Premanand Ji - 5 - Last part in Hindi Biography by mood Writer books and stories PDF | प्रेमानंद जी : राधा-कृष्ण लीला के रसिक साधक - 5 (अंतिम भाग)

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प्रेमानंद जी : राधा-कृष्ण लीला के रसिक साधक - 5 (अंतिम भाग)

भाग 5-प्रेमानंद जी महाराज और उनके पाँच पांडव शिष्य : समर्पण की अद्भुत गाथा”

वृन्दावन की पावन धरा पर जब भी किसी संत का नाम लिया जाता है, तो उनके साथ जुड़े शिष्यों की भी चर्चा स्वतः ही होने लगती है। जैसे श्रीकृष्ण के साथ सदा ग्वालबालों और गोपियों का नाम लिया जाता है, जैसे मीरा के साथ उनकी तानपुरे की झंकार की स्मृति रहती है, वैसे ही प्रेमानंद जी महाराज के साथ उनके पाँच अद्भुत शिष्य भी निरंतर जुड़ जाते हैं। इन्हें ही लोग प्रेमपूर्वक “पाँच पांडव” कहते हैं।

यह पाँचों शिष्य जीवन के अलग-अलग क्षेत्रों से आए, किसी ने नौकरी छोड़ी, किसी ने व्यापार, किसी ने प्रतिष्ठा और कैरियर… परंतु जब वे प्रेमानंद जी महाराज के सान्निध्य में पहुँचे, तो सब कुछ भुलाकर केवल एक ही मंत्र हृदय में धारण कर लिया—
“राधे राधे”।


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🌸 नवल नगरी बाबा : वीरता से विरक्ति की ओर

नवल नगरी बाबा का जीवन अत्यंत प्रेरणादायक है।
वे एक वीर सैनिक थे। 2008 से 2017 तक भारतीय सेना में रहे। पठानकोट जैसी संवेदनशील सीमा पर अपनी सेवाएँ दीं। गोलियों की गर्जना, बमों का शोर और सीमाओं की चुनौतियाँ—इन सबके बीच उनका जीवन बीता।

लेकिन जब वे महाराज जी की शरण में आए, तो भीतर एक नई शक्ति जागी। उन्हें लगा कि जिस ध्वज के लिए अब तक लड़ते आए हैं, वह सीमित है। असली ध्वज तो वह है जिस पर “राधे-श्याम” लिखा हो।

उन्होंने सेना की नौकरी छोड़ दी और संन्यास का मार्ग चुन लिया। आज वे महाराज जी की सेवा में अद्वितीय योगदान दे रहे हैं। उनका जीवन यह सिखाता है कि वीरता केवल रणभूमि में ही नहीं, बल्कि वैराग्य के मार्ग में भी होती है।


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🌸 महामधुरी बाबा : शिक्षा से साधना की ओर

महामधुरी बाबा का जीवन भी असाधारण है।
वे पहले पिलीभीत जिले के एक डिग्री कॉलेज में असिस्टेंट प्रोफेसर थे। पढ़ाने का काम करते थे, शास्त्रों और विद्या से गहरा संबंध था।

लेकिन जब उन्होंने महाराज जी को देखा, तो उन्हें लगा कि असली शिक्षा किताबों तक सीमित नहीं है। असली शिक्षा है—भगवान के चरणों में बैठना और भक्ति की विद्या ग्रहण करना।

उन्होंने प्रोफेसरी छोड़ दी और संन्यास का मार्ग अपनाया। आज वे अपने मधुर स्वभाव और गहरी साधना के लिए जाने जाते हैं। लोग कहते हैं कि उनके दर्शन मात्र से ही मन शांत हो जाता है।


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🌸 श्यामा शरण बाबा : परिवार से परे समर्पण

श्यामा शरण बाबा का जीवन और भी विशेष है क्योंकि वे प्रेमानंद जी महाराज के अपने ही स्वजन (भतीजे) बताए जाते हैं।

बचपन से ही उनके हृदय में भक्ति का बीज अंकुरित था। जैसे-जैसे बड़े हुए, महाराज जी की छत्रछाया में पले और उनकी ही सेवा करते रहे।

आज वे महाराज जी के साथ हर कार्य में हाथ बँटाते हैं। चाहे आश्रम का प्रबंधन हो या महाराज जी की व्यक्तिगत सेवा—श्यामा शरण बाबा हमेशा तत्पर रहते हैं। वे दर्शाते हैं कि भक्ति केवल रिश्तों से नहीं, बल्कि समर्पण से जुड़ी है।


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🌸 आनंद प्रसाद बाबा : व्यापारी से वैरागी तक

आनंद प्रसाद बाबा पहले जूते-चप्पल के व्यवसाय में थे। धन, लाभ-हानि और व्यापारिक चिंताओं में जीवन व्यतीत करते थे।

लेकिन एक दिन जब वे महाराज जी की वाणी सुनने पहुँचे, तो सब बदल गया। उनके भीतर एक चिंगारी जली। उन्हें लगा कि असली व्यापार तो प्रेम का है, और उसका लाभ है भगवान की कृपा।

उन्होंने अपना व्यापार त्याग दिया और महाराज जी की सेवा में लग गए। अब वे आश्रम की व्यवस्था, भंडारा और सेवा-कार्य में अपना जीवन खपा रहे हैं।


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🌸 अलबेली शरण बाबा : अकाउंटेंट से अखंड साधक

अलबेली शरण बाबा का नाम सुनते ही लोगों के मन में छवि आती है—एक विद्वान चार्टर्ड अकाउंटेंट की।

उनका करियर बहुत उज्ज्वल था। वे बड़े-बड़े व्यापारियों और कंपनियों के लिए अकाउंट सँभालते थे। धन, सम्मान, और आधुनिक जीवन की सारी सुविधाएँ उनके पास थीं।

लेकिन महाराज जी से मिलने के बाद उन्होंने सब कुछ त्याग दिया। उन्हें लगा कि लाखों का हिसाब रखने से बड़ा काम है—एक नाम का जप करना, “राधे राधे”।

आज वे पूरी तरह संन्यास मार्ग पर हैं और महाराज जी की छत्रछाया में अखंड भक्ति में लीन रहते हैं।


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🌺 पाँचों शिष्यों का समर्पण

ये पाँचों शिष्य अलग-अलग दिशाओं से आए, लेकिन इनका लक्ष्य एक ही है—प्रेमानंद जी महाराज की सेवा और श्री राधा-कृष्ण का प्रेम।

इनका जीवन बताता है कि चाहे आप किसी भी क्षेत्र से हों—सेना, शिक्षा, व्यापार, कॉर्पोरेट या पारिवारिक पृष्ठभूमि—जब भक्ति का आह्वान होता है, तो सब कुछ छोटा पड़ जाता है।

ये पाँचों शिष्य आज आश्रम के स्तंभ हैं। महाराज जी के हर प्रवचन, हर आयोजन और हर भंडारे में इनकी भूमिका महत्वपूर्ण होती है। लोग इन्हें देखकर प्रेरित होते हैं और सोचते हैं—
“यदि ये सब कुछ छोड़कर भक्ति कर सकते हैं, तो हम भी अपने जीवन में थोड़ा समय राधे-श्याम के नाम के लिए क्यों न निकालें?”


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🌸 समापन : शिष्य और गुरु की एकता

श्री प्रेमानंद जी महाराज स्वयं कहते हैं—
“गुरु और शिष्य का संबंध केवल बाहरी नहीं होता, यह आत्मा का संबंध है। शिष्य वही है जो अपने जीवन को गुरु के चरणों में अर्पित कर दे।”

इन पाँचों शिष्यों ने इस वाक्य को अपने जीवन में उतार दिया। आज वे महाराज जी के साथ वैसे ही हैं जैसे पांडव श्रीकृष्ण के साथ थे।
इनका जीवन कथा यह बताती है कि जब गुरु मिल जाए तो संसार की सारी दौलत भी तुच्छ हो जाती है।