यथा समाई, अश्रु-धारा मन को भिगोती, साँस-साँस में कृष्ण बसे हैं, फिर भी अक्षि राह ताकती लोक-लाज, कुल-रीति छोड़ी, प्रीत की चादर ओढ़ चली, जग ने समझा पागल मुझको, मैं हर पीड़ा श्याम से जोड़ चली। न मिलन माँगा, न प्रतिफल, बस विरह में ही रस समाया, मीरा का तो यही सौभाग्य— पीड़ा में भी गिरधर को पाया जब शब्द थक कर मौन हुए, जब नेत्रों ने प्रश्न त्यागा, तब विरह ही मेरा मंदिर बना, और मीरा ने जाना— यह जगत कितना अभागा। ArUu ✍️
अरावली— भारत की प्राचीन प्रहरी, दो अरब वर्ष पुरानी धरा की अटल रीढ़। वो केवल पहाड़ नहीं, थार का तटबंध है, इस मिट्टी की संरक्षक, राजस्थान की साँस है। आदिवासियों की जन्मभूमि, आमजन की पहचान, लूणी, साबरमती, बनास की जननी। पर अब खनन की चोटों ने कर दी इन पहाड़ियों की छाती छलनी । ये कभी राजस्थान की ढाल थी, रेगिस्तान से लड़ने की दीवार थी। किसी ने इसे वीरों की भूमि कहा, पर अब इस पर अरावली की छाँव कहाँ? अगर यह कटेगी— तो होगा धूल का साम्राज्य, नंगे घाव, प्यास ,भूख और सन्नाटे का विस्तार। फिर आरम्भ होगा प्रकृति का प्रतिशोध, विप्लव, विनाश और विध्वंस के साथ। और याद रखना— अरावली बचेगी, तो थार रुकेगा; अरावली गिरेगी, तो रेत — हमारे भविष्य पर राज करेगी। ArUu ✍️
मैं कभी किसी के सामने वो नहीं बन पाई जो मैं वास्तव में हूं ! पहन रखे है मैने ...नकाब हजारों🖤 ArUu ✍️
कुछ अर्ज़ है किताबी, कुछ फ़र्ज़ है ज़िंदगी। चेहरा बदलती रहती है ये, पर मर्ज़ है ज़िंदगी। बड़ी बेनकाब, बेशर्म, निठल्ला-सा किरदार है ये ज़िंदगी।
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