भाग 3 : प्रवचन, कीर्तन और भक्ति संदेश
भक्ति की धारा का प्रवाह
गुरु-दीक्षा और कठोर साधना के बाद प्रेमानंद जी के जीवन का अगला चरण शुरू हुआ—भक्ति का प्रसार।
गुरुदेव ने उन्हें आज्ञा दी थी कि “अब केवल अपने लिए साधना मत करो, भक्ति का अमृत सबमें बाँटो।”
यह वचन उनके जीवन का मूल मंत्र बन गया।
अब प्रेमानंद जी जिस गाँव, जिस शहर या जिस मेला-समारोह में पहुँचते, वहाँ भक्ति का वातावरण स्वतः जाग्रत हो जाता। उनके मुख से जब “राधे-राधे” की ध्वनि निकलती, तो मानो पूरा वातावरण पुलकित हो उठता।
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1. प्रवचन की अनोखी शैली
प्रेमानंद जी का प्रवचन किसी साधारण व्याख्यान जैसा नहीं होता था। वे केवल शास्त्रों के श्लोक सुनाकर आगे नहीं बढ़ते, बल्कि उन्हें भावपूर्ण शैली में रस घोलकर प्रस्तुत करते।
जब वे कहते—
“भाइयो-बहनो! संसार का सुख अस्थायी है। धन, वैभव, यश—सब एक दिन छूट जाएंगे। लेकिन राधे-राधे का नाम ऐसा है, जो मृत्यु के पार भी तुम्हारे साथ रहेगा।”
तो श्रोताओं की आँखें भर आतीं। लोग कहते—
“महाराज जी बोलते नहीं, हमारे हृदय की तारों को छेड़ते हैं।”
उनका हर प्रवचन प्रेम का संदेश था। वे डर या दंड की बातें नहीं करते थे। वे केवल प्रेम और नाम की शक्ति पर बल देते थे।
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2. कीर्तन की महिमा
जहाँ प्रेमानंद जी जाते, वहाँ संकीर्तन की धारा बह निकलती।
वे मृदंग की थाप और झाँझ की ध्वनि के बीच जब स्वर लगाते—
“राधे… राधे… राधे…”
तो लगता मानो सम्पूर्ण वातावरण ही गाने लगा हो। लोग झूम उठते, आँखों से अश्रु बहने लगते।
कई बार तो घंटों-घंटों तक कीर्तन चलता, पर किसी को थकान महसूस नहीं होती।
एक भक्त ने कहा था—
“महाराज जी के कीर्तन में समय ठहर जाता है। घड़ी की सुइयाँ भी मानो रुककर सुनती हैं।”
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3. भक्ति संदेश – नाम की शक्ति
अपने प्रवचनों में प्रेमानंद जी हमेशा एक ही संदेश दोहराते—
“नाम ही सब कुछ है।”
वे कहते—
“जैसे मछली जल के बिना नहीं रह सकती, वैसे ही आत्मा नाम के बिना नहीं रह सकती।
नाम ही जीवन है, नाम ही साधन है, और नाम ही साध्य है।
तुम कुछ भी करो, परंतु मुख पर राधे-राधे बना रहे।”
उनका यह उपदेश इतना सरल था कि कोई भी समझ सकता था, और इतना गहरा कि साधक जीवनभर उस पर चल सकता था।
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4. समाज पर प्रभाव
प्रेमानंद जी का प्रवचन केवल व्यक्तिगत भक्ति तक सीमित नहीं था।
वे समाज में प्रेम, सद्भावना और सेवा की भावना जगाते।
वे कहते—
“सच्चा भक्त वही है जो केवल मंदिर में नहीं, बल्कि हर जीव में भगवान को देखता है।
भूखे को भोजन कराना, दुखी को सहारा देना, और जरूरतमंद की मदद करना ही सबसे बड़ा भजन है।”
उनके इस संदेश ने असंख्य लोगों को समाज-सेवा की ओर प्रेरित किया।
कई भक्तों ने उनके कहने पर गौशालाएँ बनाईं, अन्नक्षेत्र खोले और गरीबों की सेवा शुरू की।
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5. श्रोताओं के अनुभव
कई लोग बताते हैं कि प्रेमानंद जी का प्रवचन सुनने के बाद उनकी जीवन दिशा ही बदल गई।
एक व्यापारी ने कहा—
“मैं केवल धन कमाने में लगा रहता था। महाराज जी का प्रवचन सुनने के बाद समझ आया कि धन तो साधन है, साध्य नहीं। अब मैं हर महीने अपनी आमदनी का एक हिस्सा सेवा में लगाता हूँ।”
एक वृद्धा कहतीं—
“मैं अकेली थी, जीवन से ऊब गई थी। लेकिन जब मैंने महाराज जी का नाम-स्मरण का संदेश सुना, तो अब हर पल राधे-राधे जपते हुए मुझे लगता है कि मैं कभी अकेली नहीं हूँ।”
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6. प्रेमानंद जी का भक्ति-दर्शन
उनका दर्शन बहुत सरल था, परंतु अत्यंत गहरा।
वे कहते—
“भक्ति में कोई छोटा-बड़ा नहीं होता। चाहे वह राजा हो या रंक, यदि उसके होंठों पर राधे-राधे है तो वही सच्चा भक्त है।”
“भक्ति कभी दिखावे से नहीं, केवल हृदय की सच्चाई से होती है।”
“राधा नाम ही वह कुंजी है, जो कृष्ण-प्रेम के द्वार खोल देती है।”
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7. कीर्तन का जादुई असर
कई अवसरों पर देखा गया कि उनके कीर्तन में लोग आत्मविस्मृत हो जाते।
कभी किसी के शरीर में झनकार होने लगती, तो कभी किसी की आँखों से निरंतर आँसू बहने लगते।
लोग कहते—
“महाराज जी गाते नहीं, हमारे भीतर भगवान को जगा देते हैं।”
कई बार तो ऐसा हुआ कि गाँव-गाँव से लोग रातभर पैदल चलकर उनके प्रवचन और कीर्तन में पहुँचते।
भीड़ इतनी होती कि मैदान भर जाता, पर हर कोई संतुष्ट होकर लौटता।
इस प्रकार प्रेमानंद जी का प्रवचन और कीर्तन केवल कार्यक्रम नहीं थे, बल्कि जीवित अनुभव थे।
उनके शब्दों से भक्ति-रस टपकता था, और उनके स्वर से आत्मा झूम उठती थी।
लोग कहते—
“महाराज जी केवल संत नहीं, वे राधे-राधे नाम की मूर्तिमान प्रतिमा हैं। उनके प्रवचन में जो प्रेम है, वही असली धर्म है।”