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ArUu

ArUu Matrubharti Verified

@aruuprajapat6784
(469k)

इंसान मिट्टी का पुतला था—
इसलिए टूटना उसकी प्रकृति थी।
इंसान गलतियों का पुतला था—
इसलिए सीखना उसकी यात्रा थी।

पर समय ने उसे
समाज, धर्म और जाति की कठपुतली बना दिया।
अब वह स्वयं नहीं रहता,
बल्कि दूसरों की कल्पनाओं का प्रतिबिंब बनकर जीता है।

कठपुतली वही नहीं होती
जिसके धागे दिखाई दें—
कठपुतली वह है
जो अपने धागों को पहचान भी न पाए।

और यही मनुष्य का सबसे बड़ा संकट है कि
वह स्वतंत्र पैदा होता है,
पर बंधनों में मर जाता है।
— ArUu ✍️

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एक बार कर लो अपने मन की
फिर कौन पूछता है
तुम ठीक हो या नहीं
एक बार कर लो उनके मन की
फिर भी कौन पूछता है
तुम ठीक हो या नहीं
ArUu ✍️

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एक दिन जब जिंदगी पूछेगी
तो सबसे बड़ी दुश्मन है वही मेरी
बताऊंगी उसे मैं
- ArUu

मुझे गांव का कोई काश्तकार अपने घर खाने पर इनवाइट करता है
वो मेरी थाली में दो रोटी परोसता है
एक मैं वहां खा लेती हूं
एक टिफिन में पैक कर के ले आती हूं...(क्या करूं ittu सा पेट है एक साथ इतना नहीं खा सकती और झूठा वो छोड़ने नहीं देते )
गांव वाले कह रहे थे ये रोटी नहीं खा सकती पैसे क्या खायेगी😭
क्या मतलब है मैं कभी घूसखोर पटवारी नहीं बन सकती 😭😭😭

- ArUu

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मुश्किल है उन्मुक्त स्त्री बन जाना
- ArUu

किसी एक शख्स का दुनियां हो जाना
ठीक वैसा है जैसा
नदी का तालाब हो जाना
बादल का बारिश हो जाना
पहाड़ का रेत हो जाना
वेदना का उत्सव हो जाना
संसार का सार्थक हो जाना
निशब्द का स्वर हो जाना
अँधेरे का दीप हो जाना
भटकन का दिशा हो जाना
तन्हाई का आश्रय हो जाना
मन की थकन का ठहराव हो जाना
अनकही दुआओँ का असर हो जाना
समर्पण का कहानी हो जाना
पीड़ा का प्रार्थना हो जाना
और
आत्मा का परमात्मा हो जाना
ArUu ✍️

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मैं कभी ईश्वर पर सवाल नहीं करती
मुझे उनके अस्तित्व पर पूर्ण यकीन है।
क्योंकि जब मेरी आवाज़ दुनिया ने नहीं सुनी,
तो मेरी खामोशी भी उन्होंने ही समझी।
जब मैं अपने ही सवालों में उलझ गई,
तो उत्तर बनकर वही मेरे भीतर जागे।
जब सारी ताकत छूट गई,
तो उसी अदृश्य हाथ ने मेरी पीठ पर हिम्मत रख दी।
मैंने महसूस किया है—
ईश्वर मंदिरों में कम,
इंसान के टूटे दिल
साफ हृदय और सच्ची नीयत में ज़्यादा बसते हैं।
वो रोशनी बनकर नहीं आते,
कभी एक राह,
कभी एक इंसान,
कभी एक इशारे के रूप में मिल जाते हैं।
मैं कितनी भी दूर चली जाऊँ,
वो मुझे मेरी ही तरफ लौटना सिखा देते हैं।

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हर औरत को हक है
अपने हिस्से की जिंदगी जीने का—
वो हिस्सा,
जो उसने कहीं पीछे छोड़ दिया था…
अपने पति,
भाई,
बाप,
सास,
और अपने बच्चों की खातिर…
उसी छूटे हुए हिस्से में से
बस कुछ पल, कुछ सांसें,
कुछ ख्वाहिशें जी लेने का
हक तो हर औरत को है।
क्योंकि औरत सिर्फ रिश्तों में बटी पहचान नहीं...
वह पूरी दुनियां...पूरी कायनात...पूरा ब्रह्मांड है।
ArUu ✍️

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और मैंने अंत में चुना खुद को
जहां चुनी जा सकती थी पूरी कायनात ...
जहाँ पलकों पर रखा था उसका नाम,
वहीं मैंने —
सारी मोहब्बत, सारे भ्रम, सारे घावों के बीच
चुना
बस खुद को
ArUu ✍️

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अच्छा और सुनो
एक बढ़िया सी बात बताती हूं
लोग कहते है... लोग मतलब पुरुष
वो कहते है कि देखो भाई इन औरतों को
इनका घुंघट बोझ लगता है और मुंह बांध के जाना शान लगता है...जब पूरा मुंह बांधना ही है तो फिर घुंघट से इतना ऐतराज क्यों?
कई बार ये बात मैने भी सुनी कुछ लोगों से ...पर कभी इतना ध्यान नहीं दिया...पर इन दिनों ये बात कुछ ज्यादा ही सुनने मैं आ गई तो,अब हम ठहरे overthinker ... अब इस बारे में विचार करना तो अपना फर्ज बनता है।फिर सोचा कि क्या घुंघट और आधुनिक लड़कियों के मुंह बांधने में क्या कोई फर्क नहीं...?
क्या वाकई लोगों का इन दोनों चीजों की तुलना करना सही है...फिर मन के किसी कोने ने आवाज दी...नहीं
ये दोनों एक कैसे हो सकते है।
एक महिलाओं को सशक्त बनाती है और एक ...
मुझे लगता है इसके लिए उपयुक्त शब्द मेरे पास नहीं है।
आधुनिक तरीके में आंखे खुली रहती है तो देखने में कोई दिक्कत नहीं आती पर घुंघट में अधरों के ऊपर का हिस्सा ढका रहता है। दोनों जब प्रयुक्त ही अलग मायनों में हो रहे तो दोनों समकक्ष कैसे हो सकते हैं।
एक जब धूप में पहना जाता है तो दूसरा छांव में।
एक से चमड़ी बचती है तो दूसरी से मर्यादा।
ऐसा वो कहते है मैं नहीं कहती।
और धूप से तो बचना जरूरी भी है...पर क्या घुंघट से मर्यादा बच जाती है?
खैर बहस करने को बहुत कुछ है इसलिए मुझे तो अभी धूप में जाना है
वो भी मुंह बांध के🫣😁
ArUu ✍️

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