बेखौफ इश्क – एपिसोड 6परछाइयाँ, वादे और नई शुरुआतसंस्कार के स्वस्थ होकर लौटने के बाद आयाना के जीवन में फिर से रंग घुलने लगे थे। अब स्कूल का माहौल और परिवार की ऊर्जा भी पहले जैसी नहीं थी। आयाना, संस्कार और रूही तीनों की दोस्ती सबके लिए मिसाल बन गई थी, लेकिन इस खुशियों की सतह के नीचे हर किसी के अपने डर और सवाल भी थे।आत्म-संदेह और परछाइयाँइम्तहान का मौसम था। स्कूल में प्रतिस्पर्धा तेज़ थी। आयाना इन दिनों बहुत सोच में डूबी रहती थी। कभी पुराने डर लौट आते—“क्या मैं फिर अकेली हो जाऊंगी?” संस्कार ने उसके डर को समझा, लेकिन यह लड़ाई आयाना को खुद ही लड़नी थी।उसने कोशिश की के मन को मजबूत रखे, मगर एक रात कमरे में अकेले बैठते—पुराने घाव फिर टीसने लगे।
“जो लोग लौट आते हैं, क्या वे फिर कभी चले जाते हैं?”
उसका मन जवाब चाहता था, लेकिन जवाब नहीं मिला।रूही ने महसूस किया कि आयाना बदली है, मगर बिल्कुल बेफिक्र नहीं। उसी रात दोनों बहनों के बीच बड़ा खुला संवाद हुआ—“जब तुम्हें अकेलापन लगे, मुझे याद करना।” रूही ने उसके हाथ दबाकर कहा।संस्कार का नया संघर्षसंस्कार की जिंदगी में सबकुछ ठीक हुआ था, लेकिन उसकी माँ की तबीयत बिगड़ने लगी थी। संस्कार ने अपनी पढ़ाई और घर दोनों को संभालने के लिए कॉलेज के बाद ट्यूशन पढ़ाना शुरू किया। समय की कमी और जिम्मेदारियों का बोझ उसे थका रहा था।एक दिन संस्कार स्कूल में आयाना से बोला—
“कभी लगता है, हर जीत के साथ नई लड़ाई शुरू हो जाती है।”
आयाना उसका दर्द महसूस करती थी, लेकिन उसने संस्कार को हिम्मत दी—“जब आप थक जाएं, किसी अपने का हाथ थाम लेना।”सपनों और रिश्तों के बीच खींचतानदोनों के सपने थे, मगर राहें अलग—संस्कार कॉलेज की पढ़ाई और घर की जिम्मेदारियों में उलझा था, आयाना स्कूल की परीक्षा और अभिनय में बढ़ती थी। दोनों एक-दूसरे से रोज़ मिलते, साथ वक्त गुज़ारते, लेकिन भीतर कहीं एक तनाव था।क्या ये रिश्ता वक्त की परीक्षा को पार कर पाएगा?आयाना ने अभिनय में स्कूल स्तर की प्रतियोगिता जीती, संस्कार ने कॉलेज में मैथ्स ओलंपियाड। दोनों ने सोशल मीडिया पर तस्वीर डाली—दोनों की मुस्कान में सच्ची जीत थी, लेकिन आंखों में अगले कदम का डर भी था।एक बड़ी सच्चाईएक शाम संस्कार ने आयाना को पार्क में बुलाया। हल्की बारिश और हवा थी।
संस्कार ने कहा—“माँ की बीमारी बढ़ रही है। शायद मुझे अगले साल शहर छोड़कर दिल्ली जाना पड़े इलाज के लिए।”आयाना चुप हो गई। उसका दिल डूब गया।
संस्कार ने उसका हाथ पकड़कर कहा,
“अगर मैं चला गया, तुम अपने सपनों के लिए लड़ना बंद मत करना।”आयाना के लिए यह सबसे बड़ी परीक्षा थी—प्यार की असली ताकत, साथ के बिना रास्ता ढूंढ़ना।नई शुरुआत—अपने साथसंस्कार ने दिल्ली जाने का फैसला कर लिया। विदाई का दिन आया—अधूरी बातें, रुकी हुई आंखें, मगर आगे बढ़ने का वादा।
आयाना, रूही और संस्कार स्टेशन पर पहुंचे। संस्कार ने कहा—
“सच्चा प्यार साथ रहने को नहीं, दूर रहकर साथ जीने को कहते हैं।”आयाना ने छोटी सी चिट्ठी दी—
“तुम्हारे बिना भी लड़ना सीख रही हूं। तुम्हारे लिए, अपने लिए, परिवार के लिए।”संस्कार चला गया।खुद को स्वीकार करनारूही ने आयाना को संभाला। “अब तुम्हारे लिए सबसे बड़ी लड़ाई खुद से प्यार करने, खुद की पहचान और सपनों को पाने की है।”
आयाना ने खुद को नया रुटीन दिया—सुबह-शाम दौड़ना, किताबें पढ़ना, यूं ही अकेले कॉफी पीना, खुद से बातें करना।स्कूल के नई नाटक में आयाना ने मुख्य भूमिका पाई। अभिनय की दुनिया में अब वह गंभीरता से कोशिश करने लगी थी। उसके संवादों में दर्द था, उम्मीद थी और एक सच्चा विश्वास था।परिवार की नयी आत्मीयतामाँ ने अब बिल्कुल बदलना शुरू किया था। वह आयाना की एक्टिंग और पढ़ाई में रुचि लेने लगी। एक दिन पिता ने भी आयाना से बात की—“शायद अब समझ आया, बेटियां सपना देख सकती हैं और जी भी सकती हैं।”घर का माहौल बदलने लगा।अंत की उम्मीद—खुद के साथएपिसोड के आखिर में, आयाना रात में अपनी डायरी में लिखती है—
"जो खोते हैं, वही सच में पाते हैं।
दूरी प्यार को खत्म नहीं करती, मजबूत बनाती है।
अब मैं अपने ज़ज्बात, अपने डर और अपने सपनों की लड़ाई खुद लड़ूंगी।
संस्कार… तुम्हारे वादे कभी नहीं भूलूंगी।"रूही कमरे में आती है, दोनों बहनें साथ बैठती हैं। खिड़की से बाहर आसमान है, उसमें नई उड़ान का रास्ता।
आयाना मुस्कराती है—“अब वक्त खुद को बदलने, खुद को पाने और अपने जीवन की कहानी लड़ने का है।”