"कभी सोचा है… अगर किसी के गले से सिर अलग कर दिया जाए, तो क्या उसका गुस्सा भी मर जाता है? या फिर वो इंतज़ार करता है... सिर वापस जुड़ने का... और तब तक, वो अपने श्राप से सबकुछ तबाह कर देता है..."
बीजापुर से कुछ मील दूर, घने जंगलों के बीच एक पुराना, टूटा-फूटा मंदिर था। उसे लोग "काल मंदिर" कहते थे। गांव वाले उस ओर झांकते तक नहीं थे। कहा जाता था वहाँ रात के अंधेरे में कोई चीखता है... किसी का सिर खोजता है।
एक रात बारिश के साथ बिजली कड़की और गांव की बुज़ुर्ग औरत दादी सुगना ने धीमी आवाज़ में कहानी सुनाई...
"वो मंदिर कोई आम जगह नहीं... वहां सामरीन दफन है, एक शैतान... सिर कटा शैतान।"
सदियों पहले, बीजापुर के राजा वीरमदित्य ने काले जादू में लिप्त एक तांत्रिक सामरीन को अपने राज्य में शरण दी थी। पर जब सामरीन ने महल की रानी और बच्चों को अपवित्र बलि के लिए मांग लिया, तब राजा ने क्रोधित होकर सामरीन का सिर धड़ से अलग करवा दिया।
धड़ को काल मंदिर में दफनाया गया और सिर को महल के गुप्त तहखाने में छुपा दिया गया।
मरते वक्त सामरीन ने एक भयानक श्राप दिया:
"जब प्रेम दो आत्माओं को जोड़ेगा, तब मेरा सिर मुझे पुकारेगा... और मैं लौटूंगा... रक्त से सने अंत के लिए!"
वर्तमान समय — दो प्रेमी, आरव और मीरा, बीजापुर घूमने आए। आरव इतिहास में दिलचस्पी रखता था और मीरा को शाही खंडहरों से लगाव था। वे महल देखने पहुंचे और एक पुरानी गुप्त सीढ़ी खोज निकाली जो तहखाने तक जाती थी।
वहाँ एक लोहे की संदूक थी... और उसमें कांटों से ढका इंसानी खोपड़ी जैसा कुछ...
जैसे ही मीरा ने उसे छुआ, एक ठंडी लहर पूरे शरीर में दौड़ गई।
महल का बूढ़ा सेवक रघु, जो वर्षों से वहीं रहता था, अचानक अजीब बर्ताव करने लगा। रात को उसे मंदिर की ओर जाते देखा गया। उसकी आंखें लाल हो गई थीं और वो बड़बड़ा रहा था:
"सिर जाग गया है... धड़ को अब पुकार मिल गई है... सामरीन लौटेगा…”
रघु ने रात में काल मंदिर जाकर किसी तांत्रिक विधि से सामरीन के धड़ को जिंदा कर दिया।
अब सिर और धड़ दोनों इस दुनिया में थे, लेकिन अलग-अलग।
मीरा को अजीब सपने आने लगे — वो खुद को मंदिर में सामरीन के सामने देखती, और कभी-कभी आरव का चेहरा सामरीन में बदल जाता। वो हकीकत और कल्पना में फर्क नहीं कर पा रही थी।
आरव का व्यवहार भी बदल गया, वो अचानक गुस्सा करने लगा, जैसे कोई उसे अंदर से खींच रहा हो।
उन्हें समझ आ गया था — वे ही उस श्राप के वाहक हैं।
एक तूफानी रात, मंदिर से गर्जना सुनाई दी। आरव और मीरा वहाँ पहुँचे तो देखा — रघु का शरीर अधमरा था और सामरीन का विकृत, सिर वाला शरीर खड़ा था।
उसका चेहरा ऐसा था जैसे हज़ारों साल की नफ़रत उसमें जम गई हो। आंखों से खून बह रहा था और ज़ुबान पर था — “अब कोई राजा नहीं… अब मैं हूं!”
आरव को याद आया — रघु ने कहा था कि श्राप का अंत तभी होगा जब सिर और धड़ फिर से अलग होंगे और एक ही अग्नि में जलेंगे।
मंदिर में रखा राजसी अग्निकुंड, जिसमें वर्षों पहले यज्ञ हुए थे, अभी भी जीवित था।
आरव ने मीरा को बचाने के लिए सामरीन को खुद पर हमला करने दिया और उसी समय, लोहे की तलवार से सिर फिर काट दिया और दोनों हिस्सों को अग्निकुंड में फेंक दिया।
सामरीन की चीखें पूरे जंगल में गूंजीं...
मीरा ने आरव को देखा… लेकिन उसके चेहरे पर सामरीन की मुस्कान थी।
"श्राप तो टूटा... लेकिन मेरी आत्मा को शरीर मिल गया… अब आरव नहीं, मैं हूं... सामरीन।"
कहानी खत्म नहीं हुई... वो बस एक नया चेहरा पहन चुकी है।