Brahmchary ki Agnipariksha - 1 in Hindi Short Stories by Bikash parajuli books and stories PDF | ब्रह्मचर्य की अग्निपरीक्षा - 1

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ब्रह्मचर्य की अग्निपरीक्षा - 1

बरसों पहले की बात है। गंगा किनारे बसे छोटे से गाँव नवग्राम में एक लड़का रहता था – नाम था अर्जुन। उम्र मुश्किल से पंद्रह–सोलह वर्ष, लेकिन चेहरे पर मासूमियत और आँखों में अजीब-सी गहराई। गाँव के लोग कहते, “यह बालक साधारण नहीं, कुछ खास है।”

गाँव के बच्चे जब सुबह खेतों की ओर गाय-भैंस चराने या खेलकूद करने जाते, तब अर्जुन एक पुरानी किताब लेकर पीपल के पेड़ के नीचे बैठ जाया करता। कभी घंटों गीता पढ़ता, कभी गुरुजी की बताई हुई ध्यान की क्रियाएँ करता। उसके दोस्त अक्सर चिढ़ाते –
“अरे अर्जुन! तू हमेशा किताबों में ही डूबा रहता है। ज़रा आ, कबड्डी खेलते हैं, या नदी में कूदकर तैराकी करते हैं।”
अर्जुन मुस्कुराकर मना कर देता –
“मित्रों, खेलना बुरा नहीं है, मगर मेरा मन कुछ और ढूँढ़ता है। मुझे लगता है कि असली खेल भीतर है, मन को जीतने का खेल।”
दोस्त उसका मज़ाक उड़ाकर हँसते और चले जाते। मगर अर्जुन का मन विचलित नहीं होता।
गाँव के पास एक पुराना आश्रम था, जहाँ वृद्ध स्वामी वेदानंद रहते थे। सफ़ेद दाढ़ी, चमकती आँखें और मधुर वाणी – वे पूरे गाँव के आदरणीय गुरु थे। अर्जुन अक्सर उनके पास जाता और प्रश्न पूछता।

एक दिन वह बोला –
“गुरुजी, मैं जीवन में महान बनना चाहता हूँ। लेकिन समझ नहीं आता कि कौन-सा मार्ग सही है?”

गुरुजी ने मुस्कुराकर अर्जुन की आँखों में देखा।
“बेटा, महान वही बनता है जो अपने मन पर विजय पाता है। बाहरी दुनिया पर राज करना आसान है, मगर मन को वश में करना सबसे कठिन। इसके लिए ब्रह्मचर्य का पालन करना अनिवार्य है।”

अर्जुन ने थोड़ी उलझन से पूछा –
“गुरुजी, ब्रह्मचर्य का मतलब क्या सिर्फ़ विवाह न करना है?”

स्वामी वेदानंद ने गहरी साँस ली और बोले –
“नहीं बेटा। लोग ब्रह्मचर्य को केवल स्त्री–पुरुष संबंध से दूर रहने तक सीमित समझते हैं। पर असली ब्रह्मचर्य का अर्थ है – मन, वाणी और कर्म का संयम।
👉 मन को व्यर्थ इच्छाओं से बचाना।
👉 वाणी को कटु शब्दों से रोकना।
👉 कर्म को अधर्म से दूर रखना।
जब इंसान अपनी ऊर्जा को बिखरने नहीं देता, तभी वह तेजस्वी और शक्तिशाली बनता है।”
अर्जुन मंत्रमुग्ध होकर सुनता रहा। उसके भीतर जैसे कोई घंटी बज उठी। उसे लगा मानो जीवन का रहस्य उसकी आँखों के सामने खुल गया हो।
उस दिन शाम को घर लौटकर अर्जुन देर तक सोचता रहा। आकाश में चाँद चमक रहा था और झींगुरों की आवाज़ वातावरण में गूँज रही थी। वह अपने मन से बोला –
“अर्जुन! आज से तुझे एक नया जीवन शुरू करना है। तुझे ब्रह्मचर्य का पालन करना होगा। चाहे राह कठिन हो, चाहे लोग हँसे, तुझे डिगना नहीं है।”

अर्जुन ने मन ही मन संकल्प लिया। उसी क्षण से उसकी आँखों में दृढ़ता आ गई।
अगली सुबह वह गुरुजी के पास गया और बोला –
“गुरुदेव! मैंने प्रण किया है कि मैं जीवन भर ब्रह्मचर्य का पालन करूँगा। कृपया मुझे मार्ग दिखाइए।”

गुरुजी ने उसके सिर पर हाथ रखा।
“शाबाश बेटा! यह मार्ग आसान नहीं, पर अगर तूने इसे निभा लिया तो तेरा जीवन स्वयं प्रकाश बनेगा। आज से तेरा हर दिन एक साधना होगा।”

उन्होंने उसे योग, प्राणायाम और ध्यान की शुरुआती विधियाँ सिखाईं। साथ ही कहा –
“ब्रह्मचर्य का पालन केवल बाहर से नहीं, भीतर से करना होता है। जब भी मन भटके, तू उसे शांति से समझाना। याद रख, हर कामना आती-जाती है, पर जो स्थायी है वह है आत्मा की शक्ति।”
उस रात अर्जुन ने पहली बार ध्यान लगाया। वह आँखें मूँदकर बैठा, साँसों पर ध्यान देने लगा। पहले मन में तरह-तरह के विचार आने लगे – खेत, दोस्त, मेला, हँसी-ठिठोली। पर उसने धैर्य रखा। धीरे-धीरे मन शांत हुआ और भीतर से जैसे एक हल्की रोशनी महसूस हुई।

वह भावुक होकर सोचने लगा –
“शायद यही है सच्चा सुख – जब भीतर शांति हो, तो बाहर कुछ भी परेशान नहीं कर सकता।”

धीरे-धीरे उसकी दिनचर्या बदल गई। अब वह सूर्योदय से पहले उठता, नदी में स्नान करता, योगाभ्यास करता और फिर गुरुजी की बताई हुई साधना करता। उसके माता-पिता पहले हैरान हुए, फिर गर्व महसूस करने लगे।

लेकिन गाँव के लड़के अब भी चिढ़ाते –
“देखो-देखो, यह तो साधु बन गया। अभी से ब्रह्मचारी बन बैठा है। अरे, तेरी उम्र ही क्या है, पहले ज़िंदगी जी तो ले!”

अर्जुन बस शांत रहकर मुस्कुरा देता। मन ही मन सोचता –
“लोग क्या कहते हैं, उससे फर्क नहीं पड़ता। मुझे अपने संकल्प पर टिके रहना है।”

कुछ ही हफ्तों में उसके चेहरे पर अजीब-सा तेज़ आ गया। उसकी आँखें पहले से ज़्यादा चमकने लगीं। गाँव की महिलाएँ कहतीं –
“अर्जुन तो अब साधु जैसा लगता है।”

गुरुजी भी उसे देखकर प्रसन्न होते।
“बेटा, यह तो बस शुरुआत है। असली परीक्षाएँ अभी बाकी हैं। याद रख, ब्रह्मचर्य का मार्ग फूलों से नहीं, काँटों से भरा है।”

अर्जुन ने दृढ़ता से कहा –
“गुरुदेव, चाहे कैसी भी कठिनाई आए, मैं पीछे नहीं हटूँगा।”
उस रात उसने फिर से अपने मन से संवाद किया –
“अर्जुन, आज से तू अकेला नहीं है। तेरे भीतर जो संकल्प है, वही तेरा साथी है। यह मार्ग कठिन होगा, लेकिन तू इसे निभाएगा।”

आकाश में चाँदनी फैली हुई थी। अर्जुन के चेहरे पर भी वैसा ही उजाला था। उसने आँखें मूँद लीं और मन ही मन कहा –
“मैं ब्रह्मचर्य का पालन करूँगा। यही मेरा व्रत, यही मेरा जीवन।”

उसके हृदय में अजीब-सी शांति उतर आई। यह वही क्षण था जब एक साधारण किशोर लड़के ने असाधारण संकल्प लिया – ब्रह्मचर्य की अग्निपरीक्षा में उतरने का।