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Anju

Anju

@anju9789


मजदूर ही मजबूर

हे !महामारी तू क्यों काल बनकर आई।
हम मजदूर हैं इसीलिए तो मजबूर हैं ।।
क्या तुमको हम पर रहम नहीं आई।
हे! महामारी तू क्यों काल बनकर आई।।
रोजी रोटी ही मेरा सहारा।
मैंने तेरा क्या था बिगाड़ा।
ना ही छत ,ना ही माझी, ना किनारा।
मेरी मेहनत ही है मेरा सहारा ।।
क्या तुझको इस पर भी दया नहीं आई।
हे !महामारी तू क्यों काल बनकर आई।।
मेरा साहस ही है मेरा पहिया।
चाहे समतल हो चाहे हो दरिया।
जेब में ना है पैसा ना ही रुपैया।
भुखमरी ने बना दिया है पईया।।
हे महामारी तू क्यों ग्रहण बनकर छाई।
क्या तुम को जरा सी भी लज्जा ना आई।
क्यों दुर्घटना की चादर मौत को बनाई।।
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happy birthday Jiya
beta

हम पंछी है पिंजर बाध्य गति हमें स्वीकार नहीं।। हम आसमा को छूते हैं
धरती पर रहना हमें स्वीकार नहीं।।

यह कैसी घड़ी आई है!
छुट्टियां तो है पर मुसीबत सर पर लाई है।।
सुबह - सुबह की दिनचर्या,
ऐसे करना वैसे करना,
घर में रहना बाहर निकलना,
गलत हुआ सुधार करना
छा गई इन सब पर काल की बदली,
ओह! पंछियों की पिंजर बाध्य गति,
निहित अन्तर मन में समाई है,
यह कैसी घड़ी आई है!
छुट्टियां तो है पर मुसीबत सर पर लाई है।।
तन भी चंचल मन भी चंचल,
आत्मस्फूर्ति सौर्य ऊर्जा जगाई है,
मूर्छित हो जाएंगी ये चंचल किरणें !
अरे छठ जा कोरोना की काली घटा,
क्यू महाकाल बनकर तू आई है।
यह कैसी घड़ी आयी है !
छुट्टियां तो है पर मुसीबत सर पर लाई है।।
सोचा न था कि कदम हमारे,
चलते - चलते ही रुक जाएंगे,
भाव भंगिमा के कल्पित मन को,
यूं ही पूर्ण विराम लग जाएंगे,
ये तो शब्द समूहों की श्रेष्ठतम श्रृंखला,
जो कि रिश्तो में मिठास बनाई है,
उनके मुखार विंदु की शोभा,
चंचल नेत्रों से वर्णित ना हो पाई है,
यह कैसी घड़ी आई है!
छुट्टियां तो है पर मुसीबत सर पर लाई है।।

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यात्रा के दिन🚆🚆🚆🚆🚆



याद आ रहे है हमको गर्मी वाले दिन,
अपनों के साथ खुशियां और मस्ती वाले दिन।।🍧🍧

गर्मी की ताप तपिश और ठंडी एसी वाले दिन,
बच्चों की मौज मस्ती और डांस वाले दिन।।💃

लहरों के ठंडे पानी में कोल्डड्रिंक वाले दिन,
मीठी लीची, लाल जूस ,शरबत वाले दिन।।🍹🍹

आज क्रूर यातना दे रहा कैसे ला क डाउन वाले दिन,
बिनाआइसक्रीम, बिना कोल्ड ड्रिंक बोरिंग वाले दिन

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हे प्रकृति की सुंदर रचना!
भूल के ना! आना राहों में,
घर के बाहर खड़ा कोरोना,
तुम्हें अपना ग्रास बनाने में।।
आज कोरोना प्रकृति का प्रहरी!
धरती मां का रक्षक है,
64 योनि में हे मानव श्रेष्ठतम,
तुम पर लाया कैसा संकट है,
तुम मानव से दानव बन बैठे,
भूल गए अपनी सात्विकता को,
हे प्रकृति की सुंदर रचना!
भूल के ना! आना राहों में।।
रिश्ते नाते पैसा कौड़ी,
सबको लावारिस करार किया,
जो भूल गए तुम अपने धर्म को,
उससे तुम्हें आगाह किया,
कर्मन्यता का पाठ पढ़ाने,
खड़ा तुम्हारी राहों में,
हे प्रकृति की सुंदर रचना,
भूल के ना आना राहों में।।🙏🙏🙏🙏

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वाह रे ! कोरोना तूने क्या रंग दिखाया है।
ना कोई आगे , ना कोई पीछे, ना कोई अमीर ,ना कोई गरीब!
ना कोई मंदिर ,ना कोई मस्जिद, सबको समय की सब्लता को सिखाया है,!
वाह रे ,!कोरोना तूने क्या रंग दिखाया है।
प्रकृति ने सबको शक्तिशाली बनाया है!
क्या कोई शेर , क्या कोई चींटी!
प्रकृति को छेड़ने का क्या हश्र दिखाया है!
आज छोटा सा सूक्ष्मजीव सब पर कहर बरसाया है!
वाह रे करो ना तूने क्या रंग दिखाया है!
चाहे हो धन पाने की होड़ा- होड़ी!
चाहे हो मांस मदिरा की पिपासा!
क्या है पिज़्ज़ा , क्या है बर्गर!
सबको तूने क्या "। " लगाया है!
वाह रे को रोना तूने क्या रंग दिखाया!

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