Adhure Sapno ki Chadar - 9 in Hindi Women Focused by Umabhatia UmaRoshnika books and stories PDF | अधूरे सपनों की चादर - 9

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अधूरे सपनों की चादर - 9

अध्याय 9 – मीरा सी माँ और पढ़ाई की नई शुरुआत
गांव की पगडंडियों पर चलते वक्त तनु के मन में हमेशा एक हलचल रहती थी। अब तक का उसका बचपन तो जैसे भागते-दौड़ते, खेलते और कभी मार खाते हुए गुजर गया था, मगर अब धीरे-धीरे पढ़ाई की ओर उसका मन लगने लगा था। कारण भी साफ था—उसकी सहेलियां पन्नू, रेशमा और माही।तीनों ने मिलकर एक ट्यूशन ज्वाइन कर ली थी। अब रोज स्कूल से आकर सब ट्यूशन जाने लगीं। तनु को भी लगा कि अगर वह भी पढ़ाई में पीछे रह गई तो सहेलियां आगे निकल जाएंगी और फिर उसका मज़ाक उड़ाएंगी। यही सोचकर उसने एक दिन हिम्मत जुटाई और मां से कहा—“मां, मुझे भी ट्यूशन पढ़नी है।”मां पहले तो चुप रहीं। घर की हालत वैसी ही तंग थी। मजदूरी करने वाली मां के लिए हर खर्च सोचना पड़ता था। लेकिन मां को अपनी बच्ची की आंखों में चमक दिखी। मां ने बिना देर किए हामी भर दी—“ठीक है बेटा, जा, पढ़ाई कर ले। भगवान तेरा भला करेंगे।”उस दिन तनु की दुनिया बदल गई।---ट्यूशन वाली दीदीट्यूशन में जो दीदी पढ़ाती थीं, वे खुद भी पढ़ाई कर रही थीं और कुछ पैसों के लिए बच्चों को पढ़ा देती थीं। पढ़ाने के साथ-साथ वे घर पर ही कागज की पैकिंग का काम भी करतीं। तनु को हैरानी होती कि कैसे कोई इंसान दो-दो काम एक साथ कर सकता है।वह दीदी बड़ी ही धैर्यवान थीं। कभी डांटती नहीं थीं। हर सवाल को ऐसे समझातीं जैसे कोई अपनी छोटी बहन को समझा रहा हो। तनु पहली बार पढ़ाई में रुचि लेने लगी। हर शब्द, हर सवाल अब उसे खेल जैसा लगने लगा था। धीरे-धीरे उसमें आत्मविश्वास आने लगा।---पहली बड़ी सफलताचौथी क्लास में तनु ने जी-जान से मेहनत की। परिणाम आया तो उसकी आंखों में चमक फैल गई। पूरी क्लास में उसने तीसरा स्थान हासिल किया। यह तनु के जीवन का पहला पल था जब उसने अपनी मेहनत का फल पाया था।मगर मां को इसका अंदाजा नहीं था। रिजल्ट आने से एक दिन पहले मां ने तनु को कहा—“बेटा, खाना खा लो। तुम तो फिर फेल हो जाओगी और रोती फिरोगी।”तनु चुपचाप मां की बात सुनकर सोचती रही कि मां को यह भरोसा क्यों नहीं है कि वह पास हो सकती है। अगले दिन जब परिणाम घोषित हुआ और वह अच्छे नंबरों से पास हुई, तो तनु की खुशी का ठिकाना न रहा। वह घर आकर सबसे पहले मां के गले लिपट गई। मां की आंखों में आंसू आ गए, शायद उन्हें अहसास हुआ कि उनकी बेटी अब आगे बढ़ने लगी है।---नए स्कूल की ओर कदमगांव का पुराना प्राइमरी स्कूल अब पीछे छूटने वाला था। पांचवी पास करने के बाद सब बच्चों को दूसरे छोर पर बने नए स्कूल में जाना था। वह स्कूल सुनसान जगह पर था। आसपास गंदगी भी रहती थी, मगर इमारत बहुत बड़ी थी। सरकारी स्कूल का नया माहौल तनु को भी उत्साहित कर रहा था।अब तनु को एहसास होने लगा था कि पढ़ाई ही वह चाबी है जो उसके जीवन का ताला खोलेगी। सहेलियों का साथ, अच्छे घरों के बच्चों के बीच रहना, उनकी आदतें और व्यवहार देखकर तनु बहुत कुछ सीखने लगी।---मां – भक्ति में लीनघर के हालात अब भी वैसे ही थे। पिताजी का कोई खास योगदान नहीं था। उल्टा, उनका गुस्सा घर के माहौल को और बोझिल बना देता। मामूली सी गलती पर मां पर चिल्ला देते। मगर मां कभी पलटकर कुछ नहीं कहतीं।तनु अक्सर मां को देखती—थकी हुई देह, मजदूरी के बाद भी हाथ से घर का सारा काम। लेकिन मां की आंखों में कभी शिकायत नहीं होती थी। उनकी सूरत बिल्कुल पहाड़ी और लाल गुलाबी थी। हिमाचल की धरती से आई थीं, भोली-भाली और मासूम।मां का सबसे बड़ा सहारा था उनका भक्ति भाव। सुबह से शाम तक वह भजन गाती रहतीं। कपड़े धोते-धोते, थापी से कपड़े पटकते हुए उनकी आवाज गली-गली तक गूंजती—“श्रीकृष्ण गोविंद हरे मुरारी…”भजन की ताल कपड़ों की थपकी के साथ मिल जाती और पूरा माहौल भक्तिमय हो उठता।---गांव की मीरामां की भक्ति ऐसी थी कि गांव के लोग उन्हें “मीरा” कहकर पुकारते थे। जब भी किसी गली से सत्संग की आवाज आती, मां बिना सोचे-समझे वहां पहुंच जातीं। अपने गीत गातीं, कभी नाचतीं, फिर चुपचाप लौट आतीं।गांव वाले अक्सर कहते—“अरे, थोड़ा तो रुक जाओ, तुम्हारी आवाज से तो सभा रौनक हो जाती है।”मगर मां के पास समय नहीं था। दिनभर के काम और घर की जिम्मेदारियों ने उनके जीवन को इतना व्यस्त कर दिया था कि ठहरना उनके लिए संभव ही नहीं था।---तनु का बदलता जीवनअब तनु धीरे-धीरे समझदार हो रही थी। एक तरफ मां की भक्ति, उनका संघर्ष और त्याग था, दूसरी तरफ सहेलियों के जरिए नया माहौल। वह जानने लगी थी कि दुनिया कितनी बड़ी है और जीवन में कुछ कर दिखाना जरूरी है।ट्यूशन में पढ़ने से उसका आत्मविश्वास इतना बढ़ गया था कि वह क्लास में अब किसी से पीछे नहीं रहती थी।पन्नू और बाकी सहेलियां अब भी उसके साथ थीं, मगर अब तनु के भीतर एक अलग चमक थी।---मां का असरतनु ने मां से भक्ति का सबक तो लिया ही, मगर उससे भी गहरा सबक लिया धैर्य और त्याग का। मां दिनभर काम करके थक जातीं, मगर घर लौटते ही बच्चों के लिए खाना बनातीं। गुस्सा भले ही पिता जी निकालते, लेकिन मां की आंखों में कभी आंसू नहीं दिखते।तनु कई बार सोचती—“क्या सचमुच मेरी मां इंसान है? या कोई देवी है जो इतना सब सहकर भी मुस्कुरा लेती है।”मां ने उसे सिखाया था कि चाहे कितनी भी मुश्किल क्यों न हो, उम्मीद और मेहनत छोड़नी नहीं चाहिए।---आगे की ओरअब तनु की पढ़ाई का सफर तेज हो गया था। नए स्कूल, नई किताबें, नए दोस्त—सबकुछ उसकी जिंदगी में नया रंग भरने लगा। मगर भीतर कहीं वह जानती थी कि अगर मां का समर्थन और उनकी प्रार्थनाएं न होतीं, तो वह यहां तक कभी न पहुंच पाती।उसके जीवन का यह दौर सिर्फ पढ़ाई का नहीं, बल्कि आत्मविश्वास का ---