Premanand Ji - 4 in Hindi Biography by mood Writer books and stories PDF | प्रेमानंद जी : राधा-कृष्ण लीला के रसिक साधक - 4

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प्रेमानंद जी : राधा-कृष्ण लीला के रसिक साधक - 4


भाग 4 : जीवन की घटनाएँ और भक्तों के संवाद

1. पहला बड़ा कीर्तन उत्सव

प्रेमानंद जी का पहला बड़ा कीर्तन उत्सव वृंदावन की पावन धरा पर हुआ।
कहते हैं कि जब वे पहली बार यमुना किनारे भक्तों के साथ “राधे… राधे…” का संकीर्तन करने लगे, तो वहाँ का वातावरण बदल गया।

गर्मी का मौसम था, सूरज सिर पर था, लेकिन जैसे ही उनके स्वर फूटे—
“श्री राधे, श्री राधे…”
तो एक ठंडी लहर-सी चली। भक्त कहते हैं कि पेड़ों की डालियाँ तक झूम उठीं, और यमुना की लहरें ताल देने लगीं।

कई लोग कहते हैं कि उस दिन उन्होंने सच में अनुभव किया कि भगवान का नाम मात्र उच्चारण करने से भी वातावरण पवित्र हो जाता है।


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2. भूखे साधु की परीक्षा

एक बार की घटना है।
प्रेमानंद जी एक गाँव से होकर गुजर रहे थे। रास्ते में एक साधु मिला, जो कई दिनों से भूखा था।
उसने उनसे कहा—
“महाराज! कुछ भोजन मिल जाए तो प्राण बचें।”

प्रेमानंद जी के पास उस समय भोजन नहीं था। वे थोड़ी देर चुप रहे, फिर बोले—
“भाइया! यदि राधे-राधे का नाम हृदय से जपोगे, तो पेट की भूख भी मिट जाएगी।”

साधु पहले हँसा, फिर बोला—
“भजन से क्या भूख मिटेगी?”

लेकिन जैसे ही उसने उनके कहने पर “राधे-राधे” का नाम लेना शुरू किया, किसी गाँववाले ने वहाँ आकर प्रसाद दे दिया।
साधु चकित रह गया। उसने प्रेमानंद जी के चरण पकड़ लिए।
“महाराज! आपने मुझे सिखाया कि नाम ही सच्चा अन्न है।”


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3. रोगी का उपचार

एक बार किसी गाँव में एक व्यक्ति लंबे समय से बीमार था। डॉक्टर और वैद्य सब हार चुके थे।
भक्त उसे प्रेमानंद जी के पास लाए।
प्रेमानंद जी ने उसके सिर पर हाथ रखकर केवल इतना कहा—
“बेटा, चिंता मत कर। राधे-राधे जपते रहो, सब ठीक होगा।”

लोगों का कहना है कि कुछ ही दिनों में उसकी बीमारी घटने लगी।
भले ही चिकित्सा ने भी अपना काम किया हो, लेकिन उस रोगी ने कहा—
“मेरी दवा नहीं, महाराज जी के शब्द ही सबसे बड़ी औषधि बने।”


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4. धनवान से संवाद

एक धनी व्यापारी प्रेमानंद जी से मिलने आया। उसने कहा—
“महाराज, मेरे पास सबकुछ है—धन, वैभव, परिवार। फिर भी चैन नहीं मिलता।”

प्रेमानंद जी मुस्कुराए और बोले—
“बेटा, तेरा खजाना पूरा है, पर हृदय खाली है। जब तक उसमें राधे-राधे का नाम नहीं भरेगा, तब तक शांति नहीं मिलेगी।”

व्यापारी ने उसी दिन संकल्प लिया कि वह हर सुबह-शाम नामजप करेगा और अपनी संपत्ति का कुछ हिस्सा सेवा में लगाएगा।
कुछ समय बाद वह कहने लगा—
“अब मुझे नींद भी आती है और मन को सच्चा सुख भी मिलता है।”


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5. बालकों से प्रेम

प्रेमानंद जी का हृदय विशेषकर बच्चों के लिए पिघल जाता।
वे कहते—
“बच्चे सबसे बड़े भक्त हैं, क्योंकि उनका मन निर्मल और निःस्वार्थ होता है।”

एक बार गाँव में कीर्तन हो रहा था। एक छोटा बालक आगे आकर बोला—
“महाराज जी! मुझे भी गाना है।”

प्रेमानंद जी ने तुरंत उसे माइक पकड़ाया।
बालक ने मासूम स्वर में गाया—
“राधे राधे जपो, चले आएंगे बिहारी…”

लोगों की आँखें नम हो गईं।
प्रेमानंद जी ने उस बालक को आशीर्वाद देकर कहा—
“तेरे स्वर में वही मिठास है, जो राधा नाम में है।”


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6. समाज सुधार की बातें

प्रेमानंद जी केवल भक्ति की ही नहीं, बल्कि समाज की भी चिंता करते थे।
वे गाँव-गाँव जाकर कहते—
“सच्ची पूजा तभी है जब तुम नशा छोड़ो, झगड़े छोड़ो और मिलकर रहो।
कृष्ण केवल वही प्रसन्न होते हैं, जो सबको भाई मानते हैं।”

उनके प्रवचनों के बाद कई गाँवों में शराबबंदी शुरू हुई।
लोग आपसी झगड़े मिटाकर एक-दूसरे के मित्र बन गए।
किसी ने कहा—
“महाराज जी ने केवल भक्ति नहीं दी, बल्कि जीवन जीने की सही राह भी दिखाई।”


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7. प्रेमानंद जी का सरल जीवन

भक्तों ने कई बार उन्हें महंगे वस्त्र और आभूषण पहनाने चाहे, पर वे हमेशा सादे वस्त्र ही पहनते।
वे कहते—
“कपड़ों की चमक से भगवान नहीं मिलते। भगवान तो हृदय की सच्चाई देखते हैं।”

उनकी झोपड़ी साधारण थी, परंतु वहाँ का वातावरण आध्यात्मिक ऊर्जा से भरा रहता।
भक्त कहते—
“महाराज जी का कुटीर किसी राजमहल से कम नहीं, क्योंकि वहाँ प्रवेश करते ही शांति मिलती है।”


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8. एक अद्भुत अनुभव

एक भक्त ने अनुभव सुनाया—
“मैं पहली बार महाराज जी के प्रवचन में गया था। मन बड़ा उदास था। जैसे ही उन्होंने ‘राधे-राधे’ कहा, मुझे लगा जैसे मेरे अंदर से कोई भारी बोझ उतर गया। उस दिन से मैं रोज नामजप करता हूँ और मेरा जीवन बदल गया है।”

इस प्रकार प्रेमानंद जी का जीवन केवल उपदेशों से नहीं, बल्कि जीवंत घटनाओं से भरा था।
वे जहाँ जाते, वहाँ कोई न कोई चमत्कारी प्रसंग घट जाता।
उनके हर शब्द, हर मुस्कान और हर आशीर्वाद में भगवान का नाम झलकता था।

लोग कहते—
“महाराज जी के जीवन की घटनाएँ सुनना ही भक्ति का सबसे बड़ा आनंद है।”