🌸बालकाण्ड
अयोध्या नगरी सरयू तट पर बसी एक ऐसी भूमि थी, जहाँ धर्म और न्याय की गंगा बहती थी। वहाँ के राजा दशरथ प्रतापी, धर्मनिष्ठ और प्रजावत्सल थे। अयोध्या में सब कुछ था, किन्तु दशरथ का मन संतान-सुख से वंचित था। वर्षों की तपस्या, यज्ञ और ऋषियों के आशीर्वाद से उन्हें चार पुत्र रत्न प्राप्त हुए—राम, भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न।
राम ज्येष्ठ पुत्र थे, शील, धर्म और करुणा के प्रतीक। लक्ष्मण सदैव उनके संग रहते, भरत का हृदय भक्ति और त्याग से भरा था, और शत्रुघ्न सेवा में सदा तत्पर रहते। चारों भाइयों का प्रेम देखकर लगता था मानो चार दिशाएँ एक ही सूर्य से आलोकित हों।
एक दिन विश्वामित्र ऋषि दशरथ से सहायता माँगने आए। उनके यज्ञों में राक्षस विघ्न डालते थे। दशरथ ने राम और लक्ष्मण को उनके साथ भेजा। वन में राम ने ताड़का और सुबाहु जैसे राक्षसों का संहार किया। फिर वे जनकपुरी पहुँचे जहाँ जनककन्या सीता का स्वयंवर था। शिवधनुष, जिसे कोई भी उठाने में असमर्थ था, राम ने सहजता से उठाकर तोड़ दिया। जनक हर्ष से भर उठे और सीता का विवाह राम से हुआ। यह मिलन केवल पति-पत्नी का बंधन नहीं था, बल्कि धर्म और निष्ठा का संगम था।
अयोध्याकाण्ड
समय बीता, और दशरथ ने राम का राज्याभिषेक करने का निश्चय किया। अयोध्या आनंद में डूब गई। किंतु कैकेयी, जो कभी राम से असीम स्नेह करती थी, अपनी दासी मंथरा के बहकावे में आकर कठोर वरदान माँग बैठी—भरत को राज्य और राम को चौदह वर्षों का वनवास।
राजा दशरथ वचनबद्ध होकर असहाय हो उठे। वे राम को स्नेह से रोकना चाहते थे, पर राम ने सहज भाव से कहा—“पिता का वचन ही मेरा धर्म है।” राम वनगमन को तैयार हुए। सीता ने साथ चलने की हठ की—“पति जहाँ होंगे, वहीं मेरा स्थान है।” लक्ष्मण ने भी भाई से अलग रहने की कल्पना अस्वीकार की।
वनगमन का दृश्य मार्मिक था। अयोध्या वासियों की आँखों में आँसू थे। माता कौशल्या विह्वल थीं। और राजा दशरथ राम-वियोग में दिन-रात रोते रहे। अंततः वे राम के नाम का स्मरण करते-करते प्राण त्याग गए।
भरत जब यह समाचार सुनकर लौटे तो वे शोक और अपराधबोध से भर उठे। उन्होंने राज्य स्वीकारने से मना कर दिया और नन्दिग्राम में राम की पादुका रख दीं। भरत का यह त्याग और भाई-भक्ति अद्वितीय थी।
अरण्यकाण्ड
राम, सीता और लक्ष्मण ने वन में तपस्वियों के समान जीवन व्यतीत किया। वे आश्रम-आश्रम जाते, ऋषियों को आश्वस्त करते और दुष्ट राक्षसों से उनकी रक्षा करते।
इसी बीच शूर्पणखा आई और राम पर मोहित हो गई। जब उसने सीता को अपमानित करना चाहा, तो लक्ष्मण ने उसकी नाक-कान काट दिए। अपमानित शूर्पणखा अपने भाई रावण के पास पहुँची। रावण का अहंकार आहत हुआ। उसने मारीच के सहयोग से छलपूर्वक सीता का हरण कर लिया और उन्हें लंका ले गया।
वन में जब राम लौटे और सीता को न पाया, तो उनका हृदय विदीर्ण हो उठा। वे व्याकुल होकर सीता-सीता पुकारते वन-वन भटकते रहे। यह दृश्य इतना मार्मिक था कि वृक्ष, लताएँ और पशु-पक्षी भी मानो उनके दुःख में सहभागी हो गए।
किष्किन्धाकाण्ड
राम की भेंट वानरराज सुग्रीव और हनुमान से हुई। हनुमान के समर्पण और भक्ति ने उन्हें अपना बना लिया। राम ने सुग्रीव को उसके भाई बाली से मुक्ति दिलाई। इसके बाद सीता की खोज के लिए वानरसेना चारों दिशाओं में भेजी गई।
हनुमान समुद्र लाँघकर लंका पहुँचे। वहाँ उन्होंने अशोक वाटिका में सीता को देखा। सीता का धैर्य, उनका पतिव्रता धर्म और राम के प्रति अटूट विश्वास देखकर हनुमान की आँखें भर आईं। उन्होंने सीता को राम का संदेश दिया और आश्वस्त किया कि शीघ्र ही राम उन्हें मुक्त करेंगे। जाते-जाते उन्होंने लंका दहन कर दी।
सुंदरकाण्ड
हनुमान की वीरता और भक्ति को देखकर राम का संकल्प और दृढ़ हो गया। सुंदरकाण्ड केवल युद्ध की तैयारी नहीं, बल्कि भक्ति और विश्वास की कथा है। हनुमान की गाथा सुनकर हर हृदय श्रद्धा से भर जाता है।
युद्धकाण्ड
राम ने समुद्र पर सेतु बनवाया। यह केवल पत्थरों का पुल नहीं था, बल्कि आशा और विश्वास का प्रतीक था। वानरसेना लंका पहुँची। भीषण युद्ध छिड़ा। रावण के पुत्र मेघनाद और भाई कुम्भकर्ण जैसे बलशाली योद्धाओं का वध हुआ।
अंततः राम और रावण आमने-सामने हुए। यह युद्ध धर्म और अधर्म का संग्राम था। राम के बाण से रावण का अंत हुआ। धरती ने देखा कि अहंकार चाहे कितना भी बड़ा क्यों न हो, सत्य की विजय निश्चित है।
सीता की अग्निपरीक्षा ने उनके चरित्र की पवित्रता सिद्ध की। राम ने कठिन किंतु आवश्यक निर्णय लेकर मर्यादा की रक्षा की।उत्तरकाण्ड और रामराज्य
राम अयोध्या लौटे। नगर दीपों से आलोकित हुआ। हर घर में दीप जलाए गए। यही दीपावली का प्रारंभिक स्वरूप बना। राम का राज्याभिषेक हुआ और रामराज्य की स्थापना हुई।
रामराज्य केवल शासन नहीं था, बल्कि वह आदर्श था जिसमें कोई भूखा नहीं था, कोई अन्यायग्रस्त नहीं था। हर ओर प्रेम, शांति और धर्म की धारा बह रही थी।रामायण का संदेश
रामायण केवल घटनाओं का संकलन नहीं, बल्कि जीवन की शिक्षा है।राम सिखाते हैं कि मर्यादा ही मानवता का आधार है।सीता त्याग और धैर्य की प्रतिमूर्ति हैं।लक्ष्मण सेवा और निष्ठा के आदर्श हैं।भरत त्याग और भाईचारे के प्रतीक हैं।हनुमान भक्ति और शक्ति के अमर उदाहरण हैं।
रामायण हमें बताती है कि चाहे विपत्तियाँ कैसी भी हों, सत्य और धर्म की राह से विचलित नहीं होना चाहिए। अहंकार चाहे कितना भी प्रबल क्यों न हो, अंत में उसका पतन होता है।
🌺 यही कारण है कि रामायण युगों-युगों तक अमर रहेगी और राम का नाम अनंत काल तक गूँजता रहेगा। 🌺