छोटा लड़का और शैतान – एक डरावनी कहानी (लगभग 600 शब्द)
अंधेरी, ठंडी रातों में पहाड़ों के पीछे बसा खैरपुर गाँव हमेशा से रहस्यों से घिरा रहता था। लोग कहते थे कि जंगल के अंदर एक पुराना खंडहर है, जहाँ सदियों पहले एक शैतान को कैद किया गया था। लेकिन किसी ने उसे कभी देखा नहीं था… सिवाय एक छोटे लड़के आरव के।
आरव 10 साल का था, जिज्ञासु, लेकिन थोड़ा अकेला। उसके पिता शहर में काम करते थे और माँ खेतों में। वो ज़्यादातर समय खुद ही खेलता। एक शाम, जब सूरज डूबने ही वाला था, उसे जंगल के पास एक अजीब-सी फुसफुसाहट सुनाई दी—
“आरव… इधर आओ…”
आरव चौंक गया। किसी ने उसका नाम कैसे लिया? उसने सोचा शायद कोई दोस्त मज़ाक कर रहा होगा। लेकिन जैसे-जैसे वो जंगल की तरफ बढ़ा, आवाज़ और साफ़ होती गई।
“मुझे आज़ाद करो… मैं तुम्हें शक्तियाँ दूँगा…”
आरव डर तो रहा था, पर उसकी जिज्ञासा और भी गहरी होती जा रही थी। वो धीरे-धीरे उस आवाज़ की दिशा में आगे बढ़ा। कुछ दूर जाने पर उसे एक टूटा हुआ मंदिर दिखाई दिया। मंदिर के भीतर एक बड़ा-सा काला कुआँ था, जिसकी गहराई का अंदाज़ लगाना मुश्किल था। लेकिन आवाज़ उसी कुएँ से आ रही थी।
अचानक कुएँ के अंदर से ठंडी हवा का झोंका उठा और एक काली धुंध ऊपर उठने लगी। धुंध के भीतर दो लाल चमकती आँखें दिखाई दीं।
“मैं यहाँ सदियों से बंद हूँ, आरव… बस एक स्पर्श, बस एक धागा खोल दो, और मैं निकल जाऊँगा।”
आरव के पैरों में कंपकंपी दौड़ गई।
“क-कौन हो तुम?” उसने काँपती आवाज़ में पूछा।
“मैं तुम्हारा मित्र… तुम्हारी हर इच्छा पूरी कर सकता हूँ। बस मेरे बंधन खोल दो।”
आरव ने देखा कि कुएँ के किनारे एक पुरानी जंजीर पर पीले रंग का मंत्र लिखा था। शायद वही उस शैतान को बाँधे हुए थी।
शैतान ने फिर कहा—
“तुम अकेले हो, कोई तुमसे खेलता नहीं… मैं तुम्हें सबसे ताकतवर बना दूँगा। बस ये बंधन छू लो।”
आरव का मन डगमगा गया। उसे याद आया कि गाँव वाले हमेशा कहते थे कि इस जंगल में बुरी आत्माएँ हैं। लेकिन अब, वो खुद फँस चुका था।
जैसे ही आरव बंधन के पास पहुँचा, उसे लगा किसी ने उसका कंधा पकड़ा है। उसने मुड़कर देखा—कोई नहीं। फिर आवाज़ आई—
“मत छूना!”
यह आवाज़ एक बूढ़ी साध्वी की थी जो जंगल के किनारे रहती थी। उसके हाथ में ताबीज़ था और आँखों में गुस्सा।
“ये शैतान है! अगर ये बाहर आ गया तो पूरा गाँव बर्बाद हो जाएगा!”
शैतान गुस्से से गरज उठा—
“तू मुझे रोक नहीं सकती बूढ़ी औरत! लड़का मेरा है!”
काली धुंध ने आरव के पैरों को पकड़ लिया।
आरव चीखा— “मुझे छोड़ दो!”
साध्वी ने झट से एक मंत्र पढ़ना शुरू किया। उसके ताबीज़ से तेज़ रोशनी फैली। धुंध दर्द से पीछे हटने लगी।
“आरव, आँखें बंद करो!”
आरव ने जैसे ही आँखें बंद कीं, साध्वी ने पूरा ताबीज़ कुएँ में फेंक दिया।
एक तेज़ धमाके जैसी ध्वनि हुई। लाल आँखें भयंकर चीख के साथ गायब हो गईं। हवा फिर शांत हो गई।
आरव काँपते हुए जमीन पर बैठ गया।
साध्वी ने उसके सिर पर हाथ रखा और कहा—
“बेटा, जब तुम डरते हो, बुराई तुम्हें बहलाकर अपने जाल में फँसाना चाहती है। लेकिन सच्ची ताकत गलत रास्ते में नहीं, हिम्मत में होती है।”
आरव को अपनी गलती का अहसास हुआ।
उसने एक बार फिर कुएँ की तरफ देखा—अब वो सिर्फ एक अँधेरी, शांत खाई थी।
उस दिन के बाद आरव कभी उस जंगल के करीब नहीं गया। लेकिन कभी-कभी, रात के बिल्कुल सन्नाटे में, उसे लगता…
किसी की फुसफुसाहट अभी भी हवाओं में गूंजती है—
“मैं वापस आऊँगा… आरव…”
और आरव की रीढ़ में सिहरन दौड़ जाती थी।