शापित हॉस्पिटल – एक यथार्थवादी और खौफनाक कहानी
शहर के बाहरी इलाके में स्थित “नवजीवन हॉस्पिटल” का नाम सुनते ही लोगों की रूह काँप जाती थी। दस साल पहले यहाँ एक भीषण आग लगी थी, जिसमें कई मरीजों और तीन नर्सों की मौत हो गई थी। हादसे के बाद हॉस्पिटल बंद कर दिया गया, लेकिन कहते हैं कि रात के समय अंदर से अजीब आवाज़ें आती थीं—कभी किसी के रोने की, कभी स्ट्रेचर खिसकने की, और कभी मशीनों के बीप करने की, जबकि वहाँ बिजली भी नहीं थी।
रितिक, एक मेडिकल छात्र, हमेशा से ऐसी जगहों के पीछे छिपे सच को जानने के लिए उत्सुक रहता था। उसकी परियोजना “परित्यक्त हॉस्पिटल्स में मानसिक प्रभाव” पर थी, और उसने तय किया कि वह नवजीवन हॉस्पिटल में एक रात बिताकर वास्तविक अनुभव दर्ज करेगा। दोस्तों ने उसे बहुत मना किया, पर रितिक नहीं माना।
रात के 11 बजे वह हॉस्पिटल पहुँचा। टूटी खिड़कियों से आती हवा की सिसकियाँ इमारत को और डरावना बना रही थीं। उसने टॉर्च ऑन की और अंदर कदम रखा। पुरानी दवाओं की बदबू, जले हुए प्लास्टिक की हल्की गंध और दीवारों पर काले धुएँ के निशान अभी भी वहीँ थे।
जैसे-जैसे वह आगे बढ़ा, उसे ऐसा लगा जैसे किसी ने उसके पीछे कदम रखे हों, लेकिन मुड़कर देखने पर वहाँ खाली गलियारा था। उसने इसे अपनी मन की घबराहट समझकर नजरअंदाज़ कर दिया।
पहला अजीब अनुभव उसे इमरजेंसी वार्ड में हुआ। dusty मॉनिटर अचानक झिलमिलाने लगा। उसने टॉर्च मॉनिटर पर डाली—मशीन बंद थी, बिजली का कोई कनेक्शन नहीं। फिर भी स्क्रीन पर एक लाइन उभरी:
“HELP US”
रितिक वहीं जम गया। स्क्रीन धीरे-धीरे काली पड़ गई। डर की लहर उसके बदन में दौड़ गई, पर उसने हिम्मत रखकर आगे बढ़ना जारी रखा।
अब वह वार्ड-13 के सामने था—वही कमरा जहाँ आग में सबसे ज्यादा मौतें हुई थीं। दरवाज़ा आधा खुला था। उसने इसे धक्का दिया। कमरा ठंडा था, जितना बाहर नहीं। टॉर्च की रोशनी मुश्किल से चारों ओर फैली।
अचानक उसे बिस्तर नंबर 7 पर हलचल दिखाई दी—चादर हल्की-सी हिल रही थी। वह थोड़ा आगे बढ़ा… तभी चादर अपने आप हवा में उठी और वापस गिर गई, जैसे किसी ने शरीर पलटा हो। कमरे की हवा भारी होने लगी।
रितिक का दिल तेजी से धड़क रहा था। उसके कदम पीछे हटने लगे, पर तभी उसे किसी के रोने की आवाज़ सुनाई दी—बहुत धीमी, लेकिन दर्द से भरी।
वह आवाज़ के पीछे गया और बिस्तर के पास झुककर देखा… वहाँ कोई नहीं था, पर रोना अब और साफ सुनाई दे रहा था—जैसे कोई स्त्री कह रही हो:
“हमें बचा लेते… हम जल गए… कोई दरवाजा नहीं खोला…”
रितिक डर से काँप गया। अचानक कमरे की सारी खिड़कियाँ धड़ाम-धड़ाम बंद होने लगीं। उसकी टॉर्च एक झटके में बंद हो गई। कमरा अँधेरे में डूब गया।
फिर उसने देखा—बिल्कुल सामने—एक काली आकृति। वह धीरे-धीरे उसके पास आ रही थी। चेहरे की जगह सिर्फ जले हुए मांस जैसा काला धुआँ था। आकृति ने अपना हाथ उसकी तरफ बढ़ाया—जला हुआ, पिघला हुआ…
रितिक चीखने ही वाला था कि अचानक पूरा कमरा लाल रोशनी से भर गया। अलार्म बीप-बीप-बीप बजने लगा, जबकि सालों पहले से वो सिस्टम मर चुका था। और फिर, उसके आसपास कई छायाएँ उभर आईं—मरीज, नर्सें, जिन्हें आग ने निगल लिया था। सबकी आँखों में सिर्फ बदहवासी थी।
एक साथ सबकी आवाज़ गूंजने लगी:
“हमें यहाँ क़ैद कर दिया गया… हमें मत छोड़कर जाओ…”
रितिक भागा। उसने दरवाज़ा खोला और पूरी ताकत से बाहर की ओर दौड़ा। गलियारों में स्ट्रेचर अपने आप चल रहे थे, खिड़कियाँ खुल-बंद हो रही थीं, और दीवारों से जलने की बास निकल रही थी।
गेट तक पहुँचते-पहुँचते उसे लगा कोई उसकी पीठ पर हाथ रख रहा है। उसने बिना पलटे पूरी ताकत से बाहर छलांग लगाई।
बाहर आकर उसने देखा—पीछे से हॉस्पिटल की खिड़कियों पर कई चेहरों की परछाइयाँ उसे घूर रहीं थीं… जली हुई, तड़पती, मदद की भीख माँगती।
उस रात के बाद से रितिक सामान्य नहीं रहा। वह अक्सर कहता है कि उन आत्माओं ने उसे जाने नहीं दिया… वो सिर्फ शरीर से बाहर आया है, पर उसका एक हिस्सा अब भी उसी शापित हॉस्पिटल में कैद है।
और आज तक, रात 11 बजे के बाद वहाँ से कभी-कभी एक ही आवाज़ आती है—
“HELP US…”