Anubandh 10 in Hindi Love Stories by Diksha mis kahani books and stories PDF | अनुबंध - 10

Featured Books
Categories
Share

अनुबंध - 10

💕💕 अनुबंध – एपिसोड 10 💗✨ इज़हार और इंकार 💗✨

कॉरिडोर की ठंडी दीवार से टिकाकर जब विराट ने अनाया को अपनी बाँहों में कैद किया था, उनकी साँसें जैसे वहीं थम सी गई थीं। पास खड़े होकर उसने पहली बार अपने दिल की बेचैनी को बाहर आने दिया था। उसकी गहरी, अंधेरी आँखों में जलन की आग थी, वो आग जो बरसों से बस दबी हुई थी, और अब उसके सामने इस लड़की ने उसे भड़का दिया था।

वो और झुककर उसके होंठों तक आया। इरादा साफ़ था—उसे चूम लेने का। उसकी आँखों में भूख थी, पर वो भूख सिर्फ़ जिस्म की नहीं थी, बल्कि उस इज़हार की जो अब तक उसने अपने दिल में कैद कर रखा था।

अनाया का दिल जैसे सीने से बाहर निकल आया। उसकी साँसें भारी हो गईं, आँखों में नमी। उसने काँपते स्वर में कहा—
“वि… विराट… प्लीज़…”

लेकिन विराट ने उसकी बात को बीच में ही काट दिया। उसकी आवाज़ में वो पज़ेशन था जिससे कोई इंकार करना मुश्किल था।
“चुप! तुम मेरी हो… और कोई हक़ नहीं रखता तुम्हें ऐसे देखने का, तुम्हारे पास आने का।”

वो और करीब आया, उसके चेहरे पर उसकी साँसों की गरमी फैल रही थी।

और तभी—

चटाक!!

अनाया का हाथ उसके गाल पर पड़ चुका था। कॉरिडोर की खामोशी में वो थप्पड़ किसी बम की तरह गूँज उठा। विराट की आँखें चौड़ी हो गईं। ये उसने कभी सोचा भी नहीं था कि अनाया… वही लड़की जो उसे अब तक कभी चुनौती देने की हिम्मत नहीं जुटाती थी… वो उसे थप्पड़ मार देगी।

अनाया की आँखों में आँसू थे। गाल पर लकीरें खिंच गईं थीं। वो काँपते हुए बोलीं—
“Why are you doing this, Mr. Singhania? … Who are you… who am I to you? Tell me!”
(आप ऐसा क्यों कर रहे हैं, मिस्टर सिंघानिया? … आप कौन हैं ... मैं आपके लिए कौन हूं? मुझे बताओ!")

उसके लिए ये सवाल ज़हर से भी गहरा था। ‘मिस्टर सिंगानिया’ सुनना उसके दिल पर किसी खंजर की तरह लगा।

उसके होंठ खुले, पर आवाज़ नहीं निकली।

“Stay away from me… please…”💗
(मुझसे दूर रहे)

इतना कहकर अनाया उसकी बाँहों से निकल गई और तेज़ कदमों से भाग गई। वो वहीं खड़ा रह गया, जैसे किसी ने उसकी रगों से खून खींच लिया हो। गाल पर थप्पड़ की गर्मी थी, पर दिल पर उस इंकार का बोझ, जिसने उसे तोड़ दिया था।

उस रात घर में खामोशी थी। हर कमरा जैसे अनाया की दूरी का आईना था। वो अपने कमरे में बंद हो गईं। दरवाज़े पर विराट ने कितनी बार दस्तक दी, आवाज़ दी—“अनाया, प्लीज… दरवाज़ा खोलो…”—लेकिन कोई जवाब नहीं।

सुबह जब ऑफिस पहुँचे तो हालात और भी अजनबी थे। कॉरिडोर में जब सामने आईं, तो उन्होंने बिना देखे नज़रें फेर लीं। मीटिंग में जब पास बैठा, तो उन्होंने सिर्फ़ काम की बातें कीं—वो भी ठंडी, आधिकारिक आवाज़ में।

डाइनिंग टेबल पर खाना रखा, लेकिन प्लेट पर उनका हाथ नहीं बढ़ा। वो उसके सामने बैठी थीं, पर जैसे अदृश्य थीं।

विराट की आँखों में बेचैनी साफ़ थी। उसकी दुनिया की सबसे ज़रूरी शख्सियत उससे नज़रें चुराकर जा रही थी, और वो… वो कुछ कर नहीं पा रहा था।

तीन दिन बीत गए। अनाया ने उससे ठीक से बात तक नहीं की। न कोई हंसी, न कोई तकरार, न कोई वो हल्के-फुल्के इशारे जिनसे उसका दिन शुरू होता और रात ख़त्म। सब गायब था।

उस सुबह विराट का रूप ही बदला हुआ था। हमेशा की तरह इमैक्युलेटली परफेक्ट दिखने वाला आदमी—सटीक सूट, बिल्कुल सही बंधी हुई टाई, चमकते जूते—आज ऑफिस पहुँचा था एक ढीली-सी शर्ट और अस्त-व्यस्त टाई के साथ। उसके बाल बिखरे हुए थे, चेहरा थका हुआ, आँखों के नीचे हल्के।

लोग उसे देख हैरान रह गए।
“ये… वही विराट सर हैं?”
वो सीईओ जिसकी हर अदा किसी तस्वीर की तरह परफेक्ट होती थी, आज टूटा हुआ, बिखरा हुआ, बेचैन।

उसका मूड और भी खराब था। सुबह की पहली मीटिंग में ही उसने अपने मैनेजर पर इतनी ज़ोर से चिल्लाया कि सब सन्न रह गए।
“क्या मज़ाक बना रखा है? 
I don’t pay you to make blunders!”

उसकी आवाज़ दहाड़ की तरह गूँजी। कर्मचारी डरकर चुप हो गए।

उसका असिस्टेंट पसीने से तरबतर था। कभी न मुस्कुराने वाला बॉस आज इतना रिस्टलेस क्यों था? किसी को अंदाज़ा नहीं था कि उसकी सबसे बड़ी कमजोरी उसी बिल्डिंग में काम कर रही थी।

वो अपने केबिन में बैठा कभी चुप, कभी उठकर टहलता। कभी खुद पर गुस्सा, कभी अनाया पर, कभी हालात पर। उसके मन में सवाल थे—
“मैं क्यों उसे रोक नहीं पा रहा? क्यों उसके आँसू मेरे सीने पर ज़हर बन गए हैं? क्यों उसका इंकार मुझे तोड़ रहा है?”

उसका अहंकार कहता—
“तुम्हें परवाह क्यों है? ये शादी तो बस एक कॉन्ट्रैक्ट थी।”

लेकिन उसका दिल… दिल फुसफुसाता—
“नहीं। ये सिर्फ़ कॉन्ट्रैक्ट नहीं है। वो तुम्हारी साँस है, विराट। वो तुम्हारी धड़कन है।”

शाम को जब वो घर आया, तो देखा अनाया बालकनी में खड़ी थीं। आँखें सूजी हुईं, लेकिन नज़रें अब भी सख़्त और ठंडी। वो धीरे-धीरे उनके पास गया। उसका दिल धड़क रहा था, शायद पहली बार किसी के सामने इतना बेबस।

“अनाया… सुनो, मैं…”

अनाया ने उसकी ओर देखा, और ठंडी आवाज़ में कहा—
“अगर ये सिर्फ़ एक डील है… तो इसे खत्म कर दीजिए।”

वो शब्द उसके कानों में हथौड़े की तरह गिरे। उसके अंदर सब कुछ चीख उठा। उसने सोचा—‘नहीं! मैं तुम्हें खो नहीं सकता।’ लेकिन होंठ सील गए। अहंकार और डर ने उसे रोक लिया।

उसकी आँखें भर आईं, पर उसने पलकों के पीछे छुपा लिया। अनाया ने आँसू पोंछे और कमरे का दरवाज़ा बंद कर लिया।

वो वहीं खड़ा रह गया। हाथ मुट्ठियों में बंधे हुए, साँसें भारी, सीने में जैसे कोई बोझ दबा हो। उसकी आँखों में पहली बार हार नज़र आई।

वो अपने कमरे में गया, लेकिन नींद नहीं आई। दीवार पर लगी उनकी शादी की तस्वीर को देखता रहा। उस तस्वीर में अनाया हँस रही थीं—और वो सोच रहा था, क्या अब कभी उसकी हँसी वापस आएगी?

उसका मन बार-बार कह रहा था—“कह दो उसे कि तुम उससे प्यार करते हो… मान लो कि ये सिर्फ़ कॉन्ट्रैक्ट नहीं है।” लेकिन हर बार उसका अहंकार उसे पीछे खींच लेता।

वो बालकनी में खड़ा रहा, सिगरेट हाथ में, लेकिन जलाई नहीं। उसकी आँखें बंद थीं, और दिमाग में वही सवाल गूँज रहा था—
“क्या वाक़ई ये रिश्ता सिर्फ़ एक क़रार था… या अनाया उसकी सबसे गहरी ज़रूरत बन चुकी थी?”

उस रात की खामोशी ने दोनों को और दूर कर दिया। एक ने इंकार किया, दूसरे ने इज़हार करने से डरकर चुप्पी ओढ़ ली।

कभी-कभी इज़हार से पहले इंकार ज़रूरी होता है—क्योंकि वही सच दिल की परतों को खोलता है। और अब विराट की हर परत एक-एक करके खुलने वाली थी…


---
जारी(...)
©Diksha 

आपके प्यार के लिए दिल से धन्यवाद!💗✨
आपकी रेटिंग्स का इंतजार!
आगे के अध्याय के लिए फॉलो करें ✨✨