Adhure Sapno ki Chadar - 10 in Hindi Women Focused by Umabhatia UmaRoshnika books and stories PDF | अधूरे सपनों की चादर - 10

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अधूरे सपनों की चादर - 10

अध्याय 10 – उमंगों की उड़ान और आत्मसम्मान का जन्म

छठी कक्षा का समय तनु के जीवन का बिल्कुल नया पड़ाव था। अब तक वह अपने आपको बस एक साधारण सी लड़की मानती थी, लेकिन जैसे ही उसने इस कक्षा में कदम रखा, उसके भीतर कुछ बदलने लगा। पढ़ाई का उत्साह, प्रतियोगिताओं में भाग लेने का जोश और नई-नई जिम्मेदारियाँ उसे हर दिन और आत्मविश्वासी बनाती जा रही थीं।कक्षा में अब वह सबसे आगे बैठने लगी। पहले वह पीछे बैठकर बस पढ़ाई में ध्यान देती थी, पर अब उसे हर प्रश्न का उत्तर देने की आदत हो गई थी। अध्यापक जब भी कोई सवाल पूछते, तनु की उंगली सबसे पहले उठती। होमवर्क तो वह इतनी लगन से करती कि शिक्षक कभी उसकी कॉपियां दूसरों को दिखाकर कहते—“देखो, ऐसे होमवर्क किया जाता है।”धीरे-धीरे तनु पूरी कक्षा की पहचान बनने लगी। कभी अध्यापक उसे क्लास मॉनिटर बना देते, तो कभी किसी प्रतियोगिता में हिस्सा दिला देते। तनु के भीतर छुपा आत्मविश्वास अब सामने आने लगा था।---पर्सनैलिटी का बदलनातनु अब खुद को पहले से अलग महसूस करने लगी थी। गरीब-अमीर का फर्क उसे सताने लगा था, लेकिन उसने यह ठान लिया था कि इस कमी को अपने आत्मसम्मान के आगे आने नहीं देगी। उसके पास भले ही कपड़े केवल दो जोड़ी थे, लेकिन उनमें भी वह साफ-सुथरी और आत्मविश्वास से भरी रहती।अब उसके चेहरे पर एक अजीब सा आत्मबल झलकने लगा था। सहेलियां भी उसका सम्मान करने लगीं। उसने खुद से यह मान लिया था कि जो कुछ भी होगा, वह अपनी मेहनत से ही पाएगी।---बाबूजी की पोस्टिंग जम्मूउधर, घर की स्थिति अब भी वैसी ही थी। मां अकेले सब बच्चों को संभाल रही थीं। बाबूजी की पोस्टिंग जम्मू हो गई थी। वे महीनों घर नहीं आ पाते।मगर जब भी बाबूजी आते, बच्चों के लिए ढेरों फल लाते—खुबानी, चेरी, आड़ू और न जाने कितने किस्मों के फल। तनु दौड़कर गली के मोड़ से ही चिल्ला उठती—“बाबूजी आ गए… बाबूजी आ गए!”उसकी खुशी उस पल देखने लायक होती। बाबूजी का आना जैसे किसी त्योहार से कम न होता।---पहला नया बस्ताएक दिन बाबूजी घर लौटे तो उनके हाथों में फलों की पेटियों के साथ एक और चीज थी—एक नया बैग। क्रीम कलर का मोटे कपड़े का बस्ता।तनु की आंखों से खुशी छलक उठी। आज तक उसके पास कभी नया स्कूल बैग नहीं था। मां हमेशा पुराने कपड़ों से ही सिलकर थैला बना देती थीं। क्लास में सबके पास सुंदर-सुंदर बैग होते थे और तनु अपने घर के बने थैले को लेकर चुपचाप बैठ जाती थी।लेकिन आज पहली बार उसे भी नया बैग मिला था। उसके लिए यह सिर्फ बैग नहीं, बल्कि आत्मसम्मान की निशानी था। उसे लगा जैसे अब वह भी अपने साथियों की तरह खास हो गई है।---कव्वाली का मंचइसी बीच स्कूल में एक कार्यक्रम रखा गया। कव्वाली गाने का मौका था। तनु और उसकी सहेलियों ने उसमें भाग लिया। सबको स्कूल की ओर से सफेद सलवार-कमीज़ और नीली जैकेट पहनने के लिए दी गई।मंच पर जब तनु ने अपनी टोली के साथ कव्वाली गाई, तो तालियों की गड़गड़ाहट गूंज उठी। तनु के लिए यह पहली बार था जब उसने महसूस किया कि उसके भीतर भी कोई प्रतिभा छुपी है।वह दिन तनु के जीवन का मोड़ था—उसे अपनी कीमत समझ आने लगी थी।---सातवीं में नई पहचानसातवीं कक्षा में पहुंचने के बाद तनु का आत्मविश्वास और बढ़ा। 26 जनवरी की परेड के लिए अध्यापकों ने उसे चुना। तनु की आंखों में चमक दौड़ गई।“क्या मैं सचमुच परेड में जाऊंगी? दिल्ली तक?”वह दो साल लगातार 26 जनवरी की परेड का हिस्सा बनी। स्कूल से बच्चों को सफेद ड्रेस दी गई, हर किसी के हाथ में एक डफली थी। ताल पर गाना गाने की प्रैक्टिस होती। घंटों-घंटों तक बच्चों को अभ्यास कराया जाता।इंडिया गेट पर कदम मिलाकर चलना, राष्ट्रगान की धुन पर सजधज कर खड़े रहना—यह सब तनु के जीवन के अविस्मरणीय अनुभव थे।---पढ़ाई और अभ्यासपरेड की प्रैक्टिस के चलते पढ़ाई पर थोड़ा असर पड़ता। कई बार उसे स्कूल टाइम में ही अभ्यास के लिए जाना पड़ता। लेकिन फिर भी तनु ने हार नहीं मानी। थोड़ी मेहनत और रात को जागकर उसने अपनी पढ़ाई को संभाला।अंकों में गिरावट नहीं आई। तनु हमेशा की तरह अच्छे नंबरों से पास होती रही।---सखियों का साथअब उसकी मित्र मंडली भी बड़ी हो गई थी। सहेलियां अक्सर उसके घर आतीं। सब मिलकर बातें करतीं, पढ़ाई करतीं। स्कूल घर से काफी दूर था, इसलिए रोज़ पैदल ही जाना पड़ता।रास्ते में चलते-चलते इतनी बातें हो जातीं कि पैरों की थकान का एहसास ही न होता। लेकिन तनु के साथ एक अजीब आदत जुड़ी हुई थी—वह बाकी सहेलियों से तेज़ कदमों से चलती और सबसे पहले घर पहुंचना चाहती।उसे हमेशा घर की ओर भागने की जल्दी रहती। शायद मां की मूरत, घर का आंगन और वह भक्ति भरे भजन ही उसके मन को खींच लाते थे।---आत्मसम्मान का अंकुरअब तनु के भीतर केवल पढ़ाई ही नहीं, बल्कि स्वाभिमान भी जाग चुका था। कपड़े कम थे, साधन सीमित थे, लेकिन तनु ने यह मान लिया था कि उसकी असली पहचान उसकी मेहनत और प्रतिभा है, न कि कपड़ों और चीजों की।हर बार मंच पर जाना, प्रतियोगिताओं में भाग लेना, अध्यापकों का विश्वास जीतना—यह सब उसे भीतर से मजबूत बना रहा था।---बाबूजी का मौन प्यारतनु को हमेशा लगता कि बाबूजी उससे उतना प्यार नहीं करते। वे कम बोलते, सख्त स्वभाव के थे। लेकिन जब-जब वे आते और ढेरों फल, कपड़े या कोई छोटी चीज लाते, तनु के दिल में यह अहसास होता कि उनका प्यार शब्दों में नहीं, कर्मों में छुपा है।वह नया बस्ता आज भी तनु की आंखों में चमक बनकर मौजूद था।---उमंगों की उड़ानछठी और सातवीं कक्षा का यह दौर तनु की जिंदगी में उमंगों का दौर था।प्रतियोगिताओं में भाग लेना,परेड में हिस्सा लेना,नए-नए अनुभव पाना,और सहेलियों का साथ—इन सबने उसे एक ऐसी लड़की बना दिया जो अब जीवन से डरती नहीं थी।अब उसके चेहरे पर हमेशा आत्मविश्वास की मुस्कान रहती। उसे मालूम था कि गरीबी भले ही उसके साथ है, मगर प्रतिभा और मेहनत उसकी सबसे बड़ी ताकत हैं।