🌹 बंधन (अनकही दास्तान) - भाग 1
दरभंगा (बिहार) का आसमान उस दिन बादलों से भरा हुआ था। सावन की फुहारें हवेली की छत से गिरकर आँगन में पोखर बना रही थीं। दूर कहीं मंदिर की घंटियाँ बज रही थीं, तो पास के चौक से ढोल-ताशे की आवाज़ गूंज रही थी। हवेली के अंदर हर ओर चहल-पहल थी। रंग-बिरंगे परिधान पहने रिश्तेदार, मेहमानों की गहमागहमी, और आँगन में गूंजती शहनाई – सब कुछ एक उत्सव की तरह लग रहा था।
लेकिन इस चहल-पहल के बीच राधा का मन अजीब-सी उदासी से भरा हुआ था।
राधा उम्र में बस बीस बरस की थी। आँखों में गहराई, चेहरे पर मासूमियत और दिल में सपनों का समंदर। लेकिन आज उसका दिल जैसे बेजान-सा हो गया था। जिस शादी का सपना हर लड़की देखती है, वही शादी उसके लिए बोझ बन चुकी थी।
राधा अपने कमरे की खिड़की पर खड़ी होकर बाहर की बारिश को देख रही थी। पानी की बूंदें जैसे उसके दिल की बेचैनी को शब्द दे रही थीं। हर बूंद उसे उसकी मजबूरी याद दिला रही थी।
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🌸 बचपन की यादें
राधा की आँखों के सामने अचानक उसका बचपन तैर गया।
वो दिन, जब गली में बारिश होती थी और वो अपने सबसे अच्छे दोस्त अविनाश के साथ भीगती थी।
वो हँसी, वो शरारतें, वो मासूम बातें – सब किसी फिल्म के दृश्य की तरह उसे याद आने लगे।
अविनाश… वही लड़का, जो हर वक्त उसके साथ रहता था।
कभी स्कूल की कॉपी साझा करना, तो कभी आम के पेड़ से फल तोड़कर उसे देना।
कभी छुप-छुपकर किताबों में लिखी छोटी-छोटी कविताएँ पढ़ाना, तो कभी मेला घूमने के बहाने उसका हाथ पकड़ लेना।
राधा और अविनाश की दोस्ती धीरे-धीरे मोहब्बत में बदल गई थी।
लेकिन यह बात दोनों ने कभी ज़ुबान से नहीं कही।
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🌸 मजबूरी का बंधन
राधा की माँ की आवाज़ ने उसकी तंद्रा तोड़ी –
“राधा बेटा, तैयार हो जा। बारात आने ही वाली है।”
राधा ने धीरे से सिर हिला दिया।
दिल तो कुछ और कह रहा था, लेकिन चेहरे पर मुस्कान लानी ही पड़ी।
कमरे में उसकी सहेली सुनीता आई। उसने राधा का लाल जोड़ा ठीक करते हुए कहा –
“तू कितनी भाग्यशाली है! इतना अच्छा घर-वर मिला है तुझे।”
राधा ने आईने में खुद को देखा। दुल्हन का जोड़ा, माथे पर सजी बिंदी, हाथों में मेंहदी का गहरा रंग… सब कुछ खूबसूरत था, पर उसके चेहरे पर उदासी साफ झलक रही थी।
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🌸 अचानक मुलाक़ात
इसी बीच कमरे का दरवाज़ा हल्का-सा खुला।
राधा ने चौंककर पीछे देखा।
वो अविनाश था।
उसके चेहरे पर बेचैनी साफ झलक रही थी।
“राधा…” उसने धीमी आवाज़ में कहा।
राधा की आँखों में आँसू आ गए।
“अविनाश… तुम यहाँ क्यों आए हो? अगर किसी ने देख लिया तो…”
अविनाश ने उसकी बात काट दी –
“मुझे किसी से डर नहीं। मुझे सिर्फ़ तेरा डर है… कि कहीं तू हमेशा के लिए मुझसे दूर न हो जाए।”
राधा चुप रही।
उसके होंठ हिले, पर आवाज़ नहीं निकली।
“राधा, एक बार कह दे… अगर तू चाहती है तो मैं अभी तुझे यहाँ से ले जाऊँगा।”
अविनाश की आँखों में बगावत थी।
राधा ने उसकी ओर देखा।
उसकी आँखों में आँसू थे, लेकिन उनमें कहीं न कहीं अविनाश के लिए प्यार भी छिपा था।
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🌸 मर्यादा और मोहब्बत
बाहर ढोल-ताशे की आवाज़ तेज़ हो रही थी।
बारात हवेली के दरवाज़े पर पहुँच चुकी थी।
राधा ने धीरे से अविनाश का हाथ पकड़कर कहा –
“अविनाश… मैं जानती हूँ तू मुझे कितना चाहता है।
लेकिन ये बंधन सिर्फ़ मेरा नहीं, मेरे पूरे परिवार का है।
अगर मैं तेरे साथ चली भी जाऊँ, तो मेरी माँ… मेरा भाई… सबकी इज़्ज़त मिट्टी में मिल जाएगी।”
अविनाश ने गहरी सांस ली।
“तो क्या तेरी खुशी की कोई कीमत नहीं?”
राधा ने आँखें बंद कर लीं।
“मेरी खुशी उनके चेहरे की मुस्कान में ही है।”
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🌸 विदाई की घड़ी
राधा और अविनाश दोनों चुप थे।
उनके बीच सिर्फ़ बारिश की आवाज़ गूंज रही थी।
अचानक बाहर से आवाज़ आई –
“राधा! सब तुम्हें ढूंढ रहे हैं।”
राधा ने अपनी आँखों से आँसू पोंछे और मुस्कान बना ली।
वो जानती थी, उसकी ज़िंदगी अब उसकी नहीं रही।
अविनाश ने आख़िरी बार उसकी ओर देखा।
उसकी आँखों में हजारों सवाल थे, लेकिन जवाब कहीं नहीं।
राधा भारी कदमों से बाहर चली गई।
अविनाश वहीं खड़ा रह गया – टूटकर, बिखरकर।
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🌸 पहला एपिसोड का अंत
शहनाई की आवाज़ हवेली में गूंज रही थी।
लोग खुशी से नाच रहे थे।
लेकिन उस भीड़ में दो दिल चुपचाप रो रहे थे –
एक, जो बंधन में बंधने जा रहा था…
और दूसरा, जो उसी बंधन को तोड़कर अपने प्यार को पाना चाहता था।
राधा ने मन ही मन कहा –
“शायद ये मोहब्बत अब सिर्फ़ एक अनकही दास्तान रह जाएगी…”
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🌹 बंधन (अनकही दास्तान) – भाग 2
शादी की रात ख़त्म हो चुकी थी। हवेली में चारों तरफ़ थकान और सन्नाटा पसरा था। सब मेहमान जा चुके थे, ढोल-नगाड़ों की गूँज अब बस याद बन चुकी थी।
राधा अब अपने नए घर में थी—ससुराल में।
लाल जोड़े की चमक कम हो चुकी थी, लेकिन उसके चेहरे पर उदासी वही थी।
उसका पति अमित एक सभ्य और पढ़ा-लिखा इंसान था।
उसने पहली ही रात उससे कहा था –
“राधा, मैं जानता हूँ शादी ज़िंदगी का सबसे बड़ा फैसला होता है। लेकिन अगर तुम्हें थोड़ा समय चाहिए, तो मैं तुम्हें पूरी आज़ादी दूँगा। तुम्हें अपनाने की जल्दी मुझे नहीं है।”
राधा चुपचाप सिर झुका कर रह गई।
उसके दिल में अविनाश की तस्वीर इतनी गहरी थी कि किसी और के लिए जगह ही नहीं थी।
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🌸 अविनाश की बेचैनी
दूसरी तरफ़, अविनाश उस रात करवटें बदलता रहा।
उसकी आँखों के सामने बार-बार वही दृश्य घूम रहा था—राधा लाल जोड़े में, आँसुओं से भरी हुई और उससे कहती हुई—
“ये बंधन सिर्फ़ मेरा नहीं, मेरे पूरे परिवार का है…”
अविनाश का दिल बार-बार कहता—
“क्यों न मैं सब छोड़कर कहीं दूर चला जाऊँ? जहाँ कोई मुझे न जाने, न पहचाने।”
लेकिन अगले ही पल उसकी आत्मा चीखती—
“अगर मैं चला गया, तो राधा बिल्कुल अकेली हो जाएगी।”
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🌸 राधा का नया घर
ससुराल का माहौल अलग था।
सासू माँ थोड़ी सख्त थीं। हर बात पर नज़र रखतीं—“दुल्हन कैसी है, काम कितना जानती है, कितनी आज्ञाकारी है।”
राधा घर के काम करती, मुस्कुराती, सबके बीच सामान्य दिखने की कोशिश करती। लेकिन उसकी आँखों की चमक अब कहीं खो गई थी।
अमित ने कई बार नोटिस किया कि राधा उदास रहती है।
एक दिन उसने सीधे पूछा—
“राधा, क्या तुम मुझसे कुछ छुपा रही हो? तुम्हें देखकर लगता है जैसे तुम्हारे दिल पर कोई बोझ है।”
राधा घबरा गई।
वो झूठ नहीं बोल सकती थी, और सच कहने की हिम्मत भी नहीं जुटा पा रही थी।
उसने बस इतना कहा—
“नई ज़िंदगी में ढलने में थोड़ा समय लगेगा…”
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🌸 अविनाश की चुप्पी
गाँव में लोग बातें करने लगे थे।
“अरे, अविनाश तो बिल्कुल बदल गया है। न पहले जैसी हँसी, न खेल-कूद, न लोगों से मिलना-जुलना।”
वो दिनभर चुप रहता, किसी काम में मन नहीं लगता।
उसकी डायरी ही उसका सहारा थी।
वो उसमें अपनी हर पीड़ा, हर याद लिखता।
एक पन्ने पर उसने लिखा—
"राधा… तू कहीं भी रहे, लेकिन मेरे दिल का हिस्सा हमेशा तेरे पास ही रहेगा।"
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🌸 पहला त्योहार
कुछ हफ़्तों बाद करवा चौथ आया।
राधा ने पहली बार अपने पति के लिए व्रत रखा।
ससुराल वाले खुश थे, सब तैयारी कर रहे थे।
चाँद निकलने पर राधा ने छलनी से अमित को देखा।
लेकिन उसके दिल में वही सवाल उठा—
“क्या ये सच में मेरा जीवन साथी है?”
वो चाहकर भी उस वक़्त अविनाश को भूल नहीं पाई।
उसे लगा जैसे हर चाँद की रोशनी में अविनाश की आँखें उसे देख रही हैं।
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🌸 अचानक मुलाक़ात
करवा चौथ के अगले ही दिन राधा अपने मायके आई।
वो आँगन, वही पुराना घर, वही गली… लेकिन अब सब बदल चुका था।
राधा छत पर खड़ी थी कि अचानक उसकी नज़र सामने वाले घर पर पड़ी।
अविनाश वहाँ खड़ा था।
उनकी नज़रें मिलीं—और दोनों की आँखों में आँसू आ गए।
कोई शब्द नहीं निकला, लेकिन वो चुप्पी हज़ारों बातें कह गई।
अविनाश ने मन ही मन कहा—
“कितनी भी दूर चली जा राधा, तू मेरी धड़कनों से कभी दूर नहीं हो सकती।”
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🌸 एपिसोड 2 का अंत
राधा अपनी माँ के बुलावे पर नीचे चली गई।
अविनाश वहीं खड़ा रह गया, छत पर, अकेला।
उसके दिल में अब और भी बड़ा सवाल था—
क्या उसे अपनी मोहब्बत के लिए लड़ना चाहिए, या राधा की मर्यादा का सम्मान करना चाहिए?
राधा भी रातभर सोचती रही—
क्या सच में मोहब्बत और मर्यादा साथ-साथ चल सकती हैं
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🌹 बंधन (अनकही दास्तान) – भाग 3
राधा अपने मायके से वापस ससुराल लौट आई थी। चेहरे पर मुस्कान थी, लेकिन दिल के अंदर तूफ़ान।
उसने छत पर अविनाश को देखा था… वो चुप्पी, वो आँसू, वो नज़रें — सब कुछ जैसे उसकी रग-रग में उतर गया था।
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🌸 राधा का संघर्ष
रात को सबके सो जाने के बाद राधा अकेली अपने कमरे में बैठी थी।
उसने खिड़की से बाहर झाँका। चाँद की रोशनी आँगन में फैली हुई थी।
राधा ने मन ही मन कहा –
"हे भगवान, ये कैसी परीक्षा है? एक तरफ़ मेरा परिवार है, मेरी मर्यादा है… और दूसरी तरफ़ अविनाश है, मेरी पहली और सच्ची मोहब्बत।"
उसकी आँखों से आँसू बहने लगे।
वो सोच रही थी कि क्या सच में इंसान अपनी पसंद से जी सकता है या हमेशा दूसरों की पसंद का ही बोझ उठाना पड़ता है।
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🌸 अविनाश का अकेलापन
दूसरी तरफ़ अविनाश ने ख़ुद को सबसे काट लिया था।
न दोस्तों से मिलना, न मोहल्ले की बैठकों में जाना, न ही किसी उत्सव में शामिल होना।
लोग कहते – “अरे, अविनाश तो पागल हो गया है। पहले कितना हँसमुख था, अब जैसे हमेशा खोया रहता है।”
लेकिन कोई नहीं जानता था कि उसके दिल का सच क्या है।
उसकी डायरी अब उसकी सबसे बड़ी साथी बन चुकी थी।
उसमें उसने लिखा –
"राधा… तू चाहे हज़ारों दीवारों के पीछे भी हो, मेरा दिल हमेशा तुझ तक पहुँच जाएगा। लेकिन अब मुझे फैसला करना होगा… या तो तुझे पाने का, या हमेशा के लिए तुझसे दूर जाने का।"
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🌸 ससुराल में सास की सख़्ती
राधा की सासू माँ धीरे-धीरे उस पर दबाव डालने लगी थीं।
“बहू, ये काम ऐसे नहीं, वैसे करो।”
“बहू, औरत का असली घर उसका ससुराल होता है, मायके के सपनों में मत खोया कर।”
ये बातें राधा को भीतर तक चुभतीं।
वो जानती थी कि उनकी बातें गलत नहीं थीं, लेकिन दिल मानने को तैयार नहीं था।
अमित भी अब राधा की चुप्पी महसूस करने लगा था।
एक रात उसने सीधे पूछा –
“राधा, अगर तुम्हें इस शादी से परेशानी है, तो बता दो। मैं तुम्हें मजबूर नहीं करूँगा।”
राधा ने काँपते हुए कहा –
“नहीं, ऐसी कोई बात नहीं।”
लेकिन उसकी आँखें झूठ बोल गईं।
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🌸 अविनाश का बड़ा फ़ैसला
कई रातों तक सोचने के बाद अविनाश ने तय किया कि वो अब भागकर नहीं रहेगा।
वो राधा से सीधे मिलेगा और उसके दिल की बात जानकर ही आगे बढ़ेगा।
वो जानता था कि ये आसान नहीं होगा, लेकिन मोहब्बत आसान भी कहाँ होती है?
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🌸 गुपचुप मुलाक़ात
एक दिन गाँव में मेले का आयोजन हुआ।
राधा ससुराल वालों के साथ वहाँ गई।
मेले की भीड़, झूले, मिठाइयाँ, बच्चों की किलकारियाँ — हर तरफ़ रौनक थी।
भीड़ के बीच अचानक राधा की नज़र किसी पर पड़ी।
वो अविनाश था।
राधा का दिल धक् से रह गया।
वो उससे नज़रें चुराने लगी, लेकिन अविनाश उसके सामने आ खड़ा हुआ।
“राधा…” उसने धीरे से कहा।
राधा का गला सूख गया।
“अविनाश, पागल हो गए हो क्या? अगर किसी ने देख लिया तो…”
अविनाश ने उसकी बात काट दी –
“मुझे किसी से डर नहीं। मुझे बस इतना जानना है… क्या आज भी तेरा दिल मेरे लिए धड़कता है?”
राधा की आँखें भर आईं।
उसने चाहा कि कुछ बोले, लेकिन शब्द गले में अटक गए।
उसके आँसू ही उसका जवाब थे।
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🌸 खतरे की आहट
लेकिन ये मुलाक़ात इतनी आसान नहीं थी।
मेले में ही अमित भी मौजूद था।
उसने दूर से देखा कि राधा किसी अजनबी से बात कर रही है।
उसके मन में शक की हल्की-सी लकीर खिंच गई।
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🌸 भाग-3 का अंत
राधा और अविनाश की मुलाक़ात अधूरी रह गई।
वो दोनों अलग हुए, लेकिन उनके दिल और भी उलझ गए।
राधा रातभर सो नहीं पाई।
अविनाश ने भी तय कर लिया कि अब या तो सच सबके सामने आएगा, या फिर ये मोहब्बत हमेशा के लिए ख़ामोश हो जाएगी।
🌹 बंधन (अनकही दास्तान) – भाग 4
मेले वाली रात के बाद राधा का दिल और भी बेचैन हो गया था।
अमित ने भले ही सीधे कुछ न कहा हो, लेकिन उसकी नज़रों में उठते सवाल राधा को हर पल डराने लगे।
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🌸 अमित की शंका
अमित एक समझदार इंसान था।
उसने कभी राधा पर शक नहीं किया था, लेकिन उस दिन मेला उसके मन में हल्की-सी चिंगारी छोड़ गया।
रात को बिस्तर पर लेटे हुए उसने सोचा –
“राधा किससे बात कर रही थी? उसकी आँखों में आँसू क्यों थे? क्या उसके दिल में कोई राज़ है?”
अमित जानता था कि शादी सिर्फ़ दो लोगों का नहीं, बल्कि दो दिलों का बंधन है।
लेकिन अगर दिल ही कहीं और हो, तो ये रिश्ता कैसे चलेगा?
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🌸 राधा की बेबसी
राधा खुद को सँभालने की कोशिश करती रही।
घर-परिवार, काम-काज सब सामान्य चल रहा था, लेकिन अंदर ही अंदर वो टूट रही थी।
कई बार उसने सोचा कि अमित को सच बता दे।
लेकिन डर उसे रोक देता –
“अगर मैंने सब कह दिया, तो न सिर्फ़ मेरा रिश्ता टूटेगा, बल्कि मेरे परिवार की इज़्ज़त भी मिट्टी में मिल जाएगी।”
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🌸 अविनाश का संकल्प
दूसरी तरफ़, अविनाश ने तय कर लिया था कि वो अब चुप नहीं रहेगा।
वो राधा के बिना जी नहीं सकता था।
उसने अपनी डायरी में लिखा –
"या तो ये मोहब्बत अपने मुकाम तक पहुँचेगी, या फिर मैं इस दुनिया से ही चला जाऊँगा।"
उसके दोस्तों ने महसूस किया कि अविनाश अब बहुत बदल चुका है।
वो दिन-रात सोच में डूबा रहता, काम से ध्यान हट चुका था।
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🌸 अचानक आई मुश्किल
एक दिन हवेली में बड़ी पूजा का आयोजन हुआ।
राधा अपने ससुराल के साथ उसमें शामिल हुई।
वहाँ गाँव के कई लोग मौजूद थे, और उन्हीं में अविनाश भी था।
उसने राधा को देखा… और राधा ने भी उसे।
दोनों की नज़रें मिलीं।
राधा ने तुरंत अपनी नज़रें झुका लीं, लेकिन अमित ने ये सब देख लिया।
उसके मन में शक और गहराता गया।
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🌸 पति-पत्नी का सामना
उस रात अमित ने राधा से सीधा सवाल किया –
“राधा, सच-सच बताओ। क्या तुम्हारे दिल में किसी और के लिए जगह है?”
राधा का चेहरा सफ़ेद पड़ गया।
उसके होंठ काँप रहे थे।
वो चाहती थी कि सच बता दे, लेकिन उसके अंदर की मर्यादा उसे रोक रही थी।
उसने आँसू रोकते हुए कहा –
“नहीं अमित जी, आप ही मेरे पति हैं। मेरे दिल में और कोई नहीं।”
अमित ने उसकी आँखों में देखा।
वो जान गया कि राधा सच नहीं कह रही।
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🌸 अविनाश का साहस
इसी बीच अविनाश ने ठान लिया कि वो अब चुप नहीं बैठेगा।
उसने एक चिट्ठी लिखी और राधा तक पहुँचाने का तरीका ढूँढने लगा।
उस चिट्ठी में लिखा था –
"राधा, मैं अब और चुप नहीं रह सकता। मुझे जानना है, क्या तू अब भी मुझसे प्यार करती है। अगर हाँ, तो मैं इस समाज से लड़ने को तैयार हूँ। लेकिन अगर नहीं… तो मैं हमेशा के लिए तेरी ज़िंदगी से चला जाऊँगा।"
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🌸 भाग-4 का अंत
राधा तक वो चिट्ठी पहुँच गई।
उसने काँपते हाथों से उसे खोला और पढ़ा।
उसकी आँखों से आँसू टपकते रहे।
अब उसे फैसला करना था –
या तो वो अपने दिल की सुनेगी और अविनाश का हाथ थाम लेगी,
या फिर हमेशा के लिए अपनी मोहब्बत को दिल में दफ़न कर देगी।
🌹 बंधन (अनकही दास्तान) – भाग 5
राधा देर रात तक जागती रही।
उसके सामने मेज़ पर रखी अविनाश की चिट्ठी थी।
लाल स्याही से लिखे शब्द उसकी आँखों में चुभ रहे थे –
"राधा, या तो तू हाँ कह दे और मैं तुझे अपने साथ ले जाऊँ… या फिर हमेशा के लिए खामोश हो जाऊँ।"
राधा ने काँपते हाथों से चिट्ठी को मोड़ा और तकिए के नीचे रख दिया।
लेकिन नींद उसकी आँखों से कोसों दूर थी।
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🌸 राधा का द्वंद्व
राधा का दिल चीख-चीखकर कह रहा था – “हाँ, मैं तुझसे प्यार करती हूँ अविनाश।”
लेकिन दिमाग कह रहा था – “अगर तूने हाँ कहा तो तेरे माँ-बाप की इज़्ज़त, तेरे पति का विश्वास सब मिट जाएगा।”
वो अपने आँसुओं में डूबी रही।
कभी खिड़की से आसमान को देखती, कभी तकिए में चेहरा छिपा लेती।
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🌸 अमित की बेचैनी
दूसरी तरफ़, अमित भी सो नहीं पा रहा था।
राधा की चुप्पी, उसकी आँखों के आँसू, उसका खोया हुआ चेहरा – सब अमित के दिल में सवाल खड़े कर रहे थे।
“क्या राधा मुझसे प्यार नहीं करती? क्या उसका अतीत किसी और से जुड़ा हुआ है?”
अमित भले ही सख़्त दिखने की कोशिश करता, लेकिन वो दिल से बेहद संवेदनशील इंसान था।
वो चाहता था कि राधा उसे अपना बनाए, लेकिन राधा की खामोशी उसे तोड़ रही थी।
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🌸 अविनाश की बेक़रारी
अविनाश दिन गिन रहा था।
उसने सोचा – “राधा जवाब ज़रूर देगी। वो चाहे जो भी कहे, मुझे सच्चाई जाननी ही होगी।”
उसका मन बेचैनी से भरा हुआ था।
दिनभर काम में मन नहीं लगता, हर पल नज़र उसी गली की तरफ़ जाती, जहाँ से कभी राधा का संदेश आ सकता था।
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🌸 राधा का जवाब
दो दिन बाद, राधा ने काँपते हाथों से कलम उठाई।
उसने सफ़ेद कागज़ पर लिखा –
"अविनाश, तू मेरा पहला प्यार है। आज भी मेरी हर धड़कन तेरे लिए है।
लेकिन मैं इस बंधन से निकल नहीं सकती।
मेरे माँ-बाप ने जो विश्वास मुझ पर रखा है, मैं उसे तोड़ नहीं सकती।
मुझे माफ़ कर देना… अगर मेरी वजह से तू टूट रहा है।
तेरी राधा हमेशा तुझसे मोहब्बत करती रहेगी, लेकिन अब सिर्फ़ अपने दिल में।"
उसने चिट्ठी को मोड़ा और अपने भाई की मदद से अविनाश तक भिजवा दी।
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🌸 अविनाश का टूटना
चिट्ठी हाथ में आते ही अविनाश की धड़कनें तेज़ हो गईं।
उसने उसे खोला और पढ़ा।
हर शब्द उसके दिल पर चोट कर रहा था।
उसकी आँखों से आँसू बह निकले।
उसने जोर से चिट्ठी सीने से लगा ली और कहा –
“राधा, तूने मुझसे प्यार किया, बस यही काफी है। लेकिन अब मैं इस दुनिया में क्यों रहूँ?”
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🌸 अमित की चिंता
उसी रात, अमित ने देखा कि राधा चुपचाप खिड़की पर बैठी है।
उसकी आँखें सूजी हुई थीं।
अमित ने धीरे से उसके पास जाकर कहा –
“राधा, अगर तुझे मुझसे कुछ कहना है तो कह दे।
मैं तेरे दिल की मजबूरी समझ सकता हूँ। लेकिन चुप रहकर तू खुद को भी दुख दे रही है और मुझे भी।”
राधा की आँखों से आँसू बह निकले।
उसने चाहा कि सब सच कह दे, लेकिन उसके होंठों से बस इतना निकला –
“मैं ठीक हूँ, अमित जी।”
अमित ने मन ही मन ठान लिया कि अब वो सच ज़रूर जानकर रहेगा।
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🌸 भाग-5 का अंत
अगले दिन सुबह गाँव में खबर फैली –
“अविनाश घर से गायब है। कोई नहीं जानता वो कहाँ गया।”
राधा के हाथ से थाली गिर गई।
उसका दिल जोर-जोर से धड़कने लगा।
बहुत अच्छा 👌
अब मैं आपके लिए भाग-6 (लगभग 2000 शब्द) तैयार करूँगा। इस भाग में कहानी और गहरी हो जाएगी –
अविनाश के अचानक गायब होने की वजह से गाँव में हलचल।
राधा की बेचैनी और अपराधबोध।
अमित का शक और भी बढ़ना।
और कहानी में एक नया मोड़ आएगा जहाँ सब कुछ बदलना शुरू होगा।
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🌹 बंधन (अनकही दास्तान) – भाग 6
गाँव में सूरज की पहली किरण फैली ही थी कि चौपाल पर लोग इकट्ठे हो गए।
हर कोई एक ही बात कर रहा था – “अविनाश कल रात से घर नहीं लौटा।”
उसकी माँ रो-रोकर बेहाल थी।
“मेरा बेटा कहाँ चला गया? किसने उसे क्या कह दिया?”
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🌸 राधा की हालत
ये खबर सुनते ही राधा के पैरों तले ज़मीन खिसक गई।
उसके कानों में वही चिट्ठी गूंज रही थी – “अगर तू हाँ नहीं कहेगी तो मैं हमेशा के लिए खामोश हो जाऊँगा।”
उसका दिल चीख-चीखकर कह रहा था – “हे भगवान! मैंने क्या कर दिया? मेरी वजह से वो कहीं जान तो नहीं दे बैठा?”
उसने खुद को कमरे में बंद कर लिया और बेकाबू होकर रोने लगी।
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🌸 अमित का शक
अमित ने राधा की हालत देखी।
उसकी आँखों में बेचैनी और डर साफ़ नज़र आ रहा था।
वो पास आया और बोला –
“राधा, तू कुछ छिपा रही है मुझसे।
तेरी आँखें बता रही हैं कि तू इस सब के पीछे कुछ जानती है।”
राधा ने घबराकर कहा –
“न…नहीं अमित जी, मैं तो बस… बस यूँ ही परेशान हूँ।”
लेकिन अमित का दिल मानने को तैयार नहीं था।
उसने ठान लिया कि अब चाहे जो हो, वो इस राज़ को ज़रूर खोलेगा।
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🌸 अविनाश की तलाश
गाँव के लड़के टॉर्च लेकर इधर-उधर ढूँढ रहे थे।
कभी खेतों में, कभी नदी किनारे, कभी पुराने मंदिर में।
हर कोई दुआ कर रहा था कि अविनाश सुरक्षित मिले।
लेकिन उसका कहीं कोई सुराग नहीं था।
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🌸 राधा का अपराधबोध
राधा ने खिड़की से बाहर देखा।
गाँव वाले खोज में लगे थे, पर उसका मन चीख रहा था –
“अगर उन्होंने अविनाश की लाश ढूँढ ली तो? सबको पता चल जाएगा कि उसकी मौत की वजह मैं हूँ…”
उसने मन ही मन भगवान से प्रार्थना की –
“हे प्रभु, अविनाश को बचा लेना। चाहे सज़ा मुझे दे देना, लेकिन उसे मत छीनना।”
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🌸 अमित की जाँच
अमित ने उसी रात राधा के कमरे में जाकर चुपचाप उसकी अलमारी खंगाली।
वहाँ से उसे एक मुड़ी-तुड़ी चिट्ठी मिली।
उसमें लिखा था –
"अविनाश, तू मेरा पहला प्यार है… लेकिन मैं तेरे साथ नहीं जा सकती।"
ये पढ़ते ही अमित का दिल हिल गया।
उसकी आँखों में आँसू भर आए और गुस्से से उसका चेहरा लाल हो गया।
“तो ये सच है… राधा का दिल कभी मेरा था ही नहीं।”
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🌸 अमित का तूफ़ान
अमित ने अगले दिन राधा से कोई बात नहीं की।
उसका चेहरा कठोर हो गया।
राधा ने कई बार कोशिश की उससे कुछ कहने की, लेकिन अमित बस खामोश रहा।
उसकी खामोशी राधा के दिल पर और गहरी चोट कर रही थी।
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🌸 अचानक खबर
तीसरे दिन अचानक खबर आई –
किसी ने नदी किनारे अविनाश का बैग देखा है।
उसमें उसके कपड़े और एक और चिट्ठी थी।
लोग दौड़ पड़े देखने।
राधा और अमित भी वहीं पहुँचे।
चिट्ठी में लिखा था –
"अगर मुझे मेरी मोहब्बत नहीं मिल सकती, तो मुझे जीने का कोई हक़ नहीं।
मैं हमेशा के लिए इस दुनिया से जा रहा हूँ।"
गाँव में सन्नाटा छा गया।
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🌸 राधा का टूटना
राधा वहीं ज़मीन पर गिर गई।
उसकी चीख सुनकर सबकी रूह काँप गई।
“नहीं… अविनाश ऐसा नहीं कर सकता। ये सब मेरी गलती है… मेरी वजह से सब हुआ।”
अमित ने उसे उठाने की कोशिश की, लेकिन उसके दिल में अब तूफ़ान था।
उसने सोचा – “जिस औरत ने किसी और से इतना प्यार किया, वो मेरे साथ कैसे रह सकती है?”
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🌸 भाग-6 का अंत
राधा की आँखों के सामने अंधेरा छा रहा था।
वो सोच रही थी – “क्या वाकई अविनाश चला गया? अगर हाँ, तो मैं कैसे जी पाऊँगी?”
ठीक है 👍
अब मैं आपके लिए भाग–7 (लगभग 2000 शब्द) तैयार कर दूँगा। इसमें कहानी और भी रोमांचक व इमोशनल हो जाएगी। इस भाग में —
गाँव वाले मान लेंगे कि अविनाश ने आत्महत्या कर ली।
राधा और अमित के बीच तनाव और गहराएगा।
लेकिन अचानक एक नया सुराग मिलेगा, जिससे शक होगा कि अविनाश की मौत उतनी सीधी नहीं है जितनी दिख रही है।
यहीं से कहानी एक रहस्य (mystery + romantic drama) मोड़ लेगी।
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🌹 बंधन (अनकही दास्तान) – भाग 7
गाँव की चौपाल पर शाम का अंधेरा उतर चुका था।
लालटेन की टिमटिमाती रोशनी में लोग फुसफुसा रहे थे –
"बेचारा अविनाश… प्यार में नाकाम होकर जान दे बैठा।"
उसकी माँ की चीखें अब भी गूँज रही थीं।
वो बार-बार बेहोश हो रही थी, और औरतें उसे सँभाल रही थीं।
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🌸 राधा की हालत
राधा की आँखों से आँसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे।
हर पल उसे लगता कि अब अविनाश सामने आ जाएगा और कहेगा –
"मैं यहाँ हूँ, राधा… तुझे छोड़कर कैसे जा सकता हूँ?"
लेकिन हक़ीक़त कड़वी थी।
नदी में मिला बैग और चिट्ठी सबूत थे कि अविनाश ने खुदकुशी कर ली।
राधा बुदबुदा रही थी –
“अगर मैंने उस रात उसे मना न किया होता, तो शायद आज ये सब न होता…”
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🌸 अमित की खामोशी
अमित अब भी ग़ुस्से में था।
उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह राधा से सवाल करे या खामोश रहे।
उसका दिल जल रहा था –
"जिसे मैंने अपनी पत्नी बनाया, उसका दिल तो किसी और का था।"
वो राधा से बात करता तो सिर्फ़ ठंडी नज़रों से।
ये खामोशी राधा को और तोड़ रही थी।
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🌸 गाँव में अफ़वाहें
लोगों ने कानाफूसी शुरू कर दी थी –
“सुना है राधा और अविनाश का चक्कर था…”
“अरे तभी तो वो इतना पागल था उसके लिए…”
राधा के परिवार तक ये बातें पहुँचने लगीं।
उसके पिता ने गुस्से में कहा –
“अगर ज़रा भी सच है इसमें तो हमारी इज़्ज़त मिट्टी में मिल जाएगी।”
राधा भीतर से टूट रही थी, लेकिन सच्चाई किसी को बताने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही थी।
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🌸 नया सुराग
इसी बीच गाँव के एक लड़के ने खबर दी –
“कल रात नदी किनारे मैंने किसी को देखा था… वो अविनाश नहीं था, कोई और था जो जल्दी-जल्दी भाग रहा था।”
ये सुनते ही सबके होश उड़ गए।
क्या वाकई अविनाश ने खुदकुशी की थी या फिर… कुछ और?
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🌸 अमित की सोच
अमित चुपचाप ये सब सुन रहा था।
उसके दिमाग में एक नया शक जन्म लेने लगा –
"अगर अविनाश की मौत साधारण आत्महत्या नहीं है, तो फिर उसके पीछे कौन है?"
उसने तय किया कि वो इस राज़ की तह तक जाएगा।
लेकिन उसके मन का एक कोना अब भी कह रहा था –
"चाहे सच कुछ भी हो, राधा का दिल अब भी उसी अविनाश के पास है।"
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🌸 राधा का सपना
उस रात राधा को एक अजीब सपना आया।
वो देख रही थी कि अविनाश उसी नदी किनारे खड़ा है, भीगा हुआ, और कह रहा है –
"राधा… मैं मरा नहीं हूँ… कोई मुझे दूर ले गया है… बचा ले मुझे।"
राधा नींद से चौंककर उठ बैठी।
उसका दिल कह रहा था कि अविनाश ज़िंदा है।
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🌸 भाग–7 का अंत
राधा ने खिड़की से बाहर अंधेरे में झाँका और ठान लिया –
"मुझे सच्चाई पता करनी ही होगी। चाहे इसके लिए मुझे सबके खिलाफ़ क्यों न जाना पड़े।"
🌹 बंधन – एक अनकही दास्तान (भाग–8)
रात का सन्नाटा पूरे गाँव पर छा चुका था। आकाश में आधा चाँद टंगा था, और उसकी फीकी चाँदनी में राधा की आँखें बार-बार खुल रही थीं। नींद उसके पलकों से कोसों दूर थी। दिल की गहराइयों में जो बेचैनी पल रही थी, उसने उसे चैन से सोने नहीं दिया।
उस रात का सपना अब भी उसकी आँखों के सामने तैर रहा था—
अविनाश, भीगे कपड़ों में नदी किनारे खड़ा, उसकी तरफ हाथ बढ़ाते हुए कह रहा था –
"राधा… मैं मरा नहीं हूँ… मुझे बचा ले…"
राधा हड़बड़ाकर उठ बैठी थी। अब उसके लिए यह सपना सिर्फ़ सपना नहीं था, बल्कि दिल की पुकार बन चुका था। उसे पूरा यक़ीन था कि अविनाश ज़िंदा है।
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🌸 राधा का संकल्प
सुबह की पहली किरण जैसे ही खिड़की से भीतर आई, राधा ने निश्चय कर लिया।
"मैं सच की तलाश करूँगी। चाहे कोई मेरा साथ दे या न दे, लेकिन मुझे जानना ही होगा कि अविनाश कहाँ है।"
वो मन ही मन यह भी समझ रही थी कि अमित उस पर शक करता है। मगर वह अमित को अपनी बेचैनी नहीं बता सकती थी। अगर उसने यह कह भी दिया कि अविनाश ज़िंदा है, तो शायद अमित और भी नाराज़ हो जाता।
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🌸 अमित की उलझन
अमित हाल ही में और ज्यादा खामोश हो गया था।
गाँव वाले उसके कानों में फुसफुसाते –
“तेरी बीवी तो अविनाश से प्यार करती थी, तभी तो वो पागल हो गया…”
ये बातें अमित को भीतर तक चोट पहुँचा रही थीं।
राधा अगर उससे दो बातें करना भी चाहती, तो वह ठंडी नज़रों से जवाब देता।
पर उसके दिल में एक दूसरी ही लड़ाई चल रही थी।
"अगर वाक़ई अविनाश ने खुदकुशी नहीं की… तो क्या राधा सच कह रही है? और अगर वह सच कह रही है, तो इसका मतलब…?"
अमित खुद को समझ नहीं पा रहा था।
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🌸 गाँव का नया राज़
तीन दिन बाद गाँव में अचानक हलचल मच गई।
नदी किनारे काम करने वाले मछुआरे ने बताया –
“भाई लोगों, कल रात मैंने नदी के उस पार किसी को देखा। वो किसी से झगड़ रहा था… और उसके पास अविनाश जैसा ही बैग था।”
यह सुनते ही लोग फिर से कानाफूसी करने लगे।
“क्या सच में अविनाश ज़िंदा है?”
“या फिर कोई और चाल चल रहा है?”
ये बातें राधा तक पहुँचीं। उसका दिल तेज़ी से धड़कने लगा।
"मैं जानती थी… अविनाश ज़िंदा है। भगवान ने मुझे बेवजह वो सपना नहीं दिखाया।"
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🌸 राधा का संघर्ष
राधा चाहती थी कि वह सब कुछ अमित को बताए। मगर अमित का चेहरा देखकर उसके होंठ बंद हो जाते।
अमित ने भी ठान लिया था कि वह सच का पता लगाएगा, मगर अकेले।
राधा रात को अक्सर अपनी डायरी में लिखने लगी –
“पता नहीं ये कैसा बंधन है… शादी के बाद भी दिल उसी से जुड़ा है। शायद इस जन्म का नहीं, कई जन्मों का रिश्ता है। अगर वो सच में ज़िंदा है, तो मैं उसे ढूँढ निकालूँगी।”
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🌸 पहला सबूत
एक शाम राधा अकेली खेतों की तरफ़ जा रही थी। तभी उसकी नज़र एक पुराने पीपल के पेड़ के पास गिरी। वहाँ मिट्टी में कुछ दबा हुआ था। उसने साहस करके उसे निकाला—
वो अविनाश की चाबी थी, वही चाबी जो वो हमेशा अपनी जेब में रखता था।
राधा की आँखें भर आईं।
"तो इसका मतलब वो यहाँ आया था… यानी वो ज़िंदा है।"
लेकिन जैसे ही वह चाबी लेकर घर लौटी, अमित ने देख लिया।
“ये कहाँ से लाई हो?” – अमित ने कड़े स्वर में पूछा।
राधा सकपका गई। उसने कुछ कहने की कोशिश की, मगर शब्द गले में अटक गए।
अमित ने उसकी आँखों में झाँका।
“राधा, सच-सच बता दो। अगर अविनाश ज़िंदा है तो तुम जानती हो न?”
राधा खामोश रही। उसकी चुप्पी ही अमित के लिए जवाब थी।
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🌸 रिश्ते की दरार
उस रात अमित ने पहली बार अपना दर्द बाहर निकाला।
“राधा, मैंने सोचा था तू मेरी जीवन संगिनी बनेगी। लेकिन आज भी तेरे दिल में उसी अविनाश का नाम है। मैं तेरे साथ रहते हुए भी अकेला हूँ।”
राधा रो पड़ी।
“अमित, ऐसा मत कहो। मैं तुम्हारा सम्मान करती हूँ, लेकिन दिल पर मेरा बस नहीं। मैं सच कहती हूँ… मुझे लगता है अविनाश ज़िंदा है। और अगर वो ज़िंदा है, तो मुझे सच्चाई जाननी ही होगी।”
अमित ने आँखें बंद कर लीं।
“ठीक है, लेकिन याद रखना… अगर तू अविनाश को ढूँढने निकली तो पूरा गाँव तुझ पर उंगली उठाएगा। और शायद मैं भी तेरा साथ न दे पाऊँ।”
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🌸 नया मोड़
अगले दिन गाँव में खबर फैली कि जंगल के रास्ते किसी अजनबी को देखा गया है, जो चेहरा ढँके हुए था।
लोग कह रहे थे – “उसकी चाल, उसकी ऊँचाई… सब अविनाश जैसी थी।”
राधा का दिल जोर-जोर से धड़कने लगा।
वो दौड़कर उसी जंगल की ओर निकल पड़ी। उसके कदम काँप रहे थे, लेकिन हिम्मत ने उसे थाम रखा था।
जंगल की झाड़ियों में चलते-चलते उसे एक आवाज़ सुनाई दी—
“राधा…”
वो आवाज़ वही थी, जिसे सुनने के लिए उसका दिल बरसों से तरस रहा था।
उसने पागलों की तरह इधर-उधर देखा।
लेकिन सामने कोई नहीं था।
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🌸 भाग–8 का अंत (ट्विस्ट)
राधा की साँसें अटक गईं।
क्या सच में ये अविनाश था?
या फिर कोई उसे धोखा देने की कोशिश कर रहा था?
वो धीरे-धीरे आगे बढ़ी। अचानक उसके सामने पेड़ की छाँव से कोई निकलकर भागा।
उसकी झलक पाते ही राधा की आँखें चौंधिया गईं।
वो यक़ीनन अविनाश था।
राधा वहीं खड़ी रह गई, उसके होंठों से सिर्फ़ एक शब्द निकला –
“अविनाश…”