She is not a whore, she is my daughter in Hindi Moral Stories by Ashok Kumar books and stories PDF | रंडी नहीं बेटी है मेरी

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रंडी नहीं बेटी है मेरी

भाग 1 : एक पिता की बेबसीगाँव के आखिरी सिरे पर टूटी-फूटी झोपड़ी में रामसागर रहता था। उम्र पचास से ऊपर हो चुकी थी, लेकिन चेहरा वक्त से कहीं ज्यादा थका हुआ लगता। उसका सहारा सिर्फ एक बेटी थी — गौरी।गौरी जब पैदा हुई थी, तब लोग कहते थे – "अरे बेटा नहीं हुआ, बेटी हुई है। इसका क्या करोगे?"रामसागर ने हर बार एक ही जवाब दिया –"बेटी भगवान का दिया वरदान होती है, इसका मान रखूँगा।"ग़रीबी ने उनकी ज़िंदगी को घेर रखा था। न खेत, न ज़मीन, बस मज़दूरी करके किसी तरह दो वक्त की रोटी जुटाना ही जीने का सहारा था।---भाग 2 : समाज की नज़रगौरी बड़ी हुई तो उसकी सुंदरता पूरे गाँव में चर्चा का विषय बन गई। लोग ताना मारते –"रामसागर की बेटी तो अप्सरा जैसी है, अब देखना कैसे बचाता है इसे!"रामसागर डरता था कि कहीं ग़रीबी और समाज की गंदी नज़र उसकी बेटी को बदनाम न कर दे।गाँव के कुछ अमीर लोग रात में चुपके-चुपके उसके दरवाज़े पर दस्तक देने लगे। वो लोग पैसों का लालच देकर कहते –"रामसागर, बेटी तो तुम्हें पेट पालने में काम आएगी। हमें दे दो, हम संभाल लेंगे।"रामसागर का खून खौल उठता। वह हाथ जोड़कर कहता –"मेरी बेटी कोई रंडी नहीं है। मेरी इज़्ज़त है, मेरी जान है।"---भाग 3 : बेटी का सपनागौरी पढ़ाई में बहुत तेज़ थी। वह कहती –"बाबूजी, मैं पढ़-लिखकर टीचर बनूँगी। सबको दिखाऊँगी कि बेटी किसी से कम नहीं होती।"रामसागर ने अपनी भूख तक बेच दी, मज़दूरी के हर पैसे जोड़कर गौरी को पढ़ाया। बेटी ने भी भरोसा निभाया।लेकिन समाज की गंदी सोच कब उसे चैन से जीने देती? लोग बार-बार चरित्र पर सवाल उठाते। गाँव की औरतें तक कह देतीं –"इतनी बड़ी हो गई है, घर में क्यों रखी है? कहीं भाग न जाए।"---भाग 4 : बदनामी की आगएक दिन गाँव के चौधरी के बेटे ने गौरी को स्कूल से लौटते वक्त रास्ते में रोक लिया। गंदी नज़र से बोला –"क्यों पढ़ाई कर रही है? चल हमारे साथ, तुझे पैसे और ऐश दिलवाऊँगा। वैसे भी लोग तुझे रंडी ही कहेंगे।"गौरी ने उसे तमाचा मार दिया। लेकिन उसी दिन से गाँव में अफवाह फैल गई –"रामसागर की बेटी तो रंगरेलियाँ मनाती है।"रामसागर का दिल टूट गया। बेटी मासूम थी, पर समाज ने उसे "रंडी" का तमगा दे दिया।---भाग 5 : संघर्षरामसागर ने गाँव छोड़ने का फैसला किया। वह बोला –"गौरी, हमें इस नफ़रत भरे समाज से दूर जाना होगा।"वे शहर आ गए। शहर में मज़दूरी आसान नहीं थी, पर बेटी की पढ़ाई उसने कभी नहीं छोड़ी। गौरी दिन-रात मेहनत करती और पढ़ाई करती।---भाग 6 : जीत की शुरुआतकुछ साल बाद गौरी ने टीचर की नौकरी पा ली। अब वही लोग, जो उसे "रंडी" कहते थे, उसकी तारीफ़ करने लगे।रामसागर ने गर्व से कहा –"देखा दुनिया, जिसे तुम रंडी कहते थे, वो आज मास्टरनी है। वो मेरी बेटी है, मेरा मान है।"गौरी ने भी आँसू भरी आँखों से कहा –"बाबूजी, समाज चाहे जैसा हो, पर बेटी हमेशा बेटी ही होती है। उसे कभी ग़लत नाम से मत पुकारो।"---भाग 7 : संदेशयह कहानी सिर्फ रामसागर और गौरी की नहीं है। यह उन सभी गरीब बेटियों की कहानी है जिन्हें समाज 'रंडी' कहकर उनकी इज़्ज़त छीनने की कोशिश करता है।👉 बेटी कभी बोझ नहीं होती।👉 बेटी को गंदी नज़र से देखने वाले ही असली अपराधी होते हैं।👉 हर पिता को अपनी बेटी के सपनों के लिए खड़ा होना चाहिए।---अंतिम पंक्तियाँ"रंडी नहीं, बेटी है मेरी" —यह सिर्फ एक पुकार नहीं, बल्कि हर उस पिता की आवाज़ हैजो अपनी बेटी के लिए समाज की सोच बदलना चाहता है।