One relationship, many questions in Hindi Love Stories by Aarif Ansari books and stories PDF | एक रिश्ता, कई सवाल

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एक रिश्ता, कई सवाल

कहानी: एक रिश्ता, कई सवाल

पहला दृश्य : मोहल्ले की हलचल

इंदौर की तंग गलियों में एक छोटा-सा मकान था। मकान के बाहर सफेद रंग की चमचमाती कार खड़ी थी। मोहल्ले के लोग चुपके-चुपके झाँक रहे थे। कोई खिड़की से तो कोई दरवाज़े की आड़ से यह देखने की कोशिश कर रहा था कि आखिर कौन आया है।

अंदर बैठक में सोफे और कुर्सियाँ करीने से सजे थे। टेबल पर मिठाई और ठंडे पेय रखे थे। हल्की-हल्की फुसफुसाहट और चाय की प्यालियों की खनक पूरे माहौल को भर रही थी।

कमरे के एक कोने में बैठी थी नंदिनी—साड़ी पहने, लगभग 28 वर्ष की, झुकी पलकों और भीगी आँखों वाली लड़की। पास में माँ सविता जी और पिता महेश जी थे। सामने बैठे थे रिश्ता लेकर आए लोग—समीर और उसका परिवार।

दूसरा दृश्य : पहला सवाल

कुछ देर बातचीत के बाद नंदिनी की माँ ने मुस्कुराकर कहा—
“तो हम इस रिश्ते को पक्का समझें?”

समीर की माँ ने अपने पति की ओर देखा। उन्होंने हल्की मुस्कान के साथ जवाब दिया—
“हमें तो कोई आपत्ति नहीं। लेकिन एक बार हम चाहते हैं कि नंदिनी अपनी राय खुद बताए।”

सारी नज़रें नंदिनी पर टिक गईं। महेश जी ने धीरे से कहा—
“बिटिया, घबराना मत। जो भी मन में है, साफ-साफ कह दे। यह तेरी ज़िंदगी का सबसे बड़ा फैसला है।”

नंदिनी ने हिम्मत जुटाई, धीरे से सिर उठाया और बोली—
“मैं समीर जी से शादी करने के लिए तैयार हूँ… लेकिन मेरी एक शर्त है।”

तीसरा दृश्य : लड़की की शर्त

सब हैरान रह गए। समीर की माँ ने तुरंत पूछा—
“कैसी शर्त, बेटी?”

नंदिनी ने काँपती आवाज़ में कहा—
“शादी के बाद भी मैं अपनी नौकरी नहीं छोड़ूँगी। मैं कॉलेज में लेक्चरर हूँ और यह पहचान मैंने खुद बनाई है। मैं चाहती हूँ कि शादी के बाद भी मुझे पढ़ाने का अधिकार मिले और मेरा परिवार इसमें मेरा साथ दे।”

समीर के पिता, प्रमोद जी, नाराज़ स्वर में बोले—
“आजकल की लड़कियाँ पहले नौकरी की बात करती हैं, घर-गृहस्थी बाद में। बहू का पहला धर्म घर संभालना है।”

नंदिनी ने साहस जुटाकर कहा—
“घर मेरा भी होगा। मैं उसे भी सँभालूँगी। लेकिन अपने सपनों को छोड़ना मेरे लिए संभव नहीं है।”

समीर ने तुरंत बात सँभाली—
“पापा, नंदिनी बिल्कुल सही कह रही है। मुझे उस पर गर्व है। अगर वो अपनी पहचान बनाना चाहती है तो इसमें बुराई क्या है?”

चौथा दृश्य : समाज की फुसफुसाहट

अगले दिन मोहल्ले में तरह-तरह की बातें होने लगीं।
“लड़की नौकरी नहीं छोड़ेगी, तो घर कैसे चलेगा?”
“ऐसे रिश्ते टिकते कहाँ हैं?”

सविता जी परेशान हो उठीं। रात को उन्होंने नंदिनी से कहा—
“बिटिया, इतना अड़ मत। ससुराल ही असली घर होता है। नौकरी छोड़ भी देगी तो क्या होगा?”

नंदिनी ने माँ का हाथ पकड़कर कहा—
“माँ, अगर मैं अपनी पहचान खो दूँगी तो पूरी ज़िंदगी पछताऊँगी। शादी समझौता नहीं, साझेदारी होती है।”

पाँचवाँ दृश्य : लड़के का संघर्ष

उधर समीर भी अपने घर में विरोध झेल रहा था। माँ बोलीं—
“हमें बहू चाहिए, नौकरीपेशा लड़की नहीं।”

समीर ने शांति से कहा—
“माँ, समय बदल गया है। अगर नंदिनी पढ़ाई और करियर दोनों सँभालना चाहती है तो हमें उसका साथ देना चाहिए। वह हमारे बच्चों की भी बेहतरीन परवरिश करेगी।”

पिता प्रमोद जी चुप हो गए। उनके मन में भी धीरे-धीरे बदलाव आने लगा।

छठा दृश्य : पहली मुलाक़ात अकेले में

दोनों परिवारों ने नंदिनी और समीर को अकेले मिलने का अवसर दिया। वे एक कैफ़े में बैठे।

समीर मुस्कुराया—
“तुम सच में बहादुर हो नंदिनी। बहुत-सी लड़कियाँ दबाव में आकर चुप हो जाती हैं। तुमने साफ कहा, यह मुझे बहुत अच्छा लगा।”

नंदिनी ने झिझकते हुए कहा—
“पर मुझे डर है कि कहीं तुम्हारा परिवार इसी वजह से रिश्ता न तोड़ दे।”

समीर ने उसका हाथ थामते हुए कहा—
“रिश्ता सिर्फ दो परिवारों का नहीं, दो दिलों का होता है। अगर तुम मेरे साथ हो, तो हम सबका मन बदल देंगे।”

सातवाँ दृश्य : जीत की शुरुआत

धीरे-धीरे परिवारों का रवैया बदलने लगा। नंदिनी का आत्मविश्वास और समीर की समझदारी ने सबका मन जीत लिया। शादी तय हो गई।

शादी के दिन मंडप में जब नंदिनी ने वरमाला डालते हुए समीर का हाथ थामा, तो उसकी आँखों से आँसू बह निकले—लेकिन ये आँसू डर के नहीं, खुशी के थे।

उपसंहार

शादी के बाद नंदिनी ने अपनी नौकरी जारी रखी। सुबह कॉलेज, शाम को घर—दोनों जिम्मेदारियाँ उसने बखूबी निभाईं। समीर उसका सबसे बड़ा सहारा बना रहा।

धीरे-धीरे परिवार और समाज को भी समझ आ गया कि लड़की का सपना त्याग नहीं, बल्कि गर्व की बात है। मोहल्ले के लोग, जो पहले ताने कसते थे, अब कहते थे—
“देखो, बहू ने घर भी सँभाला और अपनी पहचान भी बनाई। सच में, यह रिश्ता मिसाल है।”

नंदिनी मुस्कुराती और मन ही मन सोचती—
"अगर इंसान अपने सपनों के लिए आवाज़ न उठाए, तो समाज कभी मौका नहीं देगा। रिश्ते तभी मजबूत होते हैं जब उनमें बराबरी हो।"