Brahmchary ki Agnipariksha - 7 in Hindi Short Stories by Bikash parajuli books and stories PDF | ब्रह्मचर्य की अग्निपरीक्षा - 7

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ब्रह्मचर्य की अग्निपरीक्षा - 7

अर्जुन अब तक मोह, अकेलेपन और क्रोध की परीक्षाओं से गुजर चुका था। हर बार वह और मजबूत होकर उभरा था।
लेकिन जीवन की राह पर जितना ऊँचा चढ़ो, उतनी ही कठिनाइयाँ सामने आती हैं।
इस बार उसका सामना हुआ – प्रलोभन के तूफ़ान से।

गाँव में उस साल अकाल पड़ा था। कई लोग परेशान थे। मगर उसी समय पास के कस्बे में एक धनी सेठ ने घोषणा की –

“जो भी मेरे यहाँ काम करेगा, उसे सोने के सिक्के, बढ़िया कपड़े और स्वादिष्ट भोजन मिलेगा। उसके लिए हवेली में रहने का इंतज़ाम भी होगा।”

गाँव के कई लोग वहाँ जाने लगे।
अर्जुन के घर भी कठिनाई थी। उसकी माँ चाहती थी कि बेटा थोड़ा पैसा कमाए ताकि घर का खर्च चल सके।

माँ ने कहा –
“बेटा, तूने अब तक बहुत तपस्या की। लेकिन घर का पेट भी भरना है। अगर तू सेठ की हवेली में काम कर ले, तो हमारा जीवन सुधर जाएगा।”

अर्जुन उलझन में पड़ गया।
“क्या यह भी मेरी साधना का हिस्सा है? क्या धन और आराम को अपनाना गलत है? अगर मैं मदद कर सकता हूँ, तो क्यों न करूँ?”

अगले ही दिन अर्जुन सेठ की हवेली पहुँचा।
वहाँ वैभव और विलास देखकर उसकी आँखें चौंधिया गईं।
चमचमाते झूमर, सुगंधित महक, रेशमी परदे, और स्वादिष्ट व्यंजनों की थालियाँ।

सेठ ने अर्जुन को देखते ही कहा –
“लड़के, तू तगड़ा और समझदार है। अगर मेरे यहाँ काम करेगा, तो तुझे इतना धन मिलेगा कि तू पूरी उम्र सुख से रह सकेगा। तुझे नंगे पाँव खेतों में भटकने की ज़रूरत नहीं। यहाँ आराम है, ऐश्वर्य है, और जो कुछ भी तू चाहे।”

अर्जुन का मन डगमगाने लगा।
वह सोचने लगा –
“क्या सचमुच मुझे यही चाहिए? अगर मैं धन कमा लूँ, तो माँ खुश हो जाएँगी। मुझे भूख और कष्ट से मुक्ति मिल जाएगी। और शायद लोग भी मुझे आदर देंगे।”

उसके भीतर इच्छाओं का तूफ़ान उठने लगा।

उसी समय हवेली में सेठ की बेटी सुरभि आई। वह बेहद सुंदर और आधुनिक वस्त्रों में थी।
उसने अर्जुन की ओर मुस्कुराकर देखा और बोली –
“तुम यहाँ नए आए हो? पिताजी ने ठीक कहा – तुममें कुछ खास है। अगर तुम यहीं रहो, तो तुम्हें कभी कोई कमी नहीं होगी।”

उसकी बातों और मुस्कान ने अर्जुन के मन को और विचलित कर दिया।
वह सोचने लगा –
“यह तो मानो मोहक जाल है। अगर मैं यहीं रुक जाऊँ, तो जीवन आसान हो जाएगा। लेकिन क्या यही मेरा मार्ग है?”

उस रात अर्जुन हवेली के आरामदायक कमरे में सोया।
मुलायम गद्दा, सुगंधित हवा और स्वादिष्ट भोजन – सब कुछ वैसा था जैसा उसने पहले कभी न देखा था।

लेकिन नींद उसकी आँखों से कोसों दूर थी।
उसके भीतर संघर्ष चल रहा था –
“क्या मैं ब्रह्मचर्य और साधना का मार्ग छोड़कर धन और सुख की राह चुन लूँ? या मैं इन प्रलोभनों को ठुकरा दूँ?”

सुबह उसने गुरुजी को याद किया।
उसे लगा जैसे भीतर से आवाज़ आ रही हो –

“अर्जुन, प्रलोभन जीवन की सबसे बड़ी परीक्षा है। धन, सुख, सुंदरता – ये सब क्षणिक हैं। तू अगर इन्हें पकड़ लेगा, तो तेरे हाथ से तेरी आत्मा छूट जाएगी। याद रख, साधना का मार्ग कठिन है, लेकिन वही तुझे अमर शांति देगा। सोच, तू किसे चुनना चाहता है – क्षणिक आराम या शाश्वत आनंद?”

अर्जुन की आँखें भर आईं।
उसने खुद से कहा –
“मैं यहाँ रहकर सब कुछ पा सकता हूँ, लेकिन अपनी आत्मा को खो दूँगा। और अगर आत्मा ही खो दी, तो यह धन किस काम का?”

अगले दिन अर्जुन ने सेठ से कहा –
“सेठ जी, आपके प्रस्ताव के लिए आभारी हूँ। लेकिन मुझे यह मार्ग स्वीकार नहीं। मैं साधना और संयम की राह पर चलना चाहता हूँ।”

सेठ चकित रह गया।
उसने कहा –
“पगले! तू जानता भी है तू क्या ठुकरा रहा है? ऐसा मौका भाग्य से मिलता है।”

अर्जुन शांत स्वर में बोला –
“धन और ऐश्वर्य का सुख क्षणिक है, लेकिन आत्मा का सुख अमर है। मैं वही चुनूँगा।”

यह कहकर वह हवेली छोड़कर बाहर निकल गया।

वह सीधा नदी किनारे पहुँचा और ध्यान में बैठ गया।
प्रलोभन का तूफ़ान अब भी उसके भीतर गूँज रहा था, लेकिन धीरे-धीरे उसकी साँसें गहरी हुईं और मन शांत होने लगा।

उसने महसूस किया कि भीतर से एक शक्ति कह रही है 
“सच्चा सुख भीतर है, बाहर नहीं। धन और वैभव तुझे भर सकते हैं, लेकिन संतोष नहीं दे सकते। ब्रह्मचर्य का मार्ग कठिन है, लेकिन यही तुझे सच्चे सुख तक ले जाएगा।”

कुछ दिनों बाद गाँव वाले यह सुनकर आश्चर्यचकित हुए कि अर्जुन ने सेठ का वैभव छोड़ दिया।
लोग कहने लगे –
“अरे! कौन होगा ऐसा जो सोने-चाँदी, महलों और ऐश्वर्य को ठुकरा दे? यह अर्जुन सचमुच अद्भुत है।”
उस रात अर्जुन ने अपनी डायरी में लिखा –
“आज मैंने जाना कि प्रलोभन बाहर से नहीं, भीतर से उठता है। धन, सुंदरता और सुख केवल साधन हैं। वे बुरे नहीं, लेकिन जब वे आत्मा को बाँध लेते हैं, तब बुरे हो जाते हैं। मैंने प्रलोभन को ठुकराकर अपने संकल्प को बचाया है। अब मुझे विश्वास है कि चाहे कितना भी तूफ़ान आए, मैं अपने मार्ग से नहीं डगमगाऊँगा।”

इस तरह अर्जुन ने अपनी सातवीं कठिनाई – प्रलोभन का तूफ़ान – पर विजय पाई।
अब उसकी साधना और दृढ़ हो चुकी थी, और उसका मन भीतर से और भी प्रकाशित हो गया था।