अध्याय 4 – सिंहासन
समय: रात्रि 07:17 PM
अविन मुख्य द्वार के सामने खड़ा था। उसके ठीक सामने, हवेली का मुख्य हॉल फैला हुआ था—गहरा, साँसें रोक देने वाला काला गड्ढा। रात अपनी पूरी शक्ति के साथ आसमान पर छा चुकी थी। अविन ने सिर ऊपर उठाकर देखा। आसमान में चाँद, जैसे किसी पुरानी कहानी का एकमात्र दर्शक, अपनी ठंडी, पीली रौशनी फेंक रहा था। उस रौशनी में हवेली और भी भयावह लग रही थी।
> अविन की 'भूत की आँख' —वह अलौकिक दृष्टि जो उसे एक्सीडेंट के बाद मिली थी—रात के अँधेरे को दिन के उजाले में बदल रही थी। हर परछाई, हर टूटी हुई चीज़, यहाँ तक कि हवा में तैरते धूल के कण भी उसे साफ़ दिख रहे थे। इसी शक्ति के बल पर वह रात में टैक्सी चलाता था।
>
अविन ने गहरी साँस ली और हवेली के विशाल दरवाज़े से पहला कदम अंदर रखा। अंदर की हवा ठंडी थी, लेकिन यह साधारण ठंडक नहीं थी—यह वैसी ठंडक थी जो किसी मरे हुए शरीर को छूने पर महसूस होती है। दीवारों पर चढ़ी बेलें अब दीवारों का ही हिस्सा बन चुकी थीं। हर कोने में, हर दरार में सदियों की चुप्पी और 300 साल का सड़ा हुआ इतिहास जमा था।
तभी, उसके कानों में वही रहस्यमयी आवाज़ गूँजी, जो अब और भी स्पष्ट और गंभीर थी:
> "अविन... आपने अपने लॉगिन का पहला चरण सफलतापूर्वक पूरा कर लिया है।"
> "लॉगिन को पूरी तरह सफल करने के लिए, आपको पूरी रात इस हवेली में गुज़ारनी होगी।"
> "और यह एक चेतावनी है। अगर आपको अपनी जान बचानी है, तो जल्द से जल्द हवेली के बीच में बने दरबार में राजा के सिंहासन पर जाकर बैठें। और वहाँ एक राजा की तरह काम करें।"
>
अविन चौंक गया। "राजा का काम? मतलब क्या? भूतों को मलाई-रोटी बाटनी है या उनका पुराना टैक्स माफ़ करना है?"
जैसे ही उसने सवाल ख़त्म किया, एक धीमी, ठंडी 'चर्रर्र...' की आवाज़ आई।
अविन तेज़ी से पीछे मुड़ा। दरवाज़ा बंद हो चुका था। बिना किसी आवाज़ के, जैसे किसी अदृश्य हाथ ने उसे अंदर धकेल कर बाहर से बोल्ट लगा दिया हो।
उसने हड़बड़ा कर दरवाज़े पर हाथ मारा। "ओए! यह क्या मज़ाक है? खोलो इसे!" उसने ज़ोर से धकेला, फिर खींचा। दरवाज़ा टस से मस नहीं हुआ। यह अब कोई धातु का दरवाज़ा नहीं, बल्कि ठोस, ठंडी पत्थर की पहाड़ लग रहा था।
अविन के माथे पर हल्की-सी शिकन आई। वह जानता था कि डरना मना है, लेकिन यहाँ मामला सीधा जीवन और मृत्यु का था। ड्राइवर और बुज़ुर्गों की चेतावनियाँ उसके दिमाग में गूँज उठीं। अगर दरवाज़ा बंद हो चुका है, और आवाज़ कह रही है कि 'जान बचानी है', तो इसका सीधा मतलब है: खतरा अब उसकी तरफ़ बढ़ रहा है।
अविन ने एक पल भी बर्बाद नहीं किया।
> "ठीक है! सिंहासन ही सही। अगर राजा बनना है, तो भागा नहीं करते, दौड़ा करते हैं!"
>
अविन पूरी ताक़त से पहली मंज़िल के गलियारे में भाग रहा था। उसकी आँखें, अँधेरे में भी साफ़ देखने की क्षमता के कारण, अब केवल फुसफुसाहट नहीं, बल्कि हवेली के निवासियों को साक्षात देख रही थीं।
हवेली में तिल रखने की जगह नहीं थी—हर कोने में भूत थे! गलियारे की टूटी हुई छत से लटकते जाले ऐसे लग रहे थे जैसे मकड़ी के परदे हों। दीवारों पर फफूँदी और नमी के भयानक, भूरे निशान थे, जो अँधेरे में सड़े हुए चेहरों की तरह लग रहे थे।
एक कमरे का दरवाज़ा खुला था। अंदर, भूतिया कर्मचारी अपने-अपने काम में लगे थे। एक रसोई का भूत, जिसके हाथ से गर्म धुआँ निकल रहा था, ज़मीन पर पड़े टूटे बर्तनों को ख़ुद ही घुमा रहा था। उसके चेहरे पर तेल और कालिख ऐसे जमी थी जैसे उसने 300 साल से तंदूरी चिकन बनाया हो। गलियारे में, सैनिक भूत जिनकी कमर में ज़ंग लगी तलवारें लटक रही थीं, धीरे-धीरे आगे बढ़ रहे थे।
जैसे ही उन सबने अविन को भागते देखा, उनका 'काम' छूट गया। उनकी आँखें—जो ज़्यादातर ठंडी और बुझी हुई थीं—एकदम से लाल-पीली जल उठीं, जैसे किसी ने अचानक इमरजेंसी लाइट जला दी हो।
> "अरे वाह! यहाँ तो पूरी सरकारी मीटिंग चल रही थी!" अविन हड़बड़ाया। "भाई लोग, मैं 'टूरिस्ट' हूँ, प्लीज़ मुझे 'चोर' मत समझिए! मैं यहां बस गलती से आ गया!"
>
पर भूतों ने उसकी बात नहीं सुनी। वे तेज़ी से उसकी तरफ़ बढ़ने लगे। एक सैनिक भूत, जिसकी वर्दी गलकर हड्डियों से चिपकी थी, ने अपनी ज़ंग लगी तलवार निकाली और भयानक क्रैंक-क्रैक की आवाज़ के साथ अविन की तरफ़ झपटा!
> "तलवार नहीं भाई! मैं आर्मी का जवान नहीं हूँ, मैं कॉमर्स का स्टूडेंट हूँ, मेरे पास सिर्फ़ पेन है! और मैं तुम्हें GST का मतलब समझाना नहीं चाहता!"
>
जैसे ही वह भागा, पीछे रसोई के भूत ने एक टूटी हुई कढ़ाई हवा में उछाली जो साइं-न-न करती हुई अविन के सिर के ऊपर से निकली और दीवार में जाकर धँसी, जहाँ से महीन धूल का एक बादल उठा।
> "क्या बात है! यहाँ तो भूतिया फ़ूड फ़ाइट चल रही है! मैंने तो स्नैक्स भी ऑर्डर नहीं किए थे! और यह कैसी सर्विस है? ग्राहक के सिर पर कढ़ाई मारते हो!"
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भागते हुए, अविन को दरबार का दरवाज़ा नहीं मिला। उसके पीछे भूतों की भीड़ थी, और उनकी चीख़ें गलियारे में खतरनाक गूंज पैदा कर रही थीं। उसने बचने के लिए जल्दबाज़ी में एक कमरे का दरवाज़ा खोला और अंदर झाँका—
एक बड़ा, धूल भरा बेडरूम। बीच में एक महिला भूत, जिसके बाल सफ़ेद और उलझे हुए थे, ज़मीन से एक इंच ऊपर हवा में झूल रही थी। उसकी आँखें बंद थीं, और उसके होंठों पर एक डरावनी मुस्कान थी, जैसे वह किसी भयानक सपने में ख़ुश हो।
> अविन: (हकलाते हुए) "ओह! सॉरी! प्राइवेट स्पेस! मैं बस शौचालय ढूँढ रहा था, लगा शायद यहाँ 'मुताना माना है' का बोर्ड नहीं लगा। प्लीज़, अपनी भूतिया स्लीप जारी रखिए!"
> अविन ये मै डर के मारे क्या क्या बोल रहा हु ।
उसने तुरंत दरवाज़ा बंद किया। बाहर दो सैनिक भूत उसे देखकर सें-सें की आवाज़ निकालने लगे। अविन ने फिर एक और दरवाज़ा खोला एक स्टोररूम जहाँ पुरानी किताबें और टूटा-फूटा सामान था। कोने में, दो बूढ़े दादी जैसे भूत—जिनके चेहरे पर ख़ून के सूखे निशान थे—बैठे थे और अविन को घूर रहे थे। उनकी आँखें सिर्फ़ पुतलियाँ थीं, जिनमें कोई सफ़ेद हिस्सा नहीं था।
> अविन: (मुँह पर हाथ रखकर) "डियर दादी! मैं अभी जवान हूँ, मेरे पास टाईम नहीं है! तो सॉरी ।" और यह जगह तो पटाखे के धुएँ से भी ज़्यादा ख़राब स्मेल कर रही है! प्लीज़, अपनी भूतिया बातचीत करते रहो!"
>
उसने तेज़ी से दरवाज़ा बंद किया और भागने लगा। लेकिन अब उसके पीछे पूरी भूतों की सेना थी। सैनिक भूत, सेवक भूत, रसोई के भूत—सब अपनी ज़ंग लगी चीज़ों (तलवार, कढ़ाई, टूटे डंडे) से हमला कर रहे थे। एक टूटा हुआ डंडा फड़फड़ाता हुआ उसके कान के पास से गुज़रा।
वह फुर्ती से एक टूटे हुए, जंग लगे पिलर के पीछे छिप गया। पिलर की दरारों से ठंडी, सड़ी हुई हवा आ रही थी, जो उसके चेहरे को छूकर गुज़र गई।
भूता सेना की आवाज़: "पकड़ो इसे! यह हमारे दरबार की सभा में विघ्न डालने आगे जाने न पाए!"
अविन ने छिपते हुए अपनी साँसें रोकीं। उसकी आँखें पिलर के किनारे से बाहर झाँक रही थीं। भूतों की सेना उसके ठीक सामने से गुज़र रही थी।
भूतों की सेना की फुसफुसाहट और ज़ंग लगे हथियारों की आवाज़ें गलियारे में तेज़ी से गूँजीं, लेकिन उनके शब्दों ने अनजाने में अविन को रास्ता दिखा दिया। 'हमारी दरबार सभा', 'आगे'—इन शब्दों ने स्पष्ट कर दिया कि मुख्य दरबार कहाँ है।
जैसे ही भूतों की सेना आगे बढ़ी, अविन ने पीछे हटने की बजाय, एक भयानक छलांग लगाई और उनके ठीक सामने वाले विशाल, नक्काशीदार दरवाज़े को धक्का दिया।
चर्रर्रर्र...
दरवाज़ा खुला। अंदर का दृश्य इतना गहरा और भयावह था कि अविन के रौंगटे खड़े हो गए। यह कमरा नहीं, बल्कि एक गुंबदनुमा हॉल था—दरबार।
सामने, एक ऊँचे चबूतरे पर एक भयानक, काला सिंहासन रखा था, जैसे सदियों का अँधेरा वहीं जम गया हो।
लेकिन सिंहासन तक पहुँचना असंभव था। अविन के ठीक सामने, एक विशालकाय आकृति खड़ी थी।
सात फ़ीट से भी ऊँचा, वह आकृति थी—मुख्य सेनापति का भूत। उसकी हड्डियाँ किसी सदियों पुराने, जंग खाए कवच में ढकी थीं, और उसके आस-पास काला, जमा हुआ कोहरा धीरे-धीरे उठ रहा था। उसकी आँखें काली और बेजान थीं, और उसके खून से सने कपड़े, जो कभी शान की वर्दी रहे होंगे, अब सिर्फ़ आतंक का प्रतीक थे। उसके हाथ में एक भारी, दोधारी तलवार थी, जिससे ठंडी, धातुई गंध आ रही थी।
सेनापति ने एक पल भी बर्बाद नहीं किया। उसकी काली आँखों में अविन के प्रति कोई भाव नहीं था, सिर्फ़ यांत्रिक क्रोध था।
ठक!
अचानक, उसके भारी जूते से एक ज़ोरदार लात अविन के पेट पर पड़ी।
अविन के मुँह से दर्द भरी चीख़ निकली। वह किसी फुटबॉल की तरह हवा में उड़ता हुआ, दरबार के पिछले पत्थर की दीवार से जा टकराया।
धम्म!
टकराव इतना भयानक था कि अविन को लगा उसकी पसलियाँ टूट गईं। वह ज़मीन पर औंधा गिरा, धूल और पत्थरों के बारीक टुकड़ों से सन गया।
"आह! मां... मेरी ... मेरा पेट!" वह दर्द से कराह उठा। उसे एहसास हुआ कि यह कोई मज़ाक नहीं है। यह असली, जानलेवा खतरा है।
वह दर्द सहते हुए उठा। सिंहासन उसके ठीक सामने था—केवल कुछ फ़ीट की दूरी पर—लेकिन बीच में वह सात फ़ीट का दानव खड़ा था। और अब, गलियारों से भागे हुए सारे भूत भी दरबार में घुस चुके थे। रसोई के भूत, सेवक भूत, सैनिक भूत—सब ने मिलकर अविन को चारों तरफ़ से घेर लिया था।
अविन ने खुद को संभाला। उसका जिस्म दर्द से काँप रहा था, पर उसकी 'भूत की आँख' अब भी खुली थी।
> अविन: (अपने माथे से खून पोंछते हुए, आवाज़ काँप रही थी पर उसने उसे मज़बूत किया) "भाई लोग, देखिए! मेरे पास एक प्रपोजल है! बातचीत से मसला हल करते हैं, न? हिंसा करना गलत है, भाई! और वैसे भी, मुझे इस सिंहासन पर कोई ख़ासतौर पर बैठना नहीं है। मैं तो बस रात गुज़ारने आया था। मैं आपको अपने सारे 'टैक्स बचाने के नुस्ख़े' दे सकता हूँ—"
>
जैसे ही उसने 'हिंसा' शब्द कहा, भूतों की पूरी सभा, जिसमें सात फ़ीट का सेनापति भी शामिल था, एक साथ भयानक, ठंडी हँसी में फूट पड़ी। उनकी हँसी हॉल की दीवारों से टकराकर लौट रही थी, जो अविन के कानों को चीर रही थी।
"हह... हा... हा... हा..."
यह सुनकर अविन का पारा चढ़ गया।
वह तुरंत खुद को बचाने की तरक़ीबों पर सोचने लगा। उसके दिमाग में तुरंत उस 'रहस्यमई आवाज' की याद आया, जिसके दम पर उसने हवेली में आने की हिम्मत की थी।
> अविन: (धीमी, लगभग फुसफुसाती आवाज़ में) "ठीक है... घोस्ट कॉइन... हाँ, शायद ऐसे ही मौके के लिए मुझे वे मिले थे। मैं... मैं अपने घोस्ट कॉइन का इस्तेमाल करना चाहता हूँ। मुझे यहाँ से बाहर निकालो। मुझे बचाओ। मेरी मदद करो।"
>
दरबार की चुप्पी में, केवल भूतों की घूरती आँखें और उनकी सड़ी हुई साँसों की आवाज़ थी। कोई जवाब नहीं आया।
अविन ने गहरी साँस ली, उस दर्द को अनदेखा किया जो उसकी पसलियों से उठ रहा था, और पूरी ताक़त से चिल्लाया:
> "मैं अपने घोस्ट कॉइन का इस्तेमाल करना चाहता हूँ! मुझे बचाओ! मेरी मदद करो!"
>
इस बार, वही रहस्यमयी, भावरहित आवाज़ गूँजी:
> "क्षमा करना, अविन। आप अभी इस हवेली के अंदर अपने भूत कॉइन का इस्तेमाल अभी नहीं कर सकते। मैं आपकी कोई मदद नहीं कर सकती।"
>
अविन के लिए यह जवाब उस लात से भी ज़्यादा दर्दनाक था। उसे लगा जैसे किसी ने उसे पानी की उम्मीद देकर आग के समंदर में फेंक दिया हो। उसका आत्मविश्वास, उसका एकमात्र सहारा, अचानक उससे छीन लिया गया था।
लेकिन उस क्षणिक निराशा में, अविन को अपने अतीत की तेरह साल की लड़ाई याद आई। 12 साल की उम्र में माँ-बाप को खोने के बाद से, 25 साल की उम्र तक उसने कभी किसी से मदद की उम्मीद नहीं की थी। उसने जो कुछ भी हासिल किया था, अपनी मेहनत और अकेले दम पर किया था।
एक पल के लिए उसने आँखें बंद कीं। जब उसने आँखें खोलीं, तो उसकी 'भूत की आँख' और भी तेज़ी से जल रही थी। दर्द अब उसके लिए ईंधन बन चुका था।
> अविन: (दर्द से उभरी हुई आवाज़ में, जिसमें अब हठ और क्रोध था) "ज़रूरत? मुझे कोई ज़रूरत नहीं है किसी की! न किसी लोग की, न किसी रहस्यमयी आवाज़ की! मैं अपनी किस्मत ख़ुद लिखता हूँ! आज तक मुझे किसी की ज़रूरत नहीं पड़ी!"
>
उसने सीधे सात फ़ीट के सेनापति की काली आँखों में देखा। उसके चेहरे पर अब डर नहीं, बल्कि वर्षों का अकेला संघर्ष झलक रहा था।
> अविन: "ठीक है! जो होगा देखा जाएगा! आजा 7 फ़ीट के काले भूत! चल, आज भूत से भी दो-दो हाथ करके देख लेते हैं!"
>
अविन ने अपने घायल शरीर के बावजूद, आगे बढ़ने के लिए कमर कस ली। सिंहासन तक पहुँचने के लिए अब उसे उस विशाल सेनापति से भिड़ना होगा, और उसके पास सिर्फ़ उसकी बुद्धि और ज़ोरदार आत्मविश्वास था।
अविन का शरीर दर्द से काँप रहा था, खासकर पसलियों में, लेकिन उसकी आँखें जल रही थीं। उसने एक गहरी साँस ली, जिससे उसके फेफड़ों में धूल और सड़ी हुई हवा भर गई, और चीख पड़ा, "आजा!"
मुख्य सेनापति, जिसने अविन की बातें एक कीड़े के शोर की तरह सुनी थीं, ने कोई जवाब नहीं दिया। उसकी काली, बेजान आँखें अविन पर टिकी थीं, और उसके हाथ की भारी, दोधारी तलवार हवा में एक ठंडा, भयानक आर्क बनाते हुए उठी।
ठक!
तलवार नीचे आई—यह हवा को फाड़ती हुई एक बिजली की गति थी, जिसे एक इंसान कभी भी काट जाए। अविन ने तुरंत प्रतिक्रिया नहीं दी। यहीं पर उसकी 'भूत की आँख' ने काम किया।
उस आँख ने, समय के एक सूक्ष्म अंश में, सेनापति के वार की दिशा और गति को परखा। यह वार सीधा उसके सिर पर था। भागने का समय नहीं था।
अविन, एक पल के लिए भी बिना सोचे, ज़मीन पर लगभग लुढ़क गया, जैसे कोई अंतिम समय में अपने स्टेशन छोड़ती एक मात्र ट्रेन के लिए भाग रहा हो।
चर्रर्रर्र...
तलवार की धार उस जगह से एक इंच की दूरी पर ज़मीन से टकराई जहाँ अविन का सिर था। ज़मीन पर गहरे, भयानक निशान बन गए, जिससे धूल का एक बवंडर उठा। यदि वह वार उसे छू भी लेता, तो अविन का काम वहीं तमाम था।
"हू! इतना जल्दी क्या है, भाई!" अविन ने हाँफते हुए कहा।
अब अविन ज़मीन पर था, और सेनापति उसके ऊपर एक विशाल पर्वत की तरह खड़ा था। चारों ओर से भूतों की सेना हॉल के दरवाज़े बंद करके खड़ी थी।
अविन के पास अब भी एक ही चीज़ थी—उसकी विशेषज्ञता।
> अविन: (ज़मीन पर पड़ा हुआ, जल्दी से बोलता है) "सुन, 7 फ़ीट वाले! तू 7 फ़ीट का है, सही? पर तू 7 फ़ीट की जगह 100 फ़ीट का भी होता तो मेरा क्या ही कर लेता? तुझ जैसे से तो मैं सर्कस में डांस करवाता ।
>
सेनापति, जिसने शायद सदियों में ऐसी बकवास नहीं सुनी थी, एक पल के लिए स्थिर हो गया। उसकी आँखों में कोई समझ नहीं थी, बस यांत्रिक क्रोध और भ्रम का एक सूक्ष्म मिश्रण था। यह उसकी रणनीति थी—अविन को लड़ाकू की तरह नहीं, बल्कि एक उपद्रवी की तरह दिखाना।
सेनापति ने भ्रमित होकर, दूसरी बार जोरदार वार किया, इस बार थोड़ा धीमा, क्योंकि उसका ध्यान अविन की बकवास पर गया था।
अविन ने इसे भांप लिया। यह एक सुनहरी मौका था!
इस बार, उसने तलवार से दूर लुढ़कने के बजाय, अपनी पूरी ताक़त का इस्तेमाल किया और सेनापति के भारी जूते के पास से छलांग लगाई। वह सेनापति के एकदम नज़दीक पहुँच गया।
सेनापति ने खुद को सँभालने की कोशिश की, लेकिन अविन पहले ही उसकी कमर के पास पहुँच चुका था।
> अविन: (सेनापति के जंग लगे कवच को छूते हुए, धीमे से)
> "भाई… आख़िरी बार पॉलिश कब करवाई थी?"
>
यह हमला नहीं था, यह मानसिक आतंक था।
सेनापति, जिसकी प्रतिक्रियाएं एक धीमी-गति के इंजन की तरह थीं, अविन की चाल को समझ ही नहीं पाया। उसने गुस्से में तीसरी बार हमला करने के लिए अपनी विशाल तलवार घुमाई। लेकिन उसका ध्यान अविन की बकवास से इतना भटक चुका था कि वार लक्ष्य से पूरी तरह चूक गया। तलवार ज़ोरदार आवाज़ के साथ पास के एक दरबारी खम्भे में जा टकराई!
चटाक्क़क़!!
लोहे का खंभा थर्रा उठा, और सेनापति की भारी तलवार खंभे के पत्थर में बुरी तरह फँस गई। वह अब निहत्था था!
सेनापति ने तुरंत अपनी रणनीति बदली। अपनी तलवार को भूलकर, उसने अपने विशाल, बूट पहने पैरों से एक घातक वार किया। उसने अविन को दूर धकेलने के लिए अपने एक पैर से एक ज़ोरदार किक मारी!
अविन हवा में उछल गया! उसने लात को रोकने की कोशिश नहीं की, बल्कि उसकी ऊर्जा का इस्तेमाल किया। वह हवा में एक पल के लिए लड़खड़ाया और फिर, एक अप्रत्याशित स्टंट में, वह सीधे पीछे की ओर गिर पड़ा...
धड़ाम!
...वह ठीक उस टूटे-फूटे, प्राचीन सिंहासन पर गिरा जो दरबार में था!
अविन ने अपने संतुलन को तुरंत संभाला, और एक ही झटके में वह अपनी एक टांग मोड़कर, बड़े स्टाइल के साथ उस सिंहासन पर बैठ गया, जैसे वह सदियों से इसी पल का इंतज़ार कर रहा हो।