🌧️ कहानी शीर्षक: “बारिश की पहली बूंद” (A Fantasy Story by Vijay Sharma Erry)
---
गर्मी का मौसम था। धरती तप रही थी, जैसे सूरज ने अपने अग्निबाण छोड़ दिए हों। पेड़ों की पत्तियाँ मुरझा चुकी थीं, पक्षी चुपचाप अपने घोंसलों में दुबक गए थे। गाँव के छोटे-से स्कूल की खिड़कियों से बच्चे बाहर झाँकते हुए एक ही बात कह रहे थे —
“काश अब बारिश आ जाए…”
उनमें से एक लड़की थी — आर्या। बड़ी-बड़ी आँखें, माथे पर छोटी सी बिंदी और बालों में सफेद रिबन। वो हर दिन आसमान की तरफ देखती और कहती —
“हे बादल मामा, जल्दी आ जाओ ना, मिट्टी प्यास से रो रही है।”
कहते हैं न, जब दिल से पुकारो तो प्रकृति भी सुन लेती है। उस शाम, जब सूरज ढल रहा था और दूर क्षितिज पर धूल का धुंधलका था, आर्या ने आसमान की ओर देखा। अचानक हवा के एक झोंके ने उसकी चोटी में बंधे रिबन को खोल दिया। हवा में उड़ते रिबन के साथ उसने देखा — एक नीली-सी चमक आसमान से नीचे उतर रही थी।
वो चमक ज़मीन से टकराई और धीरे-धीरे एक बूंद में बदल गई — बारिश की पहली बूंद।
---
पहली बूंद की आवाज़
आर्या ने उत्सुकता से हाथ आगे बढ़ाया। वो बूंद उसके हाथ की हथेली पर आ गिरी।
“आह!” — उसे ठंडक का अहसास हुआ, जैसे किसी ने बर्फ का टुकड़ा रख दिया हो।
लेकिन अगले ही पल…
वो बूंद बोलने लगी!
“धन्यवाद, आर्या,” आवाज़ आई, “तुम्हारी प्रार्थना ने मुझे जन्म दिया।”
आर्या घबरा गई, “त-तुम कौन हो?”
“मैं हूँ पहली बारिश की बूंद,” उसने मुस्कराते हुए कहा, “हर साल कोई न कोई बच्चा मुझे अपनी सच्ची चाहत से धरती पर बुलाता है। इस बार तुमने बुलाया है।”
आर्या की आँखों में चमक आ गई, “तो अब बारिश आने वाली है?”
बूंद ने सिर हिलाया, “हाँ, लेकिन एक समस्या है… बादलों के राज्य में इंद्रजाल ने जादू कर दिया है। अब बादल बरस नहीं सकते। अगर तुम मेरी मदद कर सको तो मैं बारिश वापस ला सकती हूँ।”
आर्या ने बिना सोचे कहा —
“मैं तैयार हूँ! बस धरती पर फिर हरियाली लौट आए।”
---
बादलों के राज्य की यात्रा
बूंद ने अपने अंदर से एक छोटा इंद्रधनुषी गोला निकाला।
“इसमें कूद जाओ,” उसने कहा, “ये तुम्हें बादलों के राज्य ले जाएगा।”
आर्या ने आँखें बंद कीं और छलाँग लगा दी।
क्षणभर में उसे लगा जैसे वह हवा में उड़ रही है। नीचे गाँव, खेत, नदियाँ सब छोटे-छोटे खिलौनों जैसे दिखाई देने लगे। फिर एक हल्की सी चमक और…
वो पहुँच गई बादलों के राज्य में।
यहाँ सब कुछ सफेद, नीला और सुनहरी धुंध से घिरा हुआ था। आसमान में तैरते महल, उड़ते जलकण, और बिजली की परियाँ इधर-उधर घूम रही थीं। हर बूंद एक जीव थी — कोई गा रही थी, कोई खेल रही थी।
“स्वागत है, धरती की बच्ची,” एक बूढ़े बादल ने कहा।
“मैं बादलराज हूँ। तुम यहाँ पहली बार आई हो।”
आर्या ने झुककर प्रणाम किया।
“मुझे बारिश वापस लानी है, महाराज,” उसने कहा।
बादलराज ने गंभीर स्वर में कहा, “हमारी वर्षा शक्ति को इंद्रजाल, एक काला जादूगर, ने चुरा लिया है। जब तक उसकी काली मणि नहीं तोड़ी जाती, बारिश नहीं होगी।”
आर्या ने दृढ़ता से कहा, “तो मैं वो मणि ढूँढूँगी।”
---
इंद्रजाल का अँधेरा महल
पहली बूंद आर्या के साथ थी। दोनों बिजली के पंखों पर उड़ते हुए काले बादलों की तरफ बढ़े। वहाँ घना अंधकार था, और हवा में गंधक की गंध।
दूर एक महल चमक रहा था, जैसे काले शीशे से बना हो।
“वो रहा इंद्रजाल का महल,” बूंद ने फुसफुसाया, “लेकिन सावधान रहना।”
अंदर प्रवेश करते ही चारों तरफ से जादुई प्राणी निकल आए — धुएँ से बने घोड़े, आग से बने रक्षक, और एक विशाल छाया, जो हँस रही थी।
“हा हा हा!” इंद्रजाल की आवाज़ गूँजी, “धरती की एक बच्ची मुझे हराएगी?”
आर्या ने डर को दिल से निकाला।
“मैं डरती नहीं। बारिश धरती की जान है। तुमने जो छीन लिया है, मैं उसे वापस लूँगी!”
इंद्रजाल ने अपनी जादुई छड़ी उठाई।
“तो पहले इस अँधेरे से बचकर दिखाओ!”
अचानक वहाँ तूफ़ान उठ गया। चारों ओर बिजली चमकने लगी। लेकिन पहली बूंद ने आर्या का हाथ थामा और कहा —
“अपने दिल में विश्वास रखो, पानी कभी हारता नहीं।”
आर्या ने आँखें बंद कीं और अपनी दादी की कही बात याद की —
“पानी में ईश्वर का वास है। जो सच्चे मन से पुकारे, उसे वरदान मिलता है।”
उसने दिल से पुकारा —
“हे वर्षा माता, मेरी धरती प्यास से तड़प रही है, मुझे शक्ति दो!”
तभी उसकी हथेली चमकने लगी, और उसमें से सफेद रोशनी की किरण निकली। वो किरण सीधी जाकर इंद्रजाल की काली मणि से टकराई।
धड़ाम!
मणि चटक गई। इंद्रजाल चीखता हुआ अंधेरे में विलीन हो गया।
---
वर्षा की वापसी
महल का अंधेरा मिट गया। चारों तरफ उजली बूंदें चमकने लगीं।
बादलराज प्रकट हुए और बोले —
“आर्या, तुमने असंभव को संभव कर दिखाया। तुम्हारी सच्चाई ने बारिश की शक्ति को फिर जीवित किया है।”
पहली बूंद ने मुस्कराते हुए कहा, “अब धरती हँसेगी।”
आर्या ने देखा — बादलों से झरने जैसी वर्षा उतरने लगी थी। हर बूंद में इंद्रधनुष का रंग था।
बादलराज ने कहा, “आर्या, अब तुम्हें धरती पर लौटना होगा। पर याद रखना, हर साल जब बारिश की पहली बूंद गिरेगी, उसमें तुम्हारी दया और साहस की कहानी गूँजेगी।”
---
धरती पर वापसी
एक तेज़ चमक के साथ आर्या फिर अपने गाँव के खेतों में थी।
आसमान में काले बादल छाए हुए थे। और फिर —
टप्... टप्... टप्...
बारिश की पहली बूंद ज़मीन पर गिरी। मिट्टी से सौंधी खुशबू उठी। बच्चे नाचने लगे। पेड़ों ने अपने पत्ते झटका दिए।
आर्या ने आसमान की तरफ देखा। उसे लगा जैसे वो पहली बूंद मुस्कुरा रही हो।
धीरे से हवा ने उसके कान में फुसफुसाया —
“धन्यवाद, आर्या... अब धरती जिएगी।”
वो हँस पड़ी, आँखें बंद कीं, और बारिश में भीगने लगी।
बारिश की हर बूंद उसके चेहरे पर पड़कर गा रही थी —
> “बरसात की वो पहली फुहार,
लाती है दिल में प्यार अपार।
मिट्टी की खुशबू, सपनों का रंग,
आर्या तू है इस धरती का संग।”
---
एपिलॉग – पहली बूंद की कथा
कहते हैं, उस साल बारिश बहुत हुई। नदियाँ लबालब भर गईं, खेतों में हरियाली लौट आई। और गाँव के लोग जब भी पहली बारिश में भीगते, उन्हें एक अजीब-सी शांति मिलती।
किसी ने आसमान में देखा — कभी-कभी एक छोटी-सी नीली चमक दिख जाती थी।
बच्चे कहते, “देखो! वो रही आर्या की पहली बूंद!”
और तब हर कोई गुनगुनाने लगता —
> “मेघ बरसो रे, धरती हँसे,
आर्या की दुआ से जीवन बसे।
पहली बूंद जो दिल से गिरी,
सृष्टि में फिर मुस्कान भरी।”
---
✍️ लेखक: विजय शर्मा एरी (Vijay Sharma Erry)
शब्दसंख्या: लगभग 1500
---