तृप्ति देसाई - लघु कथा
" बचाओ.. बचाओ!! "
फ्लेट के भीतर से किसी स्त्री की चीख सुनाई दी. सुनकर मेरे अंतर मन में खलबली सी मच गई.
आवाज परिचित होने का आभास हुआ.
डोर बेल तक विस्तारीत हाथ को मानो बिजली का झटका लग गया.
पलभर में अनगिनत ख्यालो ने मेरे दिमाग़ को घिर लिया.
क़ोई स्त्री के सर पर खतरे की तलवार लटक रही थी.
भय सूचक साइरन ने मुझे वास्तविकता का एहसास दिला दिया.
भीतर पहुंचना ऊस समय की मांग थी.
मैंने बेल बजाने की कोशिश की लेकिन वह बंद थी.
गुस्से में मैंने बंद दरवाज़े को लात मारी तो वह खुल गया.
डीम लाइट की रोशनी में मैंने जो देखा ऊस से मेरा दिमाग़ चकरा गया.
एक शख्स किसी स्त्री की इज्जत पर हमला करने पर तुला था.
वह डटकर ऊस नराधम का मुकाबला कर रही थी. लेकिन ऊस शख्स पर मानो क़ोई जंगली जानवर सवार हो गया था. ऊस की पकड़ से छूटना भारी हो रहा था.
ऊस का चेहरा देखकर मुझे दूसरा झटका लगा.
वह अजय देसाई था, जिस की कंपनी में मैं एक मुलाजिम था. और वह लड़की और क़ोई नहीं बल्कि ' तृप्ति देसाई थी जो एक जमाने में मुझ से प्यार होने का दावा करती थी.
वह देखकर मेरा खून गर्म हो गया.
मैं आगे बढू, ऊस के बचाव में कुछ करुं ऊस ने तृप्ति देसाई को जमीन पर पटक दिया और ऊस के देह को भूखे जानवर की तरह नोंचने लग गया.,
मैंने अपनी सारी ताकत का इस्तेमाल कर के ऊस को तृप्ति देसाई के देह से अलग कर दिया और ऊस के गुह्य अंग पर लातों का प्रहार किया और वह जमीन ग्रस्त हो गया.
तृप्ति के शरीर पर क़ोई वस्त्र नहीं था. मैंने उसे अपने जैकेट से ऊस के देह को ढांक लिया.
ऊस वक़्त ऊस ने मुझे ऊस ने देखा और ऊस के मुंह से निकल गया.
" कौन तरंग?! "
अजय देसाई ने 45 साल की उम्र में किसी युवान लड़की से ब्याह रचाया था. यह खबर मैंने सुनी थी. लेकिन वह लड़की कौन थी? ऊस की मुझे क़ोई जानकारी नहीं थी. ऊस ने कोर्ट में शादी की थी.
वह लड़की तृप्ति देसाई थी. ऊस के बारे में मैं बिल्कुल अज्ञात था.
आयात निकास क्षेत्र में अव्वल मनहर देसाई का वह छोटा लड़का था. ऊस ने बाप और बडे भाई से यह धंदा छिन लिया था और अकेला धंधे का मालिक बन गया था.
सारी जिंदगी हर किसी का शोषण किया था. उन को लुंटा था. कितने लोगो को अपने काले करतूतों से रास्ते पर ला दिया था.
मैं सब कुछ जानता था, लेकिन लाचार, विवश था. इस लिये ऊस का मुलाझिम बना रहा था.,
ऊन की तबियत के बारे में मुझे चला तो मैं उन्हें मिलने घर पहुंच गया था. तब इतना बड़ा राज मेरी आँखों के सामने आया था.
तृप्ति को दोबारा सामने देखकर मेरी आँखों के सामने अतीत की यादें ताज़ा होने लग गई. एक ज़माने में मैं तृप्ति को प्यार करता था. वह भी मुझ से प्यार होने का दावा करती थी. लेकिन भौतिक सुख की लालच में ऊस ने मुझे छोड़ दिया था. किसी धनवान से शादी कर ली थी और वह धनवान अजय देसाई हीं था ऊस का मुझे क़ोई इल्म नहीं था.
वह फर्श पर बेहोश पड़ा था.
ऊस वक़्त तृप्ति मुझ से लिपटकर अपना दुखड़ा रोने लगी . मुझे ऊस पर तरस आया. मैंने उसे सांत्वना देने की कोशिश की तो वह जोर जोर से रोने लगी.
मैंने उसे अपने बाहुपाश में जकड़ लिया.
और अतीत की यादों का रुका हुआ सिलसिला दोबारा शुरू हो गया.
मुझे पहली बार वह मुझे चौपाटी विस्तार में मिली थी. मैं रास्ता क्रॉस कर रहा था. वह भी सामने से आ रही थी. हम दोनों एक दूसरे से टकरा गये थे. मैंने उसे माफ़ी मांगी थी लेकिन वह तो मुस्कुराते हुए निकल गई थी.
वह मेरी हीं कोलेज में पढ़ती थी.
एक बार योजित परि संवाद में उसे सुनने का मौका मिला था.
ऊस ने बलात्कार जैसे असामाजिक तत्व के बारे में बहुत कुछ कहां था.
ऊस ने अपनी स्पीच के बारे में नारी को हीं बलात्कार के लिये दोषित ठहराया था.
भौतिक सुख की लालसा हीं ऐसे दूषण को जन्म देता हैं.
स्त्री ने खुद अपनी नीति मता को दाव पर लगा दिया हैं. मुफ्त में खाना पीना उन की बूरी आदत है जो आगे जाकर बलात्कार की वजह बन जाती हैं
चलना उसे पसंद नहीं. वह किसी भी अनजाने लडके से लिफ्ट मांगने से झिझकती नहीं.
स्त्री स्वभाव से हीं लागणी प्रधान होती हैं, बुद्धि से ज्यादा दिल से काम करती हैं. आसानी से किसी की मीठी बाणी से फंस जाती हैं.
ऊस की स्पीच से ऊस ने लोगो के दिल जीत लिये थे
लेकिन हकीकत बिल्कुल अलग थी.
वह अक्सर बातें करती थी.
पुरुष जात भीड़ का लाभ लेकर कुचेष्टा करते है, छेड़छाड़ करते हैं.
लेकिन उसे ऐसा अच्छा लगता था.
उसे बस में या गाड़ी में किसी की लडके या पुरुष के कंधो पर हाथ रखकर चढ़ उतर करने की आदत थी. उसे क़ोई ऊस की छाती को हाथ लगाये यह बात अच्छी लगती थी.
मैंने कई बार यह देखा था. टकोर भी की थी. तो वह एक हीं बात कहती थी.
" ऐसी मामूली बात पर ज्यादा दयान मत दो. भीड़ में ऐसा होना बिल्कुल सहज हैं. "
क्या यह सही था?
मैं अपने आप को सवाल करता था
एक बार बस में चढ़ते हुए एक बुजुर्ग ने भी ऊस के साथ ऐसी घटिया हरकत जान बूझकर की थी. तब भी ऊस ने बचाव करते हुए ऐसा हीं कहां था.
यह बात गलत थी. मैं जानता था. लेकिन मेरे प्यार ने मुझे लाचार, विवश कर दिया था. उसे खो देने के डर से मुझे चुप रहना पड़ता था.
एक दिन कोलेज केंटिन में चाय नास्ता करते समय मैंने ऊस से अपने प्यार का इजहार किया था.
ऊस वक़्त तृप्ति ने अफ़सोस जताते हुए मुझ से कहां था.
" मेरे मात पिता मेरा रिश्ता धनवान परिवार में करना चाहते हैं. इस लिये मैं तुम्हारे प्यार का स्वीकार नहीं कर सकती. "
ऊस संदर्भ में मुझे जानकारी दी थी.
" मेरे मात पिता ज्योतिष विद्या में ज्यादा विश्वास करते हैं. एक बडे ज्योतिष ने मेरे लिये आगाही की हैं :
" मेरी शादी साधन संपन्न परिवार में होगी. "
और यह आगाही सही साबित हुई थी.
ऊस ने पैसे के लिये अपने चाचा से शादी की थी.
तब ऊस का सपना सामने था.
वह अपने चाचा से शादी करने को भी तैयार थी.
इसी लिये उन के दफ्तर में टाइपिस्ट का जोब स्वीकारा था.
कोलेज छोड़े हुए दो साल बीत गये थे. हम लोग मिल नहीं पाये थे.
हम दोनों एक साथ अजय देसाई की कंपनी में काम करते थे. ऊस दौरान मुझे पता चला था.
तृप्ति ने किसी अमीर के साथ शादी कर ली हैं.
सुनकर मुझे सदमा लगा था. तृप्ति के लिये मेरे दिल में घृणा का जन्म हुआ था. मैंने अजय देसाई की कंपनी को छोड़ दिया था.
फिर भी एक बार वह मेरे बोस थे, ऊस की तबियत ख़राब थी, यह जानकर उसे मिलने गया था. और मैंने अपनी आँखों से उन्हें तृप्ति पर बलात्कार करते हुए देखा था.
मैंने अजय देसाई का काम क्यों छोड़ा था
ऊस के बारे में लोग अनेकानेक तर्क लड़ा रहे थे.
बाद में हकीकत मेरे सामने आई थी.
अजय देसाई ने काम के बहाने तृप्ति को घर बुलाया था. और कुछ पिलाकर ऊस का यौन शोषण किया था.वह तृप्ति से शादी करने को तैयार था. एक अमीर के साथ शादी का सपना साकार हो रहा था. इस लिये वह खुश थी.
अजय देसाई ऊस से शादी कर के घर ले आया था. लेकिन ऊस की हालत एक रखैल से भी बदतर थी. वह ज़ब चाहे तब एक बलात्कारी की तरह ऊस का शोषण करता था. वह भूखे जानवर की तरह ऊस पर टूट पड़ता था.
तृप्ति देसाई को भौतिक सुख की लालसा थी, लेकिन उसी बजह से ऊस की जिंदगी ताराज हो गई थी.
पति की बिना प्यार की हर क़ोई प्रतिक्रिया तृप्ति के दिल को जलाती रहती थी.
प्यार मिला तो वह पैसे के पीछे दौड़ रही थी. और संपत्ति मिली तो वह प्यार के लिये तरस रही थी.
ऊस की अथ इति सुनकर मुझे बहुत दुःख हुआ.
वह खुद अपनी गलती का इजहार करते मुझे बैडरूम में ले गई.. और अपने प्यार का इजहार करते हुए कहां :
" तरंग! मैं तुम्हे हीं चाहती थी. लेकिन धन लालसा ने मुझे नर्क में ढकेल दिया. "
मैं ऊस की बातें सुन रहा था. बलात्कार जैसे दूषण में स्त्री को जिम्मेदार गिनने वाली तृप्ति मुझे बेड रूम में खिंच ले गई.
अपने पति के जुल्म की गवाही देने के लिये तृप्ति ने अपने सारे कपड़े उतार दिये.
ऊस के पुरे बदन पर जहर जैसे नीले दाग देकर मैं चौंक गया.
अजय ने अपने तीक्ष्ण दांतो से तृप्ति के शरीर को पूरी तरह काट लिया था.
ऊस को नग्न देखकर मुझे बहक जाने का डर लगा. मुझे अपनी बीवी ख्याति की याद आ गई.
तृप्ति ने अपनी कामेच्छा संतुष्टि के लिये अपने कपड़े उतार दिये थे. मेरी मति मर गई थी. मैं ऊस की इच्छा पूर्ति के लिये आगे बढ़ा. ऊस को बिस्तर में पटक दिया.
उसी वक़्त एक साया हमारी आलिंगन युक्त स्थिति पर छा गया.
अपनी बीवी को दूसरे पुरुष के साथ देखकर अजय देसाई कोपायमान हो गया. उसी वक़्त उसे दिल का दौरा आया और ऊस का राम नाम सत्य हो गया.
मैं झटपट कपड़े पहनकर उधर से दौड़ भागा.
पुलिस चककर से तृप्ति ने तो मुझे बचा लिया.
और मैंने तृप्ति देसाई को कभी अपने वैवाहिक जीवन में दाखिल नहीं होने दिया.
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