kala jadu wala dukandaar in Hindi Horror Stories by sameer books and stories PDF | काला जादू वाला दुकानदार

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काला जादू वाला दुकानदार


शहर के बाहरी इलाके में एक पुरानी, जर्जर सी दुकान थी — “पुरानी चीज़ों का खज़ाना”। लोग कहते थे कि वहाँ जो भी गया, वह बदलकर लौटा… या कभी लौटा ही नहीं। लेकिन कोई भी खुलकर कुछ नहीं कहता था। बस अफवाहें थीं, रहस्य था, और डर था।

कहानी शुरू होती है राहुल से — बीस साल का एक कॉलेज छात्र। राहुल को अजीब और रहस्यमयी चीज़ें इकट्ठा करने का शौक था। एक दिन उसने सुना कि उस दुकान में पुराने ज़माने की जादुई चीज़ें मिलती हैं। जिज्ञासा ने उसे वहां तक पहुँचा दिया।

दुकान अंदर से बहुत अंधेरी थी। दीवारों पर धूल जमी थी और हवा में अगरबत्ती जैसी कोई अजीब गंध फैली हुई थी। एक कोने में बूढ़ा दुकानदार बैठा था — लंबी दाढ़ी, लाल आँखें और हाथ में काले पत्थर की माला।

“क्या चाहिए तुम्हें, बेटे?” दुकानदार ने भारी आवाज़ में पूछा।
“कुछ पुरानी चीज़ें… रहस्यमयी,” राहुल ने मुस्कुराकर कहा।

दुकानदार धीरे-धीरे उठा, और पीछे के कमरे में चला गया। कुछ देर बाद वह एक पुराना दर्पण लेकर लौटा। दर्पण काले लकड़ी के फ्रेम में जड़ा था, जिस पर अजीब चिन्ह बने थे।

“यह शीशा खास है,” दुकानदार ने कहा, “अगर इसे आधी रात को देखा जाए, तो यह तुम्हें तुम्हारा भविष्य दिखा सकता है।”

राहुल को यह बात मज़ाक लगी। लेकिन उसकी जिज्ञासा बढ़ गई। उसने बिना ज़्यादा सोचे वह दर्पण खरीद लिया। दुकानदार ने मुस्कराते हुए कहा,
“याद रखना… कभी ‘तीसरी परछाई’ मत देखना।”

राहुल हँसा और चला गया।

रात को जब सब सो गए, राहुल ने कमरे की बत्ती बंद की और दर्पण के सामने बैठ गया। उसने ठीक बारह बजे दर्पण में झाँका। पहले तो कुछ नहीं हुआ, लेकिन कुछ देर बाद शीशे की सतह लहराने लगी जैसे पानी हो। उसमें उसकी अपनी परछाई दिखाई दी — फिर उसके पीछे दूसरी परछाई, और फिर तीसरी परछाई धीरे-धीरे उभरने लगी।

वह परछाई मुस्कुरा रही थी, लेकिन उसकी मुस्कान डरावनी थी। अचानक दर्पण में से एक काली आकृति निकलकर राहुल के सामने आ गई। राहुल ने चीखने की कोशिश की, लेकिन आवाज़ नहीं निकली। वह आकृति धीरे-धीरे उसके करीब आई और उसके कान में फुसफुसाई —
“अब तुम मेरे हो…”

अगली सुबह राहुल का दरवाज़ा अंदर से बंद था। दोस्तों ने बहुत आवाज़ दी, लेकिन कोई जवाब नहीं। जब दरवाज़ा तोड़ा गया, तो कमरे में राहुल नहीं था — बस वो दर्पण दीवार के सामने रखा था, जिसमें तीन परछाइयाँ नज़र आ रही थीं।

कुछ दिनों बाद वही बूढ़ा दुकानदार अपनी दुकान में बैठा था। उसी दर्पण को फिर से पोंछते हुए वह बोला,
“एक और आत्मा पूरी हुई…”

दुकान के बाहर नए ग्राहक खड़े थे — कुछ पुराने सामान खरीदने आए, कुछ सिर्फ जिज्ञासा में।
दुकानदार ने मुस्कुराते हुए कहा,
“आइए… पुरानी चीज़ों का खज़ाना में आपका स्वागत है।”

और उस पल, दुकान के अंदर से फिर वही अगरबत्ती जैसी गंध उठी — लेकिन इस बार उसमें हल्की मानव-आत्मा की सड़ांध थी।

लोग आज भी कहते हैं कि रात को उस दुकान से अजीब आवाज़ें आती हैं — किसी के रोने की, किसी के हँसने की।
और अगर कोई गलती से उस दर्पण में देख ले, तो उसे तीन परछाइयाँ दिखाई देती हैं — जिनमें तीसरी, शायद उसकी आख़िरी होती है…