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सिद्ध साहित्य

सिद्ध साहित्य

@anubhu8050gmail.com1142


मेरे लिए कविता
प्रियतमा है
अकेलेपन की
संगिनी है
कभी भी मेरे से सुख की कामना न करने वाली
संगिनी,,,

रोज़ रात, अंधेरे बन्द कमरों में दिए जाने वाले ज़ख्म को,
सुबह के उजालों में संवारती हैं बीवियां,
आंखों के नीचे आए हुए गहरे काले निशान पर,
उस गहरे काले निशान से भी गहरा रंग चढ़ाती हैं बीवियां
थप्पड़ के चोट से हुए लाल होंठ पर,
उससे भी गहरा लाल लिपिस्टिक लगाती हैं बीवियां,
बाजुओं पर पड़े हुए उंगलियों के छाप को,
लंबी आस्तीन वाला ब्लाउज़ पहन छुपाती हैं बीवियां,
ज़ख्म को छुपाते हुए हर रोज़ अपनी इज्ज़त बचाती हैं बीवियां,
ताकि बची रहे समाज में इज्ज़त और कहलाती रहें आदर्श बीवियां,
अपने ज़ख्म को छुपाते हुए सजी-सँवरी बीवियां हीं,
कहलाती हैं एक आदर्श बीवियां।

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मेरे हालात पर फब्तियां कसने वालों,
मैं क़बा की नहीं अना की शौक़ीन हूँ

पूरी दुनिया मरीज़ है,
तू सबका तबीब है,
तू भी एक मरीज़ है,
न तेरा कोई तबीब है।

गोया जिंदगी के इक्कीस बरस जो गुज़र चुके हैं,,

हर सात दिन में छह दिन उनके मुताबिक़ गुजरा,,

अगर प्रत्येक व्यक्ति अपनी गलतियों को स्वीकार करना शुरू कर दे तो देश की आधी से ज्यादा आबादी की पारिवारिक समस्याएं स्वतः सुलझ जाएंगी और न्यायालय के आधे से ज्यादा केस भी। पारिवारिक विखण्डन के इस युग में बच्चों का व्यवहार अपने उम्र से पहले हीं बड़ो जैसा बनता जा रहा है जो कि एक बड़ी समस्या बनती जा रही है इसलिए ज़रूरी है कि उन्हें परिवार के मसलों से दूर रखा जाए। उन्हें शिक्षा सिर्फ़ जीविका चलाने के लिए नहीं बल्कि परिवार चलाने की लिए दिया जाए इसलिए जरूरी है उन्हें व्यवहारिक शिक्षा दी जाए। आज शिक्षा के गुणवत्ता का स्तर हद से ज्यादा गिर गया है यहाँ सिर्फ़ किताबी ज्ञान दिया जाता है व्यवहारिक नहीं है।यहीं कुछ हद तक कारण है संयुक्त परिवार के टूटने का और यहीं कारण बनता जा रहा है एकल परिवार के भी टूटने का।

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आज़कल मेरे सिराहने का बिस्तर गीला रह रहा है,
न जाने क्यों मेरे आंखों से पानी बहुत बह रहा है,,?
कुछ दिनों से आसमान भी बहुत रो रहा है,
लेकिन फिर भी मेरे और उसके रोने में फ़र्क बहुत रह रहा है।

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फासले जिनसे बनाया वो भी अपने ही थे
ये फैसला जिसने सुनाया वो भी अपने ही थे

जब क्रोध अपने अंतिम चरण पर पहुँच जाता है,वह अपने आप आँसुओं में परिवर्तित हो जाता है। इसलिए व्यक्ति को चाहिए कि जब भी वह क्रोधित हो,शांति पूर्वक किसी शांत कमरे में बैठ जाये फिर धीरे-धीरे स्वतः ही उसका क्रोध द्रव के रूप में उसके नेत्रों के सहारे बाहर निकल जायेगा। पुनः वह व्यक्ति एक कोमल स्वभाव वाले व्यक्ति में परिवर्तित हो जाएगा।

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जिंदगी से वफ़ा गर निभाई होती,
तो सारी उम्र हँस के बिताई होती!