Trishulgadh - 6 in Hindi Fiction Stories by Gxpii books and stories PDF | त्रिशूलगढ़: काल का अभिशाप - 6

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त्रिशूलगढ़: काल का अभिशाप - 6

पिछली बार:
अनिरुद्ध ने संज्ञा वन में अपने भय को हराकर अग्निशक्ति जगाई थी। लेकिन तभी उसके सामने एक रहस्यमयी व्यक्ति प्रकट हुआ — जिसने दावा किया कि वही अनिरुद्ध का भविष्य है।


अब आगे:

जंगल के बीच लाल आँखों वाला वो व्यक्ति खड़ा था।
हवा में अजीब सी गंध घुल गई थी जैसे कहीं गीली मिट्टी में खून टपका हो।

मैं तेरा भविष्य हूँ
उसने कहा और उसकी आवाज़ गूँजते ही पेड़ों पर बने सारे चिन्ह जलने लगे।

अनिरुद्ध ने तलवार और कसकर पकड़ी। अगर तुम मेरा भविष्य हो तो मुझे साबित करो।

वो आदमी हँसा — एक ठंडी, डरावनी हँसी।
सच तो ये है अनिरुद्ध भविष्य तुझे साबित करेगा। मैं नहीं।

जैसे ही उसने हाथ उठाया ज़मीन से परछाइयाँ निकलकर जीवित आकृतियों में बदल गईं।
ये परछाइयाँ किसी इंसान की तरह लगतीं लेकिन चेहरा बिल्कुल काला था — जैसे वो सिर्फ अंधकार से बनी हों।

अनिरुद्ध पीछे हटा। ये क्या हैं?

ये तेरे अंदर के संदेह हैं वो बोला।
हर बार जब तूने सोचा कि तू कमजोर है हर बार जब तूने खुद पर भरोसा नहीं किया वो सब अब तेरे सामने हैं। और जब तक तू इन्हें हराएगा नहीं तू मुझे कभी हरा नहीं पाएगा।



युद्ध की शुरुआत

अनिरुद्ध ने तलवार घुमाई और पहला वार किया।
परछाईं फटकर धुएँ में बदल गई लेकिन तुरंत ही दूसरी परछाईं उसके पीछे आ खड़ी हुई।
तीसरी ने उसकी टांग पकड़ ली चौथी ने उसका गला।

अनिरुद्ध ने आग की लपट से उन्हें झटक दिया लेकिन जितना वो वार करता उतनी ही नई परछाइयाँ जन्म लेतीं।

उसके माथे पर पसीना था।
ये तो कभी खत्म ही नहीं होंगी!

दूसरे ने कहा बिल्कुल सही। क्योंकि संदेह कभी खत्म नहीं होते।




आवाज़ की वापसी

इसी बीच वही रहस्यमयी स्त्री की आवाज़ फिर गूँजी।
अनिरुद्ध तलवार से परछाइयाँ मिट सकती हैं लेकिन संदेह नहीं।
तुझे इन्हें हराना नहीं है तुझे इन्हें अपनाना है।

अनिरुद्ध ठिठका। अपनाना?

उसकी साँसें तेज़ थीं।
उसने तलवार नीचे कर दी।
सारे परछाईं उस पर झपटने लगीं।

पर उसने आँखें बंद कर लीं और बुदबुदाया
हाँ मैं डरता हूँ
हाँ मैं कमजोर हूँ
हाँ मैं अधूरा हूँ।

और तभी — कुछ अजीब हुआ।

परछाइयाँ उस पर वार करने की बजाय उसके चारों तरफ घूमने लगीं।
धीरे-धीरे वो सब उसी के शरीर में समा गईं।

अब उसकी आँखों में सिर्फ आग ही नहीं थी — उनमें एक गहरी चमक भी थी।
जैसे उसने अपनी कमज़ोरियों को ही शक्ति बना लिया हो।



भविष्य से आमना-सामना

वो रहस्यमयी व्यक्ति चौंका।
तो तूने इन्हें स्वीकार कर लिया?

अनिरुद्ध ने तलवार फिर उठाई, इस बार उसकी लौ और भी प्रचंड थी।
हाँ। क्योंकि मैं अधूरा हूँ — लेकिन यही मुझे इंसान बनाता है।

दोनों की नज़रें टकराईं।
और फिर शुरू हुआ असली युद्ध।

वो आदमी एक काली भाले जैसी शक्ति बुलाता तो अनिरुद्ध उसे अपनी अग्नितलवार से काट देता।
हर वार पर जंगल काँप उठता।
पेड़ टूटने लगे ज़मीन पर दरारें पड़ गईं।

अनिरुद्ध ने तलवार घुमाते हुए छलाँग लगाई और सीधा उसके ऊपर वार किया।
पर तभी वो आदमी गायब हो गया।

तू मुझे इतनी आसानी से नहीं पा सकता उसकी आवाज़ चारों दिशाओं से गूँजी।
क्योंकि मैं तेरे भविष्य का दर्पण हूँ। और दर्पण तोड़ने से भी नहीं मिटता।

अचानक अनिरुद्ध ने देखा  जंगल की ज़मीन पर एक विशाल दर्पण उभर आया था।
उस दर्पण में उसका ही चेहरा दिख रहा था लेकिन खून से सना हुआ।




बड़ा रहस्य खुला

दर्पण की सतह लहराई — और उसमें उसने देखा वही स्त्री
वो उसी जंगल में खड़ी थी लेकिन कैद जैसी किसी स्थिति में।
उसकी आँखें उससे मदद माँग रही थीं।

ये वही है जो मुझे पुकार रही थी अनिरुद्ध चिल्लाया।

भविष्य वाला आदमी हँसा।
हाँ वही है। लेकिन अगर तू उसे छुड़ाना चाहता है तो तुझे ये दर्पण तोड़ना होगा।

अनिरुद्ध ने तलवार उठाई।
पर तभी स्त्री ने सिर हिलाया नहीं।

वो जम गया।
अगर दर्पण तोड़ा तो?

भविष्य की परछाईं बोली 
तो तेरा रास्ता बदल जाएगा। शायद तू कभी सच तक न पहुँच पाए।




Episode Ending Hook

अनिरुद्ध दुविधा में था।
एक तरफ उसके सामने दर्पण था — जिसमें वो स्त्री कैद थी।
दूसरी तरफ वो रहस्यमयी व्यक्ति था जो दावा करता था कि वही अनिरुद्ध का भविष्य है।

क्या उसे दर्पण तोड़कर स्त्री को बचाना चाहिए?
या फिर खुद पर काबू रखते हुए असली रास्ते का इंतज़ार करना चाहिए?

क्योंकि अगर उसने एक गलत फैसला ले लिया
तो उसकी किस्मत हमेशा के लिए बदल सकती है।




🔥 Hook:

संज्ञा वन अब और गहरा हो गया है।
हर कदम पर धोखा है हर परछाईं में रहस्य।
अनिरुद्ध किसे चुनेगा  अपने दिल की पुकार या भविष्य का इशारा

सच का दरवाज़ा खुलने ही वाला है लेकिन कौन बचेगा और कौन खो जाएगा?