inteqam chapter- 23 in Hindi Motivational Stories by Mamta Meena books and stories PDF | इंतेक़ाम - भाग 23

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इंतेक़ाम - भाग 23

विजय ने अपनी मां के लिए एक नौकरानी लगा दी जो उसके घर का सारा काम कर सके, वह हर महीने अपनी मां को पैसे डाल दिया करता, लेकिन विजय की मां को काफी बुरा लगता क्योंकि उसे घर सूना सूना लगता और उसका बिल्कुल भी मन नहीं लगता था,,,

मोहल्ले की औरतों से तो पहले ही उसने अपने संबंध बिगड़ लिए थे इसलिए मोहल्ले की औरत भी उससे कम बात करना पसंद करती थी,,,,

नौकरानी तो उसका काम करके चली जाती लेकिन जब विजय की मां की तबीयत खराब होती तो उसे संभालने वाला कोई नहीं होता तब उसे निशा की बहुत याद आती लेकिन फिर भी वह निशा को उस घर में लाने के लिए तैयार नहीं थी क्योंकि उसे सिर्फ रोमी के पिता की दौलत की चमक जो दिख रही थी,,,,

उधर विजय को भी कभी कबार अपने बच्चों और निशा की याद आती लेकिन उस का अफसोस रोमी के पिता की दौलत के आगे फीका पड़ जाता,,,,,

इन 2 सालों में विजय रोमी और विजय की मां ने भूल कर भी निशा और उसके बच्चों की खोज खबर नहीं ली कि वे लोग कहां है और कैसे है,,,,,

विजय अपने ससुर के कारोबार को ज्यादा से ज्यादा बढ़ाना चाहता था और ज्यादा से ज्यादा पैसे कमाना चाहता था, इसलिए रोमी के पिता ने अपना सारा कारोबार का काम उसे सौंप दिया था, विजय दिन-रात उस में लगा रहता,,,

वही निशा भी अब अच्छे मुकाम पर पहुंच गई थी वह जिस मुकाम पर थी उस मुकाम से विजय का मुकाम बहुत छोटा था,,,,

निशा और शन्नो के बच्चे अच्छे स्कूलों में पढ़ते थे दोनों की लाइफ स्टाइल भी काफी अच्छी थी, वह बैंक बैलेंस भी अच्छा था अब तो जैसे दोनों की जिंदगी स्वर्ग हो गई थी,,,,,

वही निशा को कभी-कभी विजय की बहुत ज्यादा याद आती और वह अकेले में उसे याद कर रो लेती, चाहे विजय ने उसके साथ कुछ भी किया हो लेकिन विजय उसका सुहाग था उसका पति था, विजय से उसने जिंदगी में पहली बार सच्चा प्यार किया था, वह अपनी जान से ज्यादा विजय को चाहती थी लेकिन जब उसे विजय और उसके घर वालों के व्यवहार की याद आती तो उसका मन उनके प्रति नफरत से भर जाता,,,,

सब कुछ ठीक चल रहा था निशा और संगीता को अपने काम के लिए कहीं बार अपनी कंपनी और अन्य नेशनल लेवल की कंपनियों की तरफ से अवार्ड भी मिल चुके थे,,,,



धीरे-धीरे दिन गुजर रहे थे निशा के अपने काम के प्रति मेहनत और लगन देखकर हर कोई हैरान रह जाता था, निशा अपने काम के साथ-साथ अपने बच्चों का भी पूरा ख्याल रखती उनके साथ समय बिता दी उनके साथ खेलती उनके साथ खाना खाती ,वह उन्हें किसी भी चीज की कमी महसूस नहीं होने देना चाहती थी वह जानती थी कि जब कोई अपना इग्नोर करता है तो कितनी तकलीफ होती है, इसलिए वह अपने बच्चों को मां और बाप दोनों का ही प्यार दे रही थी जिससे उनके बच्चों को कभी प्यार की कमी महसूस ना हो,,,,,

निशा आज इस मुकाम पर थी कि वहां पहुंचना हर किसी के बस की बात नहीं थी,,,,

रक्षाबंधन का दिन था सब स्टाफ छुट्टी पर था लेकिन निशा अपने काम में बिजी अपने ऑफिस में लगी हुई थी, तभी वहां सुनील दत्त आए और बोले अरे निशा आज तो रक्षाबंधन है और तुम यहां हो अपने भैया के घर नहीं जाना क्या,,,,,

यह सुनकर निशा थोड़ी उदास हो गई, तब सुनील दत्त ने कहां क्या हुआ निशा मैंने कुछ गलत बोल दिया क्या,,,,,

तब निशा बोली नहीं सर आप ने कुछ गलत नहीं बोला लेकिन बात यह है कि मेरा यह दुनिया में अपना कोई नहीं है एक बड़ी बुआ जी थी जो भी मुझे छोड़ कर चली गई और भैया भाभी अमेरिका में रहते हैं,,,,,

यह कहते हुए निशा की आंखों में आंसू भर आए, तब सुनील दत्त बोला अरे ऐसे कैसे तुम्हारा कोई नहीं है हम हैं ना यह कह कर उसने अपनी जेब से राखी निकाली और कहा आज से मैं तुम्हारा भाई हूं मेरी कलाई पर अगर तुम्हें एतराज ना हो तो राखी बांध दो, मेरे भी कोई बहन नहीं है बचपन से ही मैं अनाथ आश्रम गरीब मजदूर बेसहारा औरतों से राखी बनवाते आया हूं, हमेशा ही मुझे बहन की कमी खलती है अगर तुम मेरी बहन बन जाओगी तो मैं अपने आप को बड़ा खुशनसीब समझूंगा,,,,,