The real meaning of friendship in Hindi Short Stories by Nandini Sharma books and stories PDF | दोस्ती का असली मतलब

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दोस्ती का असली मतलब

दोस्ती का असली मतलब

राहुल और आरव बचपन से ही सबसे अच्छे दोस्त थे। उनके मोहल्ले में जब भी कोई उनकी जोड़ी को देखता तो कहता, "इनकी दोस्ती की मिसाल दी जा सकती है।" दोनों का रिश्ता इतना गहरा था कि उनकी खुशियाँ, ग़म, सपने—सब कुछ एक-दूसरे से जुड़ा हुआ था।

राहुल पढ़ाई में होशियार था। स्कूल में हमेशा टॉपर रहता। उसकी आदत थी कि हर काम समय से करे। वहीं आरव थोड़ा बेपरवाह था। उसे खेलकूद का शौक था, ख़ासकर क्रिकेट। वह घंटों मैदान में रहता। कई बार राहुल उसे पढ़ाई के लिए डांटता, तो आरव हंसकर कहता,"अरे यार, किताबों में क्या रखा है? असली मज़ा तो खेल में है।"राहुल सिर पकड़कर रह जाता। लेकिन मन ही मन दोनों एक-दूसरे की आदतों को पसंद करते थे।दोनों का सपना

राहुल का सपना था कि वह बड़ा अधिकारी बने, और आरव का सपना था कि वह एक दिन भारतीय क्रिकेट टीम में खेले। दोनों अपने-अपने सपनों के लिए मेहनत कर रहे थे, लेकिन एक-दूसरे को समय देना कभी नहीं भूले। चाहे कितनी भी व्यस्तता हो, शाम को दोनों एक साथ बैठकर चाय पीते और अपनी बातें साझा करते।कॉलेज की शुरुआत और नई चुनौतियाँ

समय बीता और दोनों कॉलेज में पहुँच गए। यहाँ माहौल बिल्कुल अलग था। नई दोस्तियाँ, नए अनुभव। राहुल का ध्यान अब करियर पर था। वह हर क्लास में सबसे आगे बैठता, नोट्स बनाता और लाइब्रेरी में घंटों पढ़ता। दूसरी ओर, आरव का सारा ध्यान क्रिकेट पर था। वह कॉलेज की टीम में खेलता और कई बार राहुल को मैच देखने के लिए बुलाता, लेकिन राहुल हर बार यह कहकर मना कर देता,"यार, अगर मैं ये सब छोड़कर मैच देखने जाऊंगा तो पढ़ाई कैसे करूँगा?"आरव भी कुछ नहीं कहता, बस मुस्कुरा देता।एक दिन आया मोड़

कॉलेज में सालाना फेस्टिवल होने वाला था। इस बार राहुल को डिबेट प्रतियोगिता में हिस्सा लेना था, और आरव को क्रिकेट टूर्नामेंट में। दोनों को एक ही दिन प्रदर्शन करना था। राहुल सोच रहा था कि आरव के साथ समय बिताने का मौका नहीं मिलेगा, लेकिन वह खुश था कि दोनों अपने-अपने सपनों की ओर बढ़ रहे हैं।

फेस्टिवल से एक दिन पहले, राहुल को अचानक तेज़ बुखार हो गया। उसका शरीर टूट रहा था, लेकिन डिबेट उसके करियर के लिए बेहद ज़रूरी थी। उसने सोचा, "किसी को बताऊंगा तो सब परेशान हो जाएंगे। मुझे खुद ही संभालना होगा।"दूसरी ओर, आरव अपनी टीम के साथ मैदान में प्रैक्टिस कर रहा था। तभी उसे पता चला कि राहुल बीमार है। उसने तुरंत सब छोड़ दिया और राहुल के पास पहुँच गया।

"तू यहाँ क्यों आया? तेरा मैच है ना? तेरी टीम तेरा इंतज़ार कर रही होगी।" राहुल ने कमजोर आवाज़ में कहा।आरव ने मुस्कुराते हुए कहा,"मैच तो मैं फिर खेल लूंगा, लेकिन अगर तू ठीक नहीं हुआ तो मैं खुद को कभी माफ़ नहीं कर पाऊंगा। दोस्ती का मतलब साथ देना है, सिर्फ अच्छे वक्त में नहीं, बुरे वक्त में भी।"

आरव ने डॉक्टर को बुलाया, दवा दिलाई और राहुल को आराम करने को कहा। अगले दिन भी वह उसके साथ रहा। राहुल ने कहा,"यार, तूने तो अपने मैच की बलि दे दी। अगर टीम हार गई तो सब तुझे ही दोष देंगे।"आरव ने हंसकर जवाब दिया,"दोस्त, मैच फिर होगा, लेकिन अगर मैं तुझे इस हालत में अकेला छोड़ दूं तो मैं अपने आप से हार जाऊंगा।"असली जीत

राहुल की हालत थोड़ी सुधरी। उसने हिम्मत करके डिबेट में हिस्सा लिया और बेहतरीन प्रदर्शन किया। उसे पहला इनाम मिला। जब वह मंच से उतरा तो सबसे पहले आरव को खोजा। आरव वहाँ खड़ा था, तालियाँ बजाते हुए।राहुल ने कहा,"ये जीत मेरी नहीं, हमारी है। अगर तू मेरे साथ न होता तो मैं यहाँ खड़ा नहीं होता।"आरव ने मुस्कुराकर कहा,"दोस्ती में जीत-हार नहीं देखी जाती, सिर्फ साथ देखा जाता है।"

उस दिन राहुल ने समझा कि ज़िंदगी में कितनी भी बड़ी सफलता क्यों न मिले, असली खुशी तभी मिलती है जब आपके पास सच्चे दोस्त हों।कहानी की सीख

सच्ची दोस्ती वही है जहाँ आप एक-दूसरे के लिए त्याग कर सकें। जो दोस्त आपके बुरे समय में आपके साथ खड़ा हो, वही आपका असली दोस्त है।