The untold story in Hindi Love Stories by Aarif Ansari books and stories PDF | अनकही दास्तान

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अनकही दास्तान


उपन्यास: अनकही दास्तान

तीसरा अध्याय – अनकहे जज़्बात

सर्दियों की सुबह थी। कॉलेज का कैंपस धुंध से ढका हुआ था। मैदान में ओस की बूँदें घास पर मोतियों की तरह चमक रही थीं। छात्र-छात्राएँ अपने-अपने ग्रुप में खड़े होकर बातें कर रहे थे, मगर आरव का ध्यान सिर्फ़ एक चेहरे पर था—सिया।

सिया कैंटीन के बाहर दोस्तों के साथ खड़ी थी। वह हँस रही थी, मगर उसकी आँखों में हल्की-सी थकान छिपी हुई थी। आरव ने गौर किया कि पिछले कुछ दिनों से सिया ज़्यादा चुप रहने लगी थी।

आरव के भीतर एक बेचैनी थी। उसने तय किया कि अब और चुप नहीं रहेगा।


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हिम्मत की पहली सीढ़ी

लंच ब्रेक के बाद, आरव ने सिया को कैंपस के गार्डन में अकेला बैठे देखा। वह अपनी डायरी में कुछ लिख रही थी।

आरव धीरे-धीरे पास गया और बोला—
“क्या मैं यहाँ बैठ सकता हूँ?”

सिया ने मुस्कुरा कर कहा—
“ये जगह किसी की ज़ाती मिल्कियत नहीं है, बैठो।”

आरव ने गहरी साँस ली।
“सिया, मुझे तुमसे कुछ कहना है।”

सिया ने उसकी तरफ देखा।
“इतना गंभीर क्यों हो? कहो।”

आरव कुछ पल चुप रहा, फिर बोला—
“पता नहीं कैसे कहूँ… लेकिन तुम्हारे साथ रहते-रहते मुझे लगता है जैसे ज़िंदगी नई हो गई हो। तुमसे बातें करके सब कुछ आसान लगने लगता है।”

सिया हल्का-सा हँसी—
“तो मैं तुम्हारी लाइफ़ को आसान बना देती हूँ?”

“हाँ,” आरव ने सीधी नज़र से उसकी ओर देखा, “और शायद… मुझे तुम अच्छी लगने लगी हो। बहुत अच्छी।”

सिया के हाथ में पकड़ी डायरी अचानक काँप गई। उसने चेहरा दूसरी तरफ घुमा लिया।

“आरव…” उसकी आवाज़ धीमी थी, “तुम बहुत अच्छे हो। लेकिन…”

आरव ने बेचैनी से पूछा—
“लेकिन क्या?”

सिया ने गहरी साँस ली—
“कुछ बातें ऐसी होती हैं जिन्हें कहा नहीं जा सकता। जिनके बारे में अगर तुम जानोगे तो शायद… तुम्हारा नज़रिया बदल जाएगा।”

आरव ने दृढ़ स्वर में कहा—
“तुम्हारे बारे में कुछ भी मेरी सोच नहीं बदल सकता, सिया।”

सिया की आँखों में नमी आ गई, मगर उसने मुस्कान ओढ़ ली।
“तुम्हें सच जानने की अभी ज़रूरत नहीं है। वक़्त आने पर सब बता दूँगी।”


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उदासी की परतें

उसके बाद भी दोनों की दोस्ती जारी रही, मगर सिया की उदासी अब और गहरी होती जा रही थी। वह हँसती तो थी, मगर उसकी हँसी बनावटी लगती। कई बार वह अचानक गायब हो जाती और अगले दिन ऐसे मिलती जैसे कुछ हुआ ही न हो।

एक बार आरव ने हिम्मत कर ही लिया।
“सिया, तुम मुझसे कुछ छुपा रही हो। क्या बात है?”

सिया ने ठंडी साँस छोड़ी।
“आरव, अगर मैं कहूँ कि मैं तुम्हारी ज़िंदगी का हिस्सा बनने लायक ही नहीं हूँ, तो?”

आरव ने उसका हाथ पकड़ लिया।
“तुम्हारे बिना मेरी ज़िंदगी अधूरी है। चाहे कैसी भी सच्चाई हो, मैं तुम्हारे साथ खड़ा रहूँगा।”

सिया की आँखों से आँसू छलक पड़े। उसने हाथ छुड़ाकर कहा—
“काश ये इतना आसान होता…”


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डायरी का राज़

कुछ दिनों बाद, संयोग से आरव ने सिया की वही डायरी लाइब्रेरी की मेज़ पर पड़ी देखी। वह उसे वापस देने ही वाला था कि पन्नों पर लिखी कुछ पंक्तियाँ उसकी नज़र से गुज़रीं—

"ज़िंदगी ने मेरे हिस्से में बहुत दर्द लिख दिए हैं। शायद इसलिए मैं किसी को अपने करीब आने से डरती हूँ। अगर उन्होंने मेरी हक़ीक़त जान ली, तो क्या वो भी मुझे छोड़ देंगे?"

आरव का दिल जैसे थम गया। अब उसे यक़ीन हो गया कि सिया की मुस्कुराहट के पीछे बहुत गहरी चोट छिपी है।


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चुप्पी और चाहत

उस रात आरव नींद नहीं ले सका। बार-बार वही पंक्तियाँ उसके कानों में गूँजती रहीं।
उसका मन कहता था कि चाहे कैसी भी हक़ीक़त हो, वह सिया का साथ नहीं छोड़ेगा।

अगले दिन जब दोनों मिले, तो आरव ने साफ़ शब्दों में कहा—
“सिया, मैं जानता हूँ कि तुम मुझसे कुछ छुपा रही हो। लेकिन याद रखना, मैं तुम्हें कभी अकेला नहीं छोड़ूँगा। चाहे कैसी भी सच्चाई सामने आए, मैं तुम्हारे साथ रहूँगा।”

सिया उसकी आँखों में झाँकती रही। उसकी आँखें नम हो गईं, लेकिन उसने कुछ नहीं कहा।

उसने बस धीमे से कहा—
“आरव, कभी-कभी प्यार सिर्फ़ साथ होने का नाम नहीं होता… कभी ये किसी की तक़लीफ़ बाँटने का नाम भी होता है।”

आरव ने दृढ़ता से जवाब दिया—
“तो मैं तुम्हारा हर दर्द बाँटने के लिए तैयार हूँ।”


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यहाँ तीसरा अध्याय समाप्त होता है…

आगे की कहानी में:

सिया का रहस्य धीरे-धीरे सामने आएगा।

आरव और सिया का रिश्ता और मज़बूत होगा।

और पाठकों के सामने एक नया मोड़ आएगा।

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उपन्यास: अनकही दास्तान

चौथा अध्याय – सच की आहट

वसंत का मौसम था। कॉलेज के पेड़ों पर नए पत्ते और फूल खिल उठे थे। मगर आरव के दिल में एक अजीब-सी बेचैनी छाई हुई थी।
उसके और सिया के बीच अब तक अनगिनत बातें हुई थीं, अनगिनत पल गुज़रे थे, लेकिन फिर भी उनके बीच कोई अदृश्य दीवार बनी हुई थी।

आरव चाहता था कि सिया अपने दिल का बोझ उससे बाँटे। मगर सिया हमेशा मुस्कुराकर चुप हो जाती।


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अचानक ग़ायब

एक दिन सुबह से शाम तक सिया कॉलेज नहीं आई। आरव का मन किसी काम में नहीं लगा। उसने कई बार कॉल किया, मैसेज किया, मगर कोई जवाब नहीं मिला।

रात तक बेचैन होकर वह उसके घर के पते तक पहुँच गया—जो उसने कभी मज़ाक-मज़ाक में बताया था।
छोटा-सा मकान, जिसकी खिड़की की लाइट बंद थी। दरवाज़ा खटखटाने पर एक औरत बाहर आईं, शायद सिया की पड़ोसी।

“जी, आप किसे ढूँढ रहे हैं?”

“मैं… सिया से मिलने आया हूँ। वो घर पर हैं क्या?”

औरत ने गहरी साँस ली।
“बेटा, सिया तो पिछले तीन दिन से अस्पताल में भर्ती है।”

आरव के पैरों तले ज़मीन खिसक गई।
“अस्पताल? क्यों… क्या हुआ उसे?”

औरत ने सिर झुका लिया।
“उसे बचपन से ही दिल की बीमारी है। जब तक दवाइयाँ चलती रहती हैं, ठीक रहती है… मगर कभी-कभी हालत बिगड़ जाती है।”

आरव के कानों में जैसे शोर गूंजने लगा। दिल की बीमारी… तो यही वो राज़ था जिसे सिया छुपा रही थी।


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अस्पताल की मुलाक़ात

अगली सुबह आरव सीधे अस्पताल पहुँचा।
वार्ड में जाकर देखा—सिया बिस्तर पर लेटी थी, चेहरे पर थकान थी, मगर होंठों पर वही जानी-पहचानी मुस्कान।

“आरव! तुम यहाँ कैसे?”

आरव की आँखों में आँसू थे।
“ये सब मुझसे छुपाया क्यों? मैं तुम्हारा दोस्त हूँ… तुम्हें अकेले ये सब झेलने की क्या ज़रूरत थी?”

सिया ने धीमे स्वर में कहा—
“क्योंकि मैं तुम्हें बोझ नहीं बनाना चाहती थी। ये मेरी ज़िंदगी है, मेरा संघर्ष।”

“नहीं सिया,” आरव ने उसका हाथ पकड़ते हुए कहा, “अब ये सिर्फ़ तुम्हारी लड़ाई नहीं है। ये मेरी भी लड़ाई है।”

सिया की आँखें छलक पड़ीं। उसने सिर घुमाकर आँसू छुपाने की कोशिश की।
“तुम मुझे छोड़ क्यों नहीं देते, आरव? जब तुम्हें सच पता ही चल गया है, तो अब दूर क्यों नहीं हो जाते?”

आरव की आवाज़ दृढ़ थी—
“क्योंकि मैं तुमसे प्यार करता हूँ। और प्यार किसी की बीमारी, मजबूरी या हालात देखकर नहीं होता।”


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सिया की चुप्पी

सिया चुप रही। उसकी आँखें बता रही थीं कि वह अंदर से टूट रही है।
“आरव,” उसने धीरे से कहा, “प्यार तुम्हें दुख देगा। मेरी ज़िंदगी शायद लंबी न हो… तुम क्यों अपनी दुनिया को अँधेरों में घसीटना चाहते हो?”

आरव ने बिना पलक झपकाए जवाब दिया—
“अगर मेरी दुनिया में रोशनी है तो वो सिर्फ़ तुम हो। चाहे अँधेरे हों, चाहे मुश्किलें हों, मैं तुम्हारे साथ रहूँगा।”

सिया के होंठ काँप उठे, मगर उसने कोई जवाब नहीं दिया।


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नई शुरुआत की चाह

अस्पताल से छुट्टी मिलने के बाद सिया वापस कॉलेज लौटी। अब उसके और आरव के बीच रिश्ता बदल चुका था।
आरव हर पल उसका ख्याल रखता। वह उसे हँसाने के लिए छोटी-छोटी शरारतें करता।

एक शाम दोनों कैंपस की झील के किनारे बैठे थे। सूरज ढल रहा था।
सिया ने धीरे से कहा—
“कभी-कभी सोचती हूँ कि अगर मेरी ज़िंदगी साधारण होती… तो मैं भी सपने देख सकती। शादी, परिवार, करियर… सब कुछ।”

आरव ने उसका हाथ थाम लिया।
“सपनों का क्या है? उन्हें पूरा करने के लिए हम लड़ सकते हैं। और मैं वादा करता हूँ, तुम्हारा हर सपना मेरा सपना होगा।”

सिया की आँखों में चमक आ गई, मगर दिल के किसी कोने में डर अब भी ज़िंदा था।


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अध्याय का अंत

अब आरव और सिया दोनों समझ चुके थे कि उनका रिश्ता दोस्ती से आगे निकल चुका है।
मगर सिया का डर, उसका दर्द, और उसकी बीमारी—ये सब आने वाले वक़्त में उनकी कहानी को एक नए मोड़ पर ले जाने वाले थे।


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