पहली मुलाक़ात में एक छतरी के नीचे भीगना,
और फिर उसी बारिश को अपनी कहानी का हिस्सा बना लेना…
ये कहानी है शिवम और अनाया की, जिनकी शुरुआत कॉलेज के बरसात भरे दिन से होती है।
कविताओं, चाय की ख़ुशबू और वादों के बीच उनका रिश्ता खिलता है,
लेकिन ज़िंदगी अचानक उन्हें अलग कर देती है।
सालों की दूरी, अनकहे जज़्बात और अधूरी मुलाक़ातें…
क्या किस्मत उन्हें फिर से मिलाएगी?
या बारिश सिर्फ़ यादें ही छोड़ जाएगी?
"बारिश के नीचे" एक ऐसी रोमांटिक और भावनात्मक कहानी है,
जहाँ मोहब्बत वक़्त की धूल से भी चमकती रहती है,
और वादा कभी पुराना नहीं होता
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बारिश के नीचे
शिवम को बचपन से ही बारिश पसंद थी, लेकिन उस दिन की बारिश कुछ खास थी।
कॉलेज से घर लौटते हुए वो छतरी लेकर तेज़ हवा में चल रहा था। अचानक सामने से एक लड़की भागते हुए आई—पीली रेनकोट, हाथ में किताबें, और आँखों में थोड़ी घबराहट।
वो फिसलने ही वाली थी कि शिवम ने तुरंत उसका हाथ थाम लिया।
"संभल कर!"
लड़की हँस पड़ी—"थैंक्यू… वरना मैं तो आज सीधी गड्ढे में गिर जाती।"
बारिश तेज़ हो रही थी। शिवम ने अपनी छतरी बढ़ाई—"आओ, साथ चल देते हैं, वरना भीग जाओगी।"
वो थोड़ी झिझकते हुए छतरी में आ गई। चलते-चलते शिवम को पता चला कि उसका नाम अनाया है, वो लिटरेचर पढ़ती है और बारिश में कविताएँ लिखना पसंद करती है।
शिवम ने मुस्कुराकर कहा—"तो आज की बारिश पर एक कविता बनाओ।"
अनाया ने जवाब दिया—
"किसी अजनबी के साथ, एक छतरी में भीगना…
लगता है जैसे बारिश ने हमें लिख दिया हो।"
उस एक पंक्ति ने शिवम के दिल में घर बना लिया।
धीरे-धीरे कॉलेज में उनकी मुलाक़ातें बढ़ने लगीं। कभी लाइब्रेरी, कभी कैंटीन, कभी पुराने चाय वाले के पास। एक दिन, महीनों बाद पहली बारिश हुई। शिवम ने उसे फोन किया—
"बारिश हो रही है… तुम फ्री हो?"
दूसरी तरफ से हँसी आई—"मैं पहले से ही बाहर हूँ… पुराने चाय वाले के पास, याद है?"
शिवम पहुँचा तो देखा कि अनाया पहले से दो कप चाय लेकर खड़ी थी।
"तुम्हें कैसे पता था कि मैं आऊँगा?"
वो मुस्कुराई—"बारिश और तुम… दोनों को एक-दूसरे का इंतज़ार रहता है।"
चाय की भाप और गीली मिट्टी की खुशबू में शिवम ने कह ही दिया—"अनाया… अगर ये बारिश किसी कहानी का हिस्सा है, तो मैं चाहता हूँ कि इसका अंत तुम्हारे साथ हो।"
अनाया ने कुछ नहीं कहा, बस छतरी का हैंडल पकड़ लिया। उसकी आँखों में 'हाँ' लिखा था।
पर ज़िंदगी हमेशा सीधी नहीं चलती।
एक दिन अचानक अनाया ने फोन उठाना बंद कर दिया। मैसेज का जवाब नहीं आया।
तीन दिन बाद, बारिश की रात दरवाज़े पर दस्तक हुई।
सामने अनाया थी—पूरी भीगी हुई, आँखों में आँसू।
"तुम कहाँ थी?"
"पापा की तबियत… मुझे मुंबई जाना पड़ा। सब इतना अचानक हुआ कि तुम्हें बता नहीं पाई," उसने धीमे से कहा।
शिवम ने उसे बाँहों में भर लिया।
"बस इतना वादा करो कि वापस आओगी।"
"वादा है… और बारिश जब भी आएगी, मैं यहीं मिलूँगी।"
समय बीता, कॉलेज खत्म हुआ, नौकरी शुरू हुई, और उनकी बातें कम होती गईं।
सालों बाद, एक अगस्त की शाम, बादल गरजे। शिवम फिर उसी चाय वाले के पास पहुँचा।
भीड़ में उसे एक जाना-पहचाना चेहरा दिखा—पीली रेनकोट, हाथ में किताबें, आँखों में वही चमक।
वो अनाया थी।
"मैंने कहा था ना… बारिश हमें फिर मिलाएगी," अनाया ने मुस्कुराकर कहा।
इस बार उन्होंने कोई वादा नहीं किया, बस एक-दूसरे का हाथ थाम लिया—
क्योंकि अब कहानी खत्म नहीं होनी थी,
बल्कि हमेशा के लिए जीनी थी।
1. "बारिश की हर बूंद में एक अधूरी कहानी… और एक पूरा वादा छुपा है।"
2. "कभी बारिश मिलाती है, कभी बस याद दिलाती है।"
3. "वो पहली मुलाक़ात, जो किस्मत ने बूंद-बूंद में लिखी थी।"
4. "जब मोहब्बत छतरी के नीचे शुरू हो… तो बारिश कभी ख़त्म नहीं होती।"