Mother And Son Love in Hindi Motivational Stories by Esha books and stories PDF | मां और बेटा - एक अधूरी चिट्ठी

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मां और बेटा - एक अधूरी चिट्ठी

माँ और बेटा – एक अधूरी चिट्ठी

गाँव की कच्ची गलियों में बसा एक पुराना सा मकान था, जिसके आँगन में नीम का पेड़ था और दीवारों पर वक़्त की धूल जमी हुई थी। उसी घर में रहती थी सरला, एक विधवा माँ, और उसका बेटा आदित्य।

सरला ने पति को बहुत पहले खो दिया था। छोटी-सी उम्र में ही वो एक माँ और पिता दोनों बन गई। दिनभर दूसरों के घरों में काम कर, किसी तरह बेटे को पढ़ाया। वो चाहती थी कि आदित्य बड़ा आदमी बने — ऐसा इंसान जो दूसरों की मदद करे, उसका नाम रोशन करे।

आदित्य भी अपनी माँ से बेहद प्यार करता था। वो हमेशा कहता,
"माँ, एक दिन तुझे बड़ा घर दिलाऊँगा, जिसमें तुझे काम नहीं करना पड़ेगा।"

वो दिन आया जब आदित्य को दिल्ली की एक बड़ी कंपनी में नौकरी मिल गई। वो पहली बार गाँव से बाहर गया। माँ की आँखें भर आई थीं, पर दिल में गर्व था।

परिश्रम और दूरी

दिल्ली में आदित्य दिन-रात मेहनत करता। धीरे-धीरे वो सफल होता गया। पद बढ़ा, सैलरी बढ़ी, पर… फोन कम होने लगे।
जहाँ पहले हर रोज़ दो बार कॉल करता था, अब हफ्ते में एक बार। फिर महीने में एक बार।

सरला हर शाम नीम के पेड़ के नीचे बैठकर इंतज़ार करती। जब भी फोन बजता, वो दौड़कर जाती — पर अक्सर वो कॉल किसी पड़ोसी का होता।

वो अब भी मंदिर जाती, भगवान से बस यही कहती,
"मेरा बेटा खुश रहे, चाहे वो मुझे याद करे या नहीं।"

माँ की चिट्ठी

एक दिन सरला ने कांपते हाथों से एक चिट्ठी लिखी:

> प्रिय बेटे आदित्य,

तू बड़ा आदमी बन गया है, सुनकर बहुत अच्छा लगा। मुझे तुझसे कोई शिकायत नहीं। पर कभी-कभी जब तेरी आवाज़ सुनने को तरस जाती हूँ, तो नीम के पेड़ से बातें करती हूँ।

तू खुश रह, बस ये दुआ है।

तेरी माँ,
सरला



उसने यह चिट्ठी भेज दी, लेकिन जवाब कभी नहीं आया।

अचानक एक दिन…

कंपनी में आदित्य की ज़िंदगी बदल गई। उसे अमेरिका में बड़ा ऑफर मिला। जाने से पहले उसने सोचा,
"अब माँ को शहर बुला लूँ। नया घर भी बन गया है, माँ खुश हो जाएगी।"

वो गाँव लौटा — चार साल बाद।

लेकिन जो घर उसे कभी ज़िंदा लगता था, अब वहाँ सन्नाटा था। नीम के पेड़ के नीचे कोई नहीं था। दरवाज़ा बंद। पड़ोसी ने बताया,
"भैया… बहुत समय पहले अम्मा चली गईं। चुपचाप, बिना शिकायत। वो तेरा इंतज़ार करती थीं हर रोज़।"

आदित्य वहीं बैठ गया — नीम के नीचे, आँसू बहते रहे।

पड़ोसी ने एक डिब्बा दिया जिसमें कुछ चिट्ठियाँ थीं — सब सरला की लिखी, लेकिन कभी भेजी नहीं गईं।

एक चिट्ठी में लिखा था:

> बेटा,

तुझे पता है, नीम का पेड़ अब भी हर सुबह मुझे तेरे बचपन की याद दिलाता है। तेरा झूला, तेरी हँसी… सब यहाँ हैं। बस तू नहीं है।

मैं तुझसे नाराज़ नहीं हूँ। माँएं कभी नाराज़ नहीं होतीं। पर ये दिल... थोड़ा अकेला हो गया है।

अगर कभी लौटे तो मत रोना। माँ का घर आँसुओं के लिए नहीं होता।

तेरी माँ



नई शुरुआत

उस दिन आदित्य ने फैसला लिया — अमेरिका नहीं जाएगा। उसने गाँव में एक स्कूल खोला "सरला विद्या मंदिर" के नाम से।
हर बच्चे को मुफ्त शिक्षा, माँ की तरह हर गरीब बच्चे को प्यार।

और वो नीम का पेड़ अब भी वहीं है, जहाँ आदित्य हर शाम बैठता है — माँ से बातें करता है। हवा जब चलती है, तो लगता है जैसे माँ अब भी उसके बालों को सहला रही हो।


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सीख (Motivational Message):

जिंदगी की दौड़ में जब हम आगे बढ़ते हैं, तो पीछे छूट जाने वालों को मत भूलिए।
माँ एक रिश्ता नहीं, वो दुआ होती है — बिना शर्त, बिना अपेक्षा।
जब तक वो साथ हैं, उनके साथ हर पल को जिएँ। एक दिन सिर्फ यादें ही रह जाती हैं।

धन्यवाद