Adhure Sapno ki Chadar - 1 in Hindi Women Focused by Umabhatia UmaRoshnika books and stories PDF | अधूरे सपनों की चादर - 1

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अधूरे सपनों की चादर - 1

पहला अध्याय:---"तमन्ना को कभी नहीं पता चला कि उसकी ज़िंदगी कब सुबह से शाम और शाम से रात में बदलती जाती है।गली के खेल, माँ की व्यस्तता और पिता की चुप्पी के बीच वो बस एक बच्ची थी—जिसके सपनों की उड़ान अक्सर हालात की दीवारों से टकरा जाती थी।लेकिन उस दिन, जब पहली बार उसके हाथों में घुंघरुओं वाली चप्पल आई… ज़िंदगी का रुख बदलने लगा।"गाँव की तंग गलियों में धूल उड़ रही थी। नंगे पाँव बच्चे हँसी–ठिठोली करते दौड़ रहे थे। उन सबमें सबसे आगे थी तमन्ना—गरीब माँ–बाप की आख़िरी संतान। छोटी–सी काया, आँखों में शरारत, और चेहरा जैसे हर पल हँसी की तलाश में हो।तमन्ना का कोई ठिकाना नहीं था। कभी किसी पड़ोसी के आँगन, कभी किसी गली के मोड़, कभी चौपाल पर और कभी पेड़ के नीचे। खेलते–खेलते उसे होश ही नहीं रहता था कि कब सुबह होती और कब शाम ढल जाती।उस दिन उसके जीवन में पहली बार कोई अनमोल सौग़ात आई। दूर से मामा–मामी आए थे। उनके हाथ में एक जोड़ी चमचमाती सैंडल थी। उस पर छोटे-छोटे घुँघरू लगे थे जो हर कदम पर छन–छन बजते। तमन्ना की आँखें चमक उठीं। उसने पहले कभी इतने सुंदर जूते नहीं देखे थे। जैसे ही उसने सैंडल पहने, वह खुशी से उछल पड़ी। उसे लगा जैसे पूरी गली उसके साथ नाच रही हो।मगर उसकी यह खुशी ज़्यादा देर नहीं टिकी। घर की दीवार पुरानी और कच्ची थी। सैंडल उतारकर वह दीवार के पास हुक पर टाँग आई थी। पीछे से उसका भाई बीनू झूला झूल रहा था। अचानक दीवार भरभरा कर गिर गई। दोनों बच्चे मलबे में दब गए। बीनू को गहरी चोट लगी, तमन्ना को बस कुछ खरोंचें आईं। लेकिन रो–रोकर उसने ऐसा हंगामा मचाया जैसे जान ही निकल गई हो।पड़ोस वाले भागे–भागे आए। बीनू को डाक्टर के पास ले जाया गया। माँ भागदौड़ में लगी रही, मगर तमन्ना का दिल उसी टूटी दीवार पर अटक गया। उसे पहली बार महसूस हुआ कि खेल–खेल में ज़िंदगी कितनी बेरहम हो सकती है।तमन्ना उस रात बहुत देर तक सो नहीं पाई। आँखों के सामने वही चमकती चप्पलें घूम रही थीं। कभी उन्हें पास खींचकर सीने से लगा लेती, कभी धीरे-धीरे घुँघरू हिलाकर उनकी आवाज़ सुनती। जैसे कोई नया खिलौना मिल गया हो। पर अगले ही पल उसे डर भी सताता—“अगर ये कहीं खो गईं तो?” यही सोचकर उसने चप्पलों को अपने सिरहाने रख लिया, मानो वे उसका सबसे बड़ा खज़ाना हों।उधर दीवार के गिरने और भीनू की चोट ने पूरे घर का माहौल भारी कर दिया था। माँ बार-बार आह भरतीं और कहतीं—“कच्ची दीवारें और बच्चों की शरारतें, जाने कब क्या अनहोनी कर दें।” लेकिन तमन्ना की मासूम दुनिया में उस चोट से ज्यादा असर चप्पलों की खनक का था। शायद यही बचपन होता है—जहाँ छोटी-सी चीज़ भी पूरा ब्रह्मांड बन जाती है।वो नहीं जानती थी कि ये चप्पलें आगे चलकर उसकी ज़िंदगी की सबसे बड़ी सीख देने वाली थीं।---तमन्ना का घर बड़ा था मगर हालात छोटे। इतने लोग थे कि हर किसी की ज़िम्मेदारी बँटी हुई थी। माँ तेरह साल की उम्र में ब्याहकर आई थी। कभी स्कूल का चेहरा तक न देखा। दिन भर घर–गृहस्थी, बच्चों की देखभाल, लकड़ी–कोयला जुटाने की मशक्कत और कभी गेहूँ पिसवाने की कतार में खड़ी रहना—यही उसका जीवन था।बापू नौकरी से लौटते तो अख़बार में खो जाते। भाई खेलों में मस्त रहते। माँ अपनी दिनचर्या में गुम। तमन्ना अक्सर बिना पूछे किसी पड़ोसी के घर चली जाती और कोई रोकने–टोकने वाला नहीं होता।---फिर आया बहन की शादी का उत्सव। घर में पहली बार इतना शोर–गुल, मेहमान और रौनक। दीदी को देखने लड़के वाले आए। माँ ने मजबूरी में कहा—“बस दो ही साड़ियाँ हैं… एक मैंने पहन ली है और दूसरी दीदी ने।” मगर लड़का इंजीनियर था और दीदी को पसंद कर लिया।शादी की तैयारी में दीदी ने सबके लिए जोड़े खुद ही सिले। तमन्ना के लिए भी पहली बार एक सुंदर गरारा तैयार हुआ—मरून रंग का, किनारों पर चमचमाता गोटा। तमन्ना आईने के सामने खुद को देखती तो लगता कोई राजकुमारी बन गई हो।शादी का घर मेहमानों, फल–मिठाई और ढोल–नगाड़ों से गूँज रहा था। तीन दिन तक बारात और उत्सव चलता रहा। जब घोड़ी पर दूल्हा चढ़ा तो छोटी ममेरी बहन चिल्लाई—“जिजाजी आ गए, जिजाजी आ गए!”भोली तमन्ना उसके पीछे-पीछे भागते हुए पूछ बैठी—“ये जिजाजी क्या होते हैं?”लोग हँस पड़े, मगर उसकी मासूम आँखों ने सबके दिल छू लिए।शादी के बाद तमन्ना अकेली लड़की रह गई घर में। बाकी सब भाई थे। कई दिन तक घर में मिठाइयाँ पड़ी रहीं। गली–मुहल्ले में बाँटी जातीं। तमन्ना के लिए यह सब एक उत्सव, एक स्वप्न जैसा था।---मगर जैसे ही शादी की रौनक थमी, ज़िंदगी फिर वही सूनी राह पकड़ लाई।तमन्ना स्कूल जाती, मगर पढ़ाई में उसका मन नहीं लगता। खेलना, बातें करना, बसता उठाकर घर आ जाना और फिर गलियों में गायब हो जाना—यही उसकी दिनचर्या थी। कई बार परीक्षा में फेल भी हुई। मगर इस बार चौथी कक्षा में अध्यापिका ने साफ़ कह दिया—“अबकी बार पास नहीं होगी।”तमन्ना रो-रोकर बेहाल हो गई। पहली बार उसे समझ आया कि स्कूल जाना सिर्फ खेल नहीं, वहाँ पढ़ना भी पड़ता है। माँ ने चुपचाप कहा—“खाना खा ले, ज्यादा मत रो। जिन्दगी में बहुत बार ऐसा होगा।”गाँव की ही एक और लड़की थी—बहुत गरीब। उसकी माँ दूसरों के घरों में बर्तन माँजने जाती थी। कई बार तमन्ना भी उसके साथ चल देती। उसे लगता किसी और की दुनिया देखना किसी खेल जैसा है।---गाँव की गली में गर्मियों की रातों में सब लोग चारपाई बाहर निकाल लेते। बच्चे–बड़े सब सड़क पर बिस्तर बिछाकर सोते। कभी–कभी इतनी गर्मी होती कि गद्दे गीले करने पड़ते। मच्छरों की भनभनाहट और नाले की बदबू भी साथ थी। मगर तमन्ना की मासूम आँखों में इन सबसे बड़ी दुनिया बस खेलों और सपनों की थी।---तमन्ना के लिए ये सब बस खेल और हँसी का हिस्सा थे। मगर उसे क्या पता था कि यही गलियाँ, यही टूटी दीवारें, और यही भूख–प्यास उसके जीवन की दिशा तय करने वाली थीं। बचपन का हर छोटा हादसा धीरे–धीरे उसकी आत्मा में गहरे निशान छोड़ रहा था—जिनकी आवाज़ उसे आने वाले वर्षों में सुननी थी।---> “तमन्ना को उस दिन बस इतना समझ आया कि ज़िंदगी सिर्फ खेल-खिलौने की नहीं होती। मगर उसे अभी क्या पता था, ये तो उसकी मासूमियत का बस शुरुआती इम्तिहान था। आगे आने वाले दिनों में, उसकी दुनिया और भी बड़ी—और कहीं ज़्यादा कठिन—होने वाली थी।”