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My story गांधी गिरी publish in newspaper
https://www.youtube.com/watch?v=eaXZcjJEk0c&feature=share प्रयाग कुंभ मेला 2019
गरम परांठे- अंजू खरबंदा नौकरी के सिलसिले में कभी एक शहर कभी दूसरे । कभी ढंग का खाना मिलता कभी नहीं भी मिलता । आज सुबह सुबह सामने टेबल पर पङे टोस्ट और कॉफी को देखते देखते अचानक मां याद आ गयी । "अरे जल्दी आ जा ! आज तेरी पसंद के प्याज़ के परांठे बनाये है साथ में तेरी मनपसंद मलाई वाली दही और सफेद मक्खन भी है ।" मां ने रसोई से आवाज़ दी । "अभी बिजी हूँ मां । लैपटॉप लेकर कहाँ आऊंगा रसोई में! आप यहीं मेरे कमरे में ही दे जाओ ।" "अच्छा चल ठीक है ।" कहकर मां गरमागरम परांठा लेकर मेरे कमरे में झट हाज़िर हो जाती । "रख दो मां, अभी खा लेता हूँ ।" लैपटॉप में नजरें गङाए मैंने कहा । "बेटा.... गरम गरम परांठे का स्वाद ही अलग होता है । तू पहले खा ले, फिर काम करते रहना ।" मां ने लाङ से मेरे सिर पर हाथ रखते हुए कहा । "हां मां ! ठीक है !" मां फिर रसोई में चली जाती । अगला परांठा लेकर मेरे कमरे में दुबारा आईं तो पहला परांठा ही जस का तस रखा था । "तूने खाया नहीं अभी तक ! " न नाराजगी न रोष, बस प्रेम से भरा उलाहना । "खाता हूँ मां, बस दो मिनट और! आप दूसरा भी रख दो । मेरी बस और नही लूँगा ।" माँ जाते जाते प्लेट वापिस ले कर जाने लगी । "मां! क्या हुआ!" "तू काम कर ले । तेरे लिए साथ साथ गरमागरम बना दूँगी । ठंडे परांठे खाने में क्या स्वाद भला !" "और ये !" "ये मैं खा लूँगी ।" "ठंडे !!!!" "मुझे आदत है.... मेरी माँ नही थी तो ... ठंडा खाना खाने की आदत पङ गई ।" "पर मां.... !" "मै बङा तरसती थी गरम परांठे खाने को । तेरी तो मां है ना तुझे गरम परांठे बनाकर खिलाने के लिए ।"
लघुकथा : दहेज का ज़िन्न : अंजू खरबंदा "नमस्ते भाई साहब ! शर्मा जी से आपका फोन नंबर मिला । उन्होंने बताया कि आपका बेटा शादी लायक है !" मैंने नम्रता पूर्वक कहा । "जी जी शर्मा ने मुझे भी बताया आपके बारे में ।" फोन के दूसरी तरफ से वर्मा जी की आवाज अाई । " जी मेरी बेटी ने पिछले साल ही एम.ए. किया है । अभी वह नौकरी कर रही है ।" गर्व मिश्रित भाव से मैने कहा । "नौकरी मे क्या मिलता होगा जी उसे ! हमें तो वैसे भी नौकरी वाली बहू नही चाहिए ।" रुखी सी आवाज में वर्मा जी बोले । "पर आजकल तो बेटियों का पैरों पर खड़े होना बहुत जरूरी है भाई साहब ।" मैने समझाने वाले अंदाज़ मे कहा । "बहुत अच्छा कमा लेता है जी मेरा बेटा ! कोई कमी नही रखेगा वह आपकी बेटी को !!! आप निश्चिंत रहें !" उनकी आवाज मे गर्व की जगह घमंड की बू मुझे महसूस हुई । "जी आपकी बात तो ठीक है पर ..... !" फिर भी मैने उन्हें समझाने की कोशिश जारी रखते हुये कहा । "बस हमें तो अच्छे खानदान की लड़की चाहिए और चाहिए - लेविश यानि कि शानदार शादी !!!! जो शादी मे आये तो याद रखे सालों साल तक !!!" उन्होंने मेरी बात को अनसुना करते हुये अपनी बात जारी रखी । "और दहेज..... !!!!" मुझसे रहा ना गया तो मैने पूछ ही लिया । "हाहाहा .... गाडियाँ तो हमारे पास पहले से ही दो हैं पर दहेज मे मिली गाड़ी की बात ही निराली होती है ! " बेशरमी की सारी हदें पार करते हुये उन्होंने कहा । "जी और कुछ !!!!" मैने दिल पर पत्थर रखते हुये पूछ ही लिया । "बस जी बिटिया को खाना बढिया बनाना आता हो ! मेरा बेटा खाने पीने का बहुत शौकीन है !!!!! " ढीठता से वे बोले । "आप दस हजार में कोई कुक क्यूं नहीं रख लेते !!! " जी मे आया कह दूं पर सामने वाला बेशर्म है तो क्या हम भी .....! "जी भाई साहब मैं घर मे बात करके आपसे बात करता हूं । " कहकर मैंने फोन पटक दिया । सामने ही बेटी बैठी थी । उसकी ओर देखते हुये मन मे विचार आया - इतना पढ़ाया लिखाया बेटी को लेकिन ये दहेज का कीड़ा हमारे समाज को खोखला कर रहा हैं । बिटिया कितनी पढ़ी लिखी है इस बात से ज्यादा ये मायने रखता है कि आप शादी पर कितना खर्च कर सकते हैं ! मेरा दिल तड़प उठा ! " कैसे दे दूं अपनी फूल सी बेटी इन दहेज लोभियों को ! पता नही कब पीछा छूटेगा इस दहेज के ज़िन्न से !!!!!"
अश्कों में है यादें तेरी भीगी भीगी रातें मेरी गुम है कहीं राहें मेरी ! रेडियो पर गीत सुनते हुए राधिका रसोई के काम जल्दी जल्दी निपटाने में लगी है । "राधिका यार मेरा टावेल दे जाओ, जल्द बाजी में बाहर ही रह गया ।" आलोक बाथरूम से चिल्लाया । "राधिका अभी तक चाय नहीं बनी क्या? मुझे मंदिर जाने में देर हो रही है!" सासु माँ ने अपने कमरे से झांकते हुए पूछा । "मम्मा..... आज तो व्हाइट शूज पहनकर जाना है नही तो पी टी सर डांटेंगे ।" कहते कहते सुलभ जोर जोर से रोने लगा । एक हाथ में टावेल, दूसरे हाथ में चाय का कप थामे राधिका फुर्ती से रसोई से निकली ही थी कि अचानक...... उसका पैर फिसला उसके मुंह से चीख़ निकली जिसे सुनकर सासु माँ व सुलभ उसकी ओर लपके । गनीमत तो ये रही कि चाय का कप साइड पर गिरा । सौरभ भी चीख़ सुन गीले कपङे लपेटे ही बाहर निकल आया । जैसे तैसे कपङे बदले और राधिका को खङा करने की कोशिश की पर पैर मुङने के कारण वह खङी न हो पाई । आलोक बिना समय गंवाये उसे अपनी बांहों में उठा कर बाहर भागा । "सुलभ तू कार का दरवाजा खोल जल्दी से! मां आप घर ही रहो, मै अस्पताल पहुंच कर आप को फोन करता हूँ ।" राधिका दर्द से तङप रही थी, आलोक की आंखें भर आई पर आंसुओं को जब्त करते हुए वह बार बार राधिका को दिलासा देता रहा । क्रमशः
नोंक-झोंक- अंजू खरबंदा पति-पत्नी एक दूसरे के पूरक माने जाते हैं । दोनों का अस्तित्व एक दूसरे के बिना अधूरा है । छोटी छोटी सी बात पर नोंक-झोंक जीवन का अभिन्न अंग है । जैसे नमक के बिना सब्जी में स्वाद नहीं आता वैसे ही पति पत्नी में नोंक-झोंक न हो तो जिंदगी में स्वाद नहीं आता । ये भी प्यार का ही एक रूप है । "सुनो ! देखो कैसी लग रही हूँ!" "अच्छी लग रही हो । " बिना देखे ही कह देते है । आपके पास तो मेरे लिए समय ही नहीं है । "अरे ! न कहीं आता-जाता हूँ! न कोई यारी दोस्ती है फिर भी तुम नाराज़ हो जाती हो । पता है शादी से पहले तो मैं घर में बैठता ही नहीं था म, सारा दिन यारों दोस्तों के साथ मस्त रहता था ।" "तो जाओ ना किसने रोका है आपको ।" हाहाहा..... यही किस्सा घर घर का है । नोंक-झोंक का कोई समय तो फिक्स है नहीं । बस जरा सी बात का बतंगङ बनते कितनी देर लगती है । मुझे सिनेमाघर में फ़िल्में देखने का शौक है और मेरे प्रियतम को बिलकुल भी नहीं । अब बताओ नोंक-झोंक होगी कि नहीं । छुट्टी के दिन उनको आराम करना पसंद है और मुझे व बच्चों को घूमना !!!! बताओ नोंक-झोंक होगी कि नहीं । उनको रोज राजमा चावल पसंद है और मुझे व बच्चों को पास्ता, मलाई चाप आदि!!!! बताओ नोंक-झोंक होगी कि नहीं । पर इस नोंक-झोंक का भी अपना मजा है नही तो जीवन नीरस हो जाए । थक हार कर कभी वो हमारा कहना मान जाते हैं कभी हम उनका । इसका भी अपना मजा है । हे भोले आप से यही दुआ है कि हम मियां बीवी की खट्टी मीठी नोंक-झोंक जिंदगी भर यूँ ही चलती रहे ।
Hello friends https://youtu.be/0Wq5LCDtfG4 पूरी विडियो देखने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें
कुछ ऐसे बंधन होते है - अंजू खरबंदा "क्या सच में ऐसा होता है!" पूरब ने पढते पढते कोहनी मारते हुए अभिनव से पूछा । "क्या ?" अभिनव ने चौंकते हुए कहा । "मैंने एक जगह पढ़ा था कि - संबंध उसी आत्मा से जुड़ता है जिनका हमसे पिछले जन्मों का कोई रिश्ता होता है' वरना दुनिया के इस भीड़ में कौन किसको जानता है ।" किसी दार्शनिक की तरह पूरब बोला । "तुम क्यों पूछ रहे हो !" अभिनव की समझ में कुछ नहीं आ रहा था । "मुझे भी ऐसा ही महसूस हो रहा है आजकल !" ख्वाबों में खोये हुए पूरब ने कहा । "कैसा ?" अभिनव सिर खुजाते हुए बोला । "जैसे मैं उसे युगों युगों से जानता हूं !" ख्यालों की दुनिया में डूबे पूरब ने जवाब दिया । "किसे ?" अभिनव ने पूरब को झकझोरते हुए कहा । "है कोई सोशल मीडिया फ्रेंड !" पूरब अभिनव की आंखों में देखते हुए बोला । "तो !!!!" अभिनव ने आंखे फाङे पूछा । "यारा... उससे बातें करते हुए उसके सुख दुख अपने से लगने लगें हैं ।" पूरब ने अभिनव का हाथ थामते हुए कहा । "तुम ठीक तो हो ना !" अभिनव अचकचा सा गया । "तुम ही बताओ क्या खून के रिश्ते ही सब कुछ होते हैं !" पूरब ने अगला प्रश्न दागा । "मैंने ऐसा कब कहा !" अभिनव अपना हाथ छुङाते हुए बोला । "कुछ ऐसे बंधन होते है जो बिन बांधे बंध जाते है !" पूरब ने खुले आसमान की ओर देखते हुए गुनगुनाया । "जो बिन बांधे बंध जाते है वो जीवन भर तङपाते हैं ।" अभिनव ने गीत की अगली पंक्ति पूरी करते हुए पूरब को जमीन पर ला पटका ।
प्रेम सकल हो, भाव अटल हो मन को मन की आशा हो बिन बोले जो व्यथा जान ले वो अपनों की परिभाषा हो !
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