Haunted Road in Hindi Horror Stories by Vedant Kana books and stories PDF | Haunted Road

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Haunted Road

उस सड़क के बारे में गांव के बुजुर्ग कहते थे कि सूरज ढलने के बाद वह रास्ता किसी और ही दुनिया में चला जाता है। जो वहां गया वह लौटा जरूर है पर पहले जैसा कभी नहीं रहा। उसी सड़क पर उस रात चार दोस्तों की हंसी गूंज रही थी और उन्हें अंदाजा भी नहीं था कि कुछ ही पलों में उनकी हंसी डर की चीखों में बदलने वाली है।

पुराने गांव की उस विचित्र सड़क पर अजय अपनी पुरानी गाड़ी चला रहा था। सड़क कच्ची थी, दोनों तरफ ऊंचे पेड़ थे जिनकी शाखाएं आपस में उलझकर आसमान को ढक रही थीं। गाड़ी के अंदर हल्की पीली रोशनी जल रही थी। सामने बैठी वैशाली रेडियो के घुंडी घुमा घुमाकर गाने बदल रही थी। पीछे की सीट पर सुधीर और बिंदु बैठे बाहर के अंधेरे को देख रहे थे और भूत प्रेत की बातें करके मजाक उड़ा रहे थे। सुधीर हंसते हुए कह रहा था कि अगर सच में भूत होते तो अब तक सामने आ जाते। बिंदु भी हंस रही थी लेकिन उसकी हंसी में कहीं न कहीं हल्का डर छुपा था।

अचानक गाड़ी जोर से झटकी और रुक गई। अजय ने नीचे देखा तो टायर पंचर था। चारों की हंसी एक पल में शांत हो गई। चारों तरफ सन्नाटा था, बस दूर कहीं मेंढकों की आवाज और हवा में सरसराते पत्तों की फुसफुसाहट। अजय गाड़ी से नीचे उतरा और डिक्की खोलकर टायर बदलने लगा। तभी आसमान में तेज बिजली चमकी और उसके साथ ऐसी गरज हुई जैसे किसी ने बहुत पास से दहाड़ लगाई हो। अगले ही पल मूसलाधार बारिश शुरू हो गई। बारिश की बूंदें पेड़ों से टकराकर अजीब सी आवाज कर रही थीं।

गाड़ी के अंदर बैठी वैशाली ने खिड़की से बाहर देखा। झाड़ियों के पास उसे कुछ सफेद सा दिखाई दिया। उसने आंखें मलीं और फिर देखा। उसे लगा शायद बारिश और अंधेरे की वजह से आंखों का धोखा है। उसने किसी से कुछ नहीं कहा। लेकिन कुछ ही पल बाद फिर बिजली चमकी और उस रोशनी में वही सफेद आकृति साफ दिखाई दी। इस बार सिर्फ वैशाली नहीं, सुधीर और बिंदु ने भी उसे देख लिया। वह आकृति इंसान जैसी लग रही थी लेकिन बहुत स्थिर थी, जैसे जमीन में गड़ी हो।

बिंदु का दिल जोर जोर से धड़कने लगा। उसने कांपती आवाज में अजय को गाड़ी के अंदर आने को कहा। अजय ने हंसने की कोशिश की और बोला कि बस टायर बदल रहा है, डरने की कोई बात नहीं। तभी अचानक गाड़ी की खिड़की पर जोर से किसी ने हाथ मारा। आवाज इतनी तेज थी कि चारों के शरीर सिहर गए। बिंदु की चीख निकल गई और वैशाली डर के मारे चिल्ला उठी। उसी पल अजय ने औजार फेंका और दौड़कर गाड़ी के अंदर आ गया। चारों के चेहरे पीले पड़ चुके थे।

बारिश और तेज हो गई थी। बाहर कुछ भी साफ दिखाई नहीं दे रहा था। चारों ने तय किया कि सुबह होने तक गाड़ी के अंदर ही रुकेंगे। गाड़ी के शीशों पर बारिश की धाराएं बह रही थीं और हर थोड़ी देर में बिजली चमकती तो बाहर की परछाइयां और भी डरावनी लगतीं। अचानक फिर से उसी खिड़की पर जोर से हाथ पड़ा। इस बार आवाज के साथ एक अजीब सी खुरदरी सांसों की आवाज भी आई। जैसे कोई बहुत पास खड़ा हो और शीशे के उस पार से उन्हें देख रहा हो।

अजय ने कांपते हाथों से शीशे के बाहर झांकने की कोशिश की। बिजली चमकी और जो उसने देखा, उसकी रूह कांप गई। वही सफेद आकृति अब बिल्कुल पास खड़ी थी। उसका चेहरा धुंधला था लेकिन आंखें काली और खाली थीं। तभी एक और भयानक सच सामने आया। उसी आकृति के पीछे सड़क के किनारे कई और आकृतियां खड़ी थीं। सबके चेहरे अलग थे लेकिन शरीर एक जैसे सफेद और भीगे हुए।

उसी पल सुधीर को याद आया कि गांव में एक कहानी सुनी थी। सालों पहले इसी सड़क पर बरसात की रात एक बैलगाड़ी पलट गई थी और उसमें सवार लोग मारे गए थे। उनकी लाशें इसी सड़क के किनारे पड़ी रहीं और किसी ने उनका अंतिम संस्कार नहीं किया। तभी अचानक गाड़ी के अंदर ठंड और बढ़ गई। बिंदु ने धीमी आवाज में कहा कि जो सफेद आकृति उन्होंने पहले देखी थी, उसका चेहरा सुधीर जैसा लग रहा है।

चारों एक दूसरे को देखने लगे। सुधीर का चेहरा सफेद पड़ चुका था। उसने कांपते हुए कहा कि वह आकृति उसी जगह खड़ी है जहां वह बैठा है। तभी पीछे की सीट से पानी टपकने की आवाज आई। बारिश का पानी नहीं, बल्कि किसी गीले शरीर से टपकता हुआ पानी। गाड़ी के अंदर अजीब सी सड़ांध फैल गई।

खिड़की पर फिर से जोर से हाथ पड़ा और इस बार कांच पर उंगलियों के निशान साफ दिखे। उंगलियां इंसान की नहीं थीं, बहुत लंबी और टेढ़ी थीं। बाहर से एक धीमी सी आवाज आई, जैसे कोई नाम पुकार रहा हो। आवाज साफ नहीं थी लेकिन ऐसा लग रहा था जैसे वह सुधीर का नाम ले रही हो।

अजय ने गाड़ी स्टार्ट करने की कोशिश की लेकिन गाड़ी हिली तक नहीं। बाहर सभी सफेद आकृतियां अब गाड़ी के चारों तरफ खड़ी थीं। उनकी आंखें अंदर झांक रही थीं। तभी अचानक गाड़ी की छत पर किसी के रेंगने की आवाज आई। एक के बाद एक खिड़कियों पर हाथ पड़ने लगे। चारों दोस्तों की सांसें रुकने लगीं।

और तभी गाड़ी के अंदर का शीशा धुंधला हुआ और उस पर उंगलियों से एक ही शब्द लिखा गया, लौट आओ। उस पल चारों को समझ आ गया कि यह सड़क उन्हें जाने नहीं देगी। लेकिन असली डर तब शुरू हुआ जब बिंदु को लगा कि पीछे की सीट पर अब सुधीर नहीं बैठा है। उसकी जगह कोई और बैठा मुस्कुरा रहा है और उसकी आंखें बिल्कुल वैसी ही काली और खाली हैं जैसी बाहर खड़ी आकृतियों की......

To be Continued....