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ArUu

ArUu Matrubharti Verified

@aruuprajapat6784
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और मैंने जाने दिया उसे
ये जानते हुए कि
कोई उससे ज्यादा नहीं चाह सकता मुझे
मैंने जाने दिया उसे
मुझे मनाने की, मुझे समझाने की,मुझे थामे रखने की हर संभव कोशिश करने के बावजूद
मैंने जाने दिया उसे
उसने यत्न किए कि मैं रोक लु उसे,
जाने से पहले उसकी बाह थाम लू
उसे जाने न दूं... उम्र भर के लिए चुन लूं उसे
पर निष्ठुर, निर्दयी, निर्मम,कठोर, क्रूर...सी बनी मैं
और फिर मैंने जाने दिया उसे
ArUu ✍️

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और बताओ
क्या श्री राम सच में अयोध्या लौट आए है?
क्या छुआछूत से भरे इस देश में
प्रभु राम अब भी सबरी के झूठे बेर खा लेंगे?
क्या अब भी श्री राम अपने साथ युद्ध के लिए राजा महाराजाओं का साथ छोड़ कर उपेक्षित वर्ग का हाथ थाम पाएंगे?
जिस अहिल्या को तार दिया श्राप से उसी तरह स्त्रियों की पीर समझ पाएंगे?
लड़ मरते है भाई भाई आपस में कुछ जमीन के टुकड़े के लिए
वहां क्या श्री राम अपना राज सिंहासन छोड़ पाएंगे ?
जाने कितने बरसो पहले आए थे भगवन् राम
अब शायद इस कलुषित समाज में फिर न आ पाएंगे
आए भी तो कलयुगी इस मानव को देख
अपनी आश्रुधारा न रोक पाएंगे।
अब अगर लौट भी आएं प्रभु राम,
तो किस जगह ठहर पाएंगे?
जहाँ धर्म की परिभाषा नफ़रत में लिखी जाती है,
और आस्था की दीवारें खून से सजाई जाती हैं।
जहाँ इंसान, इंसान को देख डर जाए,
जहाँ मंदिर ऊँचे और ज़मीर छोटे रह जाएं।
जहाँ सत्य वनों में भटक रहा हो,
और रावण राजमहल में बैठा मुस्कुरा रहा हो
जहां जातियां ऊंची और मानवता अधम हो गई
शायद अब राम को नहीं,रामत्व को लौटना होगा।
क्योंकि राम मंदिरों में नहीं बसते,
वो तो हर निष्कपट हृदय में जन्म लेते हैं
और जिस दिन हम ये सारे भेद छोड़कर फिर से “मनुष्य” बन जाएंगे,
उसी दिन सच में, श्रीराम अयोध्या लौट आएंगे।
ArUu ✍️

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कुछ अर्ज़ है किताबी,
कुछ फ़र्ज़ है ज़िंदगी।
चेहरा बदलती रहती है ये,
पर मर्ज़ है ज़िंदगी।
बड़ी बेनकाब, बेशर्म, निठल्ला किरदार है ये जिंदगी
ArUu ✍️

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कभी सिर्फ एक शख्स के छोड़ जाने से ही कुछ लोग पागल हो जाते है
उन सरफिरे पागलों को दुनियां कवि, शायर और काव्यप्रणेता कहती हैं
कभी कोई जुदाई शब्दों में ढल जाती है,
कभी कोई खामोशी ग़ज़ल बन जाती है।
जो रो नहीं पाते, वो लिखने लगते हैं,
और जो लिखते हैं, वो अमर हो जाते हैं।
हर दर्द में एक कविता जन्म लेती है,
हर टूटन में कोई रचना संवरती है।
वो जो बिखराव था किसी हृदय का,
वही सृजन की शुरुआत बन जाता है।
ArUu ✍️

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कितनी अजीब दुनियां है न,
कभी ज़िंदा लोग लाश बन जाते हैं,
और कभी मुर्दे बतियाँ उठते हैं...
यहाँ ज़िंदगी का अर्थ ही उलझा हुआ है,
साँसें कभी ख़ामोश हो जातीं,
और कभी ख़ामोशियाँ बोल उठती हैं।

ArUu ✍️

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और वो मुझे बादलों के सुराखों से तकती होगी
कभी मुस्कुराती होगी मेरी अटखेलियां देख
कभी मेरे गम से सहम जाती होगी
कभी खिलखिलाती होगी मेरे बचपने पर
कभी मेरे अनकहे भाव पढ़ जाती होगी
दूर आसमानों में...
बादलों की ओट में छिपी मेरी राह तकती होगी
कभी चाँद के एक छोर पे ठहर जाती होगी
अपने नाम के एक तारे से मेरे ख्वाब बुन लेती होगी
हवा जब बालों को छूती है यूँ,
शायद वही मुझसे मिलने आती होगी।
कभी ओस की बूँदों में उतर आती होगी
और...
मेरी पलकों पर चुपके से बिखर जाती होगी।
कभी बारिश के सुरों में गुनगुनाती होगी,
मैं ज़मीन पर ढूंढती हूं परछाई उसकी
वो आसमान से मुझे पुकारती होगी।
ArUu ✍️

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नदियाँ बहा लाती हैं अपने साथ,
कुछ रेत, कुछ चट्टानों की बात।
कुछ बिखरे सपने, कुछ टूटी आस,
कुछ मौन सिसकियाँ, कुछ बेबस साँस।

कुछ विरक्त कण, कुछ गहरे घाव,
कुछ बचे निशाँ, कुछ डूबे भाव।
कुछ लाशें बहती, कुछ धुंधली छवियाँ,
कुछ अधूरी दास्ताँ, कुछ बिखरी कड़ियाँ।

पर जब किनारों से टकराती है,
तो प्रश्नों की लहरें ही रह जाती हैं।
उत्तर नहीं, बस प्रतिध्वनियाँ,
जो शून्य में डूबकर खो जाती हैं।
ArUu ✍️

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हे नारी
तू ही सृष्टा
तू ही सृष्टि है सारी
- ArUu✍️

आज एक बारिश की बूंद
कानों के पास होती हुई गालों पर ठहर गई।
मैंने पूछा — कौन हो तुम?
हँस कर बोली — मुझे नहीं पहचानती?
इस सृष्टि का सृजन हूं मैं,
नन्हें बीज में पल रहा प्राण हूं मैं,
नदियों में बहता जीवन हूं मैं।
समय के पहिए पर घूमती नई चेतना हूं मैं,
मिट्टी के भीतर छिपी अनगिनत कहानियों की गवाह हूं मैं।
मैं शून्य से जन्मा आरंभ हूं,
और अंत के बाद भी लौट आने वाला पुनर्जन्म हूं।
इंसान के माथे का ठंडा स्पर्श हूं मैं
उसकी थकी आत्मा की तृप्ति हूं मैं।
जब दुनिया थक कर निराश होती है,
तो मैं धरती की हथेलियों पर गिरकर कहती हूं —
“अभी सब खत्म नहीं हुआ......
हर विराम के बाद एक नई शुरुआत हूं मैं।”
उम्मीद की नन्ही लौ हूं मैं
जीवन की अविच्छिन्न धड़कन हूं मैं
हर मृत्यु के बाद की सुबह हूं मैं।
सृजन की वह अनवरत गाथा हूं मैं,
जो देती है जन्म हर विप्लव के बाद
एक नई सृष्टि को
मैंने चकित होकर पूछा
तो फिर ये विध्वंस कौन है?
क्यों तुम्हारे कारण आया ये विप्लव है?
क्यों धरती खफ़ा, मन विचलित है?
बूँद मुस्काई…
कहा, विध्वंस नहीं, आईना हूं मैं
धरती का आक्रोश, परमात्मा की चेतावनी,
प्रकृति की टूटी सहनशक्ति हूं मैं।
जब इंसान सीमा भूल जाता है,
तो प्रलय बनकर लौटती हूं मैं
जब सृष्टि का संतुलन बिखरता है
तब आसमान के आँसुओं की बूंद हूं मैं।
मैं जीवन का स्पंदन हूं,पर
जब तुम मेरी धारा को रोककर
लोभ की दीवारें खड़ी करते हो
धरती की साँसें घोंटकर जंगलों को उजाड़ देते हो
तो प्रकृति के धैर्य से फूटा बवंडर हूं मैं।
सुनो…
मेरा जन्म रचने के लिए है,
नष्ट करने के लिए नहीं।
विध्वंस मेरा चेहरा नहीं,
बल्कि तुम्हारे कर्मों का प्रतिबिंब है।
ArUu ✍️

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चरित्रहीन
कितना कठोर शब्द है...कितना कुंठित विकल करने वाला
पर कितने ही सहज रूप में ये शब्द स्त्री के लिए रोज उपयोग किया जाता है और उपयुक्त भी लगता है।
इस दाग को मिटाने के लिए स्त्री सदियों से कोशिश कर रही , अग्नि परीक्षा दे रही...पर जाने कितने पक्के रंगों से बना है कि मिटता ही नहीं।
पुरुष कितनी आसानी से कह देता है चरित्रहीन उन स्त्रियों को जो उसकी बनाई परिधि से बाहर झांकती है...शातिर पुरुष कहता है चरित्रहीन हर उस स्त्री को जो अपने मत, ख्वाब और परिभाषाएं बुनती है। शायद डरता है वो इन चरित्रहीन स्त्रियों से...ये उसे अपने अस्तित्व के लिए थोड़ा खतरा जान पड़ती है क्योंकि "चरित्रहीन" कहना दरअसल उसकी घबराहट का दूसरा नाम है।
जिस स्त्री को वह बाँधना चाहता है, वह जब उसके घेरे को लांघ देती है, तो उसकी सत्ता डगमगा जाती है।
ये वही स्त्रियां हैं
जो सदियों की बेड़ियाँ तोड़कर
अपने लिए आकाश खोज लेती हैं।
वो स्त्रियां जो सवाल करती हैं,
जो हर अपमान को सहकर भी मुस्कान बो देती है।
जो अपने दुख को कविता और
अपने साहस को क्रांति बना देती हैं
जो बंद दरवाज़ों को तोड़ती है,
जो अपने आँसुओं से ख्वाब सींचती है,
जो टूटे आईनों में भी अपना चेहरा ढूंढ लेती है
जो अपनी चुप्पियों को बगावत बना देती है।
वो स्त्रियां...जिनके कदमों की आहट से सदियाँ काँप जाती हैं,
जिनके सपनों से नई दुनियाएँ जन्म लेती हैं
इतिहास गवाह है, कि हर "चरित्रहीन" कही गई स्त्री ने दुनिया को नया रास्ता दिया है।
ArUu ✍️

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