अध्याय 1 – यात्री, अज्ञात
मुंबई की रातें— जो कभी हज़ारों सपनों की धड़कन हुआ करती थीं, वे अब अविन अविनाशी चौहान के लिए किसी रोमांच से नहीं, बल्कि एक खामोश मजबूरी से भरी थीं। यह नवंबर की उमस भरी रात थी; मरीन ड्राइव के दूर की रोशनी, अँधेरी गलियों में बारिश के पानी से भीगी काली डामर सड़क पर फिसल रही थी।
अविन की टैक्सी, उसकी पुरानी, वफ़ादार काली Padmini Premier 'Padmini', एक कोने में दबी खड़ी थी। इसका नाम 'काली' था, और यह इसकी पहचान थी— पुरानी, भरोसेमंद, पर भीतर से खोखली। अविन स्टीयरिंग पर हाथ रखे बैठा था, उसकी उंगलियां हल्के भूरे रंग के प्लास्टिक कवर पर बेतरतीब ढंग से थिरक रही थीं।
अविन, 25 साल का, ऊंचे गालों की हड्डी और एक साफ़, परिभाषित जलाइन के साथ, एक राजकुमारों जैसा चेहरा रखता था। लेकिन अगर कोई उसकी आँखों में देखता, तो वह तुरंत समझ जाता कि इस चेहरे के पीछे एक अनगिनत डर छिपा है। अविन ने गहरे नीले रंग की, कुछ जगह से घिसी हुई डेनिम जैकेट पहनी थी—जो उसकी रोज़मर्रा की यूनिफार्म थी—और अंदर एक फीकी, सफ़ेद टी-शर्ट थी। उसके बाल बिखरे हुए थे, जैसे वह अभी-अभी कहीं भागकर आया हो। उसकी आँखें हर परछाई में डर ढूँढती थीं, और उसकी पीठ हमेशा थोड़ी झुकी रहती थी, जैसे वह लगातार किसी अदृश्य बोझ तले दबा हो।
वह जानता था कि वह दुनिया का सबसे अस्थिर (Unstable) और भीतर से डरा हुआ इंसान है। और यही विरोधाभास था कि वह भूतों की सवारी कराता था।
दस साल की उम्र में अनाथ होने के बाद, अविन की ज़िंदगी में सिर्फ़ कठोरता बची थी। दूर के रिश्तेदारों ने उसे एक हॉस्टल में डालकर अपनी ज़िम्मेदारी ख़त्म कर दी थी। वह मुंबई की भीड़ भरी चॉल में रहता था, जहाँ उसके दो दोस्त, मोहन (एक मैकेनिक) और सतीश (एक चाय वाला), उसके साथी थे। वे बाहर से उसके साथ थे, पर अविन अपने भीतर हमेशा एक ख़ालीपन महसूस करता था, जो अनाथपन की गहरी छाप थी।
उसने सालों की बचत और कुछ कर्ज़ लेकर यह काली टैक्सी खरीदी थी। उसने कभी किसी को नहीं बताया था कि जिस भयानक हादसे के पास से वह गुज़रा था, उसने उसकी चेतना को बदल दिया था— अब वह अदृश्य सत्ता को, उनकी ऊर्जा को महसूस कर सकता था। लेकिन इस क्षमता का उसने केवल एक ही उपयोग किया: डरना।
रिया... दो साल का उनका प्यार। वह लड़की जिसने उसकी आँखों में एक पल के लिए रौशनी भरी थी। एक दिन, इसी टैक्सी की पिछली सीट पर, रिया ने उसे छोड़ दिया था।
> "तुम हमेशा यही रहोगे, अविन। एक ग़रीब ड्राइवर।"
>
उस दिन, उसके दिल में लगी चोट ने उसे और ज़्यादा अकेला बना दिया था। अब उसकी टैक्सी सिर्फ़ उसका वाहन नहीं, बल्कि उसका मौन गवाह और उसका जेलखाना थी।
टैक्सी का एक नियम था, जो उसकी चेतना में गूंजता था। एक धीमी, टेप-रिकॉर्डर जैसी आवाज़ हमेशा उसके कानों में गूंजती और याद दिलाती:
> "यात्री को कभी मत देखना। जिस दिन तुमने पीछे मुड़कर देखा, वह तुम्हारी अंतिम सवारी होगी।"
>
अविन ने यह नियम कभी नहीं तोड़ा था।
रात के 2:45 बजे।
काली टैक्सी अंधेरी सड़क के सिग्नल पर रुकी। पीली सोडियम लाइट अविन के चेहरे पर तिरछी पड़ रही थी।
अचानक, पिछली सीट के स्प्रिंग पर वज़न पड़ने की एक गीली, भारी आवाज़ आई। दरवाज़ा खुलने या बंद होने की कोई आवाज़ नहीं थी। बस, एक वज़न का पड़ना।
अविन की उँगलियाँ तुरंत स्टीयरिंग पर जम गईं। उसने बिना मुड़े, कंपकंपाते हाथों से रियर-व्यू मिरर ऊपर कर दिया। उसकी साँस थम चुकी थी।
एक ठंडी हवा उसके कान के पर्दों से टकराई— जैसी हवा तब चलती है जब कोई पुराना दरवाज़ा खुलता है—
> "ड्राइवर साहब… मलाबार हिल?"
>
अविन का गला सूख गया, होंठ खुले, पर आवाज़ नहीं निकली। यह 'साहब' कहने का तरीका, गीली, गंभीर आवाज़... वह मुश्किल से गियर डाल पाया।
तभी, उसके मोबाइल स्क्रीन पर एक लाल चेतावनी (Warning) जली— यह उसका टैक्सी ऐप था, जो केवल 'उन' यात्रियों के लिए काम करता था:
> 'यात्री: अज्ञात'
> 'रेटिंग: ★★★★★'
> 'वर्ग: आत्मा (G H O S T)'
>
अविन को पता था कि अब डर के अलावा कोई और रास्ता नहीं है। यह आत्मा, पाँच स्टार रेटिंग वाली, कोई साधारण भूत नहीं हो सकती थी।
मुंबई की सड़कें सन्नाटे में थीं; केवल पुरानी काली पद्मिनी का इंजन गुर्रा रहा था। टैक्सी के अंदर अविन का दिल तेज़ी से धड़क रहा था— धम्म-धम्म-धम्म!
> "ज़रा तेज़ चलाओ न, ड्राइवर साहब। रात तो कम है," पिछली सीट से वही ठंडी आवाज़ आई।
>
अविन ने अस्पष्ट स्वर में कहा, "जी... रोड ख़राब है।"
> "कोई बात नहीं।"
>
घोस्ट ने आराम से कहा, और सीट फिर से चिर्र... की आवाज़ के साथ हिली। अविन को लगा जैसे कोई गीली मिट्टी का बोरा उसकी सीट से सट रहा हो।
कुछ देर बाद, पीछे से चुर्र... चुर्र... की आवाज़ आई, जैसे कोई कुरकुरा स्नैक खा रहा हो।
अविन ने हिम्मत बटोरी। उसके माथे पर पसीने की बूँदें उतर आईं। "साब... आप... क्या खा रहे हैं?"
> "पॉपकॉर्न," घोस्ट ने साफ़ कहा। "अपनी मौत वाली फ़िल्म देख रहा हूँ। बहुत हिट हुई थी, तुमने न्यूज़ में देखी होगी।" उसकी आवाज़ में कोई भाव नहीं था, जो मज़ाक को और भी भयानक बना रहा था।
>
> "मैंने... मैं बच्चा था," अविन लगभग फुसफुसाया।
>
> "तो ठीक है," घोस्ट ने आगे कहा। "बस आँख मत घुमाना। नहीं तो तुम्हारी भी दूसरी क़िस्त (Sequel) बन जाएगी।"
>
अविन ने अपनी आँखें सामने सड़क पर गड़ा दीं। उसकी पकड़ स्टीयरिंग पर इतनी कस गई थी कि उँगलियों के पोर सफ़ेद पड़ गए थे।
> "ड्राइवर साहब," घोस्ट अचानक बोला, आवाज़ में अब एक शरारती, धीमी मज़ेदार टोन थी, "एक छोटी-सी दिक़्क़त है। मेरा हाथ सीट के नीचे अटक गया है… निकाल दोगे?"
>
यह सीधा नियम तोड़ने का जाल था। अविन का दिमाग काम करना बंद कर दिया। यह पहली बार था जब किसी आत्मा ने इस तरह सीधा नियम तोड़ने को कहा था।
उसने घबराकर पूछा, "कैसे...? बिना देखे?"
> "पीछे मत मुड़ना," घोस्ट ने कहा। "बस हाथ आगे बढ़ाओ।"
>
अविन ने काँपते हुए हाथ से पीछे की तरफ़ हाथ बढ़ाया। उसकी जैकेट की आस्तीन को सीट ने थोड़ा-सा रगड़ा। उसका हाथ हवा में था, और वह इंतज़ार कर रहा था कि घोस्ट उसे निर्देश दे।
अचानक, ठंडा, चिपचिपा गूदा उसके हाथ से छू गया। यह छूअन इतनी अजीब थी कि अविन के मुँह से चीख निकलने ही वाली थी, तभी घोस्ट ज़ोर से, धीमी, खोखली आवाज़ में हँस पड़ा:
> "अरे! ये तो मेरा टूट चुका हाथ है। नया वाला भी है मेरे पास!"
>
> "सा... साब... प्लीज़ मज़ाक मत कीजिए," अविन की आवाज़ लड़खड़ाई, और उसने तुरंत अपना हाथ वापस खींच लिया।
>
> "ठीक है, चिल। तुम परेशान दिख रहे हो। चाय पियोगे?" घोस्ट ने फिर से अजीब-सी नरमी दिखाई।
>
मलाबार हिल के मोड़ पर टैक्सी पहुँची। रात की चुप्पी सिर्फ़ हवा की फुसफुसाहट से भरी थी।
> "तुम डरते हो," घोस्ट ने सीधे कहा।
>
> "मैं सतर्क हूँ," अविन ने मजबूरी में साहस दिखाया, जो डर से ज़्यादा थकावट में बदल रहा था।
>
पुरानी काली टैक्सी एक टूटे हुए, जंग लगे लोहे के गेट के सामने रुकी। गेट के पीछे गहरा अँधेरा था; सिर्फ़ एक पुरानी हवेली की धुंधली आकृति झाँक रही थी, जैसे किसी को देख रही हो।
अविन ने काँपते हुए आवाज़ दी— "साहब, हम पहुँच गए।"
रात के 3:25 बजे थे।
घोस्ट चुपचाप, दरवाज़ा खोलने की आवाज़ के बिना, धुंध में गायब हो गया। अविन ने लंबी सांस ली और पसीना पोंछा— "बस... एक और रात ख़त्म।" और टैक्सी मोड़कर शहर की तरफ़ निकल पड़ा।
आज की उसकी कमाई: छह यात्री। चार इंसान और दो वो, जिनके पैर ज़मीन पर नहीं पड़ते थे। इंसानों से मिले पैसे बस दिन गुज़ारने के लिए काफ़ी थे, पर उन घोस्ट कॉइन्स (Ghost Coins) की क़ीमत उसे आज तक समझ नहीं आई थी। वे कॉइन्स उसके टैक्सी ऐप के वॉलेट में चमक रहे थे।
फिर अचानक, उसके कान में वही बिजली की कौंध जैसी, फुसफुसाती आवाज़ गूंजी—
> "कंग्रेचुलेशन्स अविन… आपने 1000 यात्री सर्व कर दिए हैं।"
>
अविन का पैर ब्रेक पर लगते-लगते बचा। टैक्सी बीच सड़क पर काँप कर धीमी हो गई। आवाज़ जारी रही, धीमी, पर स्पष्ट:
> "इनाम: एक 700 साल पुरानी हवेली। डीटेल्स कल मिल जाएगी।"
>
और आवाज़ एकदम अचानक गायब हो गई, जैसे हवा ने ही सब निगल लिया हो। अविन, अंधेरी सड़क पर अकेला, स्तब्ध रह गया। उसे मिला था... एक हवेली।
आगे क्या होता है? क्या अविन उस हवेली के बारे में जानने की हिम्मत करेगा, या वह अपने डर को ही अपना इनाम मानेगा?