सात फेरे या सात वचन
लेखक: विजय शर्मा एरी
शहर की चमक-दमक और गांव की सादगी के बीच एक अनोखा संगम था कस्बा सूरजपुर। यहाँ की हवाएँ खुशबू और परंपराओं का मिश्रण लिए होती थीं। सूरजपुर के बीचों-बीच बनी एक पुरानी हवेली में रहते थे राघव और उसका परिवार। राघव एक साधारण युवक था, जिसके सपने बड़े थे, लेकिन दिल में परंपराओं और संस्कारों का गहरा सम्मान था। उसकी माँ, शांति देवी, एक धार्मिक और सिद्धांतवादी महिला थीं, जो अपने बेटे की शादी को लेकर बहुत उत्साहित थीं।
राघव की शादी तय हुई थी काव्या से, जो पड़ोस के गांव की एक सुशील और शिक्षित लड़की थी। काव्या की आँखों में सपने थे, लेकिन वह अपनी जड़ों से गहरे जुड़ी थी। उसकी माँ ने उसे हमेशा सिखाया था कि शादी सिर्फ दो लोगों का मिलन नहीं, बल्कि दो आत्माओं का एक पवित्र बंधन है, जो सात फेरों और सात वचनों से मजबूत होता है।
शादी का दिन नजदीक आ रहा था। सूरजपुर में उत्सव का माहौल था। हवेली रंग-बिरंगे फूलों और रोशनी से सजी थी। राघव और काव्या दोनों ही इस नए सफर के लिए उत्साहित थे, लेकिन उनके मन में एक सवाल बार-बार उठता था—क्या वे सात फेरों के सात वचनों का असली मतलब समझ पाएंगे और उन्हें निभा पाएंगे?
पहला फेरा: धर्म और कर्तव्य
शादी का दिन आ गया। मंडप में पंडित जी ने राघव और काव्या को पहला फेरा लेने को कहा। पहला वचन था—“हम एक-दूसरे के साथ धर्म और कर्तव्य का पालन करेंगे।” पंडित जी ने समझाया कि इसका मतलब है कि दोनों एक-दूसरे के नैतिक मूल्यों का सम्मान करेंगे और परिवार की जिम्मेदारियों को मिलकर निभाएंगे।
राघव ने काव्या की ओर देखा। उसकी आँखों में एक विश्वास था। राघव को याद आया कि कैसे काव्या ने शादी से पहले कहा था, “राघव, मैं चाहती हूँ कि हम दोनों एक-दूसरे के सपनों को समझें और उनका सम्मान करें।” राघव ने मन ही मन सोचा कि वह न सिर्फ काव्या की इच्छाओं का सम्मान करेगा, बल्कि अपने परिवार की परंपराओं को भी बनाए रखेगा।
दूसरा फेरा: प्रेम और सम्मान
दूसरे फेरे के साथ दूसरा वचन था—“हम एक-दूसरे के प्रति प्रेम और सम्मान बनाए रखेंगे।” पंडित जी ने कहा कि यह वचन जीवन में हर सुख-दुख में एक-दूसरे का साथ देने की नींव रखता है।
काव्या को याद आया कि कैसे राघव ने एक बार उससे कहा था, “काव्या, मैं तुम्हें हमेशा वही सम्मान दूँगा, जो मैं अपनी माँ को देता हूँ।” यह सुनकर काव्या का दिल भर आया था। उसने ठान लिया कि वह भी राघव के हर निर्णय में उसका साथ देगी, चाहे परिस्थितियाँ कितनी भी मुश्किल क्यों न हों।
तीसरा फेरा: विश्वास और वफादारी
तीसरे फेरे के साथ तीसरा वचन लिया गया—“हम एक-दूसरे के प्रति विश्वास और वफादारी बनाए रखेंगे।” यह वचन सुनकर राघव को थोड़ा ठहराव महसूस हुआ। उसने सोचा कि विश्वास तो वह काव्या पर करता है, लेकिन क्या वह हर परिस्थिति में उस विश्वास को बनाए रख पाएगा?
शादी के बाद एक दिन, राघव को अपने पुराने दोस्त की ओर से एक नौकरी का प्रस्ताव आया, जिसके लिए उसे शहर जाना पड़ता। काव्या ने उसका हौसला बढ़ाया और कहा, “राघव, अगर तुम्हें लगता है कि यह तुम्हारे लिए सही है, तो जाओ। मैं तुम पर भरोसा करती हूँ।” राघव को एहसास हुआ कि काव्या का विश्वास ही उसकी सबसे बड़ी ताकत है।
चौथा फेरा: परिवार की देखभाल
चौथा फेरा लेते समय पंडित जी ने वचन सुनाया—“हम अपने परिवार की देखभाल और उनके सुख-दुख में साथ देंगे।” यह वचन सुनकर काव्या को अपनी माँ की बात याद आई, जो कहती थीं, “बेटी, शादी सिर्फ दो लोगों का बंधन नहीं, बल्कि दो परिवारों का मिलन है।”
शादी के कुछ महीनों बाद, राघव की माँ की तबीयत खराब हो गई। काव्या ने दिन-रात उनकी सेवा की। उसने न सिर्फ अपनी सास का ख्याल रखा, बल्कि पूरे परिवार को एकजुट रखा। राघव ने देखा कि काव्या ने इस वचन को कितनी खूबसूरती से निभाया। उसने मन ही मन काव्या के प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त की।
पाँचवाँ फेरा: संतान और संस्कार
पाँचवें फेरे के साथ वचन था—“हम अपनी संतान को अच्छे संस्कार देंगे और उनका पालन-पोषण मिलकर करेंगे।” यह वचन सुनकर काव्या ने राघव की ओर देखा और मुस्कुराई। दोनों ने एक-दूसरे को वादा किया कि वे अपने बच्चों को न सिर्फ अच्छी शिक्षा देंगे, बल्कि उन्हें नैतिकता और मानवता के मूल्य भी सिखाएंगे।
कुछ साल बाद, जब उनके घर एक बेटी ने जन्म लिया, काव्या और राघव ने उसे प्यार और संस्कारों से बड़ा किया। काव्या उसे कहानियाँ सुनाती, जिसमें परंपराओं और आधुनिकता का मिश्रण होता। राघव उसे सिखाता कि मेहनत और ईमानदारी से ही जीवन में सफलता मिलती है।
छठा फेरा: सुख-दुख में साथ
छठे फेरे का वचन था—“हम हर सुख-दुख में एक-दूसरे का साथ देंगे।” यह वचन सुनकर राघव को एहसास हुआ कि जीवन में उतार-चढ़ाव तो आएंगे, लेकिन काव्या का साथ उसे हर मुश्किल से निकाल लेगा।
एक बार राघव का व्यवसाय घाटे में चला गया। वह बहुत तनाव में था। काव्या ने उसका हौसला बढ़ाया और कहा, “राघव, यह सिर्फ एक बुरा वक्त है। हम मिलकर इससे निकल जाएंगे।” काव्या ने अपने गहने बेच दिए और राघव को फिर से खड़ा होने में मदद की। इस मुश्किल घड़ी में राघव ने जाना कि सच्चा साथी वही है, जो बुरे वक्त में भी हिम्मत न हारे।
सातवाँ फेरा: आजीवन साथ
आखिरी फेरे के साथ सातवाँ वचन लिया गया—“हम आजीवन एक-दूसरे के साथ रहेंगे और हमारा बंधन अटूट रहेगा।” यह वचन सुनकर काव्या की आँखें नम हो गईं। उसने राघव का हाथ थामा और कहा, “राघव, मैं तुम्हारे साथ हर जन्म में चलना चाहूँगी।”
राघव ने भी वादा किया कि वह काव्या को कभी अकेला नहीं छोड़ेगा। साल बीत गए, लेकिन उनका प्यार और विश्वास कभी कम नहीं हुआ। वे दोनों एक-दूसरे के लिए प्रेरणा बने। चाहे जिंदगी ने कितने ही इम्तिहान लिए, सात फेरों के सात वचनों ने उन्हें हमेशा एक-दूसरे से जोड़े रखा।
निष्कर्ष
राघव और काव्या की कहानी सिर्फ उनकी नहीं, बल्कि हर उस जोड़े की कहानी है, जो सात फेरों के सात वचनों को दिल से अपनाता है। ये वचन सिर्फ शब्द नहीं, बल्कि एक-दूसरे के प्रति जिम्मेदारी, प्रेम और विश्वास का प्रतीक हैं। सूरजपुर की उस हवेली में आज भी राघव और काव्या की प्रेम कहानी गूँजती है, जो हर नवविवाहित जोड़े को सिखाती है कि सच्चा बंधन वही है, जो दिल से दिल तक जाता है।
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