गाँव की औरतें जब भी चूल्हे के पास बैठकर कहानियाँ सुनातीं, तो सबसे ज़्यादा डराने वाली कहानी हमेशा "उस डायन" की होती थी। कहते थे कि जंगल के बीचोबीच, पीपल के पेड़ की जड़ों में, वह रहती थी। उसकी आँखें अंगारों की तरह चमकतीं और उसके पैर उल्टे होते। लोग मानते थे कि वह रात को गाँव की औरतों और बच्चों को चुनकर ले जाती है, और उनकी आत्मा को अपने बालों में बाँध लेती है।
सालों पहले गाँव में एक नई बहू आई थी गोरी चिट्टी, बड़ी-बड़ी आँखों वाली। शुरू-शुरू में सब उसे बहुत पसंद करते थे। मगर धीरे-धीरे अजीब बातें होने लगीं। रात को घर के आँगन में पायल की झंकार सुनाई देती, मगर जब कोई बाहर निकलता तो वहाँ कोई नहीं होता। कभी चूल्हे की आग अपने-आप भड़क जाती, कभी आँगन में झाड़ू खड़ी हो जाती। लोग समझ नहीं पाते कि ये सब कैसे हो रहा है।
एक दिन गाँव की एक बुज़ुर्ग दाई ने बहू को ध्यान से देखा। उसकी परछाई दीवार पर उलटे पाँवों के साथ दिख रही थी। दाई काँप उठी “ये कोई औरत नहीं, ये तो डायन है!” उसने सबको सावधान किया, मगर तब तक देर हो चुकी थी।
उस रात गाँव के एक आदमी की लाश पीपल के पेड़ के नीचे मिली। उसका शरीर सूखकर काँटा हो चुका था, जैसे किसी ने उसका खून चूस लिया हो। लोग दहशत में आ गए और बहू पर शक गहराने लगा। मगर वह बहू हँसती रही उसकी हँसी में अजीब सी गूंज थी, जैसे सौ औरतें एक साथ हँस रही हों।
गाँव के पाँच आदमी उसे पकड़ने निकले। उन्होंने मंत्रों से सना धागा और लोहे की कीलें साथ लीं। आधी रात को जब उन्होंने उसके कमरे का दरवाज़ा तोड़ा, तो देखा कि बहू की जगह एक लंबी-काली परछाई खड़ी थी। उसके बाल इतने लंबे थे कि ज़मीन पर रेंग रहे थे, और उन बालों में छोटे-छोटे चेहरों की चीखती हुई शक्लें कैद थीं।
आदमी डरकर भागने लगे, मगर दायन ने अपने बाल फैलाकर एक को लपेट लिया। उसकी चीख ऐसी थी कि पूरा गाँव जाग उठा। बाकी आदमी जैसे-तैसे भागकर मंदिर पहुँचे और वहाँ शरण ली। सुबह जब लौटे, तो घर खाली था न बहू, न उसकी परछाई, न कोई निशान। सिर्फ़ आँगन में खून से बनी पायल की छापें थीं, जो सीधे जंगल के पीपल तक जाती थीं।
आज भी लोग उस रास्ते से नहीं गुज़रते। कहते हैं, अमावस्या की रात जब चाँद बिल्कुल नहीं होता, तो पीपल के नीचे से औरत की धीमी हँसी और पायल की झंकार आती है। और जिसने भी उस आवाज़ का पीछा किया, वो कभी वापस नहीं लौटा।
कहा जाता है कि वो डायन अब भी अपनी अगली शिकार की तलाश में है… और शायद अगली अमावस्या किसी का नाम लिख चुकी है।
गाँव में उस रात के बाद सन्नाटा और गहराता गया। लोग दरवाज़े बंद कर देते, बच्चे रोते तो उन्हें चुप कराने के लिए माताएँ बस इतना कह देतीं—“श्श्श… आवाज़ मत करो, नहीं तो डायन सुन लेगी।” मगर डर की हवा धीरे-धीरे सबके दिल में जड़ें जमा चुकी थी।
कहते हैं कि दायन को केवल औरतों और बच्चों का खून ही नहीं चाहिए था, बल्कि वह किसी अधूरे बदले को भी पूरा करना चाहती थी। बुजुर्गों ने बताया कि सालों पहले गाँव के ज़मींदार ने एक गरीब औरत को जादू-टोने के शक में ज़िंदा जला दिया था। वही औरत, बदला लेने के लिए, दायन बनकर लौटी थी। और उस ज़मींदार की वंशज वही नई बहू थी, जो सबसे पहले उसकी चपेट में आई।
एक दिन गाँव के पंडित ने तय किया कि अब इस आतंक का अंत होना चाहिए। उसने जवान लड़कों को साथ लिया और रात को जंगल की ओर बढ़ा। उनके पास लोहे की कीलें, पवित्र धागा और गौमुखी शंख था। जैसे ही वे पीपल के पेड़ तक पहुँचे, हवा अचानक तेज़ हो गई। पत्ते सरसराने लगे, जैसे किसी ने सैकड़ों कानों में फुसफुसाना शुरू कर दिया हो।
अचानक पेड़ की जड़ों से वही औरत निकली। उसका चेहरा आधा इंसानी था और आधा जली हुई लाश जैसा। उसकी आँखों से धधकता धुआँ निकल रहा था। उसने अपनी लंबी ज़ुबान बाहर निकाली और हँसते हुए कहा “बहुत देर कर दी तुम लोगों ने… अब ये गाँव मेरा है।”
पंडित ने मंत्र पढ़ना शुरू किया और गौमुखी शंख बजाया। आवाज़ इतनी गूँजी कि पूरा जंगल काँप उठा। डायन चीखने लगी, उसके बाल हवा में बेतहाशा फैल गए और उन बालों से कैद आत्माएँ चिल्लाते हुए बाहर निकलने लगीं। लड़कों ने लोहे की कीलें ज़मीन में गाड़ दीं, जिससे उसके कदम वहीं जकड़ गए।
मगर तभी अचानक कुछ हुआ बालों से एक चेहरा बाहर निकला, वही लापता लड़का जिसे दायन ने पिछले महीने निगल लिया था। उसकी आँखों से खून बह रहा था, मगर होंठ कांपते हुए कह रहे थे “भागो… पंडित झूठा है… वो उसके साथ मिला हुआ है।”
चारों लड़के सहम गए। उन्होंने देखा कि पंडित की आँखें अचानक लाल हो चुकी थीं। असली रहस्य अब सामने आया पंडित ही वो तांत्रिक का वंशज था, जिसने सालों पहले उस औरत को जलाया था। वह मंत्रों से उसे भगाने नहीं, बल्कि और शक्तिशाली बनाने आया था।
उस रात गाँव से किसी की भी चीख नहीं सुनाई दी, क्योंकि सब कुछ खामोश हो गया था। अगले दिन गाँव पूरी तरह वीरान था। घर खुले पड़े थे, चूल्हों की राख ठंडी हो चुकी थी, और हर दीवार पर सिर्फ़ खून से बने हाथों के निशान थे।
लोग कहते हैं कि अब वो गाँव नक्शे से मिट चुका है, मगर कभी कभी राहगीर जब उस जंगल से गुज़रते हैं, तो उन्हें दूर से वो डायन दिखती है और उस डायन की वह खौफनाक हँसी गूँजती है।