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રહ્યું છે હવે ક્યાં સંબંધ જેવું? કે કરવું પડે છે પ્રબંધ જેવું! હું તો એને સમજું છું અંત જેવું, ભલે એ કહે, 'છે અનંત જેવું'. હજું શ્વાસ ચાલે નસીબ કેવું? અભાવે તમારાં જીવંત જેવું! મળો ત્યાં સુધી તો અસર રહે છે, જરા સ્હેજ અમથા કરંટ જેવું. જીવનભર પછી પાનખર મળે છે, ઘડી બે ઘડીની વસંત જેવું. છે તુજ સાથનો આ પ્રભાવ એવો, મળે મુજમાં મારાં જ અંશ જેવું. નથી મારી તું, તોય મારી જાણું, સદાયે રહે છે ઘમંડ જેવું. ગયા 'અક્ષ' જોને, પછી શું નાટક? જીવન આખુંયે રંગમંચ જેવું! - અક્ષય ધામેચા
दर्द-ए-दिल, ज़ख्म-ओ-ग़म ढो कर, क्या ही मिला है आँख भिगो कर। मुझ से ज्यादा तो तू रहता है, मैंने देखा है खुद में खो कर। उन की नज़रें रहती फूलों पर, काँटों को क्या मज़ा आता चुभो कर। फिर शायद मन हल्का हो जाए, तू भी तो देख ले थोड़ा रो कर। चैन-ओ-सुकून है ना ही सुख है, तुम को क्या ही मिला मेरा हो कर? क्या शिद्दत से नींद आई है हम को, साँस रुके इन बाँहों में सो कर। आखिर तू तैरना सीख गया अक्ष, आग के दरिया में खुद को डूबो कर। - akshay Dhamecha
सही है या नहीं है, जो कुछ भी है यहीं है। बहुत पीड़ा सही है, सुकून फिर भी नहीं है! हूँ मैं नज़दीक लेकिन, तू ही दूर जा रही है। कहा कि ठीक है सब, गलत तू ने कही है। उदासी ही मिलेगी, कहीं मैं तू कहीं है। वो मेरी ही रहेगी, गलत फ़हमी रही है। जिएगा अक्ष कैसे? कभी जाना नहीं है। -अक्षय धामेचा
तू जो करना चाहता है कर क्यूँ नहीं जाता? तू ने ग़र मरना है फिर मर क्यूँ नहीं जाता? कोई तुझ से मिलता है पूरा हो जाता है, तुझ से मिल के भी मैं निखर क्यूँ नहीं जाता? हर दिन घर जाने की देरी रहती थी ना? शाम हुई है फिर भी तू घर क्यूँ नहीं जाता? फिर शायद तकलीफ़ ना भी हो जुदा हो के, सब की नज़रों से उतर क्यूँ नहीं जाता? इक ज़ख्म पुराना पीछा क्यूँ नहीं छोड़ रहा? आख़िर उनकी यादों का असर क्यूँ नहीं जाता? अक्ष तिरी लापरवाही तुझ को भारी पड़ गई, मौत आ गई है तो मौत का डर क्यूँ नहीं जाता? - अक्षय धामेचा
कभी भी न मुँह से लगाने की दुनिया, हमे मत दिखाओ दिखावे की दुनिया। हमे क्या है तास और पत्ते से लेना? झूठी तकदीरे आज़माने की दुनिया। जो भी ज़ख्म जाने वो ही दर्द जाने, बुढ़ापा ही जाने बुढ़ापे की दुनिया। यही ख्याल रखना दुखे दिल कभी ना, है दुल्हन सी प्यारी सजाने की दुनिया। तू है अक्ष मिट्टी के मटके की खुश्बू, खतम अब हुई है तमाशे की दुनिया। - अक्षय धामेचा
દીપ જ્યોત પ્રગટાવો રે, આજ દિવાળી આવી રે, રોશન દુનિયા થાઓ રે, આજ દિવાળી આવી રે. વેર ઝેરને વિસરી જઈ, માફ કરીને મોટા થઈ. ખુશ્બો ચારે કોર રહે, ફૂલોમાં ગલગોટા થઈ. ભૂલી સૌ સંતાપો રે, આજ દિવાળી આવી રે. રોશન દુનિયા થાઓ રે, આજ દિવાળી આવી રે. નિજાનંદને પંપોળી, બ્હેની પૂરતી રંગોળી. મા દીપક પ્રગટાવે, વાટ ઘીમાં ડૂબોળી. ગીત મજાનાં ગાઓ રે, આજ દિવાળી આવી રે. રોશન દુનિયા થાઓ રે, આજ દિવાળી આવી રે. સૌ ખુશીઓના રંગે, રંગાઈ નવી ઉમંગે. તહેવારોને માણીયે, ને હર્ષોલ્લાસને સંગે. દુઃખ સઘળાં જાઓ રે, આજ દિવાળી આવી રે. રોશન દુનિયા થાઓ રે, આજ દિવાળી આવી રે. - અક્ષય ધામેચા
और तो क्या हो सकता था घोड़े बेच के? मैं तो बस सो सकता था घोड़े बेच के। आँख अगर लग जाती, जाने क्या होता? सब कुछ डुबो सकता था घोड़े बेच के। हम घर में बड़े है ना! हक़ भी तो नहीं है! कैसे मैं रो सकता था घोड़े बेच के? ये काम तिरा है, तू ही कर सकता है, मुझ से ना हो सकता था घोड़े बेच के। कुछ भी ना करने से कुछ हो सकता क्या? क्या पाप को धो सकता था घोड़े बेच के? होने का मतलब खोने से पता चलता, अक्ष भी क्यों खो सकता था घोड़े बेच के?
मोती ही मोती बसे थे उन में, आंखों का चमकना तो लाज़मी था। - Akshay Dhamecha
जो जैसा भी चाहे वो मतलब निकाले, कि हमने तो किया सब उन के हवाले। किसी को तो आता ही होगा निभाना, कभी कोई आए निभाए ज़माना। जो खोया है हमने वो खोया कहाँ है? अभी भी धड़कनें सुनाती फसाना। उन्हें भी संभाले, हमें भी संभाले, कि हमने तो किया सब उन के हवाले। हूर - ए - चाँद जैसा बदन है तुम्हारा, कहाँ है हमें होश सारा का सारा? कहीं गुम हम है, कहीं गुम तुम हो, कहीं हो बसेरा हमारा तुम्हारा। कभी ज़िन्दगी में भी आए उजाले, कि हमने तो किया सब उन के हवाले। उन्हीं का है हम पर कोई जादू टोना, उन्हीं का है होना खुशी का है होना। जगह भी मिले तो उन्हीं के दिल में, ये साँसें तो चाहे उन्हीं का ही होना। वो चाहे संवारे वो चाहे जलाले, कि हमने तो किया सब उन के हवाले। - अक्षय धामेचा
मेरे दिल को तेरे लिए धड़कने की आदत थी, मेरी रूह को तेरे लिए तड़पने की आदत थी। तू समुंदर हो कर भी वो प्यास बुझा न सका, एक तेरी ही प्यास को तरसने की आदत थी। और कुछ कहाँ आता भी था, प्यार के सिवा? सिर्फ तुम पर ही तो बरसने की आदत थी। तुझे देखे बिना जीना कहाँ आता भी था मुझे? तेरे नशे में ही मुझ को बहकने की आदत थी। अक्ष प्याला जाम का, आज रहा ना काम का, आज खाली खाली हैं छलकने की आदत थी। -Akshay Dhamecha
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