अब उसे वह दृश्य याद कर बार-बार रोना आ रहा था और अपनी किस्मत पर गुस्सा आ रहा था वह भगवान को कोस रही थी कि आखिर में भगवान ने उसे ऐसा क्यों बनाया क्यों उसकी खूबसूरती हर जगह ही उसके आडे आ जाती है क्यों भगवान क्यों यह कहकर वे अपने आपको कौश रही थी और फूट-फूट कर रो रही थी,,,,तभी चौकीदार काका वहां आए और बोले क्या हुआ निशा बिटिया सब ठीक तो है ना,,,,,चौकीदार काका की आवाज सुनकर निशा ने अपने आंसू पहुंचे और बोली कुछ नहीं काका,,,,, तब चौकीदार काका उसके सिर पर हाथ रखते हुए बोले बेटा तुम मेरी सगी बेटी की तरह हो बताओ मुझे,,,,,,तब निशा अपने आंसू पहुंचते हुए बोली काका औरत कहीं पर भी सुरक्षित नहीं है चाहे हमारा देश कितना भी आगे बढ़ गया हो लेकिन कदम कदम पर औरतों को लोगों की गंदी नजरों का सामना करना पड़ता है ,लोग काम देने के बदले उसकी इज्जत चाहते हैं और यह सब मुझे गवारा नहीं यह कह कर वह रोने लग गई,,,,,तब चौकीदार काका कुछ सोच में डूबे रहे और फिर बोले बिटिया एक काम है अगर तुम चाहो तो कर सकती हो,,,,यह सुनकर निशा हैरानी से बोली कैसा काम काका,,,,तब चौकीदार काका बोले कि मेरी बिटिया सन्नो हमारे मोहल्ले की औरतों के कपड़े सिलने का काम करती है, अच्छी खासी कमाई हो जाती है लेकिन वह अकेली सारे मोहल्ले के सारे कपड़े नहीं सिल पाती उस पर काम का बोज ज्यादा है, मैंने कई बार बड़ी मालकिन के साथ तुम्हें शौक शौक में कपड़े सिलते हुए देखा था अगर तुम कहो तो,,,,,चौकीदार काका अपनी बात पूरी कर पाते उससे पहले ही निशा बोल पड़ी काका आपकी बड़ी मेहरबानी होगी अगर मुझे काम मिल जाए तो मैं आपका एहसान जिंदगी भर नहीं भूलूंगी,,,,,तब चौकीदार काका बोले बेटा इसमें एहसान की क्या बात है इस घर के तो हम पर बहुत एहसान है तो ठीक है बिटिया मैं अब चलता हूं शाम को मैं सन्नो से बात कर तुम्हें बताऊंगा,,,,,,चौकीदार काका चले गए घर जाकर उसने अपनी बेटी से बात कर दूसरे दिन आकर निशा को बताया कि उसकी बेटी ने काम के लिए हां कर दी है वह मोहल्ले की औरतों के कुछ कपड़े तुम्हें दे दिया करेगी जिसे तुम सील दिया करना,,,,,,यह सुनकर निशा की खुशी का ठिकाना नहीं रहा क्योंकि निशा को बचपन से ही सिलाई का शौक था और वह अपने पुराने कपड़ों की सिलाई हटा हटा कर सिलाई सीखने का काम करती थी, जब वह बड़ी बुआ के पास थी तो बड़ी बुआ ने उसे सिलाई सिखाई थी,तब चौकीदार काका ने अपनी बेटी पर से कुछ कपड़े लेकर निशा को दे जाते और निशा खुशी खुशी उनको सिल ने लगी निशा के कपड़ा सिलने से निशा का खर्चा चलने लगा और अब निशा के सिले कपड़े लोगों को बहुत पसंद आते,धीरे-धीरे निशा को अच्छा खासा काम भी मिलने लग गया था जिससे उसका खर्च आसानी से चल जाता था ,अब लोग सीधे ही सन्नू के पास ना जाकर निशा के पास कपड़े सिलवाने आने लगे,,,,निशा और सन्नू में भी अच्छी दोस्ती हो गई थी सन्नू के एक बेटा था सन्नू के पति ने सन्नू से तलाक ले लिया था इसलिए वह अपने विदुर पिता के पास रहकर अपना गुजारा करती थी उसके कोई भाई या बहन नहीं था उसकी मां की मौत भी उसके बचपन में ही हो गई थी अब वह अपने बेटे और अपने बूढ़े पिता के साथ रहती थी,,,,सन्नो और निशा को एक दूसरे का जैसे सहारा मिल गया हो दोनों अपना दुख दर्द आपस में बताती थी और यहां तक कि दोनों एक दूसरे से सलाह मशविरा कर तरह-तरह की डिजाइन के कपड़े सिलने की कोशिश करती थी,,,दोनों ने अपना एक शामिल बुटीक भी खोल लिया था निशा ने अपने बच्चों का दाखिला भी शहर के एक अच्छे स्कूल में करवा दिया क्योंकि चाहे उसकी इनकम ज्यादा नहीं थी लेकिन वह चाहती थी कि वह चाहे एक वक्त का खाना खा कर गुजारा कर लेगी लेकिन अपने बच्चों की खुशियों के साथ कभी समझौता नहीं करेगी निशा के बच्चों के साथ सन्नो ने भी अपने बेटे का दाखिला उनके साथ उसी स्कूल में करवा दिया था क्योंकि अब सन्नो को भी पहले से ज्यादा इनकम होती थी,,,,,निशा मन में सोचती थी कि वह हर वो कोशिश करेगी जिससे उसके बच्चे कामयाब हो सके,,,,धीरे-धीरे दिन गुजर रहे थे 1 दिन उसकी बेटी गुनगुन उसके पास आई और बोली,,,,,