Bekhouff Ishq - 8 in Hindi Love Stories by kajal jha books and stories PDF | बेखौफ इश्क - एपिसोड 8

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बेखौफ इश्क - एपिसोड 8


समझदारी और संवादसंस्कार और आयाना ने बेहतर संवाद शुरू किया, जिसमें उन्होंने अपने डर, अपनी भावनाओं और सपनों को खुलकर साझा किया। दोनों ने अपने रिश्ते को बचाने और मजबूत बनाने का वादा किया।संस्कार ने कहा, “हमें अपने डर और असफलताओं से डरे बिना एक-दूसरे का सहारा बनना होगा।”

आयाना ने हिम्मत जुटाते हुए जवाब दिया, “हम साथ हैं, तो कोई मुश्किल हमें नहीं हरा सकता।”भविष्य की ओर कदमस्कूल का वार्षिक समारोह था, और आयाना ने नाटक में मुख्य भूमिका निभाई। संस्कार भी समारोह में शामिल हुआ। दोनों के बीच की दूरी अब कम हो रही थी।आयाना ने मंच से एक कविता पढ़ी—

“हर दर्द के बाद एक चाबी होती है,

जो बंद दरवाज़ों को खोलती है।

हमारा साथ वह चाबी है,

जो हर दरवाजा खोल देगा।”सभी ने तालियाँ बजाईं, और परिवार ने एक नए सिरे से जुड़ने का जश्न मनाया।

, समझ और नए सपनों की शुरुआतसर्दियों की हल्की धूप में स्कूल का माहौल कुछ अलग सा था। आयाना की जिंदगी में संस्कार के लौटने के बाद बहुत कुछ बदल चुका था, पर अब उनके रिश्ते और उनकी खुद की पहचान को एक नई परीक्षा का सामना करना था। ये परीक्षा थी – अपनापन, समझ और साथ की सच्ची कसौटी।पुरानी यादों की झलकस्कूल से लौटते हुए दोनों कई बार पार्क मिलते जहां उनकी बातचीत अब सिर्फ हल्की-फुल्की बातें नहीं बल्कि गहराई से भरी होती थीं। संस्कार ने बताया कि दिल्ली में बिताया हर पल उसके लिए सीखने वाला था, लेकिन उसका दिल हमेशा आयाना के लिए धड़कता रहा।आयाना ने अपनी उलझनों को साझा किया – कब्र इस बात का डर कि कहीं उनका प्यार भी वक्त की मार झेल न पाए। उस के भीतर के संवादों में पुरानी यादों के साथ भविष्य की आशाएं झलकती थीं।संस्कार ने कहा, “दूरी से प्यार खत्म नहीं होता, बस समझ बढ़ती है।”रिश्तों की परखसंस्कार की मां की तबीयत फिरसे बिगड़ने लगी, जिससे संस्कार पर जिम्मेदारियों का भारी बोझ आ गया। वह कॉलेज और घर दोनों को संभालते हुए थका हुआ लग रहा था। आयाना ने सबकुछ समझा और संस्कार को सहारा देना शुरू किया।दोनों अपनी-अपनी जिंदगी में व्यस्त और परेशान थे, लेकिन फिर भी एक-दूसरे का सहारा बने रहे। आयाना समझ गई कि सच्चा प्यार कभी भी साथ रहने का नाम नहीं होता, बल्कि साथ निभाने का नाम होता है।परिवार में नई उम्मीदआयाना की मां अब बेटी के फैसलों में सक्रिय भूमिका लेने लगीं। रूही की पढ़ाई ठीक चल रही थी और वह भी परिवार की जिम्मेदारियों को समझ रही थी। पिता में भी कुछ नया बदलाव आया था – अब वह अपनी कठोरता छोड़ धीरे-धीरे परिवार के साथ जुड़ रहे थे।घर में छोटे-छोटे पल, जैसे साथ खाना, बातें करना, एक-दूसरे की मदद करना, अब प्यार और अपनापन के प्रतीक बन चुके थे।नाटक की सफलतास्कूल के वार्षिक नाटक का पहला प्रदर्शन था। आयाना ने वह भूमिका निभाई जिसमें उसकी आत्मा की कहानी झलक रही थी। संस्कार भी वहां था और उसने गर्व के साथ आयाना का समर्थन किया। समाप्ति पर तालियों के गड़गड़ाहट में सबको एक नई उम्मीद नजर आई।रिश्तों की नई शुरुआतरात के अंधेरे में संस्कार और आयाना मिले। उन्होंने अपने दिल की थोड़ी-सी बातें साझा कीं। संस्कार ने कहा, “आप सबकुछ सह सकते हैं, बस एक-दूसरे का सहारा जरूर होना चाहिए।” आयाना ने जवाब दिया, “हम साथ हैं, यह ही हमारी ताकत है।”