शापित हवेली
गाँव के बाहरी हिस्से में सदियों पुरानी एक हवेली खड़ी थी। चारों ओर झाड़ियाँ, टूटी हुई दीवारें और ध्वस्त छतें उसे भुतहा बना देती थीं। गाँव के बच्चे उसके पास से भी गुजरने से डरते थे। कहते थे—
“उस हवेली में एक औरत की आत्मा रहती है… जो किसी को भी ज़िंदा नहीं छोड़ती।”
गाँव के बुज़ुर्ग जब उस हवेली की बात करते तो उनकी आँखें डर से चौड़ी हो जातीं।
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रोमांच की तलाश
शहर से छुट्टियाँ बिताने आए चार दोस्त – अर्जुन, रोहित, सिमी और प्रिया – हर दिन गाँव घूमते।
एक शाम जब चाय की दुकान पर बैठे थे, दुकानदार ने डराते हुए कहा –
“बाबा… उस हवेली का नाम मत लो। जिसने भी वहाँ कदम रखा, कभी लौटकर नहीं आया।”
अर्जुन हँस पड़ा – “अरे ये सब अंधविश्वास है।”
रोहित ने भी मज़ाक उड़ाया – “भूत-प्रेत जैसी कोई चीज़ नहीं होती।”
सिमी थोड़ी सहमी – “लेकिन अगर सच हुआ तो?”
प्रिया चुप रही, उसकी आँखों में हल्का डर झलक रहा था।
अर्जुन ने तय कर लिया – “आज रात हम हवेली में चलेंगे। सच का पता वहीं चलेगा।”
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हवेली में पहला कदम
रात के ग्यारह बजे चारों हाथों में टॉर्च और मोबाइल लेकर हवेली पहुँचे। चारों तरफ़ सन्नाटा था। दूर कहीं कुत्तों के भौंकने और उल्लू की आवाज़ गूँज रही थी।
गेट जंग से जकड़ा हुआ था। अर्जुन ने ज़ोर लगाया तो चीं-चीं की आवाज़ करते हुए गेट खुला। उसी समय ठंडी हवा का झोंका आया। सिमी काँप गई।
भीतर कदम रखते ही माहौल बदल गया। दीवारों पर उगी काई, टूटा झूमर और फर्श पर बिखरे काँच अजीब डर पैदा कर रहे थे।
अचानक दरवाज़ा धड़ाम से बंद हो गया।
सिमी चीख पड़ी – “किसी ने दरवाज़ा बंद कर दिया!”
अर्जुन बोला – “चुप रहो, हवा से हुआ होगा।”
लेकिन सबके चेहरों पर डर साफ़ दिख रहा था।
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आवाज़ें और परछाइयाँ
वे आगे बढ़े। जैसे-जैसे हवेली में अंदर जाते, अजीब-सी ठंड बढ़ती जा रही थी।
अचानक पीछे से किसी के कदमों की आवाज़ आई। सबने मुड़कर देखा – वहाँ कोई नहीं था।
रोहित ने टॉर्च इधर-उधर घुमाई, लेकिन सिर्फ़ धूल और जाले थे।
तभी हल्की फुसफुसाहट सुनाई दी –
“क्यों आए हो…?”
चारों का खून जम गया। सिमी ने अर्जुन का हाथ कसकर पकड़ लिया।
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तहखाने की खोज
चलते-चलते उन्हें नीचे जाने वाली सीढ़ियाँ मिलीं। जिज्ञासा में वे नीचे उतर गए।
तहखाने में अंधेरा और बदबू भरी थी। चारों ने टॉर्च जलाई। दीवार पर खून जैसे निशान थे। एक कोने में पुरानी डायरी पड़ी थी।
अर्जुन ने उसे खोला। उसमें लिखा था –
"मेरा नाम गौरी है। गाँववालों ने मुझे डायन कहकर ज़िंदा जला दिया। मेरा बदला अधूरा है। जब तक मेरे खून का वंशज इस हवेली में कदम नहीं रखेगा, मेरी आत्मा मुक्त नहीं होगी।"
सिमी काँप गई – “मतलब वह आत्मा वंशज ढूँढ रही है?”
डायरी में एक तस्वीर भी थी।
तस्वीर देखकर सब चौंक गए – वह औरत हूबहू प्रिया जैसी दिख रही थी।
रोहित हक्का-बक्का रह गया – “ये तो बिल्कुल प्रिया जैसी है!”
प्रिया के हाथ काँपने लगे – “न-नहीं… ये कैसे हो सकता है?”
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आत्मा का खेल
तभी हवेली की दीवारें हिलने लगीं। झूमर अपने आप हिलने लगे।
टॉर्च बंद हो गईं। अंधेरे में वही आवाज़ गूँजी –
“आख़िर… तुम आ ही गए…”
प्रिया की आँखें बदल गईं। उसका चेहरा कठोर हो गया। होंठ काँपते हुए बोले –
“मैं लौट आई हूँ… मेरी आत्मा को अब कोई नहीं रोक सकता।”
अर्जुन और रोहित ने उसे पकड़ने की कोशिश की, लेकिन अदृश्य ताक़त ने उन्हें धक्का मारकर दूर गिरा दिया।
दीवार पर खून से लिखा दिखाई दिया – “बदला…”
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मौत की रात
रोहित ने हिम्मत करके मोबाइल की रोशनी चलाई और बाहर भागने की कोशिश की।
तभी काला धुआँ निकला और उसकी गर्दन जकड़ ली।
वह तड़पता रहा, चीखता रहा… और फिर ज़मीन पर गिर पड़ा।
रोहित की साँसें हमेशा के लिए थम गईं।
सिमी ज़ोर से रो पड़ी – “हमें निकलना होगा… अर्जुन!”
लेकिन दरवाज़ा अपने आप बंद हो चुका था।
तभी प्रिया – या कहें गौरी की आत्मा – उनके सामने खड़ी हो गई।
उसका चेहरा जलने के निशानों से भरा था, आँखें खून जैसी लाल थीं।
“तुम लोग मुझे यहाँ से आज़ाद करने आए हो। अब कोई बचकर नहीं जाएगा।”
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आख़िरी कोशिश
अर्जुन को डायरी याद आई। उसने तुरंत उसमें से पन्ने फाड़कर जलाने शुरू किए।
आत्मा जोर-जोर से चीखने लगी –
“नहीं… नहीं… ये मत करो!”
हवेली की दीवारें टूटने लगीं। छत से मिट्टी और लकड़ी गिरने लगी।
सिमी और अर्जुन किसी तरह दरवाज़ा तोड़कर बाहर भागे।
पीछे से प्रिया की दर्दनाक चीख सुनाई दी –
“आ…आआआआह्ह्ह्ह्ह…”
और फिर सब ख़ामोश हो गया।
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अधूरा अंत
सुबह गाँववाले वहाँ पहुँचे तो तहखाने में सिर्फ़ जली हुई डायरी और राख बची थी।
प्रिया कहीं नहीं मिली।
अर्जुन और सिमी ने कसमें खाईं कि वे इस बारे में कभी किसी को नहीं बताएँगे।
लेकिन उस रात अर्जुन को सपने में प्रिया दिखाई दी। उसका चेहरा आधा जला हुआ था, आँखें लाल… और होंठों पर वही शब्द –
“मैं लौटूँगी…”
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अंत… लेकिन सचमुच ख़त्म नहीं
आज भी उस हवेली से औरत की चीखें सुनाई देती हैं।
कहते हैं जो भी वहाँ जाता है, या तो पागल होकर लौटता है… या फिर कभी वापस नहीं आता।
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शापित हवेली – भाग 2
(पहले भाग से आगे की कहानी)
अर्जुन और सिमी गाँव लौट तो आए, लेकिन मन से कभी उस रात को भुला नहीं पाए। रोहित की मौत और प्रिया का अचानक गायब हो जाना, उनके दिल पर गहरी चोट छोड़ गया।
दिन बीतते गए, लेकिन प्रिया की चीखें और उसका जला हुआ चेहरा अर्जुन को हर रात सपनों में सताने लगा।
कभी वह सपने में कहती –
“तुमने मुझे क्यों छोड़ा…? तुमने डायरी जलाई, लेकिन मेरा श्राप नहीं टूटा।”
अर्जुन पसीने से तर-बतर उठ जाता।
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गाँव का रहस्य
कुछ दिनों बाद अर्जुन ने तय किया कि वह सच्चाई खोजेगा। उसने गाँव के बुज़ुर्ग रघुनाथ बाबा से बात की।
बाबा ने धीरे से कहा –
“गौरी की आत्मा को सिर्फ़ पन्ने जलाने से मुक्त नहीं किया जा सकता। उसे शांति तभी मिलेगी, जब उसका अधूरा बदला पूरा होगा।”
अर्जुन ने घबराकर पूछा – “बदला? किससे?”
बाबा ने गहरी साँस ली –
“गाँव के सरपंच के पूर्वजों ने ही उसे जिंदा जलाया था। जब तक उस वंश का कोई बलिदान नहीं होगा, आत्मा शांत नहीं होगी।”
सिमी काँप गई – “मतलब अब प्रिया…?”
बाबा बोले –
“हाँ। क्योंकि प्रिया वही वंशज है… और आत्मा उसी के ज़रिए बाहर आई है।”
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आत्मा की वापसी
उस रात अर्जुन और सिमी अपने कमरे में बैठे थे कि अचानक खिड़की अपने आप खुल गई। हवा का ज़ोरदार झोंका आया और दीपक बुझ गया।
कमरे की दीवार पर एक परछाई उभरी – वही जला चेहरा, वही लाल आँखें।
प्रिया की आवाज़ गूँजी –
“मैं लौट आई हूँ…”
सिमी डर से चिल्ला उठी। अर्जुन ने साहस जुटाकर कहा –
“तुम चाहती क्या हो?”
आवाज़ आई –
“बदला… जब तक मेरे दुश्मनों का खून नहीं बहेगा, मैं तुम्हें चैन से नहीं रहने दूँगी।”
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गाँव में दहशत
अगले ही दिन गाँव में अजीब घटनाएँ होने लगीं।
किसी के घर अपने आप आग लग जाती।
कुएँ से खून निकलता।
रात को औरत के रोने की आवाज़ गूँजती।
गाँववाले डरकर अर्जुन और सिमी को दोष देने लगे –
“ये सब इनके आने के बाद हुआ है। इन्होंने ही आत्मा को जगा दिया है।”
सरपंच भी गुस्से में बोला –
“तुम दोनों तुरंत गाँव छोड़ दो, वरना अंजाम बुरा होगा।”
लेकिन अर्जुन हार मानने को तैयार नहीं था।
“नहीं! जब तक मैं प्रिया को नहीं ढूँढ लेता, मैं नहीं जाऊँगा।”
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हवेली की ओर वापसी
उस रात अर्जुन और सिमी फिर से हवेली की ओर निकल पड़े।
जैसे ही गेट के भीतर कदम रखा, उन्हें वही ठंडक और अजीब फुसफुसाहट सुनाई दी।
तहखाने में उतरते ही दीवार पर खून से लिखा था –
“आज अंतिम खेल होगा…”
अचानक उनके सामने प्रिया खड़ी हो गई। उसका चेहरा अब पूरी तरह जल चुका था।
वह चीखी –
“अर्जुन… तुमने मुझे अकेला छोड़ा। अब तुम बच नहीं सकते।”
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चरम टकराव
अर्जुन ने कांपते हुए कहा –
“प्रिया… तुम मेरी दोस्त हो। ये तुम नहीं हो, ये आत्मा है!”
लेकिन प्रिया की आँखें और लाल हो गईं।
उसने हाथ उठाया तो ज़मीन पर आग की लपटें फैल गईं।
सिमी ने काँपती आवाज़ में अर्जुन से कहा –
“अगर आज हमने इसे नहीं रोका, तो पूरा गाँव खतम हो जाएगा।”
अर्जुन ने साहस करके जेब से भगवान की छोटी मूर्ति निकाली और जोर से मंत्र पढ़ने लगा।
प्रिया ज़ोर से चीख पड़ी। हवेली की दीवारें टूटने लगीं।
लेकिन तभी आत्मा हँसते हुए बोली –
“तुम सोचते हो मुझे रोकोगे? ये तो बस शुरुआत है…”
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आगे क्या होगा?
हवेली पूरी तरह हिल रही थी। मिट्टी और ईंटें गिर रही थीं।
अर्जुन और सिमी के सामने दो रास्ते थे –
या तो भाग जाएँ और अपनी जान बचाएँ…
या फिर वहीं रुककर आत्मा से आख़िरी लड़ाई लड़ें।
उनके कदम भारी हो गए। प्रिया की आँखें जलती हुई मशाल जैसी थीं।
कहानी यहाँ खत्म नहीं होती… क्योंकि हवेली का श्राप अब और भी खतरनाक हो चुका है।
शापित हवेली – भाग 3
(भाग 2 से आगे की कहानी)
हवेली हिल रही थी। दीवारों से धूल झड़ रही थी, लकड़ी की बीमें चरमरा रही थीं। अर्जुन और सिमी के सामने खड़ी प्रिया – या कहें गौरी की आत्मा – अब और भी भयानक रूप ले चुकी थी। उसका चेहरा आधा जला हुआ, आँखें लाल और होंठों पर अजीब सी मुस्कान।
वह बोली –
“तुम्हें लगा तुम मुझे रोक लोगे? यह तो बस शुरुआत थी। अब पूरा गाँव मेरे साथ चीखेगा।”
अर्जुन काँपते हुए भी बोला –
“प्रिया… अगर तुम्हें शांति चाहिए, तो मैं तुम्हारी मदद करूँगा। लेकिन निर्दोषों की जान मत लो।”
आत्मा ने ज़ोर से हँसते हुए कहा –
“निर्दोष? जब मुझे ज़िंदा जलाया गया था, तब किसे मेरी मासूमियत दिखी थी? अब कोई मासूम नहीं… सब दोषी हैं।”
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हवेली का खेल
अचानक हवेली की खिड़कियाँ अपने आप खुल गईं। बाहर तेज़ आँधी चलने लगी।
दीवारों पर परछाइयाँ नाचने लगीं।
तहखाने से आवाज़ें गूँजने लगीं – “जला दो… मार दो… बदला लो…”
सिमी डर से काँप गई –
“अर्जुन, हमें यहाँ से निकलना होगा। यह आत्मा बहुत शक्तिशाली हो गई है।”
लेकिन अर्जुन ने ठान लिया था।
“नहीं, मैं भागूँगा नहीं। अगर आज इसे नहीं रोका तो पूरा गाँव बर्बाद हो जाएगा।”
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सरपंच का वंश
अर्जुन को रघुनाथ बाबा की बात याद आई –
"गौरी का श्राप तभी टूटेगा, जब सरपंच के वंशज का बलिदान होगा।"
अर्जुन ने सिमी से कहा –
“हमें सरपंच को यहाँ लाना होगा। वही इस श्राप को खत्म कर सकता है।”
लेकिन अचानक दरवाज़ा बंद हो गया और आत्मा चीखी –
“कोई यहाँ से बाहर नहीं जाएगा… जब तक मेरा बदला पूरा नहीं होता।”
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मौत का सामना
तभी अर्जुन और सिमी ने देखा कि रोहित की आत्मा उनके सामने खड़ी है।
उसकी आँखें खाली थीं, शरीर पर काले निशान।
वह धीमी आवाज़ में बोला –
“भाग जाओ… नहीं तो तुम भी यहीं फँस जाओगे।”
अर्जुन चौंक गया –
“रोहित…?”
लेकिन अगले ही पल वह परछाई धुएँ में बदलकर गायब हो गई।
सिमी रोते हुए बोली –
“ये हवेली हमें कभी नहीं छोड़ेगी।”
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बलिदान की घड़ी
अचानक बाहर से गाँववालों की आवाज़ आई। सरपंच और लोग हवेली की ओर दौड़ते हुए आए थे।
शायद उन्होंने अंदर की चीखें सुन ली थीं।
गौरी की आत्मा हँसी –
“आख़िरकार… मेरा शिकार खुद चलकर आ गया।”
दीवारें लाल चमकने लगीं। आत्मा ने सरपंच को पकड़कर हवा में उठा लिया।
वह तड़पते हुए चिल्ला रहा था –
“बचाओ… बचाओ…”
अर्जुन ने साहस जुटाकर भगवान की मूर्ति सरपंच के सीने पर रख दी और जोर से मंत्र पढ़ने लगा।
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आत्मा का अंत… या नई शुरुआत?
अचानक तेज़ रोशनी फैली। आत्मा जोर-जोर से चीखने लगी।
“नहीं… नहीं… यह नहीं हो सकता… मेरा बदला अधूरा है…”
हवेली की दीवारें टूट गईं। छत गिर पड़ी।
धूल और मलबे के बीच प्रिया की चीख सुनाई दी और फिर सब ख़ामोश हो गया।
सुबह गाँववाले जब पहुँचे तो हवेली का सिर्फ़ ढेर बचा था।
अर्जुन, सिमी और सरपंच बेहोश पड़े थे लेकिन ज़िंदा थे।
सबने सोचा –
“अब श्राप खत्म हो गया।”
लेकिन उसी रात अर्जुन को फिर वही सपना आया।
प्रिया उसके सामने खड़ी थी, जले चेहरे और लाल आँखों के साथ।
वह फुसफुसाई –
“तुम सोचते हो सब खत्म हो गया? मैं अभी यहीं हूँ… तुम्हारे आसपास…”
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अंत… या नया आरंभ?
गाँववालों ने राहत की साँस ली, लेकिन हवेली की राख से आज भी धुआँ उठता है।
लोग कहते हैं, हर अमावस की रात उस ओर से औरत की चीख सुनाई देती है।
श्राप सचमुच टूटा… या अभी भी अधूरा है?
इसका जवाब शायद अर्जुन और सिमी को आने वाले दिनों में मिलेगा।
शापित हवेली – भाग 4
हवेली का ढह जाना पूरे गाँव के लिए राहत की खबर था। लोगों को लगा कि अब श्राप खत्म हो गया। लेकिन अर्जुन और सिमी को पता था कि यह अंत नहीं था।
अर्जुन ने कई बार रात को प्रिया का सपना देखा। हर बार वह और डरावनी होती जा रही थी।
कभी वह कहती – “तुम मुझे धोखा नहीं दे सकते…”
कभी फुसफुसाती – “मैं तुम्हारे पास ही हूँ…”
धीरे-धीरे अर्जुन की तबीयत बिगड़ने लगी। चेहरा पीला पड़ गया, आँखों के नीचे काले घेरे। सिमी भी सहमी रहती थी।
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शहर की ओर वापसी
अर्जुन और सिमी ने तय किया कि वे गाँव छोड़कर वापस शहर लौट जाएंगे।
लेकिन जैसे ही वे ट्रेन से शहर पहुँचे, अजीब घटनाएँ उनके आसपास होने लगीं।
अर्जुन के कमरे में दरवाज़ा अपने आप खुल-बंद होने लगा।
आईने में प्रिया का चेहरा दिखता और फिर गायब हो जाता।
आधी रात को दीवारों पर खून से लिखा दिखाई देता – “मैं लौटूँगी…”
सिमी घबराकर बोली –
“अर्जुन, यह आत्मा हमारे साथ शहर तक आ गई है।”
अर्जुन जान गया कि श्राप सचमुच खत्म नहीं हुआ।
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तांत्रिक का सहारा
आख़िरकार वे शहर के एक प्रसिद्ध तांत्रिक आचार्य नीलकंठ के पास गए।
आचार्य ने ध्यान करके कहा –
“यह आत्मा बहुत शक्तिशाली है। हवेली का ढांचा टूट गया, लेकिन आत्मा बंधी नहीं। वह प्रिया के शरीर से जुड़ चुकी है और अब तुम्हारे आसपास मंडरा रही है।”
अर्जुन ने डरते हुए पूछा –
“तो इसका अंत कैसे होगा?”
आचार्य बोले –
“इस आत्मा का नाश तभी होगा जब प्रिया की आत्मा को मुक्त किया जाए। इसके लिए तुम्हें फिर से उस हवेली की राख में जाकर अंतिम अनुष्ठान करना होगा।”
सिमी काँप गई – “मतलब हमें फिर से उस जगह जाना होगा?”
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शहर में कहर
इससे पहले कि वे कोई कदम उठाते, आत्मा ने शहर में कहर मचाना शुरू कर दिया।
अर्जुन के ऑफिस में कंप्यूटर अपने आप चलने लगे।
लिफ्ट अचानक बीच मंज़िल में रुक गई।
सिमी के घर की दीवार पर अचानक आग की लपटें उठीं।
अब यह सिर्फ अर्जुन और सिमी का नहीं, बल्कि पूरे शहर का खतरा बन गया था।
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शापित हवेली – भाग 5 (अंतिम भाग)
अर्जुन और सिमी मजबूरी में फिर से गाँव लौटे। वहाँ वे आचार्य नीलकंठ को लेकर हवेली की राख तक पहुँचे।
रात अमावस की थी। चारों ओर काला अंधेरा। राख से अब भी हल्का धुआँ उठ रहा था।
आचार्य ने मंत्र पढ़ना शुरू किया।
अचानक राख से तेज़ हवाएँ उठीं और प्रिया की आत्मा प्रकट हुई।
वह चीखी –
“तुम मुझे कैद नहीं कर सकते! मैं अमर हूँ!”
अर्जुन रो पड़ा –
“प्रिया, मैं तुम्हें बचाना चाहता हूँ। लेकिन तुम्हें इस श्राप से मुक्त होना होगा।”
आत्मा ने हँसते हुए कहा –
“मुक्ति? मुझे तो बदला चाहिए!”
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अंतिम बलिदान
तभी आचार्य बोले –
“अर्जुन, यह आत्मा सिर्फ़ तुम्हारी ऊर्जा से बँधी है। अगर तुम हिम्मत दिखाकर अपनी आस्था से इसका सामना करोगे, तभी इसे खत्म किया जा सकता है।”
अर्जुन ने काँपते हाथों से भगवान की मूर्ति उठाई और राख पर रख दी।
उसने पूरी ताक़त से मंत्र पढ़ा।
आत्मा दर्द से चीखने लगी –
“नहीं… नहीं… यह असंभव है…”
सिमी ने भी आँसू भरी आँखों से हाथ जोड़कर प्रार्थना की।
धीरे-धीरे राख से उठती धुएँ की परछाई टूटने लगी।
आख़िरी बार प्रिया की आवाज़ आई –
“अर्जुन… धन्यवाद… अब मैं मुक्त हूँ…”
और सब कुछ शांत हो गया।
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अंत
सुबह सूरज की किरणों के साथ हवेली की राख पूरी तरह ठंडी हो चुकी थी।
गाँववाले पहली बार सुकून की साँस ले पाए।
अर्जुन और सिमी ने तय किया कि वे इस रहस्य को हमेशा अपने दिल में दबाए रखेंगे।
लेकिन जाते-जाते अर्जुन ने राख की ओर देखा…
और उसे लगा कि धुएँ में अब भी प्रिया की मुस्कान छिपी है।
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सम्पूर्ण समापन ✅
इस तरह “शापित हवेली” की पूरी डरावनी कहानी पाँच भागों में पूरी होती है।
यहाँ आपने देखा –
गाँव की श्रापित हवेली का डर
प्रिया के ज़रिए आत्मा का लौटना
गाँव और शहर दोनों में फैला आतंक
और अंत में बलिदान व अनुष्ठान से आत्मा की मुक्ति
धन्यवाद्