merchant of dreams in Hindi Moral Stories by Vijay Sharma Erry books and stories PDF | सपनों के सौदागर

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सपनों के सौदागर

शीर्षक: सपनों के सौदागर
लेखक: विजय शर्मा एरी


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सूरज धीरे-धीरे धूल से भरे मैदान के पीछे ढल रहा था। पंजाब के एक छोटे से कस्बे—अजनाला—के सरकारी स्कूल का मैदान आज भी बच्चों की चीख-पुकार और बल्ले की धमक से गूंज रहा था। गेंद उड़ती, बल्ला चमकता, और हर रन पर बच्चों की आंखों में चमक उठती—वो चमक जो सपनों की थी।

इन्हीं बच्चों में एक था आर्यन, चौदह साल का दुबला-पतला लड़का, जो अपनी पुरानी टी-शर्ट और फटे जूतों में भी खुद को विराट कोहली समझता था। उसके लिए क्रिकेट सिर्फ खेल नहीं, ज़िंदगी का दूसरा नाम था।

हर शाम जब बाकी बच्चे खेल खत्म कर घर लौट जाते, आर्यन वहीं बैठा रहता—टूटी बाउंड्री की तरफ, जहां से कभी-कभी गुज़रने वाली बसें उसे याद दिलातीं कि एक दिन वो भी ऐसी किसी बस से निकलकर बड़े स्टेडियम तक पहुंचेगा।


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पहला मोड़ – टूटी गेंद और टूटा सपना

एक दिन अभ्यास के दौरान आर्यन ने एक जोरदार शॉट लगाया। गेंद उड़ी और सीधी जा लगी स्कूल के प्रिंसिपल के स्कूटर पर। स्कूटर गिरा, शीशा टूटा, और प्रिंसिपल साहब लाल चेहरे के साथ मैदान की ओर बढ़े।

“कौन था जिसने ये किया?”

सभी बच्चे चुप।

आर्यन आगे आया, “सर, मैं था… लेकिन ये जानबूझकर नहीं हुआ।”

“जानबूझकर नहीं हुआ? क्रिकेट खेलने आए हो या तोड़फोड़ करने? अब से स्कूल के मैदान में क्रिकेट बंद!”

वो दिन आर्यन की आंखों में जैसे धुंध-सा छा गया।


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दूसरा मोड़ – सपनों के सौदागर की एंट्री

कुछ हफ्तों बाद अजनाला में "स्पोर्ट्स टैलेंट लीग" का बैनर लगा। बड़े-बड़े पोस्टर—“अपना हुनर दिखाओ, भारत के अगले क्रिकेट स्टार बनो!”

गांव के हर गली-मोहल्ले में चर्चा थी। आर्यन की आंखों में फिर से चमक लौटी। उसने मां से कहा,
“मां, एक मौका है मेरे पास… बस सौ रुपये फीस दे दो, मैं फॉर्म भर दूं।”

मां ने उसकी ओर देखा। घर की हालत खराब थी—पिता किसान थे, दो साल से फसल ठीक नहीं हुई थी। फिर भी उसने अपनी चूड़ी उतारी और बोली,
“ले बेटा, तेरा सपना अगर सच्चा है तो खुद भगवान भी साथ देगा।”

आर्यन ने मां के आशीर्वाद से फॉर्म भरा और ट्रायल देने पहुंच गया।

वहां सब कुछ फिल्मों जैसा लग रहा था—बड़े कैमरे, कोच, और एक चमकदार कार से उतरे एक व्यक्ति—मनीष कपूर, जो खुद को “टैलेंट प्रमोटर” बता रहे थे।

मनीष की मुस्कान में वो जादू था जो गरीब बच्चों को विश्वास दिला दे कि उनका कल भी बदल सकता है।

“बस अपने हुनर पर भरोसा रखो बेटा,” मनीष ने आर्यन के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा, “अगर तुमने अच्छा खेला, तो हम तुम्हें मुंबई क्रिकेट एकेडमी में ट्रायल दिलवाएंगे।”


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तीसरा मोड़ – लुभावना झांसा

आर्यन ने दिल खोलकर खेल दिखाया। उसकी बैटिंग देखकर मनीष कपूर की आंखें चौंधिया गईं—पर खेल से नहीं, पैसे से।

दो दिन बाद मनीष ने आर्यन को बुलाया।
“आर्यन, तुम्हें तो मैं सीधे मुंबई ले जा सकता हूं। बस एक छोटा सा रजिस्ट्रेशन चार्ज लगेगा—पांच हज़ार रुपए।”

आर्यन चौंका।
“सर, मेरे पास तो इतने पैसे नहीं हैं…”

मनीष मुस्कुराए, “सपने सस्ते नहीं होते बेटा। क्रिकेट स्टार बनना है तो थोड़ा निवेश तो करना ही पड़ेगा। बाकी हम हैं ना—सपनों के सौदागर।”

आर्यन को लगा कि जैसे सच में भगवान ने उसके लिए रास्ता खोल दिया हो। उसने पिता से, दोस्तों से, यहां तक कि अपनी मां की चांदी की पायल तक बेचकर पांच हज़ार जुटा लिए।


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चौथा मोड़ – मुंबई का सपना, हकीकत का थप्पड़

एक हफ्ते बाद आर्यन को और पांच बच्चों को लेकर मनीष मुंबई पहुंचा।
ट्रेन के सफर में आर्यन की आंखों में केवल सपने थे—वो सोच रहा था कि अब तो वो टीवी पर दिखेगा, भारतीय टीम का हिस्सा बनेगा।

मुंबई पहुंचकर मनीष ने उन्हें एक पुराने होटल में ठहराया और कहा,
“कल सुबह आठ बजे एकेडमी चलेंगे। तैयार रहना।”

पर अगली सुबह मनीष कहीं नहीं मिला।

होटल के रिसेप्शनिस्ट ने बताया कि “साहब तो रात को ही चले गए।”

सब बच्चे घबरा गए। फोन किया तो नंबर बंद।

आर्यन के भीतर कुछ टूट गया। वो समझ गया—वो भी एक “सपनों का सौदा” बन गया था।


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पांचवां मोड़ – हार नहीं, हिम्मत

मुंबई की गलियों में बिना पैसे के घूमते हुए, भूख और शर्म ने आर्यन को रुला दिया। पर तभी एक दिन, एक लोकल मैदान में उसने देखा कि कुछ बच्चे मुफ्त में क्रिकेट सीख रहे हैं।

वो मैदान चलाता था कोच राजन नायर—पूर्व रणजी खिलाड़ी, जो अब गरीब बच्चों को ट्रेनिंग देते थे।

आर्यन ने डरते हुए पूछा,
“सर, मैं भी सीख सकता हूं?”

राजन ने उसकी आंखों में देखा, “तेरे हाथ में बल्ला है और दिल में आग—तू क्यों नहीं सीख सकता?”

बस, उस दिन से आर्यन ने वहीं रहना शुरू कर दिया। सुबह दूध की डेयरी में काम करता, दोपहर को अभ्यास, रात को अखबार बेचता।


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छठा मोड़ – संघर्ष का सफर

दिन महीने में, और महीने साल में बदल गए।
आर्यन अब 18 साल का हो गया था। राजन कोच की निगरानी में उसने अपनी पहचान बना ली थी।

एक दिन कोच ने कहा,
“बेटा, कल ‘महाराष्ट्र क्रिकेट लीग’ का ट्रायल है। ये मौका बड़ा है—अगर चमक गया तो पीछे मुड़कर नहीं देखेगा।”

आर्यन ने बस सिर झुका लिया और अपने बल्ले को प्रणाम किया।

अगले दिन मैदान में उसके सामने वही नज़ारा था—कैमरे, कोच, और भीड़। पर इस बार उसमें झूठ नहीं, सच्चाई थी।

आर्यन ने पहली गेंद पर चौका मारा, दूसरी पर छक्का, और पंद्रह ओवर में 78 रन बनाकर सबको चौंका दिया।

स्टेडियम में गूंज उठा — “ये लड़का तो अगला विराट है!”


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सातवां मोड़ – सपनों की असली कीमत

ट्रायल के बाद उसे मुंबई की “ईगल्स क्रिकेट टीम” ने साइन किया।
जब पहली बार उसने अपना नाम स्क्रीन पर देखा, तो आंखों से आंसू बह निकले।

वो भागा, सीधे अजनाला के गांव पहुंचा। मां खेत में काम कर रही थी।

“मां! तेरे बेटे का सपना अब पूरा होने जा रहा है!”

मां ने मुस्कुराते हुए कहा,
“मैंने कहा था ना बेटा—भगवान सच्चे सपनों की कीमत कभी व्यर्थ नहीं जाने देता।”


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आठवां मोड़ – सपनों के असली सौदागर

दो महीने बाद मुंबई के वानखेड़े स्टेडियम में मैच था। दर्शकदीर्घा में वही कोच राजन नायर बैठा था।
आर्यन ने सेंचुरी मारी—110 रन।

कमेंटेटर की आवाज गूंजी—
“ये है नया सितारा, अजनाला का आर्यन! जिसने दिखा दिया कि असली सपनों के सौदागर वो नहीं जो सपने बेचते हैं, बल्कि वो हैं जो उन्हें सच्चाई में ढालते हैं।”

मैच के बाद आर्यन ने माइक पकड़ा और बोला,
“मैं उन बच्चों से कहना चाहता हूं जो किसी मनीष कपूर जैसे लोगों के झांसे में आ जाते हैं—
सपने बिकते नहीं, उन्हें जीना पड़ता है।
अगर दिल में हिम्मत है तो कोई सौदागर तुम्हारा भविष्य नहीं खरीद सकता।”


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समापन – लौटे हुए सपने

आर्यन ने बाद में एक “फ्री क्रिकेट एकेडमी” शुरू की, जिसका नाम था “सपनों के सौदागर ट्रस्ट”—
जहां वो गरीब बच्चों को मुफ्त में प्रशिक्षण देता, ताकि कोई और बच्चा धोखा न खाए।

उसकी दीवार पर बड़ा-सा बोर्ड टंगा था—

> “सपने देखो, मगर उन्हें बेचना मत। उन्हें खुद की मेहनत से खरीदो।”




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समापन गीत 🎵

(स्टेडियम में आर्यन की जीत पर बजता हुआ गाना)

> 🎶 "कर चले हम फ़िदा जान-ओ-तन साथियों,
अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों..." 🎶

और मैदान में गूंज उठता है —

“भारत माता की जय!”




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आर्यन अब करोड़ों का स्टार नहीं था, लेकिन लाखों के दिलों का प्रेरणास्रोत बन गया था।
क्योंकि उसने साबित कर दिया था कि –

> “सपनों के सौदागर वो नहीं जो उन्हें बेचते हैं,
बल्कि वो हैं जो उन्हें साकार करने की हिम्मत रखते हैं।”




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—विजय शर्मा एरी ✍️
(एक प्रेरणादायक कहानी – हर उस बच्चे के नाम, जो बल्ला थामते समय आंखों में भारत का तिरंगा देखता है।)