Where did those days go in Hindi Short Stories by Nandini Sharma books and stories PDF | जाने कहां गए वो दिन

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जाने कहां गए वो दिन

जाने कहां गए वो दिन

संध्या का समय था। सूर्य अपनी अंतिम किरणों को धरती पर बिखेर रहा था। हवा में हल्की ठंडक घुली हुई थी, और पीपल के पेड़ की पत्तियाँ सरसराहट कर रही थीं। गली के कोने पर खड़ा दीपक अपनी पुरानी यादों में खोया हुआ था। उसके हाथ में एक पुरानी चिट्ठी थी, जिसके अक्षर अब धुंधले पड़ चुके थे। चिट्ठी को देखते ही उसके मन में सवाल गूंजा—“जाने कहां गए वो दिन…?”

दीपक अब पचपन साल का हो चुका था। जीवन के उतार-चढ़ाव ने उसे बहुत कुछ सिखा दिया था, पर दिल के किसी कोने में वह वही पुराना दीपक था—शरारती, हंसमुख और सपनों से भरा। यह वही गली थी, जहां उसने अपना बचपन बिताया था। चारों तरफ वही घर, वही पेड़, पर अब सब कुछ कितना बदल गया था।

उसकी आँखों के सामने जैसे एक चलचित्र चलने लगा। बीते दिनों के रंगीन दृश्य उसके मन में तैरने लगे। वह वक्त, जब वह और उसके दोस्त गली में क्रिकेट खेलते थे। टूटी हुई खिड़कियों के लिए मिलने वाली डाँट, माँ के हाथों के बने पकौड़ों की खुशबू, बारिश में कागज़ की नावें—सब कुछ उसकी यादों में जस का तस था।

“अरे दीपक भाई! कितने दिन बाद आए हो!” पीछे से आवाज़ आई। दीपक ने पलटकर देखा—वह रमेश था, उसका बचपन का दोस्त। दोनों ने गले मिलते ही हंसते हुए कहा, “याद है, यही पेड़ के नीचे बैठकर हम घंटों बातें किया करते थे?”

रमेश हंसते हुए बोला, “और याद है वो दिन, जब हम छुपन-छुपाई खेलते थे और तू हमेशा पेड़ के पीछे छुप जाता था?”

दोनों ज़ोर से हंस पड़े। पर हंसी के पीछे एक कसक थी। वो मासूमियत, वो बेफिक्री, वो दिन कहाँ चले गए?

दीपक ने आसमान की ओर देखा। वहाँ अब भी वही चाँद चमक रहा था, पर अब उसकी चमक में वह पुरानी मासूमियत नहीं थी। शायद इसलिए कि वक्त ने इंसान की सोच और दुनिया दोनों बदल दी थी। अब बच्चे मोबाइल में खोए रहते हैं, न गली में खेलते हैं, न दोस्तों के साथ बैठते हैं। रिश्ते अब सोशल मीडिया के लाइक्स और कमेंट्स तक सिमट गए हैं।

दीपक ने धीरे से कहा, “रमेश, हम कितने खुश थे न उन दिनों? न पैसे की चिंता, न बड़े बनने का बोझ। बस छोटे-छोटे सपने और ढेर सारी हंसी।”

रमेश ने गहरी सांस लेते हुए कहा, “हाँ, पर अब सब बदल गया है। वक्त किसी का इंतज़ार नहीं करता।”

दीपक ने चिट्ठी को फिर से देखा। यह चिट्ठी उसके कॉलेज के दिनों की थी। उसकी सबसे अच्छी दोस्त ने लिखी थी—‘दोस्ती हमेशा बनी रहेगी। चाहे समय कितना भी बदल जाए।’ दीपक की आँखें नम हो गईं। कितने दोस्त बिछड़ गए, कुछ शहर बदल गए, कुछ रिश्ते वक्त की धूल में दब गए।

रात गहराने लगी थी। गली की लाइटें जल चुकी थीं। दीपक ने आखिरी बार गली को देखा और मन ही मन कहा—“वो हंसी, वो खेल, वो मासूमियत…सब एक कहानी बनकर रह गए। जाने कहां गए वो दिन…”

दीपक के कदम धीरे-धीरे गली से बाहर निकल गए, लेकिन उसके दिल में उन दिनों की मीठी यादें हमेशा जिंदा रहेंगी। और यह वह यादें थी जिन्हें दीपक शायद अपनी जिंदगी में कभी भुला नहीं सकेगा।